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स्वास्थ्य

बीपी-शुगर वाले लोगों के लिए ज्यादा मारक है कोरोना, 71 फीसदी मौत को-मोर्बीडीटी वालों की

Janjwar Desk
12 Jan 2021 11:49 PM IST
बीपी-शुगर वाले लोगों के लिए ज्यादा मारक है कोरोना, 71 फीसदी मौत को-मोर्बीडीटी वालों की
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(प्रतीकात्मक तस्वीर)

को-मोरबेडिटी वालों में भी हाइपरटेंशन सबसे मारक साबित हुआ है और कोरोना से सबसे ज्यादा मौतें पहले से हाइपरटेंशन से ग्रसित लोगों की हुई है, इस बात का खुलासा इन मौतों के विश्लेषण से हुआ है..

जनज्वार। कोरोना वायरस से देश में हुई कुल मौतों में से 33 फीसदी यानि एक तिहाई मौत अकेले महाराष्ट्र में हुई हैं। महाराष्ट्र में हुई इन मौतों में से 71 फीसदी मौतें को-मोरबेडिटी, यानि वैसे लोग जो पहले से ही किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित थे, वालों की हुई है।

इन को-मोरबेडिटी वालों में भी हाइपरटेंशन सबसे मारक साबित हुआ है और कोरोना से सबसे ज्यादा मौतें पहले से हाइपरटेंशन से ग्रसित लोगों की हुई है। इस बात का खुलासा इन मौतों के विश्लेषण से हुआ है।

इस विश्लेषण से हाई रिस्क ज़ोन में आनेवालों का पता लगाया जा सकता है। विश्लेषण में निकला यह निष्कर्ष भी गौर करने लायक है कोरोना से महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों की मौत ज्यादा हुई है। महाराष्ट्र में कोरोना के कारण 69 फ़ीसदी से ज़्यादा मौतें पुरुषों की हुई हैं।

महाराष्ट्र में कोरोना इतने मारक रूप में सामने आया था कि यहां इसके कारण अबतक 50,000 से ज़्यादा लोग जान गंवा चुके हैं। इन 50000 से ज्यादा लोगों में से 26,724 लोगों की मौतों का विश्लेषण किया गया है।

इस विश्लेषण से खुलासा हुआ है कि राज्य में 71.64 फीसदी मौत को-मॉर्बिडिटी, यानि पहले से ही अन्य बीमारी से ग्रस्त मरीज़ों की हुई हैं। मृतकों में से 46.76 फीसदी लोग पहले से हायपरटेंशन के शिकार थे तो 39.49 फीसदी डायबटीज़ के।

जबकि इनमें से 11.13 प्रतिशत लोग पहले से हृदय रोग से पीड़ित थे तो 4.97 फीसदी मरीज़ किडनी और 3.94 प्रतिशत मरीज़ फेफड़े की तकलीफ़ से पीड़ित थे। मरने वालों में 69.8 फीसदी पुरुष थे और 30.2 फ़ीसदी महिलाएं थीं।

महाराष्ट्र के स्वास्थ्य विभाग के एपिडिमोलॉजी विभाग के हेड डॉ प्रदीप आवटे ने कहा कि 85 फीसदी मौतें 50 साल के ऊपर के मरीज़ों की हुईं हैं। जबकि साठ साल के ऊपर के लगभग 65 प्रतिशत लोगों की मौत हुई है।

उन्होंने कहा कि हायपरटेंशन, डायबिटीज़ और दूसरी बीमारी वाले मरीज़ों में 70% डेथ रेट देखी गई है। जबकि गर्भवती महिलाओं में मौतें काफ़ी कम हैं तो इस विश्लेषण से पता चलता है कि यहां कौन से मरीज़ हाईरिस्क मरीज़ हैं।

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