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Ground Report : मोदी की काशी में भक्तों को तारने वाली गंगा ले रही हर माह 10 से ज्यादा लोगों की जान, सुरक्षा के नहीं इंतजाम
Ground Report : मोदी की काशी में भक्तों को तारने वाली गंगा ले रही हर माह 10 से ज्यादा लोगों की जान, सुरक्षा के नहीं इंतजाम
उपेंद्र प्रताप की रिपोर्ट
Ground Report : पत्नी की चिता को आग देकर लौटे भोलानाथ का चूल्हा ठंडा पड़ गया है। उन्हें अपनी पत्नी से ज्यादा दुख उस पोते के दुनिया से रुखसत होने का है जो अपनी दादी की चिता में आग देने गंगा घाट (Ganga Ghat) पर गया और नहाते समय नदी (Ganga River) की जलधारा में समा गया। दहकते आसमान में गोताखोरों ने घंटों कोशिश की, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। अगले दिन जाल डाली गयी तब जाकर 12 वर्षीय कृष्णानंद (Krishnanand) का शव मिला। पोते की मौत के बाद भोलानाथ की आंखें पथरा गई हैं और आंखों की नींद गायब हो गई है। अपने ऊपर टूटे दुख और विपत्ति को बयां करते हुए वह रो पड़ते हैं और उनकी आंखें बरसने लगती हैं। साथ ही उनका गला रूंध जाता है।
भोलानाथ का परिवार वाराणसी शहर (Varanasi City) से महज 12 किमी दूर दुलहीपुर के बहावलपुर के दलित बस्ती में रहता है। मां जीरा देवी, पिता रविंद्र, चाचा जोगेंदर और दादा भोलानाथ का दिल दहल गया। मोहल्ले वाले, रिश्तेदार और परिवार समेत सैकड़ों लोगों ने मिलकर कृष्णानंद को खोजने के लिए अभियान छेड़ दिया। लगातार चार से पांच घंटे खोजबीन किया गया। गली से लेकर घाट तक, बहावलपुर से लेकर बनारस तक एक कर दिया। लेकिन, नतीजा सिफर रहा। हां, रविंद्र को घाट पर बेटे के कपड़े, चप्पल और पानी का झोला जरूर मिला था।
10 अप्रैल 2022 को गंगा इनके पोते को निगल गई थी। वह गंगा जिसे प्रदूषण मुक्त करने और उसमें डुबकी लगाने वालों की हिफाजत करने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी ने करीब आठ बरस पहले बड़े-बड़े दावे किए थे। मोदी ने गंगा को अपनी मां का दर्जा देते हुए उसे तारने का भरोसा भी दिलाया था। स्मार्ट हो रहे बनारस में तरक्की हुई हो या नहीं, लेकिन जिस गंगा में हर महीने करोड़ों लोग डुबकी लगाते हैं उनकी हिफाजत के लिए यहां कोई मुकम्मल इंतजाम नहीं है। दुलहीपुर के भोलानाथ और उनके पुत्र रविंद्र को अपने बेटे के जाने का गम है। वो कहते हैं, "अगर गंगा घाट पर सुरक्षा का इंतजाम हुआ होता तो नौनिहाल कृष्ण की किलकारी हमारे घर में गूंज रही होती। मगर अफसोस, अब हमें अपनी जिंदगी उसकी यादों के भरोसे बितानी होगी। हम चाहते हैं कि पीएम नरेंद्र मोदी अपना वादा निभाएं और गंगा घाटों पर नहाने वाले लोगों की सुविधा के लिए बैरिकाटिंग का प्रबंध कराएं।"
रविंद्र यह भी कहते हैं, "बनारस शहर को स्मार्ट बनाने का दावा झूठा और खोखला है। पहले हम भी सबकुछ अच्छा समझ रहे थे। खुद पर मुसीबत आ पड़ी तब एहसास हुआ कि यहां जल पुलिस किसी काम की नहीं है। वह न तो लोगों की हिफाजत करती है और न ही उसने गंगा घाटों पर बचाव के लिए डेंजर पॉइंट का चेतावनी बोर्ड ही लगाया है। गंगा घाटों पर बच्चे, महिलाएं, सैलानी और बुजुर्गों के स्नान और आमजन के लिए कोई सुरक्षा इंतजाम नहीं हैं। न जंजीर की कोई व्यवस्था है। पुलिस और एनडीआरएफ (Police And NDRF) के लोग सिर्फ हादसे के बाद पंचनामा का जिम्मा उठाते हैं। बाकी समय वो क्या करते हैं, किसी को नहीं मालूम।"
