बेटे असद के तथाकथित एनकाउंटर के ठीक बाद मीडिया के सामने पुलिस की घेराबंदी में अतीक अहमद की हत्या से सत्ता और पुलिस प्रशासन पर उठते सवाल
पिछले 5 वर्षों के आंकड़ों के अनुसार न्यायिक हिरासत में सबसे अधिक मौतें उत्तर प्रदेश में और पुलिस हिरासत में सबसे अधिक मौतें गुजरात में होती हैं
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
India is forth in the world in respect of killings by police. हाल में ही म्यांमार में सेना का विरोध और प्रजातंत्र का समर्थन करने वाले एक गुट, पीपल्स डिफेन्स फ़ोर्स, ने उत्तर-पश्चिमी इलाके के पज़िग्यी गाँव में अपने कार्यालय के उदघाटन का समारोह आयोजित किया था, जिसमें इसके कार्यकर्ताओं के साथ ही स्थानीय आबादी और स्कूली बच्चों ने भी हिस्सा लिया था। इसके उदघाटन के समय जब बच्चे सांस्कृतिक कार्यक्रम कर रहे थे, म्यांमार की वायु सेना ने लड़ाकू जेट से इस जगह पर बम बरसाए। इसमें नया कार्यालय भवन ध्वस्त हो गया और 100 से भी अधिक नागरिक मारे गए, जिसमें 20 से अधिक बच्चे शामिल हैं। लड़ाकू जेट द्वारा बम बरसाने के बाद भी वायु सेना के हेलीकाप्टर ने इस क्षेत्र में लोगों पर आसमान से गोलियां चलाईं। इस घटना को म्यांमार की सेना ने बड़े गर्व से स्वीकार किया है। आश्चर्य यह है कि म्यांमार सेना जैसे घोषित युद्ध अपराधियों की मदद भारत सरकार ऐसे समय खुलेआम कर रही है, जब जी20 की अध्यक्षता उसके पास है और इसके सभी सदस्य खामोशी से यह युद्ध अपराध और निरंकुशता देख रहे हैं।
हाल में ही ग्लोबल विटनेस और एमनेस्टी इन्टरनेशनल द्वारा संयुक्त तहकीकात के बाद यह स्पष्ट हुआ कि पश्चिमी देशों और अमेरिका द्वारा वायुयानों में इस्तेमाल किये जाने वाले एवियेशन फ्यूल की आपूर्ति पर प्रतिबन्ध लगाने के बाद भी म्यांमार के बंदरगाहों पर एवियेशन फ्यूल से भरे टैंकर पहुँच रहे हैं। यह समाचार महत्वपूर्ण है क्योंकि म्यांमार की सेना लड़ाकू विमानों से भी अपने देश की जनता पर हमले कर रही है। म्यांमार के बंदरगाहों पर पहुंचे एविएशन फ्यूल से भरे टैंकरों में से कम से कम एक टैंकर ऐसा भी था जो भारत से गया था।
“प्राइम वी” नामक यह टैंकर ग्रीक की कंपनी सी ट्रेड मरीन का है, और इसका इन्स्युरेंस जापान के पी एंड जी क्लब ने किया था। यह 28 नवम्बर 2022 को गुजरात के सिक्का बंदरगाह के रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के टर्मिनल से ए1 श्रेणी का एविएशन फ्यूल लेकर 10 दिसम्बर 2022 को म्यांमार के थिलावा बंदरगाह पर पहुंचा था। म्यांमार सेना के लिए लड़ाकू विमान रूस और चीन दे रहे हैं और भारत लड़ाकू वायुयानों के इंधन और हथियार भेज रहा है – तभी तमाम प्रतिबंधों के बाद भी म्यांमार सेना की ताकत कम नहीं हो रही है और अपनी ही जनता पर तमाम लड़ाकू विमानों और हथियाओं का उपयोग कर रही है।
भारत एक ऐसा देश है, जहां पिछले कुछ वर्षों से प्रजातंत्र के नाम पर पुलिसिया राज चल रहा है, सत्ता की निरंकुशता बढ़ती जा रही है, ध्रुवीकरण और तुष्टिकरण की राजनीति का वर्चस्व है, एनकाउंटर और बुलडोज़र का न्याय है, सभी संवैधानिक संस्थाओं का सरकारीकरण हो गया है, पूंजीपतियों की चाटुकार मीडिया खुलेआम नफरत और धर्म की राजनीति में व्यस्त है, निष्पक्ष पत्रकार या तो मारे जा चुके हैं या फिर जेलों में बंद हैं, निचली अदालतें सत्ता की दलाल बन चुकी हैं और बेशर्मी से सत्ता लगातार सर्वोच्च न्यायालय पर हमले करती जा रही है।
इन सबके बीच जनता महंगाई और बेरोजगारी से कराह रही है और सत्ता आत्ममुग्ध है। अपने देश में जब सरकार की नाकामियाँ सामने आने लगती हैं तब इन नाकामियों से ध्यान हटाने के लिए सत्ता कुछ वीभत्स काण्ड की व्यूहरचना करती है। इसके बाद मीडिया पूरी आबादी का ध्यान सत्ता की नाकामियों से हटाकर सत्ता द्वारा रचे गए काण्ड की तरफ मोड़ देती है। दरअसल, यही बीजेपी शासित केंद्र और राज्यों का तथाकथित विकास है। हमारे सत्ता की विदेश नीति भी रूस, चीन, म्यांमार, बांग्लादेश जैसे तमाम निरंकुश सत्ता को मदद करने की बन गयी है। जाहिर है, हमारी सत्ता के आतंक से केवल हमारे देश की आबादी ही नहीं बल्कि दुनिया के कई देशों की आबादी कराह रही है।
