केरल से हाथरस आ रहे पत्रकार को योगी की पुलिस ने आतंकी बताकर किया अरेस्ट, आक्रोश में केरल यूनियन
मलयालम पत्रकार सिद्धिक कप्पन को यूपी पुलिस ने यूपी दंगों के साजिशकर्ता के बतौर किया है गिरफ्तार
मनीष दुबे की रिपोर्ट
जनज्वार। केरल यूनियन ऑफ़ वर्किंग जर्नलिस्ट् ने केरल के पत्रकार सिद्धिक कप्पन को यूपी पुलिस द्वारा गिरफ़्तार करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की है। सिद्धिक कप्पन हाथरस में 19 साल की दलित लड़की से बलात्कार और हत्या की घटना को कवर करने के लिए जा रहे थे।
लाइव लॉ में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक गिरफ्तारी को गैरकानूनी और असंवैधानिक करार देते हुए केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट ने याचिका दायर की है कि सुप्रीम कोर्ट के समक्ष उनको तत्काल प्रस्तुत करें और 'अवैध हिरासत' से मुक्त किया जाए।
यूनियन की तरफ से दायर याचिका में कहा गया है कि गिरफ्तारी डीके बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य में निर्धारित अनिवार्य दिशा-निर्देशों के उल्लंघन में की गई है, और एक पत्रकार द्वारा कर्तव्य निर्वहन में बाधा डालने के एकमात्र इरादे से की गई है।
परिजनों या सहयोगियों को पत्रकार सिद्धिक कप्पन की गिरफ्तारी के बारे में सूचित नहीं किया गया है। साथ ही दलीलों में कहा गया है बताया यह भी जा रहा है कि गिरफ्तार किए गए पत्रकार केयूडब्ल्यूजे के महासचिव भी हैं। वह ऑनलाइन मलयालम समाचार पोर्टल 'एझिकुमम' के लिए काम करते हैं।
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कप्पन को तीन अन्य पत्रकारों, अतीक-उर रहमान, मसूद अहमद और आलम के साथ यूपी पुलिस ने 5 अक्टूबर को हाथरस टोल प्लाजा पर, पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया या पीएफआई के साथ संबंध का आरोप लगाते हुए गिरफ्तार किया है। ये वह संगठन है जिस पर योगी आदित्यनाथ सरकार प्रतिबंध लगाना चाहती है।
दायर याचिका में कहा गया है उनके मोबाइल फोन, एक लैपटॉप और कुछ साहित्य, 'जो राज्य में शांति और कानून व्यवस्था पर प्रभाव डाल सकते हैं' को जब्त कर लिया गया है। जैसा पुलिस ने एक बयान में कहा है।
गौरतलब है कि बीते माह की 14 सितंबर को हाथरस की एक 19 वर्षीय दलित लड़की के साथ हैवानियत भरी वारदात हुई थी। दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में इलाज के दौरान 29 सितंबर को उसका निधन हो गया था। उनके परिवार ने शिकायत की कि उनकी सहमति के बिना आधी रात में पुलिस अधिकारियों द्वारा उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया।
मामले के बाद देशभर में पुलिस की कार्यशैली पर नाराज़गी बढ़ रही है। पुलिस का यह काम सबूत मिटाने के लिए किये गए काम के रूप में माना गया। यूपी पुलिस ने सार्वजनिक बयान भी जारी किए जिसमें बलात्कार से इनकार किया गया था। उच्च-जाति समूहों ने आरोपी व्यक्तियों की बेगुनाही का दावा करते हुए एक आंदोलन शुरू किया है।