क्या है उत्तराखंड राज्य की राजस्व पुलिस, जिसे खत्म करने की मांग उठ रही है अंकिता हत्याकांड के बाद
अंकिता हत्याकांड के बहाने उत्तराखंड की रेवेन्यू पुलिस व्यवस्था होगी खत्म, विधानसभा अध्यक्ष ने लिखी CM धामी को चिट्ठी
सलीम मलिक की रिपोर्ट
Uttarakhand Revenue Police : उत्तराखंड सहित पूरे देश को सकते में डालने वाले अंकिता हत्याकांड के आरोपी भले ही पकड़े गए हों लेकिन यह निर्मम हत्याकांड उत्तराखंड पुलिस के लिए गेम चेंजर साबित होने वाला है। हत्याकांड की जांच के दौरान यह तथ्य सामने आने के बाद कि मामला संज्ञान में आने पर भी इलाके की राजस्व पुलिस समय से इसमें कार्यवाही नहीं कर सकी, जिससे इतनी बड़ी घटना सामने आई, के बाद अब राजस्व पुलिस की भूमिका पर सवाल खड़े होने शुरू हो गए हैं।
इस राजस्व पुलिस को प्रदेश से खत्म करने की पहले भी कवायद हुई, जो परवान नहीं चढ़ सकी, मगर अब इस अंकिता हत्याकांड में राजस्व पुलिस की ब्लाइंड्र मिस्टेक की वजह से प्रदेश से राजस्व पुलिस की विदाई तय मानी जा रही है। विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी ने इस मामले में पहल करते हुए मुख्यमंत्री को पत्र भी लिख दिया है।
बता दें कि उत्तराखंड के पर्वतीय हिस्सों में यदि मुख्य सड़कों को छोड़ दिया जाए तो यहां देश के अन्य स्थानों की तरह रेगुलर पुलिस की कोई व्यवस्था नहीं है। राजस्व विभाग ही यहां पर पुलिस की भूमिका निभाता है।
राज्य में राजस्व विभाग के इतिहास की बात करें तो यह ब्रिटिशकालीन व्यवस्था है। भारत में वर्ष 1857 के हुए विद्रोह के बाद अंग्रेज उत्तराखण्ड के सभी क्षेत्रों में सिविल पुलिस व्यवस्था लागू करना चाहते थे। लेकिन कुमाऊँ के तत्कालीन कमिश्नर सर रैम्जे (1856-84) ने राज्य की जनता को सीधा-साधा बताते हुए राजस्व पुलिस व्यवस्था को बनाए रखने की सिफारिश की थी। यह सिफारिश अंग्रेजों को इसलिए भी ठीक लगी कि रेगुलर पुलिस का अतिरिक्त खर्चा बचाकर भी इस क्षेत्र की व्यवस्था राजस्व विभाग की मदद से बनाए रखी जा सकती थी। उसी सिफारिश की वजह से उत्तराखंड में आज तक राजस्व पुलिस की व्यवस्था है, जिसे आजादी के बाद से क्रमशः कम किया जाता रहा है।
अंग्रेजी शासनकाल में कुमाऊं में 19 परगने तथा 125 पट्टियां (पटवारी क्षेत्र) थे, जबकि गढ़वाल में 11 परगनें तथा 86 पट्टियाँ (पटवारी क्षेत्र) थे। वर्तमान में राज्य के लगभग 61% भाग पर यह व्यवस्था लागू है। इस व्यवस्था में पटवारी, कानूनगो, नायब तहसीलदार, तहसीलदार, परगनाधिकारी, जिलाधिकारी व कमिश्नर आदि को राजस्व के साथ ही पुलिस का भी काम करना पड़ता है।
