नाइट शिफ्ट में काम करने वाली महिलाओं को क्रेच और कैंटीन की सुविधाएं अनिवार्य, नए श्रम ड्राफ्ट में प्रावधान
मौसमी दास गुप्ता
नई दिल्ली। महिला कर्मचारियों के लिए एक सुरक्षित कार्यस्थल बनाने के लिए केंद्र द्वारा बनाए जा रहे नए श्रम कानून में यह प्रावधान शामिल किया जाएगा कि कारखानों, निर्माण इकाइयों जहां महिलाओं अपनी सहमति से शाम सात बजे के बाद काम करने को तैयार हैं, वहां न केवल परिवहन सुविधा प्रदान करनी होगी बल्कि उनके बच्चों के लिए पालना गृह का भी प्रबंध करना होगा।
इसके अलावा ऐसे प्रतिष्ठानों को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि कार्यस्थल पर अच्छी तरह से प्रकाश की व्यवस्था हो और परिसर में पर्याप्त स्वच्छता की व्यवस्था के साथ कैंटीन की सुविधा भी उपलब्ध होनी चाहिए।
ये प्रावधान पेशागत सुरक्षा, स्वास्थ्य और काम करने की स्थिति संबंधी अधिनियम, 2020 (Occupational Safety, Health and Working Condition Act, 2020) के ड्राफ्ट का हिस्सा होंगे, जिसे श्रम और रोजगार मंत्रालय तैयार कर रहा है। इस संबंध में नियमों को अधिसूचित किए बिना ये प्रभावी नहीं होंगे।
श्रम मंत्रालय के अधिकारियों के हवाले से द प्रिंट न्यूज वेबसाइट ने लिखा है कि प्रावधानों पर टिप्पणी एवं सुझावों के लिए उसे अगले सप्ताह सार्वजनिक किए जाने की संभावना है, प्राप्त सुझावों के बाद उसे अंतिम रूप दिया जाएगा और अधिसूचित किया जाएगा।
व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और वर्किंग कंडीशन अधिनियम, 2020 सितंबर में संसद में पारित तीन श्रम कानूनों में से एक है, जो महिला कर्मचारियों को रात में काम करने की अनुमति देता है, जो शाम सात बजे के बाद और सुबह छह बजे से पहले सुरक्षा, अवकाश, कार्य अवधि से संबंधित शर्ताें के तहत है।
हालांकि, यदि संबंधित राज्य सरकारें मानती हैं कि महिलाओं का रोजगार उनके स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए खतरनाक है तो प्रतिष्ठानों या इकाइयों में उनके संचालन की प्रकृति के कारण, वे ऐसी जगहों पर महिलाओं के रोजगार पर रोक लगा सकती हैं।
नियम में यह भी कहा गया है किसी भी नियोक्ता को जानबूझकर किसी महिला की डिलवरी के बाद पहले छह सप्ताह, गर्भपात या गर्भधारण के इलाज के दौरान काम पर नहीं रखना चाहिए।
नाम न बताने की शर्त पर श्रम मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, यह कानून महिलाओं को यह विकल्प देकर कि वे रात में काम करना चाहती हैं या नहीं, उन्हें मजबूती प्रदान करता है। अगर महिलाओं को रात के शिफ्ट में काम करने की अनुमति देती हैं तो नियोक्ताओं को कुछ शर्ताें के साथ काम करना होगा और उन्हें सुविधाएं देनी होंगी।
राज्य तय कर सकते हैं काम के घंटे
कार्य नियम यह भी सुझाव देते हैं कि किसी भी श्रमिक को एक सप्ताह में छह दिनों से अधिक समय तक एक प्रतिष्ठान में काम करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
हालांकि, मसौदा नियम राज्यों को अलग-अलग प्रतिष्ठानों में एक दिन या सप्ताह में काम के घंटै तय करने की अनुमति देते हैं। एक अन्य अधिकारी ने बताया कि हमने संबंधित राज्य पर छोड़ दिया है कि वे काम के घंटे तय करें।
अधिकारी ने बताया, ओवरटाइम का भुगतान उन्हें किए जाने वाले सामान्य भुगतान का दोगुणा किया जाएगा। ओवरटाइम की गणना दैनिक या साप्ताहिक आधार पर की जाएगी।
अप्रैल 2021 से पहले नियमों को अधिसूचित किया जा सकता है
मंत्रालय के पहले अधिकारी ने कहा कि हालांकि उन्हें एक अप्रैल 2021 तक नियमों को अधिसूचित करने की समय सीमा दी गई है, लेकिन मंत्रालय का इरादा इससे पहले ऐसा करने का है।
अधिकारी ने कहा, हमने वेज कोड और इंडस्ट्रियल कोड से जुड़े नियमों को पहले ही सार्वजनिक कर दिया है। हम अगले सप्ताह सामाजिक सुरक्षा कोड पर नियमों के बाद ऑक्यूपेशनल सेफ्टी, हेल्थ (ओएसएच) और वर्किंग कंडीशंस (सेंट्रल) रूल्स को सार्वजनिक करने वाले हैं।
वेज कोड को जहां पिछले साल अगस्त में संसद से मंजूरी मिली वहीं शेष तीन संहिताओं को इस सितंबर में हरी झंडी मिली है।
ये तीन लेबर कोड देश के पुराने श्रम कानूनों को सरल बनाने के उद्देश्य से लाए गए हैं और श्रमिकों के लाभों से समझौता किए बिना आर्थिक गतिविधियों को गति प्रदान करने का लक्ष्य रखा गया है।
(मौसमी दास गुप्ता की यह रिपोर्ट मूल रूप से द प्रिंट में प्रकाशित.)