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Janjwar Ground Report: बनारस में सीएनजी मोटरबोट बनी नाविकों के लिए मुसीबत, करोड़ों से शुरू हुई इस योजना में छेद ही छेद
Janjwar Ground Report: बनारस में सीएनजी मोटरबोट बनी नाविकों के लिए मुसीबत, करोड़ों से शुरू हुई इस योजना में छेद ही छेद
उपेंद्र प्रताप की ग्राउंड रिपोर्ट
Janjwar Ground Report: उत्तर प्रदेश के वाराणसी में गंगा नदी की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। एक और जहां सैकड़ों एमएलडी सीवर गंगा नदी में डायरेक्ट मिल रहा है। वहीं, सीएसआर फंड के लगभग 29 करोड़ रुपए से गेल इंडिया द्वारा कमोबेश दो सालों से गंगा में करीब 1700 छोटी-बड़ी नावों में से डीजल बोट से सीएनजी में कनवर्ट करने की कवायद जारी है। लगा था कि गंगा नदी से डीजल जनित प्रदूषणों से मुक्त हो जाएगी। हालत यह है कि 16 सौ के सापेक्ष महज 450 डीजल बोट को ही सीएनजी में बदला जा सका है। अब गंगा में सीएनजी बोट की तकनीकी और एडवांस खामियों से हजारों बोट चालक कई मुश्किलों में घिर गए हैं। वहीं, आए दिन इस इंजन का क्रैंक टूटने से नाविक फटेहाल हो गए हैं। कभी 50 रुपए मिलाने वाला सीएनजी ईंधन 84 रुपए पहुंच गया है। जिओलेट के सीएनजी इंजनों की तकनीकी खामियों से धंधा मंदा पड़ गया, तो सैलानियों की भी दो बात सुननी पड़ रही है। पार्ट और मेंटिनेंस के लिए धन, समय और राजघाट स्थित गेल पम्प के चक्कर कटाने पड़ रहे हैं। दिन के एक बज रहे थे। दशाश्वमेध घाट पर लगे लाऊड स्पीकर पर कबीरदास जा एक दोहा बज रहा था। जिसके बोल कुछ इस प्रकार थे-
'झीनी झीनी बीनी चदरिया ॥
काहे कै ताना काहे कै भरनी,
कौन तार से बीनी चदरिया ॥
आठ कंवल दल चरखा डोलै,
पांच तत्त्व गुन तीनी चदरिया.. । '
इसके बाद यह दोहा रूक जाता है और वॉइस ओवर में एक शख्स बोलता है कि ये वहीं पारंपरिक काशी है, जिसका ताना-बाना यहां के सुप्रसिद्ध संतों ने बुना है। इसमें महात्मा बुद्ध की शांति और करुणा मिश्रण है तो कबीरदास की उलटबांसी का कड़वापन भी है, जो सामाजिक बुराइयों और पोंगापंथ को चुनौती देने का साहस भी रखती हैं। रैदास के बेगमपुरा की अवधारणा है तो हिन्दुओं का पवित्र तीर्थ भी है। चूकी मैं आगे बढ़ता और सीढ़ियों से नीचे उतरता गया। जैसे-जैसे गंगा किनारे पहुंचा तो सैलानियों के शोर में वॉइस ओवर गुम हो गई। सुनाई दे रहा था तो सिर्फ सैलानियों-श्रद्धालुओं की गंगा में स्नान, पूजा और बोट से गंगा में जलतरंग पर आनंद लेने की चर्चाएं।
