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ग्राउंड रिपोर्ट

Gujarat Election 2022 : भाजपा के 27 साल के राज में तबाह मछुआरे, मोदीराज में बढ़ती महंगाई ने दाने-दाने को किया मोहताज

Janjwar Desk
12 Oct 2022 7:07 AM GMT
Gujarat Election 2022 : भाजपा के 27 साल के राज में तबाह होते मछुआरे, मोदीराज में आयी महंगाई ने दाने-दाने को किया मोहताज
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Gujarat Election 2022 : भाजपा के 27 साल के राज में तबाह होते मछुआरे, मोदीराज में आयी महंगाई ने दाने-दाने को किया मोहताज

Gujarat Election 2022 : गुजरात के पोरबंदर में डीजल के दाम बढ़ने के कारण किनारों पर 500 नावें खड़ी हैं, नाव खड़ी करने में भी मछुआरों का साल में 1 लाख रुपए का खर्चा आता है, लेकिन आमदनी एक रुपए भी नहीं हो रही है...

Gujarat Election 2022 : गुजरात में इस साल चुनाव होने वाले हैं। जल्द ही चुनाव की तारीख भी घोषित कर दी जाएगी। इस राज्य में पिछले 27 साल से भाजपा की सरकार है। केंद्र की मोदी सरकार आए दिन गुजरात मॉडल का जिक्र करती रहती है। इस समय गुजरात में भाजपा की डबल इंजन की सरकार है। ऐसे में गुजरात मॉडल पर गुजराती जनता का क्या मत है और उनका चुनावी मूड क्या है, यह जानने के लिए जनज्वार की चुनावी यात्रा चल रही है। अलग-अलग जिलों में जनता का मिजाज जानने के बाद जनज्वार की चुनावी यात्रा गुजरात के पोरबंदर विधानसभा यानि महात्मा गांधी के शहर पहुंची। यहां जनज्वार ने मछुआरों की हालत जानी। मछुआरों ने गुजरात में भाजपा के 27 साल के विकास की पोल खोली। मछुआरों ने बताया कि कैसे वह 27 साल के भाजपा की सरकार में दाने दाने के लिए मोहताज है।

पोरबंदर में किनारों पर खड़ी से 500 नावें

महात्मा गांधी ने अपने संघर्षों के दिनों में अफ्रीका यात्रा कर रहे थे, तब वे पोरबंदर से होते हुए बोट के जरिए ही अफ्रीका गए थे। मल्लाह जाति के लोगों की नाव किनारे पर खड़ी है। यहां छोटी से लेकर बड़ी करीब 500 नावें हैं। ये नावें करीब 2 साल से डीजल की कीमत बढ़ने के कारण यहां ऐसे ही खड़ी हैं। नाविकों ने अपनी-अपनी आस्था और धर्म के झंडे खुशी के तौर पर इन नावों की चोटी पर लगा रखे हैं लेकिन वो खुशी इनकी असल जिंदगी से गायब हो चुकी है।

2 साल से किनारों पर खड़ी हैं ये नावें

एक मछुआरे ने बताया कि यहां उनकी बोट 2 साल से खड़ी है। 2 साल से बोट खड़ी होने के कारण उनके जीवन में भारी नुकसान हुआ है। उन्होंने बताया कि उनकी आमदनी पर असर पड़ा है। समुंद्र में मंदी आने से कारण बोट खड़ी करनी पड़ी है। डीजल के दाम बहुत बढ़ गए है, इसलिए नाव ऐसे ही खड़ी है। 2 साल से खड़ी इस नाव में पानी जमा होता है तो उसे निकालने में भी खर्चा आता है।

डीजल का रेट बढ़ने के कारण मछुआरों की आमदनी बंद

वहीं एक अन्य युवक ने बताया कि डीजल का रेट बढ़ने से बाजार में सभी चीजों के दामों में भी वृद्धि हो गई। हमारे यहां मछलियां ज्यादा संख्या में आती नहीं है और एक्सपोर्टर सही भाव नहीं देते हैं। इस वजह से जो हमारी मछलियां आती है तो उसमे प्रॉफिट नहीं होता है, इसलिए हमें अपने नाव खड़े करने पड़ते हैं और सब बंद करना पड़ता है। युवक ने बताया कि 2 साल से नाव खड़ी है। कोई आमदनी नहीं हो रही है लेकिन खर्चा बढ़ रहा है क्योंकि खड़ी नाव में धीरे-धीरे पानी घुस जाता है। जमा पानी को निकालने के लिए इंजन चालू करना पड़ता है और इसमें डीजल की जरूरत होती है तो उसमे डीजल जल जाता है।

नाव को खड़ी करने पर भी आता है 1 लाख रुपए का खर्च

युवक ने आगे बताया कि नाव में 100 लीटर डीजल का खर्चा आ जाता है। खड़ी नाव में भी एक साल में डीजल और उसके रख-रखाव का 1 लाख रुपए तक का खर्चा आता है। ये सभी नावें यहां तकरीबन 2 साल से खड़ी हैं। एक नाव पर 2 लाख रुपए का खर्च हुआ है लेकिन आमदनी 2 रुपए भी नहीं आई है।

