मणिपुर में उग्रवादियों और सरकार की दोहरी मार झेलते पत्रकार, देशद्रोह जैसे आरोपों में भेजा जा रहा जेल
वरिष्ठ पत्रकार दिनकर कुमार की रिपोर्ट
जनज्वार। 13 फरवरी की शाम इम्फाल स्थित दैनिक पोखनाफाम के कार्यालय के भीतर एक हथगोला फेंकने के विरोध में मणिपुर के एडिटर्स गिल्ड और ऑल मणिपुर वर्किंग जर्नलिस्ट्स यूनियन द्वारा आहूत एक दिन की हड़ताल के बाद 14 फरवरी को मणिपुर में कोई भी समाचार पत्र नहीं प्रकाशित किया गया।
कथित तौर पर भूमिगत विद्रोही समूहों द्वारा किए गए ग्रेनेड हमले में किसी को चोट नहीं पहुंची, लेकिन राज्य के पत्रकारों ने स्पष्ट किया है कि वे उग्रवादियों और असहिष्णु राज्य सरकार के कोप का शिकार हो रहे हैं। राज्य सरकार अपनी आलोचना बर्दाश्त नहीं कर पाती और ऐसी खबरों के लिए पत्रकारों को देशद्रोह के आरोप में जेल भेजा जा रहा है।
इंफाल स्थित समाचार पोर्टल एफपीएसजे रिव्यू ऑफ आर्ट्स एंड पॉलिटिक्स के संपादक वरिष्ठ पत्रकार और लेखक प्रदीप फंजौबम ने बताया, 'भूमिगत उग्रवादी संगठन फिर से सक्रिय हो रहे हैं। वहीं, राज्य सरकार की तरफ से भी हमले शुरू हो गए हैं। छोटी छोटी बातों पर लोगों को गिरफ्तार किया जाता है और फिर रिहा किया जाता है। यह दबाव सरकार की तरफ से मीडिया पर बनाया जा रहा है।'
पिछले महीने, मणिपुर पुलिस ने ऑनलाइन समाचार पोर्टल द फ्रंटियर मणिपुर के संपादक और कार्यकारी संपादक को एक लेख के प्रकाशन के बाद देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया था। आरोप था कि लेख में क्रांतिकारी विचारधाराओं और गतिविधियों का खुले तौर पर समर्थन किया गया था।
एडिटर्स गिल्ड ऑफ मणिपुर के अध्यक्ष खगेंद्र खोमद्रम कहते हैं, 'मणिपुर में लगभग 400 पत्रकार हैं। हम जानते हैं कि हम सभी के लिए सुरक्षा की मांग नहीं कर सकते। लेकिन हम चाहते हैं कि सरकार कार्रवाई करे, आरोपियों को गिरफ्तार करे। हम पत्रकारों के लिए सुरक्षित काम करने की स्थिति की मांग करने के लिए मुख्यमंत्री से मिल रहे हैं।'
शिलॉन्ग टाइम्स की संपादक पेट्रीसिया मुखीम, जो पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित भी हैं, ने हाल ही में मेघालय उच्च न्यायालय द्वारा उनके खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को स्थगित से मना करने के बाद सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। उन्होंने मेघालय में गैर-आदिवासियों के खिलाफ हिंसा का विरोध करते हुए एक फेसबुक पोस्ट लिखा था।
बकौल पेट्रीसिया मुखीम, 'मणिपुर ने पत्रकारों पर भूमिगत संगठनों द्वारा लगातार हमले देखे हैं। यदि आप उनके (भूमिगत समूहों) मनोनुकूल रिपोर्ट नहीं करते हैं, तो फोन कॉल और यहां तक कि हमले की धमकी दी जाती है। इसके अलावा भय का एक माहौल है जो हम सभी वर्तमान में महसूस करते हैं। मीडिया पर हमला करने वालों के खिलाफ सरकार को कठोर कदम उठाना चाहिए। लेकिन सरकार को मीडिया पर भी अत्याचार नहीं करना चाहिए। हमारे पास मणिपुर में ऐसे मामले हैं जहां पत्रकारों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। हर तरफ से मीडिया पर हमला किया जा रहा है।'
13 फरवरी को एक अज्ञात महिला कथित तौर पर एक स्कूटर पर आई और इम्फाल में पोखनाफाम के कार्यालय के अंदर एक हथगोला फेंक दिया। इस इमारत में पोखनाफाम और उसके सहयोगी प्रकाशन द पीपल्स क्रॉनिकल दोनों के कार्यालय हैं।
द पीपुल्स क्रॉनिकल के संपादक इमो सिंह कहते हैं, 'घटना शाम 6.30 बजे के आसपास हुई। हमारे सुरक्षा गार्ड ने एक अज्ञात महिला को एक एक्टिवा स्कूटर पर आते देखा और एक बम फेंक दिया। हमने जाकर बम का निरीक्षण किया और देखा कि पिन टैप किया गया था। इसका मतलब यह है कि हमें केवल धमकी दी गई थी।'
हालांकि किसी भी भूमिगत समूह ने अब तक हमले की जिम्मेदारी नहीं ली है। सिंह आगे जोड़ते हैं, 'हमने पुलिस को सीसीटीवी फुटेज सौंप दिया है। लेकिन अभी तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है और किसी भी भूमिगत समूह ने जिम्मेदारी का दावा नहीं किया है।'
मणिपुर ने समाचार पत्रों ने पिछले साल भी 1 अगस्त को द संगाई एक्सप्रेस के संपादक के कार्यालय के अंदर एक जीवित मोर्टार शेल फेंकने के बाद प्रकाशन बंद कर दिया था, जो एक उग्रवादी समूह द्वारा "चेतावनी" के रूप में भेजा गया था। पिछले साल फ्रंटियर मणिपुर के सहयोगी संपादक पत्रकार किशोरचंद्र वांगखेम ने दो महीने का समय देशद्रोह के आरोप में जेल में बिताया।
फरवरी 2006 में पोखनाफाम के वरिष्ठ रिपोर्टर रतन लुवांग उग्रवादियों द्वारा गोली मारे जाने के बाद घायल हो गए थे। उसी साल स्थानीय संपादकों के एक समूह को एक उग्रवादी संगठन द्वारा रात भर के लिए हिरासत में लेने के बाद उन्हें चर्चा के लिए आमंत्रित किया गया था।
इस तरह की घटनाओं के बावजूद पत्रकारों ने कहा कि वे अपने काम को जारी रखेंगे। सिंह ने कहा, "हम ऐसा करना जारी रखेंगे। हम जनता को उन चीजों से अवगत कराते रहेंगे जो जरूरी है।"