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Chhattisgarh Tribals' Killing : सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार पर SC ने लगाया 13 साल पुराने मामले में 5 लाख का जुर्माना, जांच के भी दिए आदेश

Janjwar Desk
14 July 2022 9:06 AM GMT
Chhattisgarh Tribals Killing : सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार पर SC ने लगाया 13 साल पुराने मामले में 5 लाख का जुर्माना, जांच के भी दिए आदेश
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Chhattisgarh Tribals' Killing : सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार पर SC ने लगाया 13 साल पुराने मामले में 5 लाख का जुर्माना, जांच के भी दिए आदेश (photo : facebook)

Chhattisgarh Tribals' Killing : सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता हिमांशु कुमार और 12 अन्य लोगों की तरफ से साल 2019 में दाखिल याचिका पर फैसला सुनाया, याचिकाकर्ता हिमांशु कुमार को चार हफ्तों के अंदर 5 लाख रुपये की जुर्माना जमा करने के आदेश दिए हैं...

Chhattisgarh Tribals' Killing : छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित क्षेत्र में काम करने वाले जाने माने मानवाधिकार कार्यकर्ता हिमांशु कुमार पर सुप्रीम कोर्ट ने पांच लाख का जुर्माना लगा दिया है। यह जुर्माना हिमांशु पर नक्सल विरोधी अभियान के दौरान छत्तीसगढ़ में आदिवासियों की न्यायेतर हत्या की जांच को लेकर 13 साल पुरानी याचिका को खारिज करते हुए लगाया गया है। इसके साथ ही उच्चतम न्यायालय ने यह जांच करने की भी इजाजत दी है कि नक्सल चरमपंथियों को बचाने के लिए कोर्ट का इस्तेमाल तो नहीं किया जा रहा है।

बृहस्पतिवार 14 जुलाई को 13 साल पुरानी इस बहुचर्चित याचिका का निर्णय आने से पूर्व न्यायिक प्रक्रिया के प्रति अपनी आस्था प्रकट करते हुए हिमांशु कुमार ने बुधवार को अपने फेसबुक पेज पर इसकी जानकारी साझा करते हुए लिखा था कि 'कल सुप्रीम कोर्ट का फैसला आएगा। 16 आदिवासियों का पुलिस ने कत्ल किया था। डेढ़ साल के बच्चे का हाथ काट दिया गया था। मामला छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के गोमपाड़ गांव का है। मैं और आदिवासियों के रिश्तेदार 2009 में सुप्रीम कोर्ट में इंसाफ मांगने आए थे। हमने 13 साल इंतजार किया। उम्मीद है कल इंसाफ मिलेगा।'

लेकिन बृहस्पतिवार14 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता हिमांशु कुमार और 12 अन्य लोगों की तरफ से साल 2019 में दाखिल याचिका पर फैसला सुनाया। साथ ही कोर्ट ने याचिकाकर्ता कुमार को चार हफ्तों के अंदर 5 लाख रुपये की जुर्माना जमा करने के आदेश दिए हैं।

बता दें कि याचिकाकर्ता हिमांशु कुमार ने दंतेवाड़ा में साल 2009 में 17 आदिवासियों की हत्या के मामले में छत्तीसगढ़ पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों के खिलाफ सीबीआई जांच की मांग की थी। उन्होंने साल 2009 में दंतेवाड़ा जिले की तीन अलग-अलग घटनाओं में 17 ग्रामीणओं की मौत को लेकर अपनी तरफ से रिकॉर्ड गए बयानों के आधार पर याचिका दायर की थी। लगातार सुनवाई के बाद शीर्ष कोर्ट ने बीती 19 मई को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया गया था। बृहस्पतिवार 14 जुलाई को कोर्ट ने अपना यह सुना दिया।

फैसला आने से पूर्व जहां न्याय की आस में बैठे याचिकाकर्ता ने सकारात्मक निर्णय की अपेक्षा की थी तो आज बृहस्पतिवार को जब सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है तो हिमांशु लिखते हैं — 'मारे गए 16 आदिवासियों जिसमें एक डेढ़ साल के बच्चे का हाथ काट दिया गया था के लिए इंसाफ मांगने की वजह से आज सुप्रीम कोर्ट ने मेरे ऊपर 5 लाख का जुर्माना लगाया है। और छत्तीसगढ़ सरकार से कहा है कि वह मेरे खिलाफ धारा 211 के अधीन मुकदमा दायर करे। मेरे पास 5 लाख तो क्या 5 हजार रुपया भी नहीं है। मेरा जेल जाना तय है। अपराध यह कि इंसाफ क्यों मांगा !'

