वायु प्रदूषण से शतरंत खिलाड़ियों का दिमाग हो रहा प्रभावित, तनाव में अंतिम 10 चालों में कर रहे बड़ी गलतियां
वायु प्रदूषण से शतरंत खिलाड़ियों का दिमाग हो रहा प्रभावित, तनाव में अंतिम 10 चालों में कर रहे बड़ी गलतियां
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
Air pollution impacts cognitive ability of chess players. पिछले कुछ वर्षों के दौरान प्रकाशित अनेक अनुसंधानों से यह स्पष्ट होता है कि वायु प्रदूषण केवल शारीरिक स्वास्थ्य को ही प्रभावित नहीं करता, बल्कि इससे मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है और मस्तिष्क पूरी क्षमता से काम नहीं करता। वायु प्रदूषण से कैंसर, स्ट्रोक और ह्रदय और फेफड़े से सम्बंधित रोगों को अनेक अनुसंधान बताते रहे हैं। जब मस्तिष्क की क्षमता घटती है तब अधिक दिमाग खपाने वाले कामों में दिक्कत आती है।
हाल में ही मैनेजमेंट साइंस नामक जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार कम वायु प्रदूषण के स्तर में भी शतरंज के खिलाड़ी खेलते समय बार-बार और अधिक बड़ी गलतियाँ करते हैं, और जब तनाव बढ़ता है तब गलतियाँ अधिक होने लगती हैं। जाहिर है, वायु प्रदूषण वाले माहौल में शतरंज खिलाड़ी सबसे भारी गलतियाँ अपने अंतिम 10 चालों के दौरान करते हैं।
इस अध्ययन को नीदरलैंड की मास्त्रिक्ट यूनिवर्सिटी और अमेरिका के मेसेच्युसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों के संयुक्त दल ने किया है, और जर्मनी में होने वाले एक शतरंज प्रतियोगिता के दौरान खेल और प्रदूषण के स्तर का तीन वर्षों तक लगातार आकलन किया है। इन तीन वर्षों के दौरान कुल 121 खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया और शतरंज के बिसात पर 30000 से अधिक चालें चली गईं।
वैज्ञानिकों के अनुसार प्रदूषण स्तर में थोड़ी सी बढ़ोत्तरी के बाद खिलाड़ियों द्वारा की जाने वाली अनापेक्षित गलतियों में 2.1 से 10.8 प्रतिशत तक बढ़ोत्तरी हो जाती है। वायु में यदि पीएम2.5 की मात्रा 10 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर तक बढ़ जाती है तब खिलाड़ियों द्वारा गलतियों की संख्या 26.3 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। इस प्रतियोगिता का आयोजन हरेक वर्ष 8 सप्ताह तक किया जाता है, और इतने लम्बे समय के दौरान वायु प्रदूषण के स्तर में बहुत बदलाव आता है।
इस अध्ययन के लिए वायु प्रदूषण से सम्बंधित कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन के ऑक्साइड के साथ ही पीएम2.5 का आकलन भी किया गया था, पर खिलाड़ियों की क्षमता केवल पीएम2.5 की अधिक सांद्रता ही प्रभावित करती है। इस प्रतियोगिता के दौरान वायु में पीएम2.5 का औसत स्तर 14 से 70 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर था, जिसे मध्यम से लेकर अधिक प्रदूषण की श्रेणी में रखा जा सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया की 99 प्रतिशत आबादी पीएम2.5 का प्रभाव झेलती है और दुनिया को प्रतिवर्ष 8.1 खरब डॉलर का नुकसान उठाना पड़ता है।
