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Lucknow news: फांसी की सजा पाए कैदियों को कैसे मिली पैरोल? मुख्य सचिव अदालत में तलब

Janjwar Desk
21 Dec 2021 11:02 AM IST
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(फांसी के कैदियों को पैरोल पर छोड़ने को लेकर कोर्ट नाराज)

सुप्रीम कोर्ट ने तो कोरोना के दौरान सिर्फ सात साल तक के सजायाफ्ता बंदियों को एक निश्चित समय के लिए पैरोल या अंतरिम जमानत पर छोड़ने के निर्देश दिए थे। जिसका अदालत ने मुख्य सचिव से जांच कराकर निजी हलफनामा मांगा था...

Lucknow News: कोरोना महामारी के दौरान फांसी की सजा पाए चार कैदियों (Convict's) को तीन बार पैरोल दिए जाने पर हाइकोर्ट ने सख्ती दिखाई है। इलाहाबाद हाइकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने सोमवार को नाराजगी जताते हुए मुख्य सचिव को दो घंटे के भीतर अदालत में हाजिर होने का निर्देश दिया था।

न्यायमूर्ति रमेश सिन्हाऔर न्यायमूर्ति विवेक वर्मा की खंडपीठ ने मुख्य सचिव राजेंद्र कुमार तिवारी (Rajendra Kumar Tiwari) को तलब किया तो मुख्य सचिव तीन बजे पेश हुए। अदालत में हाजिर होकर मुख्य सचिव ने अदालत के आदेश का समुचित पालन करने का आश्वासन किया।

दरअसल पिछली सुनवाई में कोर्ट ने मुख्य सचिव से पूछा था कि प्रदेश में ऐसे कितने बंदी रिहा किए गये जो उम्रकैद या सात साल से अधिक सजायाफ्ता हैं। सुप्रीम कोर्ट ने तो कोरोना के दौरान सिर्फ सात साल तक के सजायाफ्ता बंदियों को एक निश्चित समय के लिए पैरोल या अंतरिम जमानत पर छोड़ने के निर्देश दिए थे। जिसका अदालत ने मुख्य सचिव से जांच कराकर निजी हलफनामा मांगा था।

मुख्य सचिव से नाराज हुआ कोर्ट

मुख्य सचिव राजेंद्र कुमार तिवारी की तरफ से सोमवार को कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया गया। सरकारी वकील ने अदालत को बताया कि कोरोना काल में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत हाईपावर कमेटी की सिफारिश पर 363 बंदियों को रिहा किया गया। हालांकि मुख्य सचिव यह बता पाने में असफल रहे कि आखिर किस आधार पर उम्रकैद की सजा पाए कैदियों को तीन बार पैरोल पर रिहा किया गया।

कोर्ट ने बताया गंभीर मसला

हाईकोर्ट ने पहले सुनवाई करते हुए कहा था कि शीर्ष अदालत के फैसले का सहारा लेकर हत्या के जुर्म में फांसी की सजा पाए बंदियों को राज्य सरकार ने पैरोल पर रिहा कर दिया, यह गंभीर सरोकार का मामला है। अदालत ने इस तरीके पर भी नाखुशी जाहिर की जिसमें शीर्ष कोर्ट के आदेश के दुरूपयोग को रोकने को लेकर राज्य का कोई प्राधिकारी इस गंभीर नाकामी को रोकने को लेकर सतर्क नहीं था। इसके साथ ही अदालत ने बंदियों को सीजेएम फैजाबाद की अदालत में तुरंत सरेंडर होने का निर्देश दिया।

क्या था मामला?

फैजाबाद की सत्र अदालत ने कृष्ण मुरारी उर्फ मुरली, रघव राम, काशी राम व राम मिलन को 21 दिसंबर 1999 को हत्या के जुर्म में फांसी की सजा सुनाई थी। चारों ने हाईकोर्ट में अपील की। अपील पर सुनवाई के दौरान सरकारी वकील ने अदालत को बताया कि शीर्ष कोर्ट के 23 मार्च 2020 के आदेश के अनुपालन में चारों अपीलकर्ताओं को तीन बार 60-60 दिन की पैरोल पर रिहा किया गया। इसपर कोर्ट ने पूछा कि सभी को फांसी की सजा सुनाई गई थी फिर पैरोल पर कैसे छोड़ दिया गया। जिसके बाद चारों दोषियों के ्धिवक्ता तर्कसंगत जवाब नहीं दे सके।

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