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ग्राउंड रिपोर्ट

Ground Report: स्मृति ईरानी की बधाई के सात साल बाद भी पीएम मोदी की काशी में बने लड़कियों के शौचालय हैं बदहाल

Janjwar Desk
24 Jun 2022 11:50 AM IST
Ground Report: स्मृति ईरानी की बधाई के सात साल बाद भी पीएम मोदी की काशी में बने लड़कियों के शौचालय हैं बदहाल
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Ground Report: स्मृति ईरानी की बधाई के सात साल बाद भी पीएम मोदी की काशी में बने लड़कियों के शौचालय हैं बदहाल

Ground Report: कैंट रेलवे स्टेशन से थोड़ी ही दूर लहरतारा का पूर्वोत्तर रेलवे माध्यमिक स्कूल, अंधरापुल-चौकाघाट का प्राथमिक कन्या विद्यालय और पानी टंकी ढोलवरिया स्थित प्राथमिक विद्यालय के बालक-बालिका शौचालयों की रियल्टी चेक में सभी बदहाल मिले। कुछ स्कूलों में तो रोजाना 24 घंटे बालिका शौचालयों में ताले लटकते रहते हैं। बारिश के चलते इन बदहाल शौचालयों में जहरीले जीव-जंतुओं ने अपना डेरा जमाना शुरू कर दिया है।

उपेंद्र प्रताप की रिपोर्ट

Ground Report: केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने सरकारी स्कूलों में बने शौचालयों का ट्वीट कर पीएम मोदी का दिल से आभार जताया और बधाई दे डाली। साल 2015 में ईरानी के बधाई वाले इस ट्वीट के आज सात साल गुजर गए, लेकिन सरकारी स्कूलों में शौचालयों की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है। इधर, जनज्वार की टीम ने प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के सरकारी स्कूलों में बने शौचालयों की हकीकत जानने के लिए 21 जून को कई सरकारी स्कूलों का रियल्टी चेक किया किया। कैंट रेलवे स्टेशन से थोड़ी ही दूर लहरतारा का पूर्वोत्तर रेलवे माध्यमिक स्कूल, अंधरापुल-चौकाघाट का प्राथमिक कन्या विद्यालय और पानी टंकी ढोलवरिया स्थित प्राथमिक विद्यालय के बालक-बालिका शौचालयों की रियल्टी चेक में सभी बदहाल मिले। कुछ स्कूलों में तो 24 घंटे बालिका शौचालयों में ताले लटकते मिले। इतना ही नहीं बच्चों को लघु शंका व दीर्घ शंका की स्थिति में गंदे और बदबूदार शौचालय में जाना पड़ता है। तिसपर जहरीले जीव-जंतुओं के काटने भी भय भी बना रहता है। कई स्कूलों में तो बालिका शौचालय इतने गंदे हैं कि इनमें बच्चे क्या जानवर भी पास नहीं फटकते हैं? ईरानी ने बधाई देने को होड़ और सस्ती शाबाशी की चाहत में लाखों बच्चों के समस्याओं के सवाल को ही गोल कर दिया। बेहतर होता कि महिला और बाल विकास केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी पीएम मोदी को बधाई देने से पहले सरकारी स्कूलों के बदहाल शौचालयों की जमीनी हकीकत को जान लेतीं और बेहतरी के लिए प्रयास करतीं।

बनारस के कई परिषदीय विद्यालयों में छात्र-छात्राओं शौचालय की स्थिति जानकर आपके पैरों के नीचे से जमीन खिसक जाएगी। जहां एक और सरकारें दावा करती हैं कि शासकीय स्कूलों में बालक-बालिकाओं के लिए अलग शौचालय बनवाए गए हैं। रियल्टी चेक में यह दावा खोखला और हकीकत से कोसों दूर पाया गया है। स्वच्छ भारत मिशन योजना की कलई तब खुलती है, जब हकीकत से सामना होता है। पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में कुल 1400 सरकारी स्कूल हैं। इनमें से कई परिषदीय स्कूलों में बालक-बालिकाओं के लिए बने अलग-अलग शौचालय निहायत गंदे, बदहाल और फटेहाल हैं। कुछ स्कूलों में शौचालयों की हालत यह है कि इनमें 24 घंटे ताले लटके रहते हैं। जिससे यहां जहरीले जंतुओं ने डेरा डाल दिया है। इससे मासूम को परेशानी होती है। जिसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है।