अमूमन पर्वतीय क्षेत्रों में अपराध न के बराबर ही होते थे। लेकिन कोई छिटपुट अपराध हो भी जाता था तो उसकी जांच करना, मुकदमा दर्ज करना और अपराधियों को पकड़ना राजस्व पुलिस की ही जिम्मेदारी में शामिल होता था, लेकिन इन क्षेत्रों में अपराधों की बढ़ती दर की वजह से पिछले कुछ समय से राजस्व क्षेत्रों को सिविल पुलिस के हवाले करने की मांग जोरों से उठी है। इस मांग के पीछे राजस्व पुलिस के पास अपराध रोकने की पुख्ता व्यवस्था न होने और तकनीकी जानकारी के अभाव में अपराधों की जांच प्रभावी ढंग से न कर सकने का तर्क दिया जाता रहा है।
हाल ही में पनुवाद्योखन निवासी उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के युवा दलित नेता जगदीश चंद्र की हत्या के पीछे एक कारण क्षेत्र राजस्व पुलिस का होने के कारण रेगुलर पुलिस का समय रहते मामले में प्रभावी हस्तक्षेप न होना रहा था, जिस कारण इस होनहार नेता को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। इसी तरह अंकिता हत्याकांड में भी राजस्व पुलिस की हीलाहवाली और मामला रेगुलर पुलिस को देर से मिलना भी एक बड़ी वजह के रूप में सामने आ रहा है। जिससे एक बार फिर राजस्व पुलिस का अस्तित्व बनाए रखने का सवाल चर्चाओं के केंद्र में बना हुआ है। लेकिन इस बार इस मामले में विधानसभा अध्यक्ष होने की वजह से राजस्व पुलिस की प्रदेश से विदाई के संकेत मिल रहे हैं।
अंकिता हत्याकांड से क्षुब्ध होकर विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूरी ने प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को लिखे एक पत्र में दो टूक शब्दों में राजस्व पुलिस की व्यवस्था समाप्त कर पूरे प्रदेश में रेगुलर पुलिस व्यवस्था की मांग की है। श्रीमती खंडूरी ने धामी को लिखे पत्र में कहा है कि आज के आधुनिक युग में जहाँ सामान्य पुलिस विभाग होने की स्थिति में पूरे भारत में एक राज्य से दूसरे राज्य में कोई भी पीड़ित जीरो एफआईआर दर्ज कराकर अपनी शिकायत पंजीकृत करा सकता है, तो वहीं ऋषिकेश शहर से मात्र 15 किमी की दूरी पर ऐसी राजस्व पुलिस की व्यवस्था है जिसके पास पुलिस के आधुनिक हथियार तथा जाँच हेतु किसी भी प्रकार का प्रशिक्षण प्राप्त नहीं है। हत्याकांड जैसे वीभत्स मामलों की जांच भी यह राजस्व पुलिस कर रही है, यह जानकर ही अत्यन्त ही पीड़ा होती है।
स्पीकर ऋतु खंडूरी ने आगे लिखा है कि गंगा भोगपुर में यदि सामान्य पुलिस बल कार्य कर रहा होता तो निश्चित रूप से अंकिता आज हमारे बीच होती और आम जनता में सरकारी कार्यप्रणाली के प्रति इतना रोष व्याप्त नहीं होता। उन्होंने प्रदेश से राजस्व पुलिस की व्यवस्था को समय की नजाकत के हिसाब से पुराना बताते हुए आगे लिखा है कि 'मैं आपकी आभारी होऊंगी कि प्रदेश में जहाँ कहीं भी राजस्व पुलिस की व्यवस्था चली आ रही है, को तत्काल समाप्त कर सामान्य पुलिस बल के थाने/चौकी स्थापित करने हेतु अविलंब आदेश जारी करने की कृपा करें।'
अब ऐसी परिस्थितियों में जबकि अंकिता हत्याकांड को लेकर पूरे प्रदेश के लोग आक्रोशित हैं और घटना के विरोध में पूरे उत्तराखंड में प्रदर्शन हो रहें हैं तो विधानसभा अध्यक्ष का यह पत्र राजस्व पुलिस की प्रदेश से विदाई का सबब बनने की संभावना अधिक हैं।
