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ग्राउंड रिपोर्ट

Ground Report : पुलिस के दम पर रामपुर में हुई लोकतंत्र की डकैती, खौफ इतना कि आजम खान भी बोलने से बचे

Janjwar Desk
10 Dec 2022 3:52 PM IST
Ground Report : पुलिस के दम पर रामपुर में हुई लोकतंत्र की डकैती, खौफ इतना कि आजम खान भी बोलने से बचे
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आजम खान के समर्थकों का आरोप है कि कि पुलिस ने मतदान केंद्र तो छोड़िए लोगों को घर तक से नहीं निकलने दिया। हर 10 मिनट में मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र में पुलिस की टुकड़ी डंडे फटकारने आ रही थी। पुलिस का मुख्य उद्देश्य महिलाओं में आतंक फैलाना था, जिसमें वह काफी हद तक सफल भी हुई...

रामपुर से सलीम मलिक की रिपोर्ट

लखनऊ। हेट स्पीच के मामले में विधानसभा की सदस्यता गंवाने वाले समाजवादी पार्टी के दिग्गज नेता आजम खान के क्षेत्र रामपुर में हुए उपचुनाव में प्रशासन ने धांधली की सीमा के साथ ही हैवानियत का ऐसा नंगा नाच किया कि समझना मुश्किल था यह देश का पुलिस प्रशासन ही है या किसी गुंडे के निजी लठैत?

देश के किसी भी हिस्से में चुनाव हो तो अक्सर विपक्षी लोग चुनाव में धांधली के आरोप लगाते आए हैं। इस आरोप को तब और मुखर रूप से लगाया जाता है जब विपक्षी दल चुनाव ही हार जाए। कुछ ऐसा ही नजारा उत्तर प्रदेश की उस रामपुर विधानसभा के उपचुनाव के समय था, जब इस विधानसभा के निर्वाचित विधायक व समाजवादी पार्टी के दिग्गज नेता आज़म खान की हेट स्पीच की वजह से सदस्यता रद्द होने के बाद बीते दिनों उपचुनाव हुआ था।

इस उपचुनाव में शुरू से ही दो ध्रुव बने हुए थे। प्रदेश की भाजपा सरकार एक जमाने से आजम खान की इस विरासत पर किसी भी सूरत में कब्जा करना चाहती थी तो दूसरी ओर समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान वोटों के समीकरण को देखते हुए अपने प्रत्याशी की जीत को लेकर मुतमईन थे।


सपा की ओर से जहां चुनावी मैदान में आज़म खान के समर्थक आसिम रजा थे तो सत्ताधारी दल भारतीय जनता पार्टी की तरफ से आकाश सक्सेना उसके उम्मीदवार थे। चुनाव के दिन ही सपा प्रत्याशी और पार्टी कार्यकर्ताओं ने प्रशासन पर धांधली का आरोप लगाया, लेकिन उनके इस आरोप को विपक्षी दल का रिवायती इल्जाम समझते हुए उस वक्त ज्यादा तवज्जो नहीं दी गई। मतदान खत्म होने के बाद जब यहां मतदान का कुल प्रतिशत एक तिहाई रहा तो सपा प्रत्याशी के आरोपों की गंभीरता समझ में आने लगी। मतगणना के बाद भाजपा प्रत्याशी आकाश सक्सेना की जीत के बाद यह आरोप जब और गहराने लगे तो जनज्वार टीम ने मौके की वस्तुस्थिति जानने के लिए रामपुर का रुख किया।

चुनाव परिणाम आने के बाद भी चुनाव की चर्चा से कन्नी काटता रामपुर

दिन शुक्रवार 9 दिसंबर का था, जब जनज्वार टीम रामपुर शहर पहुंची। रामपुर विधानसभा उपचुनाव के नतीजे आए एक दिन बीत चुका था। बाजार में सब कुछ सामान्य था। जनजीवन अपनी सामान्य गति से चल रहा था, लेकिन इस हाल में कुछ लोग अलग अलग अस्पताल में अपना इलाज करा रहे थे तो कुछ लोगों के चेहरे पर एक खौफ पसरा हुआ था। कहीं चाय पान की छोटी दुकानों पर छिटपुट लोग चुनावी चर्चा कर रहे थे, लेकिन अपने पास खड़े अजनबियों (हमें) देखकर चुप्पी साध लेते हैं। तब तक इनकी बातचीत से मतदान के दिन की सूरत की एक कल्पना मस्तिष्क में आकार लेने लगती है। चाय पान की दुकान पर खड़े यह लोग जनज्वार टीम के प्रोत्साहन के बाद भी अजनबियों के सामने मुंह खोलने से परहेज करते हैं।