अपनी बात को वह एक गजल से खत्म करते हैं...

'जिस धज से कोई मकतल को गया वो शान सलामत रहती है

इस जान की कोई बात नहीं यह जान तो आनी जानी है'।

हिमांशु कुमार की याचिका को खारिज कर उनके खिलाफ पांच लाख की भारी भरकम राशि का जुर्माना लगाए जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय पर सोशल मीडिया पर विभिन्न प्रतिक्रियाएं आनी शुरू हो गई हैं। वरिष्ठ पत्रकार श्याम मीरा सिंह ने लिखा है कि छत्तीसगढ़ में 16 आदिवासी एक मुठभेड़ में मार दिए गए। आरोप ये भी है कि तभी इस बच्चे की उँगलियाँ भी काट दी गईं थीं। उसी वक्त जाँच के लिए आदिवासी एक्टिविस्ट हिमांशु कुमार ने साल 2009 में एक याचिका डाली। तब से अब 2022 तक इस याचिका पर कोई सुनवाई नहीं हुई। अचानक से सुप्रीम कोर्ट ने आज इस याचिका को ख़ारिज करते हुए याचिकाकर्ता पर 5 लाख का जुर्माने का आदेश दे दिया।

ये हत्याएँ छत्तीसगढ़ में भाजपा सरकार के वक्त हुईं थीं। याचिकाकर्ता जाँच चाहते थे। सुप्रीम कोर्ट ने ना केवल याचिकाकर्ता हिमांशु कुमार पर 5 लाख का जुर्माना लगाया। बल्कि छत्तीसगढ़ सरकार से उन पर एक केस करने का आदेश भी दिया है। यहाँ इंट्रेस्टिंग बात ये है कि ये आदेश जस्टिस खानविलकर की बेंच ने दिया है। इन्होंने ही पिछले महीने गुजरात दंगों की दोबारा से जाँच करने की माँग करने वाली जाकिया जाफरी की याचिका को भी ख़ारिज किया था।

न केवल ख़ारिज किया था, बल्कि सेम पैटर्न पर याचिका डालने वाली एक्टिविस्ट तीस्ता सीतलवाड़ के लिए कहा कि वे इस मुद्दे को अपने लिए भुना रही हैं और उन पर कार्रवाई हो, अगले ही दिन गुजरात सरकार ने उन्हें जेल में डाल दिया। बाक़ी अब क्या कहें। मतलब याचिकाकर्ताओं को ही अब टार्गेट किया जा रहा है। इतना भारी जुर्माना लगाया जा रहा है कि आगे कोई पीड़ितों के लिए लड़ने की सोचे भी नहीं। ये याचिका 13 साल से पड़ी हुई थी इस पर अब जाकर पहली बार सुनवाई हुई। आपको कुछ समझ आ रहा है? नहीं आ रहा? कोई बात नहीं।

क्या है धारा 211 ?

आईपीसी की धारा 211 के अनुसार क्षति करने के आशय से अपराध का मिथ्या आरोप-

जो कोई किसी व्यक्ति को यह जानते हुए कि उस व्यक्ति के विरुद्ध ऐसी कार्यवाही या आरोप के लिये कोई न्यायसंगत या विधिपूर्ण आधार नहीं है, क्षति कारित करने के आशय से उस व्यक्ति के विरुद्ध कोई दाण्डिक कार्यवाही संस्थित करेगा, या करवायेगा, या उस व्यक्ति पर मिथ्या आरोप लगायेगा कि उसने अपराध किया है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से या दोनों से, दण्डित किया जायेगा;

तथा यदि ऐसी दाण्डिक कार्यवाही मृत्यु, आजीवन कारावास या सात वर्ष या उससे अधिक के कारावास से दण्डनीय अपराध के मिथ्या आरोप पर संस्थित की जाये, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

सजा- दो वर्ष के लिए कारावास या जुर्माना या दोनों।

यदि आरोपित अपराध सात वर्ष या उससे अधिक अवधि के कारावास से दंडनीय है।

सजा- सात वर्ष के लिए कारावास और जुर्माना।

यदि आरोपित अपराध मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय है।

सजा- सात वर्ष के लिए कारावास और जुर्माना। यह एक जमानतीय, गैर-संज्ञेय अपराध है और प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है।

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