समीप में नाविक सैलानियों को आवाज लगाकर 200 से 400 रुपए में मोटरबोट में बैठने के लिए आमंत्रित कर रहे थे। पारा 45 को छूकर सिर पर आग बरसा रहा था। पूरब से पुरवी बयार गंगा के सिमटते जलराशि को चूमते हुए तो आ रही थी, लेकिन उसमें नमी की मात्रा अधिक होने से राहत नहीं घबराहट हो रही थी। इसी बीच बनारस के फेमस दशाश्वमेध घाट पर नाव में सैलानियों को चढ़ा रहे शम्भू निषाद मिलते हैं। वे 'जनज्वार' को बताते हैं कि 'कोरोना में कोई अपना गहना बेचकर और जमीन बेचकर किसी तरह से अपना गुजरा किया। अब सैलानियों को लेकर गंगा नदी में सैर कराने पर अचानक से सीएनजी गैस के ख़त्म होने पर हमें नाव को एक अन्य नाव से खिड़किया घाट पर जाना पड़ता है। जो परेशान हो रहे हैं, नाव संचालक अब सीएनजी इंजन को हटवा रहे हैं। हम लोगों को बढ़िया इंजन दिया जाए, जो लगातार चलता रहे। पीएम मोदी और योगी से इतना पैसा हम लोगों के लिए आ रहा है, लेकिन अधिकारियों की सुस्ती से उसका बंटाधार हो जा रहा है। हमें यामाहा-होंडा के इंजन दिया जाए। ये इंजन टिकाऊ और इनके मरम्मत के लिए इंजीनियर शहर में मिल जाते हैं। मानसून के आने के बाद कुछ दिनों बाद गंगा में पानी भरने से छोटी 500 नावों का संचालन बंद हो जाएगा।' आए दिन गंगा में डूबने से हो रही मौतों से चिंतित शम्भू कहते हैं कि 'हर घाटों पर गोताखोरों की सरकार या प्रशासन नियुक्ति कर, इनकी ड्यूटी लगाए इससे कि देश के कोने-कोने से आए सैलानी गंगा में डूबकर मरने से बचेंगे। बड़ा दुःख होता कि किस के परिवार के सदस्यों को डूबकर मरने से।'
'न मुझे किसी ने भेजा है, न मैं खुद आया हूं, मुझे तो मां गंगा ने बुलाया है।' पीएम नरेंद्र मोदी ने यह 24 अप्रैल 2014 को यह बात उस समय कही थी, जब वे वाराणसी से लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए पर्चा दाखिल करने के लिए आए थे। केंद्र में भाजपा सरकार बनने के बाद एक अलग मंत्रालय बनाया गया, जिसकी जिम्मेदारी केवल गंगा की साफ-सफाई ही थी। इसके बाद भी गंगा काशी में आज भी दूषित है। मां गंगा की धारा में आज भी बनारस का गंदा पानी घुल रहा है, जो उसे दूषित कर रहा है। गंगा की सफाई के लिए किए गए सभी वादे काशी में अपेक्षित असरकारक साबित नहीं हो हो रहे हैं। बीएचयू के पर्यावरणविद प्रोफेसर कृपा राम का दावा है कि 'गंगा नदी का पानी काफी दूषित है। तब रामनगर के पास गंगा के पानी की जांच के दौरान पता चला था कि सल्फेट, फास्फेट, नाइट्रेट तीनों की मात्रा 15 से गुना ज्यादा है, जो काफी हानिकारक है। इससे किडनी और फेफड़े डैमेज हो सकते हैं। नदी में डीजल इंजन वाली नाव चलने से बहुज ज्यादा कार्बन निकालता हैं, जो स्वास्थ्य को प्रभावित करने के साथ ही वातावरण पर भी बुरा असर डालता है।'