आज़म खान के घर का नजारा

नाउम्मीदी के बाद जनज्वार का अगला ठिकाना बनता है मौहल्ला घेर खां स्थित सपा नेता आज़म खान का घर। बातचीत के उद्देश्य से पहुंचे हमें सुरक्षाकर्मी ने बताया कि नेता जी अभी अपनी बैठक में आकर सबसे मिलेंगे। वक्त गुजारी के लिहाज से घर के सामने की सड़क पर टहलने के दौरान दो युवाओं की बातचीत के दौरान दो बातें पता चली। एक, आज़म खान की बड़ी बड़ी बातों से लोगों में नाराजगी थी। सत्ता के मद में आज़म खान ने कई लोगों को नुकसान पहुंचाने से भी परहेज नहीं किया। जिस वजह से लोग उनसे भी खासे नाराज हैं। इस नाराजगी को हवा देकर भारतीय जनता पार्टी ने ऐसे लोगों को अपने पाले में किया हुआ है। दूसरा, उनके घर से कुछ ही कदम की दूरी पर कमर भाई नाम का घर है, जिन्हें मतदान के दिन पुलिस ने केवल अपने घर के सामने खड़ा होने पर इतनी बेरहमी से पीटा था कि उनका हाथ तक टूट गया था। बात कर रहे युवाओं के अनुसार कमर इस वक्त अस्पताल में थे, जहां उनका ऑपरेशन हुआ है।


आज़म के घर चर्चा

चार बजने को थे। आज़म खान के घर में उनके समर्थकों का आना जारी है। कुछ घर के अंदर मेहमानखाने में बैठे हैं तो कुछ लोग घर के बराबर वाली गली की चहलकदमी में मसरूफ हैं। दोनों जगहों पर चर्चा चुनाव की ही है। समर्थक अपने अपने इलाके के हालात एक दूसरे से साझा कर रहे हैं। सबके पास अपने पोलिंग बूथ में हुए मतदान का पूरा ब्यौरा है, लेकिन जो एक बात सबके पास साझा तौर पर थी, वह चुनाव के दिन हुए पुलिस उत्पीड़न की। आजम खान के समर्थकों का आरोप है कि कि पुलिस ने मतदान केंद्र तो छोड़िए लोगों को घर तक से नहीं निकलने दिया। हर 10 मिनट में मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र में पुलिस की टुकड़ी डंडे फटकारने आ रही थी। पुलिस का मुख्य उद्देश्य महिलाओं में आतंक फैलाना था, जिसमें वह काफी हद तक सफल भी हुई।

...और आज़म भी साध गए चुप्पी

आज़म खान घर के एक दरवाजे से बाहर निकलकर समर्थकों से मिलने बैठक में पहुंचते हैं तो समर्थकों में अपने इलाके की रिपोर्ट देने में एक होड़ सी मच जाती है। गंभीर भाव से मौन साधे आज़म सबकी बात सुनते हैं। हौसले और लड़ाई जारी रखने के अलावा कोई दूसरी बात उनके मुंह से नहीं निकलती है। जनज्वार टीम ने अपना परिचय मीडियाकर्मी के तौर पर देते हुए उनसे चुनाव सहित और मुद्दों पर बात करने की इच्छा जताई तो पहली बार उन्हें बैठक में मीडिया की उपस्थिति का भान हुआ। कुछ संभलते हुए आजम खान ने मीडिया से किसी भी तरह की बातचीत से इंकार कर दिया।

