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One Nation One Election: एक देश एक चुनाव के लिए चुनाव आयोग तैयार - भाजपा का रहा है यह सबसे बड़ा एजेंडा

Janjwar Desk
10 Nov 2022 10:26 AM IST
One Nation One Election: एक देश एक चुनाव के लिए चुनाव आयोग तैयार - भाजपा का रहा है यह सबसे बड़ा एजेंडा
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One Nation One Election: अब जबकि बीजेपी के ही मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री के इस ड्रीम प्रोजेक्ट से श्रद्धा भाव से नहीं जुड़ पाते, तो बाकियों के बारे में क्या सोचा जाये? मोदी सरकार 2.0 के लिए बड़ा राजनातिक फायदा ये भी है कि विपक्ष अब भी बिखरा हुआ है और चुनाव नतीजों से लेकर अब तक विपक्षी नेताओं की एक रिव्यू मीटिंग भी नहीं हो पा रही है...

One Nation One Election - प्रधानमंत्री Narendra Modi के पसंदीदा प्रोजेक्ट में से एक 'एक देश-एक चुनाव' अब साकार होता दिख रहा है। टाइम्स ऑफ़ इंडिया के सवाल पर चुनाव आयुक्त ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा, 'एक देश एक चुनाव व्यवस्था के तहत निश्चित रूप से एक बहुत बड़े तंत्र की ज़रूरत है लेकिन ये एक ऐसा मुद्दा है जिसपर संसद को फ़ैसला करना होगा। संसदीय और विधानसभा चुनाव एक साथ कराना चुनाव आयोग के क्षेत्राधिकार में नहीं आता। हालांकि, हमने सरकार को ये बता दिया है कि भारत का चुनाव आयोग पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने के लिए तैयार है लेकिन इस मामले पर आख़िरी फ़ैसला विधायिका के हाथ में है।

'मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार बुधवार को पुणे में चुनाव आयोग के विषेश अभियान की शुरुआत करने के लिए पहुंचे थे। इस दौरान उन्होंने कहा, 'मेट्रो शहरों में चुनाव के लिए लोगों की उदासीनता सबसे बड़ी चुनौती है और इससे लोगों की भागीदारी बढ़ाकर ही निपटा जा सकता है।' लोकसभा और विधानसभाओं के एक साथ चुनाव कराने की व्यवस्था लागू कराना आसान नहीं होगा। इसके लिए संविधान में संशोधन करना होगा, दल-बदल क़ानून में संशोधन करना होगा। इसके अलावा जनप्रतिनिधि क़ानून और संसदीय प्रक्रिया से जुड़े अन्य क़ानूनों में भी बदलाव करने होंगे। चुनाव आयुक्त ने ये भी बताया कि देश में 100 साल से अधिक उम्र वाले 2.49 लाख मतदाता हैं और करीब 1.8 करोड़ वोटर 80 साल से अधिक उम्र के हैं। चुनाव आयोग अब उन युवाओं पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, जो 18 साल के होने जा रहे हैं।

मोदी सरकार की महत्वकांक्षी योजनाओं में है शामिल

'मोदी है तो मुमकिन है', स्लोगन के लिए ये भी अपवाद नहीं होता - अगर 2019 के आम चुनाव के साथ आंध्र प्रदेश और ओडिशा के अलावा कुछ और भी राज्य विधानसभाओं के लिए चुनाव हो गये होते। मगर, नहीं हो पाये। समय और पैसे में से ज्यादा कीमत किसकी है ये तो बहस का विषय है लेकिन एक बात तो साफ है कि 'एक देश-एक चुनाव' कराये जाने की स्थिति में दोनों की बचत है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले कई बार कह भी चुके हैं कि अगर लोकसभा और सभी विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होंगे तो इससे पैसे और समय की बचत होगी - क्योंकि बार बार चुनाव होने से प्रशासनिक कामकाज पर काफी असर पड़ता है।

सवाल ये है कि 'एक देश-एक चुनाव' भारत जैसे दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के लिए कितना फायदेमंद है? सिर्फ फायदेमंद ही है या नुकसानदेह भी है? कहीं ऐसा तो नहीं कि ऊपर से जो फायदा नजर आ रहा है, उसके पीछे बहुत बड़ा नुकसान छिपा हुआ है? फिर तो ये घाटे का सबसे बड़ा फायदा हो सकता है

एक देश-एक चुनाव' से कितना फायदा?