शतरंज एक दिमाग खपाने वाला खेल है और यदि वायु प्रदूषण का असर इसके खिलाड़ियों पर पड़ता है तब जाहिर है कि वायू प्रदूषण हरेक दिमाग खपाने वाले कम को प्रभावित करता होगा। चीन में किये गए एक अध्ययन के अनुसार अत्यधिक वायु प्रदूषण के दिनों में स्टॉक मार्किट में निवेश करने वाले अनेक निवेशक भी अप्रत्याशित गलतियाँ करने लगते हैं। समस्या यह है कि पूरी दुनिया में वायु प्रदूषण बढ़ता जा रहा है, और साथ ही अत्यधिक दक्षता वाले रोजगार भी बढ़ रहे हैं। वर्ष 1995 से 2015 के बीच अमेरिका में अत्यधिक दक्षता वाले रोजगार 5 प्रतिशत बढे और इसी अवधि के दौरान ऐसे रोजगार यूरोपियन यूनियन में 8 प्रतिशत तक बढ़ गए। हरेक ऐसे रोजगार को वायु प्रदूषण प्रभावित करेगा।
अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन साइकाइट्री नामक जर्नल में प्रकाशित एक अनुसंधान के अनुसार वायु प्रदूषण के दीर्घकालीन प्रभावों के कारण अवसाद और व्यग्रता जैसी मानसिक परेशानियां हो सकती हैं। इतना तो स्पष्ट है कि अनेक अध्ययन वायु प्रदूषण के मस्तिष्क की क्रियाप्रणाली पर पड़ने वाले प्रभावों की चर्चा करते हैं। पर, समस्या यह है कि जलवायु परिवर्तन की चर्चाओं के बीच किसी भी तरह के प्रदूषण पर चर्चा और अनुसंधान दोनों कम हो गए हैं।
लन्दन के किंग्स कॉलेज के वैज्ञानिकों ने हाल में ही बताया है कि वायु प्रदूषण के कारण किशोरों में रक्तचाप की समस्या बढ़ती जा रही है। इस अध्ययन को प्लोस वन नामक जर्नल में प्रकाशित किया गया है। इस अध्ययन के लिए यूनाइटेड किंगडम के 3284 किशोरों के स्वास्थ्य के साथ ही उनके आवास के आसपास वायु प्रदूषण का गहन अध्ययन किया गया। इसके अनुसार वायु में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड की अधिक सांद्रता से निम्न रक्तचाप और पीएम2.5 की अधिक सांद्रता से उच्च रक्तचाप के मामले अधिक सामने आते हैं।
यह प्रभाव बालिकाओं में बालकों की अपेक्षा अधिक पड़ता है। नाइट्रोजन डाइऑक्साइड में 1 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर की बृद्धि से बालिकाओं के रक्तचाप में 0.33 मिलीमीटर और बालकों के रक्तचाप में 0.19 मिलीमीटर की कमी आती है। दूसरी तरफ पीएम2.5 की सांद्रता में 1 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर की बृद्धि से बालिकाओं के रक्तचाप में औसतन 1.34 मिलीमीटर और बालकों के रक्तचाप में औसतन 0.57 मिलीमीटर की वृद्धि देखी गयी है।
अब तो वैज्ञानिक ऐतिहासिक वायु प्रदूषण की पड़ताल प्रसिद्ध चित्रकारों की कलाकृतियों में भी करने लगे हैं। हाल में ही प्रोसीडिंग्स ऑफ़ नेशनल एकाडमी ऑफ़ साइंसेज में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार उन्नीसवीं शताब्दी के चित्रकारों द्वारा बनाए गए चित्रों में आसमान के रंगों से वायु प्रदूषण के स्तर को जाना जा सकता है। उन्नीसवीं शताब्दी के दौरान ही औद्योगिक क्रान्ति का आरम्भ हुआ था, और जाहिर है उसी समय बड़े पैमाने पर वायु प्रदूषण भी वायुमंडल में घुलने लगा था। इसके लिए वैज्ञानिकों ने 19वीं शताब्दी के ब्रिटिश पेंटर टर्नर द्वारा बनाए गए 60 चित्रों और फ्रेंच चित्रकार मोनेट के 38 चित्रों का बारीकी से अध्ययन किया। इनमें से अधिकतर चित्रों में आसमान का रंग पूरी तरह नीला नहीं, बल्कि धूसर रंग का है।