उनका कहना था कि अब मेरे पास कहने को कुछ नहीं है। और कुछ है भी तो उसको बोलने का अभी कोई फायदा नहीं है। "बतौर मेहमान, इस्तकबाल लेकिन बतौर पत्रकार माफी" के शब्दों के साथ उन्होंने बातचीत की सारी संभावनाओं को खत्म कर दिया। यहां तक फोटो और वीडियो से बचते हुए आज़म के समर्थकों को भी इस समय उनके साथ फोटो और वीडियो की सख्त मनाही थी। एक दो समर्थकों ने ऐसी कोशिश भी की तो उनके मोबाइल फोन उनके सुरक्षाकर्मियों ने ले लिए, जो उनके जाने के बाद वापस किए गए।

बैठक से निकलकर बाहर निकले आज़म गली के मुहाने तक समथकों से बातें करते हुए पहुंचे, जिसके बाद वह अपनी जौहर यूनिवर्सिटी के लिए रवाना हो गए। समर्थकों से पता यह भी चला कि आज़म खान से समर्थकों तक को मीडिया से किसी भी प्रकार की बातचीत के लिए मनाही कर रखी है। एक समर्थक एक दिन पहले ही लाइव डिबेट में आकर उनकी नाराजगी का शिकार हो चुका है।


पीड़ितों ने बताई आपबीती

आज़म खान के घर से कुछ ही दूरी पर कमर भाई का घर है। घर में उनका बेटा उमर एक्सीडेंट में पैर की चोट की वजह से पिछले एक साल से बिस्तर पर ही होने के कारण चुनाव में हिस्सा लेने पोलिंग बूथ तो नहीं जा सका, लेकिन मतदान के अधिकार का प्रयोग करने पर पुलिस जो सबक यहां के लोगों की सीखा रही, उससे वह घर में रहकर भी वाकिफ है।

उमर के अनुसार "अब्बा घर के दरवाजे पर ही खड़े थे। अचानक पुलिस आई तो लोगों में भगदड़ मच गई। लोग भागने लगे, लेकिन अब्बा तो अपने घर के दरवाजे पर खड़े थे। वह भागकर क्यों और कहां जाते? लेकिन पुलिस ने इसके बाद भी उन्हें धक्का देकर गिराते हुए पीटना शुरू कर दिया, जिससे उनका हाथ टूट गया है। वह अभी अस्पताल में ही अपना इलाज करा रहे हैं।"

एक और युवक जो मतदान केंद्र पर वोट डालने गया, के अनुसार पुलिस ने इस दिन अपना पूरा तांडव मचा रखा था। मतदान पर्ची, वोटर आईडी या फिर आधार कार्ड, पुलिस किसी भी पहचानपत्र से मुसलमानों को वोट नहीं डालने से रही थी। कुछ लोग अपने पासपोर्ट भी लेकर मतदान केंद्रों तक पहुंचे थे, लेकिन उन्हें भी वोट नहीं डालने दिया जा रहा था। साफ लग रहा था कि पुलिस बूथ पर मौजूद किसी ऐसे स्थानीय व्यक्ति से कंट्रोल हो रही थी, जो जानता था कि किसका वोट किस प्रत्याशी को जाने की संभावना है। सपा प्रत्याशी को पड़ने वाले वोट को तो हर सूरत पुलिस डलने ही नहीं दे रही थी।

एक महिला, जो ऑफ कैमरा पुलिस की बर्बरता की कहानी सुना रही थी, ऑन कैमरा इसी खौफ की वजह से कुछ भी बोलने से साफ बचती नजर आई। वह खुद मतदान के दिन पुलिस की मारपीट में हुई कई महिलाओं के चोटिल होने की गवाह थी। कुल मिलाकर मतदान के दिन पुलिस ने मुस्लिम इलाके के मतदाताओं को पहले तो बूथ पर ही नहीं आने दिया। पुलिस ने गली-मोहल्लों में बैरिकेडिंग कर दी थी, जहां से मतदाताओं को निकलने ही नहीं दिया गया। जो मतदाता किसी तरह बूथ तक पहुंच भी गए उनको यह कहकर वापस लौटा दिया गया कि उनके पास उनकी पहचान सिद्ध करने का कोई दस्तावेज नहीं है।

