Begin typing your search above and press return to search.
ग्राउंड रिपोर्ट

Ground Report : नौ लाख रुपए में लुट गया उत्तराखंड का हंसता-खेलता यह लोहारी गांव

Janjwar Desk
20 April 2022 9:26 AM GMT
Ground Report : नौ लाख रुपए में लुट गया उत्तराखंड का हंसता-खेलता यह लोहारी गांव
x

(नौ लाख रुपए में लुट गया उत्तराखंड का हंसता-खेलता यह लोहारी गांव)

Ground Report : 'जनज्वार' टीम ने जाना उत्तराखंड के लोहारी गांव का वह काला सच जो अब तक पर्दे के पीछे छिपा था....

लोहारी गांव से सलीम मलिक की विशेष रिपोर्ट

Ground Report : उत्तराखंड राज्य के देहरादून जिले (Dehradun) में कालसी विकास खण्ड का यमुना नदी (Yamuna River) के किनारे पर जौनसारी क्षेत्र में बसा लोहारी गांव (Lohari Village) इन दिनों खास चर्चाओं में बना हुआ है। एक विद्युत परियोजना को संचालित करने के लिए इस पूरे गांव को इसकी संस्कृति (Culture) के साथ जल समाधि दी जा रही है। इस गांव के लोग अपने विस्थापन और जमीन के बदले जमीन की मांग सरकार से कर रहे हैं। लेकिन सरकार इनकी इस बात को नहीं सुन रही है। आपको यह सुनकर शायद हैरानी हो कि कुल नौ लाख रुपए में सरकार ने इस गांव को खरीदकर ग्रामीणों को बेदखल कर दिया है, लेकिन यह न केवल सच है। बल्कि यह प्रकरण इस बात की भी पोल खोलता है कि सरकार में बैठे लोग सरकार के हित में नियम-कानून की किस तरह धज्जियां उड़ाते हैं।

दरअसल इस पूरे मामले के तार आधी शताब्दी पहले वर्ष 1972

से तब जुड़ते हैं जब यमुना नदी पर एक व्यासी जल विद्युत परियोजना (Vyasi Hydro Electric Project) का खाका तैयार होने की खबर लोहारी गांव के ग्रामीणों (Villagers Of Lohari Village) तक पहुंचती है। 420 मेगावाट की इस परियोजना के लिए यमुना नदी पर करीब आठ किमी. के दायरे में 634 मीटर ऊंचे दो बांध बनाए जाने थे। जिसमें एक लोहारी गांव से दो किमी. दूर लोड्डू सिलोन गांव में तो दूसरा लखवाड़ गांव में बनना प्रस्तावित था।

परियोजना के लिए लोडडू सिलोन बांध के डूब क्षेत्र में लोहारी तो लखवाड डैम में कुंडा और रनोंगि गांव आ रहे थे। उस समय सरकार ने ग्रामीणों की जमीन के मुआवजे के तीन स्लैब 12 हजार, 18 हजार, 36 हजार रुपए प्रति एकड़ के बनाए। लेकिन सरकार ने ग्रामीणों की भूमि को एक बार में अधिग्रहित न करके अपनी जरूरत के हिसाब से 1972 से लेकर 1989 तक करीब 17 हेक्टेयर में से 8.495 हैक्टेयर जमीन का नौ बार में अधिग्रहण किया। जिसे दक्षिणपंथी सोच के लोग ग्रामीणों को 11 बार मुआवजा मिल गया है, कहकर ग्रामीणों को बदनाम करने की मुहिम में जुटे हुए हैं।

पचास साल पहले सरकार ने उस समय में नौ लाख रुपए बतौर मुआवजा बांटे। इस अधिग्रहित जमीन पर कहीं कर्मचारियों की आवासीय कॉलोनी बनाई गई तो कहीं स्टोन क्रशर लगाया गया। लेकिन 1989 में इस परियोजना के तहत लोहारी गांव के पास यमुना नदी पर बन रहे पुल के टूटने से 14 लोगों की मौत हुई तो इस परियोजना पर काम बंद हो गया।

22 साल के बाद बोतल से बाहर आया परियोजना का जिन्न

परियोजना पर काम बंद होने को ग्रामीणों ने परियोजना स्थगित समझा। लोग अधिग्रहित जमीन सहित अपनी दूसरी जमीन पर काश्तकारी करते रहे। समय गुजरता गया। उस दौर में मुआवजा लेनी वाली पीढ़ी भी गुजर गई। तो इस परियोजना का जिन्न एक बार फिर 22 साल बाद 2013 में बोतल से वापस बाहर आ गया। परियोजना को जल्द पूरा करने के लिए इसे दो पार्ट में विभक्त किया गया। व्यासी बांध परियोजना को 120 मेगावाट तो लखवाड़ डैम को 300 मेगावाट के हिसाब से डिजाइन किया गया। ग्रामीणों के लिए जमीनों का मुआवजा नये सिरे से तय करने, ग्रामीणों को इस परियोजना में नौकरी या काम देने की बात भी हुई।