अंतराष्ट्रीय योग दिवस के मौके पर पूर्वोत्तर रेलवे जूनियर माध्यमिक स्कूल लहरतारा में बच्चे योग करने के बाद क्लास में आपस में बातचीत कर रहे थे। मंगलवार की सुबह साढ़े नौ बज रहे थे। दो दिन पहले बारिश होने की वजह से मौसम का रुख थोड़ा नरम पड़ा हुआ है। विद्यालय परिसर में बीमारी के वाहक सूअर घूम रहे थे। दो बच्चे लघु शंका के लिए शौचालय की तरफ जाते हैं। एक शौचालय के कमरे में झांकने के बाद बाहर ही झाड़ियों में लघु शंका कर लौट आता है, जबकि दूसरा बालक जैसे-तैसे गंदे शौचालय में फारिग होकर बाहर आता है। यही हाल कन्या प्राथमिक विद्यालय चौकाघाट-2 (अंधरापुल) का है। स्कूल पर पहुंचने के बाद पता चला कि यहां के टीचरों की ड्यूटी योग करने के लिए गंगा घाटों के किनारे लगी हुई थी। स्कूल में सिर्फ एक महिला शिक्षामित्र और अन्य स्टाफ मिला। विद्यालय के गेट पर ही चार शौचालय बनाए गए हैं। इनमें से दो पर ताले लटक रहे थे। दो शौचालय तो खुले हुए मिले लेकिन वे इतने गंदे और बदहाल थे की, इनमें छात्र-छात्राओं जाना संभव नहीं। तिसपर टॉयलेट शीट और आसपास बड़े-बड़े सैकड़ों काले चीटें घूम रहे थे। शौचालय भवन के ऊपर एक बदहाल अवस्था में पानी की टंकी राखी गई थी। जंगली लताओं ने शौचालय कक्ष को घेर रखा है। रात के समय इन जंगली घासों में जहरीले जीव भी दस्तक दे जाते हैं।

काशी में सवालों के घेरे में क्लीन इंडिया का नारा

नरेंद्र मोदी ने पीएम बनने के बाद क्लीन इंडिया का नारा बनारस में ही सवालों में घिर तब जाता है, जब कई सरकारी स्कूल बदहाली की दास्तां बयां करते हुए सिसक पड़ते हैं। साल 2019 तक देश को साफ और स्वच्छ बनाने का लक्ष्य रखा था, लेकिन हकीकत कुछ और ही बयां करती है। मोदी के संसदीय क्षेत्र काशी में सरकारी स्कूलों के टॉयलेट बदहाल हैं। वाराणसी में कुल 1400 सरकारी स्‍कूल हैं। इनमें से 50 से अधिक स्कूलों के टॉयलेट खराब पड़े हैं। वहीं, दर्जभर सरकारी स्कूलों में तो टॉयलेट फटेहाल हैं। पीएम के संसदीय क्षेत्र में ऐसा होने से क्लीन इंडिया के विजन पर सवाल खड़े हो रहे हैं? डि‍स्‍ट्रि‍क्‍ट इनफॉर्मेशन सि‍स्‍टम फॉर एजुकेशन के के आंकडों के मुताबि‍क, वाराणसी में कुल 1400 स्‍कूल हैं। इनमें से 50 गर्ल्‍स और 30 ब्‍वॉयज स्‍कूलों की में शौचालय अति बदहाल हैं। ऐसे में छात्र-छात्राओं को टॉयलेट के लिए बीच में क्लास छोड़कर जाना पड़ता है।

ब्‍लॉकवार शौचालयों की स्‍थि‍ति

वाराणसी के ब्‍लॉकवार स्‍कूलों की सूची

  • आरजीलाइंस-191 स्‍कूल
  • बडागांव - 150 स्‍कूल
  • चि‍रईगांव- 158 स्‍कूल
  • चोलापुर -155 स्‍कूल
  • हरहुआ -149 स्‍कूल
  • काशी विद्यापीठ -125 स्‍कूल
  • नगर नि‍गम वाराणसी-120 स्‍कूल
  • नगर पालि‍का रामनगर -16 स्‍कूल
  • पिंडरा-186 स्‍कूल
  • सेवापुरी-150 स्‍कूल

