वायु प्रदूषण से बढ़ रहे डायबिटीज के रोगी, हार्ट के रोगियों के लिए भी बहुत खतरनाक : रिसर्च में हुआ बड़ा खुलासा
Health News : डायबिटीज टाइम बम के मुहाने पर बैठा है भारत, 2045 तक 12 करोड़ होंगे इसके मरीज
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
Air pollution not only causes acute respiratory infections but also enhances the cases of Type2 Diabetes, anemia and Low Birth Weight. भारत में किये गए एक अध्ययन का निष्कर्ष है कि वायु प्रदूषण के कारण टाइप-2 डायबिटीज के मामले भी बढ़ते हैं। यह अपनी तरह का पहला अध्ययन है और इसे दिल्ली और चेन्नई में किया गया था। प्रदूषित वायु में मौजूद पीएम2.5 अपने छोटे आकार के कारण रक्त प्रवाह में शामिल हो जाते हैं और इससे श्वसन और कार्डियोवैस्कुलर संबंधी रोग हो सकते हैं या फिर यदि पहले से ऐसी समस्या है तो इसका प्रभाव बढ़ जाता है। इस नए अध्ययन से यह स्पष्ट हुआ है कि वायु में पीएम2.5 की सांद्रता जब अधिक होती है तब रक्त में शर्करा की मात्रा भी बढ़ जाती है।
इस अध्ययन को ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित किया गया है और इसे नई दिल्ली स्थित सेंटर फॉर क्रोनिक डिजीज कण्ट्रोल, नई दिल्ली स्थित पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ़ इंडिया, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, चेन्नई स्थित मद्रास डायबिटीज रिसर्च फाउंडेशन अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी और एमोरी यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों ने संयुक्त तौर पर किया है। यह अध्ययन वर्ष 2010 से शुरू किये गए भारत में दीर्घकालिक रोगों के विस्तृत अध्ययन का एक हिस्सा है।
इस अध्ययन के नतीजे डायबिटीज के संदर्भ में एक खतरनाक भविष्य की ओर संकेत करते हैं। जिन देशों में डायबिटीज के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं उनमें भारत सबसे आगे हैं। इसी वर्ष जून में प्रतिष्ठित जर्नल लांसेट में प्राशित एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 10 करोड़ से भी अधिक आबादी, यानी लगभग 11.4 प्रतिशत आबादी डायबिटीज से ग्रस्त है और 13.6 करोड़ आबादी पूर्व-डायबिटीज स्तर पर है। इसकी तुलना में यूरोप की महज 6.2 प्रतिशत आबादी ही डायबिटीज का शिकार है। डायबिटीज के अधिकतर मामले शहरी क्षेत्रों में हैं। इस अध्ययन में बताया गया है कि पहले खानपान की आदत, मोटापा, रहन-सहन और कम शारीरिक श्रम को ही डायबिटीज का कारण बताया जाता था, पर अब वायु प्रदूषण भी इन कारणों में शामिल हो गया है। यह एक गंभीर मामला है, क्योंकि वायु प्रदूषण से बचाव करना मुश्किल है और सरकारें इसे नियंत्रित करने के लिए गंभीरता नहीं दिखा रही हैं।
पीएम2.5 के वार्षिक औसत के संदर्भ में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अनुमोदित सुरक्षित सीमा 5 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर हैं, जबकि हमारे देश में इसके निर्धारित मानक ही 8 गुना अधिक, यानि 40 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर है। दिल्ली में हवा में पीएम2.5 की वार्षिक औसत सांद्रता 82 से 100 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर और चेन्नई में 30 से 40 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर है। इस अध्ययन के लिए वर्ष 2010 से 2017 तक दिल्ली और चेन्नई में 12000 लोगों का चयन कर उनके खून में शर्करा की सांद्रता की नियमित जांच की गयी और उनके रहने के स्थानों पर वायु प्रदूषण के स्तर का नियमित आकलन सॅटॅलाइट के आंकड़ों से किया गया। इन लोगों पर वायु प्रदूषण के असर को मापने के लिए एयर पोल्यूशन एक्सपोज़र मॉडल्स का सहारा लिया गया।
