मोदी सरकार का श्रम कानून मजदूरों को गुलाम बनाने की साजिश, 10 या ज्यादा मजदूरों की एक साथ अनुपस्थिति पर कटेगा 8 दिन का वेतन
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वरिष्ठ पत्रकार दिनकर कुमार का विश्लेषण
जनज्वार। एक तरफ मोदी सरकार ने देश के किसानों को कॉरपोरेट का गुलाम बनाने के लिए तीन कृषि कानून बनाए हैं, तो दूसरी तरफ मजदूरों को भी गुलाम बनाने की साजिश को शातिर तरीके से अंजाम दिया है। ऐसा लगता है मानो मोदी सरकार इस देश के किसानों और मजदूरों से किसी बात का प्रतिशोध लेने पर उतारू है।
अटल बिहारी सरकार में शुरू की गई श्रम कानूनों को खत्म कर लेबर कोड बनाने की प्रक्रिया को मोदी सरकार ने अपनी दूसरी पारी में अमली जामा पहनाया है और इसके लिए सबसे अनुकूल समय उसने कोरोना महामारी के वैश्विक संकट काल को चुना।
इस मानसून सत्र में जब विपक्ष संसद में नहीं था तब बिना किसी चर्चा के उसने तीन लेबर कोड औद्योगिक सम्बंध, सामाजिक सुरक्षा और व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यदशाएं पास करा लिए और एक कोड जो मजदूरी के सम्बंध में है उसे सरकार ने 8 अगस्त 2019 को ही लागू कर दिया। अब इन सभी कोडों की नियमावली भी सरकार ने जारी कर दी है। सरकार ने मौजूदा 27 श्रम कानूनों और इसके साथ ही राज्यों द्वारा बनाए श्रम कानूनों को समाप्त कर इन चार लेबर कोड को बनाया है।
मोदी सरकार मजदूरों को पूंजीपतियों की दया पर छोड़ने की साजिश रच रही है। जब देश में बेरोजगारी समस्या चरम पर है, तब कंपनियों और उद्योगपतियों को अपने मनमुताबिक छंटनी करने का अधिकार बर्बादी लेकर आएगा। इन बदलावों से बड़े स्तर पर आर्थिक-सामाजिक तनाव पैदा होगा, क्योंकि इससे मजदूरों के रोजगार और सामाजिक सुरक्षा दोनों ही खत्म हो जाएंगे।
मोदी सरकार रोजगार तो नहीं दे पा रही है उलटे श्रमिकों ने वर्षों से धरना, प्रदर्शन, भूख हड़ताल से मेहनत कर जो श्रम कानून अर्जित किये हैं, और जिनके अर्न्तगत उन्हें सुविधा एवं सम्मानजनक वेतन सामाजिक सुरक्षा आदि प्राप्त है, उन सबको मोदी सरकार एक झटके में समाप्त करने जा रही है।
काम के घंटे जो अभी 8 घंटे हैं, उन्हें बढ़ाकर 12 घंटे किया जा रहा है। समस्त श्रम कानूनों को 3 साल के लिये निरस्त किया जा रहा है। कार्यस्थल पर गंदगी के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं होगी। मजदूर की काम के दौरान मृत्यु हो जाने पर संबंधित अधिकारी सूचना नहीं देगा। शौचालय न हो तो उसकी शिकायत नहीं की जा सकती।
औद्योगिक ईकाई अपने हिसाब से मजदूर रख सकती है और निकाल सकती है। मजदूरों की बदहाली पर श्रम न्यायालय भी संज्ञान नहीं लेगा और न ही उपर अपील में सुनवाई होगी।
नई कम्पनी में महिला रूम व बच्चों के देखभाल के लिये क्रेच बनाना भी अनिवार्य नहीं होगा। न्यूनतम वेतन कानून, बोनस कानून, अनुबंध कानून, कर्मकार क्षतिपूर्ति कानून, संविदा श्रमिक कानून, असंगठित मजदूर कानून, स्वास्थ्य एवं बीमा कानून आदि-आदि अनेक कानून नहीं रहेंगे।