कुल 1400 स्कूलों में से कई स्कूलों में टॉयलेट की स्थित बहुत ही बदहाल है। नौकरशाही का दावा सिर्फ कागजों में सिमट कर रह गया गई। हकीकत में छात्र-छात्राओं को कई परेशानियों का सामना करना पड़ा रहा है। सरकार और प्रशासन की नीतियों और उनकी मंशा पर सवाल खड़े करते हुए शहर के प्रबुद्ध वैभव त्रिपाठी कहते हैं कि कई स्कूलों में टॉयलेट्स की स्थिति बदहाल है। यह सरकार सिर्फ धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण में जुटी हुई है। इनका वास्तविकता से कोई सरोकार नहीं है। इनकी प्राथमिकता सिर्फ और सिर्फ अमीर तबके को लाभ दिलाने तक सिमट कर रह गई है, इनका गरीब और इनके बच्चों से कोई सरोकार नहीं रह गया है। यह बात इन्हीं के बनारस मॉडल दिख रही है।

सरकारी स्कूल में छात्राओं को भेजने से कतराने लगे हैं अभिभावक

स्लम, बेगर्स बच्चों के शैक्षिक उत्थान के लिए काम करने वाली संस्था उर्मिला देवी मेमोरियल सोसाइटी की संचालिका प्रतिभा सिंह 'जनज्वार' को बताती हैं कि 'जहां पढ़ाई - लिखाई के उद्देश्यों की ही पूर्ति नहीं हो पा रही है। वहां टॉयलेट्स की समस्या पर कौन ध्यान देने जा रहा है? स्कूल कैम्पस में जैसे-तैसे बना दिए गए हैं। पैरेंट्स भी उदासीन रहते हैं। अध्यापक और प्रिंसिपल स्कूल की बाहरी साफ-सफाई में जुटे रहते हैं। जबकि, टॉयलेट्स और पेयजल की व्यवस्था आदि की स्थिति बदहाल आज भी है। यही वजह है कि लोग अब अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में भेजने से बचने लगे हैं। बारिश के दिनों में हालत और ख़राब हो जाते हैं। स्कूलों की मैनेजमेंट कमिटी की भूमिका भी संदेह के घेरे में हैं। ओवरआल इनकी लापरवाहियों की वजह से स्कूलों में दिनोंदिन छात्र-छात्राओं की तादात घटती जा रही है। भ्रष्ट तंत्र की लापरवाही से सुरक्षित वातावरण में छात्र-छात्रों का पठन-पाठन नहीं हो पा रहा है। सुन्दरपुर से लेकर शहर और ग्रामीण इलाकों के शासकीय स्कूलों के टॉयलेट्स की स्थिति बद से बदतर हो गई है। इनकी दशा को सुधारने के लिए न तो स्थानीय जनप्रतिनिधि तत्पर हैं और न ही बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारी।

स्वच्छता के लिए आने वाला फंड कहां जा रहा है ?

02 अक्टूबर गांधी जयंती के मौके पर साल 2019 में एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन कर प्रधानमंत्री मोदी ने भारत को आनन-फानन में 'खुले में शौच मुक्त' घोषित किया था। हालांकि यह दावा पूरी तरह सच नहीं है, इसकी तस्दीक खुद नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) करता है। दूसरी तरफ एक सवाल ये भी है क्या पीएम मोदी को उनकी नौकरशाही ने नहीं बताया कि आपके ही संसदीय क्षेत्र में हजारों-हजार लोग रोजाना खुले में नदी, नाले, नहर, कस्बे और बस्तियों किनारे शौच करते हैं ? तीसरा सवाल- क्या नौकरशाही ने यह बताने की हिम्मत जुटा सकी कि बनारस के कई दर्जन स्कूलों में बालिकाओं बनाए गए शौचालय में 24 घंटे ताले लटकते रहते हैं। इन्हें शौच और अन्य स्वास्थ्य कारणों से समय से पहले ही घर जाना पड़ता है ? या फिर शौचालय इतने बदहाल और गंदे हैं कि छात्र-छात्रों को कई मुसीबतों का सामना करना पड़ता है ? प्रतिभा आगे कहती हैं कि 'राज्य और केंद्र सरकार स्कूल और इलाके को साफ-सुथरा रखने के लिए हजारों-करोड़ों का बजट एलाट करती है। समय गुजर जाता है। आधी-अधूरी तैयारियों के बाद दोबारा से टॉयलेट्स की स्थिति जस की तस बानी रहती है। अधिकारी और जिम्मेदार मनमाने तरीके से धन को डकार जाते हैं। इनकी निगरानी होनी चाहिए ताकि, जनता के टैक्स का सही से इस्तेमाल हो सके।