इस अध्ययन का निष्कर्ष है कि एक महीने तक पीएम2.5 की बढी सांद्रता में रहने पर रक्त शर्करा का स्तर बढ़ जाता है और ऐसी हवा में एक वर्ष या अधिक समय तक रहने पर डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है। पीएम2.5 के वार्षिक औसत में 10 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर की बृद्धि होने पर टाइप2 डायबिटीज का खतरा 22 प्रतिशत बढ़ जाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार हमारे देश में अपेक्षाकृत कम बॉडी मास इंडेक्स रहने और भारी मात्रा में वसा-युक्त भोजन के कारण डायबिटीज का खतरा अपेक्षाकृत अधिक रहता है। रक्त में पीएम2.5 के पहुँचने पर उच्च रक्तचाप की समस्या शुरू हो जाती है। डायबिटीज और उच्च रक्तचाप के कारण धमनियों में वसा संग्रहित होने लगता है, जिसके प्रभाव से हार्ट अटैक हो सकता है या फिर हृदयगति रुक सकती है। पीएम2.5 रक्त प्रवाह में शामिल होकर विभिन्न हॉर्मोन के प्रवाह और प्रभाव को भी बाधित करता है। इसके कारण रक्त शर्करा को नियंत्रित करने वाले हॉर्मोन, इन्सुलिन का प्रवाह और प्रभाव भी बाधित होता है।
हाल में ही वैज्ञानिक जर्नल, नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार वायु प्रदूषण के प्रभाव से बच्चों में रक्त की कमी, यानि एनीमिया, जन्म के समय कम वजन और गंभीर श्वसन समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। इस अध्ययन को टेरी यानी द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट और आईआईटी दिल्ली के वैज्ञानिकों ने संयुक्त तौर पर किया है। इस अध्ययन के अनुसार पीएम2.5 की वार्षिक औसत सांद्रता में 10 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर की बढ़ोत्तरी होने पर एनीमिया के मामलों में 10 प्रतिशत, गंभीर श्वसन समस्याओं में 11 प्रतिशत और जन्म के समय कम वजन के मामलों में 5 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी होती है।
हमारे देश में पिछले कुछ वर्षों में जो सबसे बड़ा बदलाव आया है, वह है हरेक आपदा का इवेंट मैनेजमेंट। प्रदूषण भी अब एक इवेंट मैनेजमेंट बन गया है। इस दौर में गुमराह करने का काम इवेंट मैनेजमेंट द्वारा किया जाता है, इसके माध्यम से सबसे आगे वाले को धक्का मारकर सबसे पीछे और सबसे पीछे वाले को सबसे आगे किया जा सकता है। अब तो प्रदूषण नियंत्रण भी एक विज्ञापनों और होर्डिंग्स का विषय रह गया है, जिस पर लटके नेता मुस्कराते हुए दिनरात गुबार में पड़े रहते हैं। पब्लिक के लिए भले ही वायु प्रदूषण ट्रैजिक हो, हमारी सरकार और नेता इसे कॉमेडी में बदलने में कोई कसर नहीं छोड़ते। सरकारें विरोधियों पर हमले के समय वायु प्रदूषण का कारण कुछ और बताती हैं, मीडिया में कुछ और बताती हैं, संसद में कुछ और बताती हैं और न्यायालय में कुछ और कहती हैं। दूसरी तरफ मीडिया कुछ और खबरें गढ़कर महीनों दिखाता रहता है। न्यायालय हरेक साल बस फटकार लगाता है, मीडिया और सोशल मीडिया पर खबरें चलती हैं, फिर दो-तीन सुनवाई के बाद मार्च-अप्रैल का महीना आ जाता है और न्यायालय का काम भी पूरा हो जाता है।
निरंकुश सत्ता के लिए जनता कुछ नहीं होती तभी हरेक कार्य एक इवेंट होता है, दिखावा होता है। चन्द्रमा पर पहुँचना एक अंतरराष्ट्रीय दिखावा था, सो हम वहां पहुँच गए। हम सूरज और मंगल तक जाने की बातें करते हैं, पर अपने देश की हवा सांस लेने लायक रखने में असफल रहे हैं। देश में वायु प्रदूषण सबसे बड़ी स्वास्थ्य समस्या है, पर इससे अधिकतर सामान्य नागरिक प्रभावित होते हैं – जाहिर है सत्ता इसे उपेक्षित विषय मानती है।