मानमंदिर घाट पर नाव चलाने वाले विक्की बताते हैं कि 'जितने भी सीएनजी इंजन नावों में लगे हैं। आए दिन कुछ न कुछ खराबी आती रहती है। सीएनजी और तकनीकी दिक्कत दूर करने के लिए चार से पांच किलोमीटर जाना पड़ता है। प्रशासन ने सीएनजी बोट के संचालन के लिए कोई ट्रेनिंग नहीं दी है। ख़राब नाव को खिड़किया घाट के गैराज तक जाने और मरम्मत कराने में एक से दो दिन यूं ही निकल जाता है। इससे हमलोगों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। बारिश आ जाएगी तो नाव बंद हो जाएगी फिर बेरोजगारी झेलना पड़ता है। डबल इंजन का बहुत लाभ नहीं मिल पाया है। अभी तक महज 30 फीसदी नाव में ही सीएनजी इंजन लगाया गया है।' जिओलेट का इंजन ऐसा लगता है कि पुराना इंजन है। इसकी डेंटिंग-पेंटिंग कर हमलोगों दिया जा रहा है। आए दिन नए सीएनजी इंजन का क्रैंक टूट जा रहा है। शुरूआत में सीएजी का रेट 50 रुपए के आसपास था। आज 80 रुपए प्रतिकिलो से अधिक हो गया है।'
जब चर्चा में आया था सीएनजी इंजन
जब सरकार द्वारा वाराणसी में गंगा में नौका विहार के लिए नावों को धुंआ और ध्वनि प्रदूषण से मुक्त करने की घोषणा की गई तो यह मामला देश-विदेश में बड़ा कौतुहल का विषय बना था. लोगों का मानना था कि धर्म नगरी काशी में आने वाले पर्यटक गंगा में बोटिंग कर अर्धचंद्राकार घाटों के किनारे सदियों से खड़ी इमारतों, मंदिर-मठों का दीदार करने में प्रदूषण की मार नहीं झेलनी पड़ेगी। अब पर्यटकों को बोटिंग करते समय जहरीले धुएं से निजात और बोट की तेज आवाज नहीं सुनाई देगी। सभी डीजल आधारित बोटों को देव दीपावली तक सीएनजी आधारित करने का लक्ष्य है। वाराणसी दुनिया का पहला शहर होगा, जहां इतने बड़े पैमाने पर सीएनजी से नावों का संचालन होगा। गंगा में फ्लोटिंग सीएनजी स्टेशन की भी योजना है। इससे गंगा के बीच में भी सीएनजी भरी जा सकेगी।
कालिख किसके माथे पर?
वाराणसी शहर के बाद अब गंगा किनारे की हवा जहरीली होती जा रही है। मनोरंजन के नाम पर होने वाली लापरवाही अब भारी पड़ने लगी है। घाट किनारे हवाखोरी से लेकर व्यायाम करने वालों की सांसें भी फूलने लगी हैं। इन दिनों गंगा का नजारा हर किसी के लिए खतरे का अलार्म है। डीजल इंजन से गंगा में चलाई जाने वाली बोट, बजड़ों से निकलने वाले काले धुएं की जद में घाट और गंगा है। काले धुंए के जहर से गंगा और बातावरण दूषित हो रहा है। गंगा में एक हजार से अधिक डीजल इंजन से चलने वाली नावों के चलते अस्सी से राजघाट के बीच काले धुएं की एक परत बन जाती है। मौसम खराब होने और धुंध के कारण तो काले धुएं का असर साफ देखने को मिलता है। घाट किनारे टहलने वालों ने तो आंखों में जलन की शिकायत भी की। रिवर सिस्टम को गहरी समझ रखने वाले पत्रकार राजीव सिंह का कहना है कि 'घाट के किनारे बढ़ते पर्यटन से वायु, ध्वनि और जल प्रदूषण में जाने-अनजाने में बढ़ावा मिल रहा है। घाट कि घाट किनारे हवा में जहर घुलने का एक प्रमुख कारण डीजल इंजन से चलने वाली नौकाएं हैं। इसके चलते जलीय जीवों पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं।'
सैलानी भी सुनाते हैं खरी-खोटी
