Begin typing your search above and press return to search.
गवर्नेंस

Minority Status : भारत में हिंदुओं को मिल सकता है अल्पसंख्यक का दर्जा, इससे क्या होगा फायदा?

Janjwar Desk
29 March 2022 11:42 AM IST
भारत में हिंदुओं को मिल सकता है अल्पसंख्यक का दर्जा, इससे क्या होगा फायदा?
x

हिंदुओं को अल्पसंख्यक दर्जा देने के मुद्दा फिर से सुख्रियों में है।

Minority Status : भारत में अल्पसंख्यक की अभी तक कोई स्थापित परिभाषा नहीं है। अपने हलफनामे में केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट के 1957 के एक फैसले का जिक्र करते हुए बताया है कि किसी राज्य में अगर किसी धर्म या भाषा के आधार पर लोगों की आबादी 50% से कम है तो उसे अल्पसंख्यक माना जाएगा।

Minority Status : केंद्र सरकार ( Central Government ) ने सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) में हलफनामा दाखिल कर यह स्पष्ट कर दिया है कि हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाए या नहीं। केंद्र सरकार का कहना है कि राज्य सरकारें चाहें तो अपनी सीमा में हिंदू ( Hindu ) समेत किसी भी समुदाय को आंकड़ों के आधार पर अल्पसंख्यक ( Minority ) घोषित कर सकती हैं। उसके बाद से इस बात की चर्चा चरम पर है कि क्या देश के कई राज्यों में हिंदुओं ( Hindu ) को अल्पसंख्यक होने का दर्जा मिल सकता है। इस मसले पर अंतिम फैसला देश की सर्वोच्च अदालत को लेना है। फिलहाल हम आपको बताते हैं कि अल्पसंख्यक दर्जा ( Minority Status ) दिलाने के पीछे क्या है कानूनी आधार और इससे हिंदुओं को फायदा क्या मिलेगा?

ये है केंद्र का रुख

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) में बताया है कि जैसे महाराष्ट्र ने 2016 में यहूदियों को अल्पसंख्यक समुदाय ( Minority Community ) का दर्जा दिया था वैसे ही राज्य, धार्मिक या भाषाई अल्पसंख्यक का दर्जा दे सकते हैं। कर्नाटक ने भी उर्दू, तेलुगू, तमिल, मलयालम, मराठी, तुलु, लमानी, हिंदी, कोंकणी और गुजराती को अपने राज्य में अल्पसंख्यक भाषाओं का दर्जा दिया है। मोदी सरकार ने कहा है कि केवल राज्यों को अल्पसंख्यकों के विषय पर कानून बनाने का अधिकार नहीं दिया जा सकत़ा। इसका मतलब है कि राज्य चाहें तो ऐसा कर सकते हैं लेकिन केंद्र अपने स्तर पर अल्पसंख्यक समुदाय को लेकर अधिसूचना जारी कर सकता है। अल्पसंख्यकों से जुड़े मामलों में कानून बनाने का अधिकार सिर्फ राज्यों को नहीं दिया जा सकता, क्योंकि इससे संविधान और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का उल्लंघन होगा। सुप्रीम कोर्ट में ये हलफनामा केंद्र सरकार ने भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की याचिका के जवाब में दायर किया है।

केंद्र ने ऐसा क्यों कहा?

भाजपा नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। इसमें उन्होंने अल्पसंख्यक शैक्षणिक आयोग अधिनियम 2004 के धारा 2(F) की वैधता को चुनौती दी है। धारा 2(F) केंद्र सरकार को अल्पसंख्यकों की पहचान और उन्हें दर्जा देने का अधिकार देता है।

सवाल : राज्य सरकारों ने क्यों नहीं तय की गाइडलाइन

दरअसल, अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका के जरिए राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम 1992 और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्था आयोग की वैधता को चुनौती दी है। उनका कहना है कि 2002 में सुप्रीम कोर्ट की 11 जजों की बेंच ने कह दिया था कि राष्ट्रीय स्तर पर भाषा और धर्म के आधार पर अल्पसंख्यक का दर्जा नहीं दिया जा सकता। दोनों की पहचान राज्य स्तर पर की जाएगी। उन्होंने शीर्ष अदालत से सवाल पूछा है अभी तक राज्य स्तर पर गाइडलाइन क्यों तैयार नहीं की गई है जिससे अल्पसंख्यक समुदाय की पहचान की जा सके।

अल्पसंख्यक शब्द परिभाषित नहीं

अटल बिहारी वाजपेयी के समय से इस मुद्दे को उठाया जा रहा है लेकिन केंद्र सरकार इससे बच रही थी। इससे नुकसान होने की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। अल्पसंख्यक को कहीं भी परिभाषित नहीं किया गया है। बिना किसी आधार के अपनी मर्जी से सरकार ने अलग—अलग धर्मों को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया हुआ है। देश में यहूदी और बहाई धर्म के लोग भी हैं लेकिन उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा नहीं मिला हुआ है।

अभी इन्हें माना जाता है Minority

राष्ट्रीय स्तर पर 6 धर्मों को अल्पसंख्यक होने का दर्जा मिला हुआ है। इनमें मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, पारसी और जैन धर्म के लोग शामिल है। केंद्र सरकार ने जैन धर्म को 2014 में और अन्य को 1993 में अल्पसंख्यक का दर्जा दिया था।