फैलाती है बीमारी

बनारस के सैकड़ों स्कूलों में गंदे टॉयलेट्स की वजह से छात्र-छात्राओं के बीमार होने की आशंका प्रबल हो जाती है। खुले में शौच या गंदे टॉयलेट्स का इस्तेमाल करने पर पर्यावरण और बच्चों की सेहत पर प्रत्यक्ष असर देखने को मिलता है और बच्चे प्रत्यक्ष रूप से संपर्क में आते हैं। इसकी वजह से डायरिया और जलजनित बीमारियों के फैलने का खतरा तथा घरों और समुदायों में संक्रामक बीमारी पांव पसारने लगती है। इसका अधिक असर बदलते मौसम में देखा जाता है। पानी में सूक्ष्मजीव से दूषित होने पर भी उल्टी, दस्त, डायरिया, बुखार, संक्रमण आदि के चपेट में आने पर बच्चों की पढ़ाई बाधित होती है। यूनिसेफ के आंकड़ों के मुताबिक भारत में पांच साल से कम उम्र के लगभग 100,000 बच्चों की डाएरिया से मौत हो जाती है।

जहरीले जंतुओं के आवास बने बदहाल टॉयलेट्स

दर्जन भर अधिक शहरी और ग्रामीण इलाके में स्थित सैकड़ों सरकारी स्कूलों में बने टॉयलेट्स बदहाल और जंगली घासों-झाड़ियों से घिरे हुए हैं। गर्मी अब लगभग गुजर गई। मानसून की एक-दो बरसातें हो गई हैं और अब लगातार बारिश के आसार हैं। ऐसे में स्कूलों के कैम्पस में उगने वाली घास में रहने वाले सांप, बिच्छु, छिपकली समेत अन्य जहरीले जंतु बारिश से बचने के लिए टॉयलेट्स में निवास करने लगते हैं। ऐसे में जब सामान्य दिनों में बदहाल टॉयलेट्स को कैसे बारिश के दिनों में जिम्मेदार जहरीले जंतुओं से मुक्त करा पाएंगे ? बरसात में जहरीले जंतुओं का बसेरा बने टॉयलेट्स जाने से बच्चों को खतरा हो सकता है। लिहाजा, अभी से साफ सफाई और प्रयाप्त रोशनी का प्रबंध किया जाए?

कब जागेंगे जिम्मेदार? बेपरवाह बीएसए!

पत्रकार राजीव सिंह कहते हैं कि राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन कक्षा एक से आठवीं तक के शिक्षकों को बतौर एजेंसी इस्तेमाल कर रही है। इससे इनका ध्यान पठन-पाठन से विमुख होता जा रहा है। बीएसए की भी घोर लापरवाही उजागर हो रही है, जो सिर्फ अपने केबिन-कार्यालय में बैठकर विद्यालयों की बदहाली से मुंह मोड़े हुए हैं। कागजों में व्यवस्था चाक-चौबंद दिखाई जाती है, जबकि जमीन पर हकीकत जानकर सबका मन दुःखी हो जाता है। प्रधानाचार्य और विद्यालय की प्रबंधन समिति अपनी जिम्मेदारी को समझे और टॉयलेट्स को सुलभ और सहज उपयोगी बनवाए। शौचालयों की बदहाल स्थिति को जानने के लिए बेसिक शिक्षा अधिकारी राकेश सिंह से संपर्क करने का प्रयास किया गया तो उनका फोन बंद आ रहा था। जबकि वाराणसी के जिलाधिकारी का शख्त निर्देश है कि सभी सरकारी अधिकारी और कर्मचारी अपने फोन को सदैव चालू रखेंगे और फोन पर जनता से कनेक्ट होते रहें। लेकिन, डीएम साहब के निर्देश को ठेंगे दिखाते हुए लापरवाह बीएसए को अपने जिम्मेदारी का एहसास ही नहीं है।

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