मानमंदिर घाट पर गंगा में नाव चलने वाले कन्हैया साहनी की एक सीएनजी इंजन लगी बोट में तकनीकी खराबी आई है। वे बताते हैं कि 'बोट जब बिगड़ जाती है तब फोन करने पर भी अधिकारी नहीं आते हैं। मैकेनिक के इंतजार में दो से तीन दिन यूं ही निकल जाता है। जब एक बोट ख़राब होती है तो उसे लेकर खिड़किया घाट जाना पड़ता है। ख़राब को के साथ एक बड़ी दिक्कत है इसे गैराज तक ले जाने में एक और बोट से टोचन करके ले खिड़किया घाट तक जाना पड़ता है। नई चीज है, हमलोगों को अनुभव नहीं है. हमें ट्रेनिंग नहीं दी जाती है। कभी कभार नाव में सैलानी बैठ जाते हैं, जैसे ही चलने के लिए सीएनजी बोट को स्टार्ट किया जाता है। स्टार्ट नहीं होता है तो सैलानी खरी-खोटी सुनाने लगते हैं. कैसा नाव रखे हो ? सिर्फ पैसा ले रहो हो. पैसा लेकर यात्रियों को लूट रहे हो। हमारी मांग है कम से कम दो या तीन घाटों पर सीएनजी पम्प स्टेशन बनाया जाए। ताकि हमलोगों को गैस भरवाने के लिए समय, पैसा और ईंधन का नुकसान नहीं उठाना पड़े।'
मझधार में क्यों जवाब दे रहा नया सीएनजी इंजन ?
कन्हैया आगे कहते हैं कि कुछ दिनों पहले नगर आयुक्त और अन्य अधिकारियों संग हम 25 लोगों की बैठक हुई थी। तब अधिकारी बोले थे कि आप लोगों को आपकी पसंद का इंजन दिया जाएगा। आपको पांच-दस हजार रुपए देने बाद यामाहा का इंजन दिया जाएगा। लेकिन अधिकारी अपने बात पर टिके नहीं। कंपनी के लोगों यामाहा का इंजन नहीं दिए, कहते हैं कि यामाहा का इंजन महंगा आ रहा है। मेरी बोट दो दिन खराब है।कई कोशिशों के बाद भी मरम्मत की जा सकी है। अधिकारी कहते हैं कि बोट को चलाइयेगा नहीं वरना सीज होगा तो हमारी जिम्मेदारी नहीं। इधर दो दिनों से धंधा मारा जा रहा है। 'कोरियन घाट पर बोट चलने वाले राकेश साहनी बताते हैं कि 'गेल के अधिकारी अपना समय पास पर कर रहे हैं। इस समय उनके द्वारा लाया गया सीएनजी होण्डा का इंजन लगाया जा रहा है. आपभी पूरी तरह से इंजन लग नहीं पाया है, जो लोग लगवाएं भी हैं तो आए दिन परेशान होते रहते हैं. जितना जल्द से जल्द हो किसी अच्छी कंपनी का टिकाऊ इंजन लगाया जाए.'
क्या है सीएनजी प्लान?
डीजल बोट को सीएनजी में कनवर्ट करने का काम गेल इंडिया कम्पनी सोशल रिस्पांसबिल्टी के तहत कर रही है। करीब 29 करोड़ के बजट से 1700 छोटी और बड़ी नाव में सीएनजी इंजन लगया जा रहा है। इसमें छोटी नाव पर करीब 1.5 लाख का खर्च आ रहा है, जबकि बड़ी नाव और बजरा पर लगभग 2.5 लाख का खर्च है। नाविकों के नाव में सीएनजी किट मुफ्त लगाया जा रहा है। स्मार्ट सिटी के प्रोजेक्ट मैनेजर सुमन कुमार राय ने बताया था कि जिस नाव पर सीएनजी आधारित इंजन लगेगा, उस नाविक से डीजल इंजन वापस ले लिया जाएगा। घाट पर ही डाटर स्टेशन हैं। जेटी पर डिस्पेंसर भी लग गया है।
सीएनजी से प्रदूषण होगा कम, लेकिन परेशानियों का क्या?