केदारनाथ आपदा में भी सामने आई थी राजस्व पुलिस की खामी
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में लागू राजस्व पुलिस की व्यवस्था में चूक के किस्से पुराने हैं। राजस्व क्षेत्रों में पटवारी (पुलिस विभाग के दरोगा के समकक्ष अधिकार प्राप्त राजस्व विभाग का कर्मचारी) आम तौर पर लोगों पर बेवजह का रौब गालिब करते रहते हैं, लेकिन जब असल में कुछ करने की बारी आती है तो यह संसाधनों और आधुनिक ट्रेनिंग न होने का रोना रोते हुए अपने को ही विक्टिम साबित करने पर उतारू हो जाते हैं। इनकी छिटपुट मामूली चूकों के किस्से तो खबर बनते भी नहीं हैं, लेकिन जब कोई बड़ी घटना सामने आती है तो इनके हाथ-पांव फूल जाते हैं।
साल 2013 की केदारनाथ आपदा इसका सबसे बड़ा उदाहरण थी। हजारों लोगों को काल कवलित करने वाली इस आपदा में बचाव कार्यों में पीठ दिखाने वालों में सबसे पहले राजस्व पुलिस का ही नाम आया था। उस वक्त तत्कालीन कांग्रेस पार्टी की सरकार के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा (वर्तमान में विजय बहुगुणा भाजपा में हैं, उनके पुत्र सौरभ बहुगुणा सरकार में पशुपालन मंत्री हैं) ने खुद इस बात को कबूल किया था कि यदि पहाड़ में राजस्व की जगह रेगुलर पुलिस होती तो नुकसान बेहद कम हुआ होता।
हाईकोर्ट पहले ही राजस्व पुलिस को खत्म करने के दे चुका है निर्देश
अब जबकि प्रदेश की राजस्व पुलिस की भूमिका पर एक बार फिर बात होने लगी है तो याद दिला दें कि तीन साल पहले प्रदेश का उच्च न्यायालय राजस्व पुलिस व्यवस्था को समाप्त करने के निर्देश दे चुका है। नैनीताल उच्च न्यायालय उत्तराखंड के पर्वतीय और दुर्गम ग्रामीण इलाकों में बदहाल राजस्व पुलिस व्यवस्था को न केवल खत्म करने का निर्देश दे चुका है बल्कि कानून व्यवस्था दुरुस्त करने के लिए इन स्थानों पर रेगुलर पुलिस स्थापित करने की बात भी कर चुका है। न्यायालय के इसी आदेश के मुताबिक उत्तराखंड पुलिस मुख्यालय द्वारा शासन को इस मसले पर प्रस्ताव भी भेजा चुका है, लेकिन अभी तक शासन द्वारा इस मामले में सहमति न बनने के चलते हरी झंडी नहीं मिली है। सरकार को इन इलाकों में रेगुलर पुलिस की व्यवस्था करने के लिए जहां सभी संसाधन मुहैया कराने पड़ेंगे तो तमाम पुलिसकर्मियों की भर्ती भी करनी पड़ेगी।
वैसे बताया यह भी जाता है कि पुलिस मुख्यालय अपने प्रस्ताव में शासन से यह कह चुका है कि राज्य के लगभग 50% राजस्व वाले इलाकों को वह बिना किसी अतिरिक्त बजट व पहले से मौजूद अपने संसाधनों के बलबूते इन क्षेत्रों में रेगुलर पुलिस स्थापित कर कानून व्यवस्था दुरुस्त कर सकता है। लेकिन बाकी के आधे राजस्व क्षेत्रों को रेगुलर पुलिस में बदलने के लिए सरकार को खासा व्यय करना पड़ेगा। शायद इसीलिए तीन साल बाद भी राज्य सरकार इस पर कोई निर्णय नहीं ले पाई है।