जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि के कारण प्राकृतिक आपदाओं की संख्या में बढ़ोत्तरी, ग्लोबल वार्मिंग खुद एक आपदा
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महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
Variation in temperatures decreases crop yields but increases social trust. पिछले कुछ वर्षों से जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि के कारण प्राकृतिक आपदाओं की संख्या और तीव्रता बढ़ी है, इन सबके बीच कोविड 19 महामारी भी एक वैश्विक आपदा बनकर उभरी। आपदाएं अब वैश्विक सामान्य स्थिति बन गईं हैं, क्योंकि पूरे वर्ष दुनिया का कोई न कोई हिस्सा आपदाओं की चपेट में रहता है। तापमान वृद्धि स्वयं एक आपदा है और पूरे विश्व को प्रभावित कर रही है।
चरम गर्मी और साल-दर-साल तापमान के उच्चतम स्तर का रिकॉर्ड टूटना अब सामान्य स्थितियां बन गईं हैं। सामान्य तापमान में अंतर कृषि उत्पादकता को प्रभावित करता है। कृषि उत्पादकता का सीधा असर सामाजिक और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। इटली की यूनिवर्सिटी ऑफ़ टुरिन की समाज विज्ञानी प्रोफेसर एडिलेड बारोंचेल्ली ने हाल में ही वियतनाम के ग्रामीण क्षेत्रों में तापमान में असमानता का कृषि पर प्रभाव और ऐसे प्रभाव के बीच सामाजिक सद्भावना का गहन अध्ययन किया है। इस अध्ययन को पीस इकोनॉमिक्स पीस साइंस एंड पब्लिक पालिसी नामक जर्नल में प्रकाशित किया गया है।
इस अध्ययन के अनुसार जब चरम तापमान की घटनाएं बढ़ती हैं तब धान की उपज कम हो जाती है, पर ऐसे समय सामाजिक सद्भावना और भरोसा बढ़ जाता है। दुनियाभर में समाज का अस्तित्व भरोसा और विश्वास पर ही टिका है, और आपदा जैसी कठिन परिस्थितियों में इस भरोसे का स्तर प्रभावित होता है।
प्रोफेसर एडिलेड बारोंचेल्ली के अनुसार अध्ययन से पहले उनका आकलन था कि ऐसी परिस्थितियों में सामाजिक भरोसा कम हो जाता होगा, क्योंकि धान वियतनाम की मुख्य पैदावार है और इस पर पूरे ग्रामीण क्षेत्रों का पोषण और अर्थव्यवस्था टिकी है। धान की पैदावार के सन्दर्भ में वियतनाम का स्थान दुनिया में 5वां है और वहां के निवासियों के कुल कैलोरी खपत में से आधा से अधिक चावल की देन है।
इस अध्ययन के लिए जून के महीने में चरम तापमान की और बारिश के आंकड़ों का आकलन किया गया। वियतनाम में जून के महीने में औसत तापमान में परिवर्तन का असर धान की पैदावार पर सीधा पड़ता है। सामाजिक भरोसे का आकलन कठिन है, पर इस अध्ययन के लिए वियतनाम में सरकारी स्तर पर दो वर्षों के अंतराल पर किये जाने वाले रिसोर्स हाउसहोल्ड सर्वे का सहारा लिया गया।
इस सर्वे में सामाजिक भरोसे से सम्बंधित अनेक प्रश्न पूछे जाते हैं। अध्ययन के अनुसार औसत तापमान में अंतर के बाद सामाजिक भरोसा बढ़ जाता है। औसत तापमान में 0.1 डिग्री सेल्सियस के अंतर के बाद सामाजिक भरोसा 1 से 3 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। औसत तापमान में जितना अंतर आता है, सामाजिक भरोसा उतना अधिक बढ़ जाता है।
प्रोफेसर एडिलेड बारोंचेल्ली के इस अध्ययन को दूसरे देशों में भी करने की योजना बना रही हैं। पर इस अध्ययन में तापमान वृद्धि का असर केवल धान की पैदावार पर देखा गया है, खेती से जुड़े लोगों के स्वास्थ्य संबंधी खतरों पर बढ़ते तापमान के प्रभावों को नहीं देखा गया है। जलवायु परिवर्तन से पूरी दुनिया में तापमान बेतरतीब तरीके से बढ़ रहा है, चरम तापमान के नये रिकॉर्ड स्थापित होते जा रहे हैं – और इसके साथ ही खेतों में काम करने वाले कृषक श्रमिकों के स्वास्थ्य के खतरे बढ़ रहे हैं। अप्रत्याशित तापमान वृद्धि के कारण कृषि उत्पादकता में गिरावट देखी जा रही है।
रिस्क एनालिसिस करने वाली कंपनी, वेरिस्क मेपलक्रॉफ्ट द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार तापमान वृद्धि के कारण दुनिया में फसलों का बड़ा क्षेत्र वर्तमान में भी प्रभावित हो रहा है, पर अनुमान है कि वर्ष 2045 तक 71 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र प्रभावित होगा। वैश्विक स्तर पर अनाजों के मुख्य उत्पादकों में भारत अकेला देश है, जो वर्तमान में भी कृषि के सन्दर्भ में अत्यधिक संकट में है।
भारत का वर्ष 2020 में दुनिया के कुल खाद्यान्न उत्पादन में से 12 प्रतिशत का योगदान था। पर यहाँ जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि का कृषि क्षेत्र में असर लगातार देखा जा रहा है। वर्ष 2022 में मार्च से ही तापमान अप्रताषित ढंग से बढ़ना शुरू हुआ, जिससे गेहूं की पैदावार में लगभग 15 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई, और इसके बाद असमान बारिश के कारण अनेक क्षेत्र में धान की बुवाई नहीं की गयी।
वेरिस्क मेपलक्रॉफ्ट की रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान में भारत समेत 20 देशों की कृषि तापमान वृद्धि की भयानक मार झेल रही है, पर अनुमान है कि वर्ष 2045 तक 64 देश इसकी चपेट में होंगे। इन देशों में दुनिया के कुल खाद्यान्न का 71 प्रतिशत से अधिक उपजता है। इन देशों में भारत, चीन, ब्राज़ील और अमेरिका जैसे देश सम्मिलित हैं। वेरिस्क मेपलक्रॉफ्ट का आकलन यूनाइटेड किंगडम के मौसम विभाग के आंकड़ों पर आधारित है, जो पूरी दुनिया के तापमान का लेखाजोखा रखती है। वर्ष 2045 तक के आकलन के लिए आईपीसीसी के आकलन को शामिल किया गया है, जिसके अनुसार यदि ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन ऐसे ही किया जाता रहा तो वर्ष 2045 तक वैश्विक तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस तक की वृद्धि हो सकती है।
तापमान वृद्धि का सीधा असर चावल, कोकोआ और टमाटर जैसी फसलों पर सर्वाधिक होगा। चावल के सबसे बड़े उत्पादक दक्षिण-पूर्व एशिया के देश कंबोडिया, थाईलैंड और वियतनाम हैं – ये सभी देश उन देशों की सूची में शामिल हैं, जहां तापमान वृद्धि का असर कृषि उत्पादकता और कृषक श्रमिकों की सेहत पर पड़ने वाला है।