नोबेल लॉरेट अभिषेक बनर्जी की पीएम को नसीहत, लोकतंत्र की छोटी इकाईयों को मजबूत किए बगैर नहीं पा सकते जातिवाद-भ्रष्टाचार से पार
नोबेल लॉरेट अभिषेक बनर्जी बोले - भारत में छोटी इकाईयों को मजबूत किए बगैर जातिवाद और भ्रष्टाचार से पार पाना मुश्किल
नई दिल्ली : वैश्विक गरीबी को कम करने के प्रयोगात्मक दृष्टिकोण पर नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी ( Nobel Laureate Abhishek Banerjee ) ने चार नवंबर को दिल्ली में 27वां न्यायमूर्ति सुनंदा भंडारे स्मृति व्याख्यानमाला में शामिल हुए। उन्होंने जमीन पर लोकतंत्र : क्या काम करता है, क्या नहीं और क्यों - विषय पर कहा कि विदेशों में चुनावी क्षेत्रों की तुलना में भारत में औसत निर्वाचन क्षेत्र काफी बड़ा है। यह चुनावों को प्रभावित करता है। यह मतदाताओं ( Voters ) को जातिवादी ( Castist ) बनने के लिए प्रेरित करता है।
निर्वाचन क्षेत्र ( MP/MLA Constituency area ) बड़ा होने से जनप्रतिनिधि मतदाताओं के केवल एक छोटे हिस्से को संतुष्ट कर पाते हैं। अगर आप चाहते हैं कि प्रभावी तरीके से लोकतंत्र काम करे तो हमारे पास छोटे निर्वाचन क्षेत्र होने चाहिए। ब्रिटेन से इंडिया की तुलना करते हुए Abhishek Banerjee ने कहा कि भारतीय लोकसभा में 540 सीटें हैं जबकि ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स में 650 संसद सदस्य हैं। भारत की आबादी 140 करोड़ हो के करीब है। ब्रिटेन की आबादी करीब आठ करोड़ है। यानि भारत की आबादी यूनाइटेड किंगडम की जनसंख्या से 20 गुना बड़ा है। इसके बावजूद जनप्रतिनिधि ब्रिटेन में ज्यादा हैं।
निर्वाचन क्षेत्र ( Large Electoral seat ) बड़ा होने और जनप्रतिनिधि कम होने से लोगों में उदासीनता पैदा होती है। यह अंततः मतदान पैटर्न को प्रभावित करता है। जनप्रतिनिधि के बारे में जानकारी के अभाव में भारतीय मतदाता यह सोचने लगते हैं कि व्यवस्था किसी भी मामले में कुछ खास नहीं करती है, तो मैं अपनी जाति या उससे मिलते-जुलते किसी व्यक्ति को वोट क्यों नहीं दूं। 1980 और 1996 के बीच के वर्षों के लिए उत्तर प्रदेश से डेटा साझा करते हुए बनर्जी ने कहा कि जैसे-जैसे एक विशेष जाति के अधिक से अधिक व्यक्ति चुने गए, वे भ्रष्टाचार के मामले में सबसे खराब हो गए। उनका कहना है कि वे उनकी पार्टी से आते हैं। आप जितने अधिक प्रभावशाली (जाति) हैं, आप उतने ही बुरे विधायक चुनते हैं। यह आश्चर्यजनक बात है जो जातीय-केंद्रितता करती है। आप जातीय-केंद्रित हैं क्योंकि राजनीति में आपकी कोई हिस्सेदारी नहीं है।
उन्होंने शिक्षा और स्वास्थ्य में अन्य संरचनात्मक समस्याओं को छूते हुए कहा कि भारत में निर्वाचित नेताओं की प्राथमिकता मतदाताओं से अलग होती हैं। इसके अलावा उन्होंने कहा कि इस बात के कोई सबूत नहीं हैं जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि महिलाओं और अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था प्रशासनिक और शासनिक अक्षमता के कारण हैं। अक्सर यह दावा किया जाता है कि आरक्षण की वजह से बड़े पैमाने पर अक्षमता को बढ़ावा मिला है। इसके उलट आरक्षण से एससी/एसटी और महिलाओं के सशक्तिकरण को बल मिला है।