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ग्राउंड रिपोर्ट

Gumla News: सरकार की कथनी व करनी के फर्क को झेलने को मजबूर गुमला के झलकापाठ के कोरवा जनजाति

Janjwar Desk
15 May 2022 11:53 AM IST
Gumla News: सरकार की कथनी व करनी के फर्क को झेलने को मजबूर गुमला के झलकापाठ के कोरवा जनजाति
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Gumla News: दुष्यंत कुमार की यह पंक्ति जेहन तब कौंध जाती है जब हम झारखंड के आदिवासी बहुल क्षेत्र की ओर निगाह डालते हैं। क्योंकि एक तरफ सरकार दावा करती है कि लघु जलापूर्ति योजना के तहत पंचायत/टोला स्तर पर ग्रामीणों को सौर ऊर्जा आधारित बोरिंग के माध्यम से जल उपलब्ध कराया जा रहा है।
विशद कुमार की रिपोर्ट

कहां तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिये

कहां चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिये

Gumla News: दुष्यंत कुमार की यह पंक्ति जेहन तब कौंध जाती है जब हम झारखंड के आदिवासी बहुल क्षेत्र की ओर निगाह डालते हैं। क्योंकि एक तरफ सरकार दावा करती है कि लघु जलापूर्ति योजना के तहत पंचायत/टोला स्तर पर ग्रामीणों को सौर ऊर्जा आधारित बोरिंग के माध्यम से जल उपलब्ध कराया जा रहा है। वहीं ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति यह है कि लोग आज भी नदी, पहाड़ी क्षेत्रों से गिरता हुआ पानी, खेतों में बना हुआ चुंआ वगैरह का पानी पीने को मजबूर हैं।

झारखंड के गुमला जिले का घाघरा प्रखंड में जंगल व पहाड़ों के बीच स्थित एक गांव है झलकापाठ। इस गांव में 15 परिवार बसते हैं कोरवा आदिम जनजाति के। यह आदिम जनजाति विलुप्त प्राय 8 आदिम जनजाति एक है। इस जनजाति को बचाने के लिए सरकार कई प्रकार की योजनाएं चला रही है। परंतु झलकापाठ गांव की कहानी सरकार की डपोरशंखी योजनाओं की पोल खोलने के लिए काफी है। जिस जनजाति के उत्थान के लिए सरकार ने करोड़ों रुपये गुमला जिला को आवंटित किया है। उसी जनजाति आज भी मूलभूत सुविधाओं से पूरी तरह वंचित रही है। आज भी यह जनजाति आदिम युग में जीने को मजबूर हैं। किस प्रकार कोरवा जनजाति के 15 परिवार जी रहे हैं, उसे इस रिपोर्ट में देखा जा सकता है। बताते चलें कि झलकापाठ गांव में तालाब, कुआं व चापानल नहीं है। पहाड़ के खोह में जमा पानी ही इन 15 कोरवा जनजाति परिवारों की प्यास बुझाता है।

गांव में तालाब, कुआं व चापानल नहीं होने के कारण गांव के लोग पहाड़ के खोह में जमा पानी से प्यास बुझाते हैं। इन्हें पानी के लिए सबसे बड़ी समस्या तब खड़ी हो जाती है जब एक पहाड़ की खोह में पानी सूख जाता है और वे दूसरे खोह में पानी की तलाश में भटकते रहते हैं। गांव से पहाड़ की दूरी डेढ़ से दो किमी है। हर दिन लोग पानी के लिए पगडंडी व पहाड़ से होकर पानी खोजते हैं और पीते हैं। वहीं गांव तक पहुंचने के लिए सड़क नहीं है। ग्रामीणों को पैदल ही आना जाना पड़ता है। गाड़ी का गांव तक जाना सपना के समान है।


स्थिति यह है कि इन 15 कोरवा परिवारों को डीलर के पास से राशन लाने के लिए 10 किमी पैदल चलना पड़ता है। जबकि मुख्यमंत्री डाकिया योजना के तहत आदिम जनजाति परिवारों बोरा बंद अनाज पहुंचाने का नियम है। लेकिन इस ओर किसी का ध्यान नहीं है, कारण यह कि प्रखंड का कोई भी अधिकारी या कर्मचारी इस गांव की ओर आज तक कदम नहीं रखा है। एक तरफ सरकार ने कहा है कि आदिम जनजाति परिवार के घर तक पहुंचाकर राशन दें। परंतु इस गांव में आज तक एमओ व डीलर द्वारा राशन पहुंचाकर नहीं दिया गया है।

झारखंड सरकार द्वारा आदिम जनजाति को दिया जाने वाला बिरसा आवास का लाभ भी इस गांव के किसी को नहीं मिला है। अतः सभी लोग झोपड़ी के घर में लोग रहते हैं। यह गांव पूरी तरह सरकार व प्रशासन की नजरों से ओझल है।

गांव के लोग मिलने वाला सरकारी अनाज के अलावा जंगली कंद मूल खाना तथा चावल के साथ साग-सब्जी एवं नमक मसाला के लिए वे लोग लकड़ी बेचकर या मजदूरी के लिए गांव के हर युवक युवती दूसरे राज्यों में पलायन करते हैं, इनकी जीविका का यह भी एक माध्यम है।


एक समाज सेवी कौशल कुमार बताते हैं कि झलकापाठ गांव के हर एक परिवार के युवक युवती काम करने के लिए दूसरे राज्य पलायन कर गये हैं। इसमें कुछ युवती लापता हैं, जिनका पता नहीं चल पाया है। वहीं कुछ युवक साल-दो साल में घर आते हैं।

बता दें गांव में लोगों को मनरेगा के तहत एक परिवार को 100 दिन के काम की गारंटी होती है, लेकिन झलकापाठ में मनरेगा का किसी भी परिवार का रोजगार कार्ड नहीं है। अतः पलायन करने की वजह गांव में काम नहीं है। गरीबी व लाचारी में लोग जी रहे हैं। पेट की खातिर व जिंदा रहने के लिए युवा वर्ग पढ़ाई लिखाई छोड़ पैसा कमाने गांव से निकल जाते हैं।


केन्द्र सरकार की स्वच्छ भारत अभियान योजना के तहत गांव के किसी के घर में शौचालय नहीं है। लोग खुले में शौच करने जाते हैं। जबकि गुमला के पीएचईडी विभाग का दावा है कि हर घर में शौचालय बन गया है। परंतु इस गांव के किसी के घर में शौचालय नहीं है। पुरुषों के अलावा महिला व युवतियां भी खुले में शौच करने जाती हैं।

गांव के सुकरा कोरवा, जगेशवर कोरवा, पेटले कोरवा, विजय कोरवा, लालो कोरवा, जुगन कोरवा, भिनसर कोरवा, फुलो कोरवा ने बताया कि हमारी जिंदगी कष्टों में कट रही है। परंतु हमारा दुख दर्द देखने व सुनने वाला कोई नहीं है। लोकसभा हो या विधानसभा या फिर पंचायत की चुनाव, हर चुनाव में हम वोट देते हैं। हम भारत के नागरिक हैं। परंतु हमें जो सुविधा मिलनी चाहिए, वह सुविधा नहीं मिल पाती है। गांव के बच्चे चार व पांच क्लास में पढ़ने के बाद पढ़ाई छोड़ देते हैं और कामकाज में लग जाते हैं।

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