पुलिसिया रोजनामचे से लाशें गायब
बनारस में 90 से अधिक घाट हैं। हर महीने गंगा स्नान और पूजन के लिए करीब 30 से 50 लाख से देसी-विदेशी सैलानी पहुंचते हैं। आकड़े बताते हैं कि साल 2021 में 110 से अधिक लोगों की गंगा में डूबने से मौत हुई और इस साल अब तक 51 की मौत हुई। हैरानी की बात यह है कि जल पुलिस के रोजनामचे में कुल आठ लाशें ही दर्ज हैं। बाकी लाशें कहां गईं, किसी को नहीं मालूम। घाट किनारे गंगा में डूबकर होने वाली मौतों के आंकड़े तेजी से बढ़ रहे हैं। इस साल के अंत तक इन मौतों का ग्राफ कहां तक पहुंचेगा, इसका अंदाज लगा पाना बेहद कठिन है।
राजघाट पर सैलानियों को नौकायन कराने वाले राजू साहनी इस बात से नाराज हैं कि गंगा स्नान करने वाले श्रद्धालुओं को लेकर सरकार और प्रशासन कतई गंभीर नहीं हैं। साहनी कहते हैं, "बनारस में गंगा घाट पर स्नान, दाह-संस्कार, बोटिंग के लिए आने वाले यात्री सुरक्षित नहीं हैं। लोगों को डूबने से बचाने की जिम्मेदारी जल पुलिस की है, लेकिन वो कहीं भी पेट्रोलिंग करती नजर नहीं आती। यह वजह है कि गंगा में डूबकर होने वाली मौतों के आंकड़े लगातार बढ़ते जा रहे हैं। यह स्थिति काफी गंभीर और चिंताजनक है। मोदी-योगी की सरकार को चाहिए कि वो गंगा के किनारों पर सुरक्षा जंजीर लगाए ताकि लोग उसके सहारे स्नान-ध्यान कर सकें।"
राजघाट पर गोताखोरी करने वाले दुर्गा माझी कहते हैं, "बनारस के सारे के सारे घाट पोपले हो गए हैं। बनारस भले ही स्मार्ट हो रहा है लेकिन घाटों की अंदरूनी हालत बेहद जर्जर हो चुकी है। जिस तरह से गंगा में अवैध खनन हो रहा है उसका असर घाटों पर पड़ रहा है। पिछले साल बालू-रेत के लिए नहर खोदी गई थी, जिसका असर यह हुआ कि गंगा ने घाटों को अंदर तक पोपला दिया। यही वजह है कि आए दिन नहाने वालों की मौतें हो रही हैं और इसकी चिंता सरकारी नुमाइंदों को कतई नहीं है। हम दशकों से गोताखोरी करते आ रहे हैं। इस तरह का दृश्य पहले नहीं दिखते थे। रामनगर से राजघाट के बीच अब आए दिन लोगों के डूबने और मरने की खबरें आ रही हैं।"
"हाल के दिनों में जो मौतें हो रही हैं वो डूबने से नहीं बल्कि नहाते समय पोपले घाटों के अंदर घुस जाने की वजह से हो रही हैं। ऐसी लाशें न पुलिस निकाल पाती है और न ही एनडीआरएफ के जवान। जब ये मृतकों को गंगा से नहीं निकाल पाते हैं तब पुलिस हमारे दरवाजों पर दस्तक देती है। मानवता के चलते हमें गंगा की भंवर में उतरना पड़ता है। हमारी मुश्किल यह है कि किसी भी सरकार ने गोताखोरों को आज तक न तो लाइसेंस दिया और न ही कभी सम्मानित करके हमारा हौसला बढ़ाया। हम राजघाट पर गोताखोरी करते हैं। यह बनारस का ऐसा घाट है जहां प्रायः लोग सुसाइड करने के लिए पुल से कूद जाते हैं। ऐसे लोगों को हमीं लोग बचा पाते हैं। पुलिस के पास ऐसी कोई एक भी कहानी नहीं है जो इस बात को तस्दीक करे कि जवानों ने किसी डूबते इंसान को बचाया हो।"
घाटों की बदहाली के लिए जिम्मेदार कौन?