सीएनजी आधारित इंजन डीजल और पेट्रोल इंजन के मुक़ाबले 7 से 11 प्रतिशत ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम करता है, वहीं सल्फर डाइऑक्सइड जैसी गैसों के न निकलने से भी प्रदूषण कम होता है। डीजल इंजन से नाव चलाने पर जहरीला धुआं निकलता है जो आसपास रहने वाले लोगों के लिए बहुत हानिकारक है, जबकि सीएनजी के साथ ऐसा नहीं है। डीजल इंजन की तेज आवाज से कंपन होता है, जिससे इंसान के साथ ही जलीय जीव-जन्तुओं पर बुरा असर पड़ता है। इको सिस्टम भी खराब होता है। इसके साथ ही घाट के किनारे हजारों सालों से खड़े ऐतिहासिक धरोहरों को भी नुकसान पहुंच रहा था। डीजल की अपेक्षा सीएनजी कम ज्वलनशील होती है। अत: इससे चालित नौकाओं से आपदाओं की आशंका कम होगी।
डीजल से नुकसान
- आयल स्पीलेज से गंगा नदी के जल को खतरा।
- नदी जल में तेल मिलने से बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड बढ़ने से होगी प्रदूषण में वृद्धि।
- गन्दगी से पानी नहाने और आचमन योग्य नहीं रहेगा।
- गंगा नदी के जल गुणवत्ता में सुधार देखने को नहीं मिलेगा।
- मछलियां और अन्य जलीय जीवों को खतरा।
आंकड़ों पर एक नजर
- कुल छोटी-बड़ी नाव - तकरीबन 1700
- नगर निगम के कुल घाट- 85 से अधिक
- नाविक - 5000
- सालाना टैक्स - 850 रुपए (प्रति बोट )
- बनारस में बोट इंडस्ट्री से जुड़े मल्लाह समाज के 25 हजार से अधिक लोग
- अब तक 450 बोट में सीएसआर गेल द्वारा सीएनजी इंजन इंस्टाल
- सीएनजी ईंधन के बढ़ते दाम से नाविक परेशान
गंगा की सफाई सबकी नैतिक जिम्मेदारी
काशी हिंदू विश्वविद्यालय में भूगोल विभाग के पूर्व छात्र मोहम्मद नसीम बताते हैं कि 'गंगा न सिर्फ नदी है बल्कि आस्था का केंद्र भी है। इस लिहाज से सबकी नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि प्राकृतिक संसाधनों में अमूल्य रत्न नदी को संरक्षित किया जाए। जब तक इसकी धारा बहेगी तब तक सृष्टि पर जीवन रहेगा। डीजल बोट्स की वजह से धुआं और ठोस वायु प्रदूषक भी निकलते हैं। जिसकी वजह से ध्वनि प्रदूषण, हवा प्रदूषण और जल प्रदूषण होता है। इनकी रोकथाम के लिए सीएनजी की जो व्यवस्था की जा रही है। अच्छी बात है, इससे भी बेहतर होता कि बोट संचालकों को बेहतर इंजन दिया जाए। जिससे कि उन्हें कम से कम परेशानियों का सामना करना पड़े। गंगा में सीएनजी इंजन के चलने और डीजल इंजन के बंद होने से गंगा को और प्रदूषण से मुक्ति मिल जाएगी। अधिकारियों को चाहिए कि वह अपनी सुस्ती त्याग कर स्मार्ट तरीके से डीजल इंजनों को चिन्हित कर सीएनजी में कन्वर्ट करें। ताकि गंगा के जलीय जीव को नुकसान नहीं पहुंचे और दूर-दराज से आ रहे लाखों की तादात में सैलानियों के प्रति बनारस की अच्छी छवि बने।'