पत्रकारों को भी नहीं छोड़ा पुलिस ने

रामपुर में हुए उपचुनाव में पुलिस की ज्यादतियों का सिलसिला केवल आम नागरिकों तक ही सीमित रहा हो, ऐसा नहीं है। पत्रकार भी इसका शिकार हुए हैं। मतदान के दिन आज़म खान के पुत्र अब्दुल्लाह आज़म और विकास सिंह, अंकुरप्रताप सिंह, शाहबाज व एक अन्य पत्रकार के खिलाफ चुनाव में धांधली किए जाने का मुकदमा दर्ज करवाया जा चुका है। खबर यह भी है कि यह इकलौता नहीं बल्कि कई और मुकदमें भी हुए हैं। लेकिन उनकी हम पुष्टि नहीं कर पाए हैं।


क्या एक विधायक के लिए हुआ यह सब?

रामपुर विधानसभा के लिए हुए उपचुनाव में यदि सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी का प्रत्याशी हार भी जाता तो बहुमत की सरकार को तब भी कोई खतरा नहीं था। ऐसे में सवाल यह है कि केवल एक विधानसभा का चुनाव जीतने के लिए पुलिस को इतनी अमानवीयता की जरूरत क्या पड़ी? लाख टके के इस सवाल का जवाब आज़म खान की आज तक की राजनीति में छिपा है। रामपुर रियासत के खिलाफ राजनीति के रंगमंच पर नमूदार हुए आज़म इस शहर से दस बार विधायक रह चुके हैं। रामपुर के आवाम में रियासत परिवार का भरपूर सम्मान होने के बाद भी आज़म लोगों के बीच लोकप्रिय रहे हैं रियासत परिवार से भी उसके लोग जनप्रतिनिधि बनते रहे हैं।

राजपरिवार के साथ राजनीतिक जंग के दौरान आज़म खान कई बार विवादास्पद बयानबाजी भी करते आए हैं, लेकिन पिछली सपा सरकार के दौरान रामपुर के लिए जौहर यूनिवर्सिटी की स्थापना करना आज़म के लिए एक मुश्किल फैसला साबित हुआ। आज़म का यह कदम सामान्य राजनीति से इतर युवाओं के लिए सुखद भविष्य की राह खोलने वाला था। जब देश में शिक्षा के संस्थानों का ही विध्वंस चल रहा हो तो ऐसे में इस शिक्षण संस्थान का उदय सत्ता के लिए कुछ ऐसा ही था जैसा बारिश में भीगते बंदर को देखकर गौरेया का उसे घर बनाने का सुझाव देना। इधर यूपी का निजाम बदला और उधर देखते ही देखते आज़म खान बकरी चोर, किताब चोर जैसे तमाम हास्यपद मुकदमों की जद में आते चले गए। कुछ गुनाह तो आज़म की बदजुबानी के चलते तो थे ही लेकिन बेशुमार मुकदमे उन पर थोपकर उन्हें जेल में रखते हुए उनके कद को कम किया गया।

कुछ दिन पहले ही जेल से बाहर आए आज़म अगर सपा प्रत्याशी को यह चुनाव जीतवाने में सफल हो जाते तो वह रामपुर की राजनीति में एक बार फिर अपनी प्रासंगिकता साबित करके अपने विरोधियों को 20 साल पीछे हटने के लिए मजबूर कर देते। इसलिए सारी शक्तियां अपने हाथ में होने के बाद भी आज़म का यह क़िला इस समय ध्वस्त नहीं होता तो लंबे समय तक होने वाला भी नहीं था। यह केवल एक विधानसभा सीट की बात नहीं थी, आज़म के साम्राज्य को समाप्त करने का मिशन था। लेकिन अभी जब आज़म के पुत्र अब्दुल्लाह आज़म भी रामपुर की राजनीति में अपना दखल बनाए हुए हैं तो क्या आज़म का साम्राज्य इतनी आसानी से खत्म हो सकेगा, यह सवाल भविष्य के गर्भ में है।

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