कोरोना वायरस की महामारी की वजह से अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के बहाने श्रम कानूनों में बदलाव से श्रमिकों को शोषण होगा और इससे उनकी आवाज दबाई जाएगी, जो सरासर मानव अधिकारों का हनन है।
भारतीय कारखाना अधिनियम,औद्योगिक विवाद अधिनियम, ट्रेड यूनियन अधिनियम, सामान पारिश्रमिक अधिनियम, न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, वेतन भुकतान अधिनियम, बोनस भुकतान अधिनियम,यौन उत्पीड़न अधिनियम, बाल श्रम निषेध, मातृत्व लाभ अधिनियम, कर्मचारी भविष्य निधि अधिनियम,एवं अन्य कुछ महत्त्वपूर्ण कानून है, जिन्हें आंशिक या पूर्ण रूप से स्थगित किया गया है।
मोदी सरकार कोरोना के विपदा काल का फायदा उठाकर पिछले कई सौ सालो से श्रमिकों ने जो कुछ अधिकार प्राप्त किये थे, उन पर हमला कर रही है। नए कानून में कारोबार सुगमता के नाम पर 27 मौजूदा कानूनों को समाप्त कर दिया है। ये कानून शुद्ध रूप से कॉरपोरेट जगत के हित में हैं। वहीं कर्मचारियों के हितों के खिलाफ हैं। नए कानूनों के तहत 75 प्रतिशत श्रमिकों को दायरे से बाहर कर दिया गया है। नए कानूनों में इन श्रमिकों को किसी तरह का संरक्षण नहीं मिलेगा।
आठ घंटे का कार्य दिवस पूरी दुनिया में मजदूर वर्ग आंदोलन का प्रमुख नारा रहा था। इसे अपना कानूनी अधिकार बनाने के लिए हजारों मजदूरों को कुर्बानियां देनी पड़ी थीं। आज इसे घटाकर छह घंटे का कार्य दिवस बनाने की मांग उठाई जा रही है, लेकिन मोदी सरकार 8 घंटे के कार्य दिवस को भी अनिवार्य बनाने की मंशा नहीं रखती है। स्थायी समिति ने इसे ऐक्ट में शामिल करने की खास तौर पर सिफारिश की थी, लेकिन सरकार कहती है कि 'केंद्र या राज्य सरकार सामान्य कार्य-दिवस के घंटों की संख्या निर्धारित कर सकती है।'
मजदूरी कोड में न तो न्यूनतम मजदूरी निर्धारण का कोई मानदंड बताया गया है, और न तो इसमें कार्य दिवस के घंटे के बारे में ही कुछ साफ-साफ कहा गया है। यही है मजदूरी कोड जो देश के मेहनतकश आवाम के लिए पूरी तरह एक धोखा है। यह मजदूरों पर बहुतरफा और प्रणालीबद्ध हमला है।
मजदूरी कोड में यह भी कहा गया है कि कोई सूचना दिए बगैर अपनी ड्यूटी से 10 या इससे अधिक मजदूरों की अनुपस्थिति को हड़ताल समझा जाएगा और इसके लिए 8 दिनों की मजदूरी काट ली जाएगी। कटौतियों की शर्तों के नाम पर सरकार हड़ताल को गैरकानूनी घोषित कर रही है और मजदूरी कोड के जरिए 8 दिनों की मजदूरी काट लेने को अनिवार्य बना रही है।
अगर यूनियन या मजदूर हड़ताल के लिए कोई नोटिस नहीं जारी करते हैं, तब भी 8 दिनों की मजदूरी-कटौती लागू कर दी जाएगी। 10 मजदूरों की महज संयोगवश अनुपस्थिति भी 8 दिनों की मजदूरी-कटौती के लिए काफी है। इस कोड में श्रमिकों के 'हड़ताल करने के अधिकार' को चोरी-छिपे छीन लेने की मोदी सरकार की मंशा स्पष्ट झलकती है।