बनारस के घाट बाहर से देखने पर भले ही रंग-रोगन किए सुंदर से दिखते हैं, लेकिन हकीकत में वो बूढ़े और बीमार हो चुके हैं। इन्हें संजीवनी देने के लिए न तो प्रशासन तैयार है और न ही नेता-मंत्री। वाराणसी नगर निगम के एडिशनल कमिश्नर दुश्यंत कुमार दावा करते हैं, 'स्मार्ट होते बनारस के हिसाब से इंफ्रास्ट्रक्चर पर काम किया जा रहा। इसमें गंगा घाट का सुंदरीकरण, चेतावनी बोर्ड, लाइटिंग और साफ-सफाई चीजें हमारी प्राथमिकता हैं। हम भी गंगा घाटों पर होने वाली मौतों को लेकर चिंतित है। चिंता की बात यह है कि पुलिस और एनडीआरएफ की पेट्रोलिंग के बावजूद लोगों की मौते हो रही हैं। नगर निगम प्रशासन योजना बना रहा है और जल्द ही गंगा घाटों के किनारे जंजीर लगवाने का प्रयास किया जाएगा।''
बनारस में गंगा के दो दर्जन से अधिक घाट दशाश्वमेध कमिश्नरेट थाना क्षेत्र में पड़ते हैं। गंगा में डूबकर होने वाली मौतों पर इलाके के एसीपी अवधेश कुमार पांडेय कहते हैं, 'हमारे थाने की फाइल में साल 2021 में सिर्फ आठ केस दर्ज हैं। घाटों के किनारे जल पुलिस और सिपाहियों की ड्यूटी रहती है, जो सैलानियों को गहरे पानी में जाने से रोकते भी हैं। डूबते वही हैं जो पुलिस के निर्देशों की अनदेखी करते हैं। हम इतना जरूर कहेंगे कि हरिद्वार की तर्ज पर बनारस में जंजीर की व्यवस्था होनी चाहिए क्योंकि दुनियाभर से लोग गंगा स्नान कर पुण्य कमाने बनारस आते हैं।''
भंवर के चैंबर बन गए हैं घाट
बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में महामना मालवीय गंगा शोध केंद्र के चेयरमैन और प्रख्यात गंगा विशेषज्ञ प्रो. बीडी त्रिपाठी कहते हैं, 'बनारस की गंगा की फिजियोग्राफी और बहाव में काफी बदलाव आ गया है। घाट किनारे गंगा में भंवर चैम्बर्स बन गए हैं, जो सैलानियों की जान और मल्लाहों की पतवार के लिए खतरनाक है। घाट किनारे गंगा में कहीं सिल्ट है तो कहीं 15 फीट से अधिक गहरा पानी। जो लोग तैरना नहीं जानते वो तो सतर्क रहते हैं, लेकिन जिन्हें तैरना आता है वो गफलत में डूब जाते हैं। तैराकों की भी पता नहीं होता कि घाट किनारे गंगा में रेत के गड्ढे और पानी के भंवर धोखे से जान लेते हैं।"
वाराणसी में गंगा बचाओ अभियान से जुड़े और आरटीआई एक्टिविस्ट डॉ. अवधेश दीक्षित बताते हैं, "बनारस में गंगा दक्षिण से उत्तर दिशा में बहती है। शहर किनारे पक्के घाट होने की वजह से पानी काफी देर तक घाटों से टकराकर दोबारा धारा में जा मिलता है। इसमें से भी कुछ पानी जल तरंग की वजह से गंगा में खतरनाक भंवरों को जन्म देता है। इन भंवरों का दायरा करीब 22 फीट में होता है। कम पानी के धोखे में यदि कोई भंवर में फंस गया तो बच पाना मुश्किल होता है।"
डा. दीक्षित यह भी कहते हैं, "गंगा में डूबने से होने वाली मौतों के लिए सिर्फ घाट ही जिम्मेदार नहीं हैं। तमाम बालू माफिया और अफसर भी जिम्मेदार हैं जो मनमाने तरीके से अवैध खनन में लिप्त हैं। मौजूदा साल के शुरुआत में बालू माफियाओं ने बड़े पैमाने पर रेत की निकासी की है, जिसका विपरीत असर आने वाले दिनों में देखने को मिलेगा। चिंता की बात यह है कि अवैध खनन के खेल में जुटे माफिया गिरोहों के सिर पर बड़े-बड़े अफसरों के हाथ हैं और वो हाथ इतने लंबे हैं जिन्हें किसी के जीने-मरने की कोई चिंता ही नहीं है। सरकार का हाल यह है कि वो गंगा में डूबने वाले लोगों के परिजनों को न कोई राहत देती है और न ही सुरक्षा का कोई पुख्ता बंदोबस्त कर रही है।"
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