मछुआरों को 4 रुपए महंगा मिलता है डीजल

पोरबंदर एसोसिएशन के उपाध्यक्ष ने बताया कि यहां छोटी-बड़ी नावें मिलकर कुल 500 नाव हैं। यहां सभी नाव बंद है, इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि डीजल का रेट बहुत ही ज्यादा बढ़ गया है। हम नाविकों को 2 स्तर पर बहुत बड़ा नुकसान हो रहा है। पहला नुकसान यह हो रहा है कि हम लोग बल्क में लाखों लीटर डीजल खरीदते हैं लेकिन कोई छूट नहीं मिलती है। हमने रिटेल भाव पर भी सरकार से मछुआरों को डीजल देने की मांग की थी लेकिन आज की तारीख में उपभोक्ताओं के लिए डीजल का जो दाम है, उस पर भी हमें 4 रुपए ज्यादा चुकाना पड़ता है। यानि अगर उपभोक्ताओं के लिए 92 रुपए डीजल का दाम है तो हम मछुआरों को इसके लिए 96 रुपए की कीमत चुकानी पड़ेगी। इस हिसाब से प्रत्येक ट्रिप में जो ढाई से तीन हजार डीजल जाता है तो उस पर हम मछुआरों को 25 से 30 हजार रुपए का अतिरिक्त बोझ पड़ता है इसलिए मछुआरे दिन प्रतिदिन पाई-पाई के मोहताज होते जा रहे हैं।

सरकारों की कोई मदद मछुआरों तक नहीं पहुंचती

सरकार हर साल नई-नई योजना निकालती है लेकिन वो किसी कारण से मछुआरों तक नहीं पहुंचती है। सरकार की किसी योजना का लाभ मछुआरों को नहीं हुआ है। सरकार के जो अधिकारी है, वो योजनाओं के फायदे मछुआरों तक पहुंचने नहीं देते हैं। अलग-अलग नियम बनाते हैं, जिसके कारण योजना का पूरा लाभ मछुआरों को नहीं मिलता है।

पार्किंग के लिए 61 करोड़ का बजट केवल कागजों पर

पोरबंदर एसोसिएशन के उपाध्यक ने बताया कि पोरबंदर में 3 साल से नाव पार्क करने के लिए पार्किंग स्पेस को बढ़ाने की योजना के तहत सरकार ने 61 करोड़ रुपए दिए हैं लेकिन वो पैसे अभी तक कागजों पर ही घूम रहे हैं। उसका कोई फायदा दिखाई नहीं दे रहा है। पोरबंदर में हम ढाई हजार नाव पार्क कर सकते हैं लेकिन अभी पोरबंदर में 6 हजार के आस पास बोट है लेकिन पूरी बोट हम यहां पार्क नहीं कर सकते हैं। सरकार से हमें पार्किंग स्पेस बढ़ाने की मांग की है। सरकार की तरफ से 61 करोड़ रुपए का बजट पास किया गया है लेकिन वो अभी सिर्फ कागजों पर दिए गए हैं। उसका फायदा नहीं हो रहा है।

मोदीराज में मछुआरे दाने-दाने के लिए मोहताज

पोरबंदर पर किनारों पर खड़ी इन नावों में नाविकों के लहराते हुए झंडे लगे हुए हैं, जो तेज हवा के झोंके के साथ उड़ते हैं लेकिन इससे बिलकुल उलट हैं इन नाविकों का जीवन। मछुआरों की जिंदगी उनके झंडे की तरह खुशी से लहराती हुई नजर नहीं आती है। उनकी स्थिति काफी दयनीय है। मछुआरों का कहना है कि भाजपा के 27 साल के शासन में उनके लिए कोई विकास नहीं हुआ है। डीजल की कीमतें बढ़ने पर अब वो बर्बाद हो चुके हैं और दाने-दाने के लिए मोहताज है।

भाजपा की त्रिस्तरीय सरकार में मछुआरे हुए बर्बाद

पोरबंदर में किनारों पर 2 साल से अधिक समय से ये नावें यहां खड़ी हैं और नाव खड़ी करने के लिए भी साल में 1 लाख रुपए का खर्च आता है। इसके आलावा 61 करोड़ रुपए का बजट पास हुआ है, जो सिर्फ कागजों पर है। सबसे बड़ा सवाल है कि इन मछुआरों के भूखे मरने का कारण कौन है ? यहां के सरकारी अधिकारी या फिर भाजपा की त्रिस्तरीय सरकार। केंद्र में भी भाजपा की मोदी सरकार है। राज्य में भी बीजेपी की सरकार है। यहां न्यायपालिका में भी बीजेपी शासित है और विधायक भी भाजपा का ही है। हर स्तर पर एक ही सरकार होने के बावजूद इन मछुआरों की हालत बाद से बदतर हो चुकी है।

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