लेकिन अब ग्रामीणों ने अपने विस्थापन व जमीन के बदले जमीन की मांग करनी शुरू कर दी। जनजातीय लोगों के रीति-रिवाज व परंपराएं अन्य समाज से अलग बताते पूरे गांव को एक ही जगह पर बसाने की मांग मुखर होने लगी। जिससे गांव की सांस्कृतिक विरासत को बचाया जा सके। इसके लिए लोगों ने मुआवजा लेने से भी यह कहकर इंकार कर दिया कि उन्हें जमीन के बदले जमीन और मकान के बदले मकान दिया जाए। राज्य सरकार ने यह मांग मान भी ली थी। कैबिनेट में इस पर फैसला भी हुआ और विकासनगर के पास जमीन चिन्हित भी हुई, लेकिन बाद में यह फैसला पहले स्थगित और फिर निरस्त कर दिया गया।

शांति भंग के मामले में हाईकोर्ट से हुई जमानत

इसके बाद जब जून, 2021 में बांध में पानी भरना शुरू हुआ तो लोहारी के लोगों ने बांध स्थल पर धरना शुरू कर दिया। इस दौरान जल सत्याग्रह भी किया गया। 120 दिन तक धरना चलता रहा। 2 अक्टूबर की देर रात भारी संख्या में पुलिस बल भेजकर गांव के 17 लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेजकर बाकी लोगों को खदेड़ दिया गया। शांति भंग के इस मामूली मुकदमे की जमानत के लिए भी ग्रामीणों को हाईकोर्ट जाना पड़ा।

ग्रामीणों की जमीन लेने के मामले में सरकार की बदइंतजामी का नमूना इसी से समझा जा सकता है कि एक ग्रामीण गजेंद्र सिंह पुत्र धर्म सिंह को तो मामूली मुआवजा भी नहीं मिला। 12 बीघा संयुक्त खाते में गजेंद्र का नाम है, लेकिन मुआवजा गायब है। ऐसा क्यों ? यह किसी को नहीं पता।

सरकार ने ग्रामीणों की जमीन के लिए नया मुआवजा 23 लाख प्रति हैक्टेयर तय करते हुए कुछ लोगों के खाते में 2 लाख से 6 लाख रुपये तक भेजे गये हैं। लेकिन रुपये किस हिसाब से भेजे गये, यह नहीं बताया। जबकि जनजाति एक्ट में प्रावधान है कि यदि विस्थापित किये जाने वाला कोई परिवार भूमिहीन हो तो उसे 2.50 हेक्टेयर जमीन का मुआवजा दिया जाएगा। लेकिन, लोहारी के मामले में इन सब कानूनों का पालन नहीं किया गया। इतना ही नहीं, जो जमीन एक्वायर की गई थी, बांध का पानी उससे भी ज्यादा भर दिया गया है। उन्हें यह भी नहीं बताया गया है कि पानी कहां तक भरेगा ?

(जमीन अधिग्रहण से ज्यादा भर गया पानी)

परियोजना का एक दिलचस्प तथ्य यह है कि बांध निर्माण के दौरान गांव के कुछ लोगों की गाड़ियां काम पर लगी थी। जबकि कुछ लोगों ने मजदूरी की थी। बाद में कहा गया कि मजदूरी और गाड़ियों के किराये के रूप में गांव वालों को जो पैसा दिया गया है, वह मुआवजे में से काट दिया जाएगा। गांव के ओमपाल सिंह चौहान सवाल उठाते हैं कि बांध निर्माण में पूरे देश के सैकड़ों लोगों को काम मिला था, ऐसे में लोहारी गांव के लोगों के मुआवजे में से पैसे काटने का कोई औचित्य समझ नहीं आ रहा है। गांव के लोगों के सरकार से पूछने के लिए कई सवाल हैं, लेकिन कोई उनकी बात सुनने को तैयार नहीं। लोगों को घरों से खदेड़कर उनके हाल पर छोड़ दिया गया है।

इसके साथ ही जगह जगह कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए चेतावनी बोर्ड लगाकर ग्रामीणों को आंदोलन करने पर अदालत का भी डर दिखाया जा रहा है। फिलहाल लोहारी गांव अब क्षण-प्रतिक्षण डूब रहा है। ग्रामीणों के जनप्रतिनिधियों ने भी उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया है। रोशनी देवी ने विधायक मुन्ना सिंह चौहान पर कई आरोप लगाये।

(स्कूल में दिन गुजार रहे ग्रामीण)

कुल मिलाकर अभी की स्थिति में लोहारी गांव यमुना नदी पर बनी करीब दो किमी. लम्बी पानी की इस झील में डूब चुका है। कुछ परिवार यहां से चले गए हैं तो कुछ अभी भी किसी करिश्में की उम्मीद में गांव के बाहर स्कूल में शरण लेकर दिन गुजार रहे हैं।

Next Story

विविध