इन राज्यों में हिंदुओं की आबादी है बहुत कम

भारत में हिंदुओं की आबादी ( Hindu Population ) करीब 78 प्रतिशत है। इसके बावजूद पंजाब, लद्दाख, मिजोरम, लक्षद्वीप, जम्मू-कश्मीर, नागालैंड, मेघालय और अरुणाचल प्रदेश में हिंदुओं की आबादी के अन्य धर्मों के मुकाबले बहुत कम हैं। मसलन पंजाब में सिख 57.69 प्रतिशत और हिंदू 38.49 प्रतिशत हैं। अरुणाचल प्रदेश में ईसाई 30.26 प्रतिशत और हिंदू आबादी 29.04 प्रतिशत, नागालैंड में ईसाई करीब 87 प्रतिशत और हिंदू करीब 8 प्रतिशत है। मणिपुर में हिंदू आबादी बहुसंख्यक हैं। मणिपुर में करीब 41 फीसदी हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा मिलने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता। यहां हिंदुओं की आर्थिक स्थिति काफी अच्छी है। उनके पास बिजनेस और सबसे ज्यादा लैंड होल्डिंग है। इस तर्क के उलट अश्विनी उपाध्याय मणिपुर में भी हिंदुओं के लिए अल्पसंख्यक दर्जे की मांग कर रहे हैं। 2011 जनगणना के मुताबिक पंजाब में सिख 57.69 प्रतिशत और हिंदुओं की आबादी 38.49 प्रतिशत है।

अश्विनी उपाध्याय की याचिका के मुताबिक लद्दाख में हिंदुओं की आबादी महज 1% है। मिजोरम में 2.75%, लक्षद्वीप में 2.77%, कश्मीर में 4%, नागालैंड में 8.74%, मेघालय में 11.52%, अरुणाचल प्रदेश में 29%, पंजाब में 38.49% और मणिपुर में 41.29% आबादी हिंदू है।

अल्पसंख्यक होने का आधार क्या है?

अभी तक केंद्र सरकार किसी धर्म को अल्पसंख्यक का दर्जा देने को लेकर अधिसूचना जारी करती है, जिसका राज्य सरकार पालन करते हैं। राज्यों में अल्पसंख्यक का दर्जा आबादी के हिसाब से दिया जाएगा या उसका आधार कुछ और होगा ये अभी साफ नहीं है। ये राज्य सरकारें तय कर सकती हैं।

लाभ नहीं मिलता

लद्दाख, मिजोरम, लक्षद्वीप, कश्मीर, नागालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, पंजाब और मणिपुर में यहूदी, बहई और हिंदू अल्पसंख्यक हैं, लेकिन वो वहां अपने शैक्षणिक संस्थान संचालित नहीं कर सकते, जो गलत है।

किसे माना जाए अल्पसंख्यक

अल्पसंख्यक ( Minority ) वो समुदाय होता है, जिसे अल्पसंख्यक कानून के तहत केंद्र सरकार अधिसूचित करती है। भारत में अल्पसंख्यक की कोई परिभाषा नहीं है। अपने हलफनामे में केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट के 1957 के एक फैसले का जिक्र करते हुए बताया है कि किसी राज्य में अगर किसी धर्म या भाषा के आधार पर लोगों की आबादी 50% से कम है तो उसे अल्पसंख्यक माना जाएगा। 2002 में टीएम पाई मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने यही बात दोहराई थी।

दर्जा मिलने से कितना होगा फायदा?

जिन लोगों को भाषा और धर्म के आधार पर अल्पसंख्यक का दर्जा ( minority Status )मिला हुआ है उन्हें सरकारी नौकरियों में रिजर्वेशन, बैंक से सस्ता लोन और अल्पसंख्यक दर्जा प्राप्त शिक्षण संस्थानों में दाखिले के समय प्रमुखता मिलती है। बतौर उदाहरण के लिए जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी को धार्मिक अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा मिला हुआ है। यहां करीब 50 प्रतिशत सीटें मुस्लिम समाज के बच्चों के लिए आरक्षित हैं। यहां जाति आधारित कोटा सिस्टम नहीं चलता। जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी जैसे कई अल्पसंख्यक संस्थान देश में हैं। अल्पसंख्यक समाज के लिए इस तरह के संस्थान खोलने में सरकार अलग से सहायता भी करती है। भारत संविधान के अनुच्छेद 29 और अनुच्छेद 30 में उन लोगों के लिए कुछ खास प्रावधान किए गए हैं जो भाषा और धर्म के आधार पर अल्पसंख्यक की श्रेणी में आते हैं। इन लोगों को अपने धर्म के शैक्षणिक संस्थान खोलने और संचालित करने का अधिकार है। अगर हिंदू भी अल्पसंख्य घोषित हो जाएं तो वे भी इन अवसरों का लाभ उइा सकते हैं।

मुस्लिम लड़कियों में स्कूल छोड़ने की दर 70 से घटकर हुई 30

अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के मुताबिक 2014 के बाद से पारसी, जैन, बौद्ध, सिख, ईसाई और मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय से आने वाले करीब 5 करोड़ विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति दी गई। ऐसा करने से विशेषकर मुस्लिम लड़कियों के स्कूल छोड़ने की दर में काफी कमी आई है। मुस्लिम लड़कियों में स्कूल छोड़ने की दर 2014 से पहले 70 प्रतिशत थी, जो अब घटकर 30 प्रतिशत से भी कम है।

Next Story

विविध