निर्विरोध कुछ होता है तो बहुत अच्छा लगता है. लोक सभा के नये स्पीकर ओम बिड़ला का चुनाव भी ऐसा ही हुआ। शायद और अच्छा लगता अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी चुनाव निर्विरोध हुआ होता। देश में न सही, कम से कम बनारस में तो ऐसा हो ही सकता था। वैसे वाराणसी लोक सभा सीट पर हुए चुनाव में जैसे उम्मीदवार उतरे थे उससे बेहतर तो निर्विरोध ही चुनाव हो गया होता। 2018 में प्रधानमंत्री मोदी के कुछ बयानों के बाद ऐसे कयास लगाये जाने शुरू हो गये थे जिसमें माना जा रहा था कि आम चुनाव के साथ ही काफी राज्यों के चुनाव हो सकते हैं। लेकिन, हुए नहीं। माना ये जा रहा था कि जिन राज्यों में बीजेपी की सरकार है वहां विधानसभा पहले भंग कर चुनाव कराये जाने पर सहमति बन सकती है। वो भी नहीं बनी।

अब जबकि बीजेपी के ही मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री के इस ड्रीम प्रोजेक्ट से श्रद्धा भाव से नहीं जुड़ पाते, तो बाकियों के बारे में क्या सोचा जाये? मोदी सरकार 2.0 के लिए बड़ा राजनातिक फायदा ये भी है कि विपक्ष अब भी बिखरा हुआ है और चुनाव नतीजों से लेकर अब तक विपक्षी नेताओं की एक रिव्यू मीटिंग भी नहीं हो पा रही है

GST और नोटबंदी जैसा ना साबित हो 'एक देश-एक चुनाव'

आम चुनाव पर अभी साढ़े तीन हजार करोड़ से ऊपर की रकम खर्च हो जाती है। जाहिर है विधानसभा चुनावों में भी यही हाल रहता होगा। माना जा रहा है कि एक साथ चुनाव कराये जाने से करीब 5500 करोड़ रुपये हर पांचवें साल बचाये जा सकते हैं। एक साथ चुनाव होने पर ये खर्च आधा तो हो सकता है, लेकिन इसके आजमाया जाने वाला नोटबंदी के बाद दूसरा नुस्खा लगता है। मोटे तौर पर तो यही लगता है - हर रोज चुनाव न हो तो सरकार काम पर फोकस कर पाएगी। अभी तो हाल ये है कि जिस काम के लिए देश में सरकार चुनी जाती है वो काम प्राथमिकता सूची में आखिरी पायदान पर पहुंच जाता है। मुश्किल भी तो है, अभी एक चुनाव से उबर कर विकास के काम पर मीटिंग भर होती है कि कोई न कोई चुनाव या उपचुनाव आ जाता है।

पीएम पर कोर्ट ने की थी सख्त टिप्पणी

चुनावी व्यस्तता सरकारी कामकाज पर कितना असर डालती है ये 2018 में कर्नाटक चुनाव के वक्त देखने को मिला था। तब प्रधानमंत्री को ईस्टर्न एक्सप्रेस वे का उद्घाटन करना था, लेकिन कर्नाटक विधानसभा चुनावों के चलते वक्त नहीं मिल रहा था। उससे पहले नॉर्थ ईस्ट में त्रिपुरा, मिजोरम और मेघालय विधानसभाओं के चुनावों ने भी प्रधानमंत्री का काफी वक्त ले लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने NHAI यानी नेशनल हाइवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया से पूछा कि जब एक्सप्रेस वे बनकर तैयार हो गया है तो जनता के लिए क्यों नहीं खोला जा रहा है? प्रधानमंत्री को इसका उद्घाटन अप्रैल में ही करना था। मई में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हुक्म दिया कि अगर महीने के अंत तक प्रधानमंत्री मोदी एक्सप्रेस वे का उद्घाटन नहीं करते तो 1 जून को उसे जनता के लिए खोल दिया जाये।

सुनवाई कर रही सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा, 'पिछली सुनवाई में हमें कहा गया था कि अप्रैल में प्रधानमंत्री मोदी एक्सप्रेस वे का शुभारंभ करेंगे, लेकिन अब तक यह उद्घाटन नहीं हो पाया। इसमें ज्यादा देरी दिल्ली की जनता के हित में नहीं है।' फिर बड़े ही सख्त लहजे में टिप्पणी की, 'प्रधानमंत्री का इंतजार क्यों किया जा रहा है, सरकार की ओर से कोर्ट में पेश हुए ASG भी तो उद्घाटन कर सकते हैं।'

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