बीएचयू के महामना मालवीय गंगा रिसर्च सेंटर चेयरमैन व नदी वैज्ञानिक प्रो बीडी त्रिपाठी 'जनज्वार' से कहते हैं कि सीएनजी आधारित इंजन डीजल और पेट्रोल इंजन के मुकाबले 7 से 11 प्रतिशत ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम करता है। डीजल इंजन से नाव चलाने पर जहरीला धुआं निकलता है। इससे ध्वनि, वायु और जल प्रदूषण होता है। डीजल कभी भी पूरी तरह से जलता नहीं है। प्रदूषक में नाइट्रोजन आक्साइड, कार्बन मोनाऑक्साइड और सल्फर के अलावा सबसे अधिक कार्बन पार्टिकल्स निकलते हैं। डीजल के आधा-अधूरा जलने की वजह से आयल की भी मात्रा बाहर आ जाती है, जो पानी की सतह पर आकर फैल जाता है। दशकों से घाट किनारे बोट में इस्तेमाल किए जा रहे डीजल इंजन निम्न गुणवत्ता वाले हैं। अब सीएनजी इंजनों के लगने से प्रदूषण का डिस्चार्ज कम हैं। बेहतर होता कि सोलर मोटर बोट को बढ़ावा दिया जाए। फिर भी डीजल से बेहतर है गंगा में सीएनजी बोट का संचालन। इससे भविष्य में गंगा की जल-वायु में सुधार देखने को मिल सकता है।
क्या कहते हैं जिम्मेदार
आदमपुर कोतवाली जोन के अफसर रामेश्वर दयाल कहते है कि 'पेट्रोल-डीजल की नावों का गंगा में ज्यादा प्रयोग होने से गंगा के अंदर रहने वाले जलीय जीवों के जीवन पर संकट आ गया है। यही कारण है कि वे लुप्त होते जा रहे हैं। अभी तक करीब 450 से अधिक नाव मालिकों ने सीएनजी में कन्वर्ट कराया है। हमारी तरफ से उनकी जागरूकता के लिए लगातार अभियान चलाया जा रहा है। इन्हें दोनों तरह से छूट दी जा रही है कि अपने बोट में सीएनजी इंजन लगवाएं या फिर डीजल इंजन को ही सीएनजी में कन्वर्ट करा सकते हैं। गंगा को साफ रखने की सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है. लिहाजा, सभी लोग गंगा की अविरता और जल शुद्धता को बनाए रखने के लिए अपने स्तर से प्रयारत रहें।'
वाराणसी के पत्रकार राजीव कुमार सिंह बताते हैं कि 'डीजल इंजन की तेज आवाज से कंपन होता है, जिससे इंसान के साथ ही जलीय जीव-जन्तुओं पर बुरा असर पड़ता है और इको सस्टिम भी खराब होता है। एक डीजल इंजन, इससे लोगों और आसपास के वातावरण को बहुत नुकसान होता है। लेकिन सीएनजी के मामले में ऐसा नहीं है, और चूंकि सीएनजी का घनत्व हवा से कम होता है, यह बाहरी वातावरण में नहीं रहता है। इसलिए सीएनजी कम विषैला होता है। दूसरी सबसे अहम बात यह है कि तकनीकी रूप से पिछड़े नाविकों को स्थानीय प्रशासन पहल कर इनके जीवन को आसान बनाए, ताकि दिनभर हाड़तोड़ परिश्रम करने बाद सुकून से इनके परिवार को दो वक्त की रोटी मिल सके। साथ ही इनकी परेशानियों को दूर करने की जिम्मेदारी डबल इंजन सरकार को संज्ञान लेना चाहिए।' स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट मैनेजर सुमन का दावा है कि 'नाविकों के नाव में सीएनजी किट मुफ़्त लगाया जा रहा है। जिस नाव पर सीएनजी आधारित इंजन लगेगा, उस नाविक से डीजल इंजन वापस ले लिया जाएगा।'