म्यांमार की सत्ता में बैठी हत्यारी सेना तो हमारी प्रधानमंत्री की मुरीद है, और वहां के सेना प्रमुख हरेक मौके पर मदद के लिए रूस, चीन के साथ ही भारत को धन्यवाद करना नहीं भूलते। सेना द्वारा प्रजातांत्रिक सरकार का तख्तापलट के बाद से अमेरिका और अधिकतर यूरोपीय देशों ने म्यांमार पर प्रतिबन्ध लगाए हैं, और सेना को रक्षा उपकरणों की बिक्री रोक दी है। ऐसे माहौल में रक्षा उपकरणों और विमान के इंधन जैसे जरूरी पदार्थों की आपूर्ति रूस, चीन और भारत द्वारा की जा रही है। म्यांमार की सेना इन उपकरणों और इंधन से भरे लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल किसी दूसरे दुश्मन देश के लिए नहीं बल्कि अपनी ही जनता के ऊपर कर रही है।
हमारे देश में पुलिस और सेना द्वारा नागरिकों की हत्याएं अब सामान्य घटनाएं हैं। हाल में ही झांसी में अतीक अहमद के बेटे मुहम्मद असद को तथाकथित एनकाउंटर में मार दिया गया। उत्तर प्रदेश पुलिस के इस कायराना हरकत की जाहिर है मुख्यमंत्री ने खूब तारीफ़ की और कहा कि इससे अपराधियों को सबक मिलेगा। किसी प्रजातंत्र में ऐसी ह्त्या का गुणगान केवल भारत में ही किया जा सकता है। उत्तर प्रदेश में इस तरह के तथाकथित एनकाउंटर लगातार किये जाते हैं, और ऐसे हरेक एनकाउंटर के बाद मुख्यमंत्री गर्व से प्रदेश के अपराधियों को समाप्त करने और सबक सिखाने की बात करते हैं, पर न तो आज तक अपराध ख़त्म हुआ और ना ही अपराधी, पर मुख्यमंत्री जी बेशर्मी से वक्तव्य दुहराते रहते हैं, बल्कि ऐसे हरेक वक्तव्य के ठीक बाद ही सत्ता द्वारा अपराधियों के संरक्षण का उदाहरण सामने आ जाता है।
इस बार भी झांसी में मुहम्मद असद को तथाकथित एनकाउंटर के ठीक बाद ही अतीक अहमद की मीडिया के कैमरों के सामने ही और योगी के बहादुर पुलिस वालों के घेरे के बीच ही हत्या कर दी जाती है। इसके बाद भी मोदी जी और आदित्यनाथ बार-बार लगातार उत्तर प्रदेश के क़ानून व्यवस्था की सराहना करते रहेंगे, और कुछ वर्षों के भीतर ही तीनों हत्यारे बीजेपी की तरफ से विधानसभा में बैठे नजर आयेंगे। ह्त्या के साक्षी रहे कुछ पुलिसवालों को आदित्यनाथ बड़े गर्व से पुरस्कृत कर रहे होंगे।
हमारा देश पुलिस और सेना द्वारा जनता की हत्याओं के सन्दर्भ में फिलीपींस, ब्राज़ील और वेनेज़ुएला के बाद दुनिया में चौथे स्थान पर है। इसके बाद के स्थान पर क्रम से सीरिया, एल साल्वाडोर, अमेरिका, नाइजीरिया, अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान हैं। इस इंडेक्स को वर्ल्ड पापुलेशन रिव्यु ने तैयार किया है। अमेरिका में पुलिस ने वर्ष 2022 में 1176 नागरिकों की ह्त्या की।
जुलाई 2022 में लोकसभा में बताया गया था कि अप्रैल 2020 से मार्च 2022 में बीच देश में न्यायिक और पुलिस हिरासत में सम्मिलित तौर पर 4484 मौतें दर्ज की गईं हैं, जबकि तथाकथित पुलिस एनकाउंटर में 233 लोग मारे जा चुके हैं। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अनुसार वर्ष 2021-2022 के दौरान देश में न्यायिक हिरासत में 2152 मौतें और पुलिस हिरासत में 175 मौतें दर्ज की गईं। पिछले 5 वर्षों के आंकड़ों के अनुसार न्यायिक हिरासत में सबसे अधिक मौतें उत्तर प्रदेश में और पुलिस हिरासत में सबसे अधिक मौतें गुजरात में होती हैं। खतरनाक तथ्य यह है कि ऐसी मौतें साल-दर-साल बढ़ती जा रही हैं। वर्ष 2020-21 के दौरान पुलिस हिरासत में 100 मौतें दर्ज की गईं थीं जबकि 2021-22 में यह आंकड़ा 175 तक पहुँच गया। इसी तरह न्यायिक हिरासत में होने वाली मौतों का आंकड़ा वर्ष 2019-20, 2020-21 और 2021-22 के लिए क्रमशः 1584, 1840 और 2152 है।
यह सब प्रजातंत्र की माँ का नया चेहरा है, जाहिर है हमारी सत्ता निरंकुशता की मिसाल है जिससे सभी निरंकुश देश सबक ले रहे हैं। अब हमारी सत्ता का आतंक केवल देश में ही नहीं बल्कि दुनिया में फ़ैल गया है। हम जनता की हत्या के संदर्भ में वैश्विक स्तर पर पहुँच गए हैं – कम से कम इस सन्दर्भ में निश्चित तौर पर विश्वगुरु हैं। म्यांमार में सत्ता द्वारा 100 हत्याओं पर दुनिया में कोहराम मचता है, पर भारत में हजारों हत्याओं के बाद भी कोई आवाज नहीं उठती।