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स्वास्थ्य

प्रतिवर्ष दस लाख से अधिक मरे बच्चों के जन्म का मुख्य कारण वायु प्रदूषण, शोध में हुआ खुलासा

Janjwar Desk
17 Dec 2022 10:36 AM GMT
प्रतिवर्ष दस लाख से अधिक मरे बच्चों के जन्म का मुख्य कारण वायु प्रदूषण, शोध में हुआ खुलासा
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वायु प्रदूषण से उम्र कम होने, मृत्यु होने या बीमार पड़ने को नकारने में भारत पूरी तरह विश्वगुरु बन चुका है, जबकि हरेक वर्ष 2-3 प्रमुख वैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि दुनिया में कितने लोग वायु प्रदूषण के कारण अपना जीवन गँवा देते हैं...

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

Most of the cases of stillbirth are due to high levels of air pollution, claims a new study. वैज्ञानिक जगत में सवाल केवल यह नहीं है कि दुनिया में कितने लोग वायु प्रदूषण के कारण मरते हैं, अब एक नए अध्ययन के अनुसार पूरी दुनिया में मृत बच्चों के पैदा होने की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं, और इनमें से अधिकतर का कारण वायु प्रदूषण है।

नेचर कम्युनिकेशंस नामक जर्नल में चीन की पेकिंग यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक डॉ टाओ क्सी द्वारा प्रकाशित अध्ययन के अनुसार दुनिया में प्रतिवर्ष दस लाख से अधिक मरे बच्चे के जन्म का मुख्य कारण वायु प्रदूषण है, और इसमें से आधे अधिक मामलों में अकेले पीएम2.5 सबसे बड़ा कारण है। यह पहला ऐसा अध्ययन है, जिसमें सीधे तौर पर ऐसे मामलों की वैश्विक संख्या का आकलन किया गया है।

इस अध्ययन के लिए एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में स्थित कुल 137 देशों का आकलन किया गया है, इन देशों में दुनिया में मरे बच्चे पैदा होने के कुल मामलों में से 98 प्रतिशत से अधिक दर्ज किया जाते हैं। भारत, पाकिस्तान, चीन, नाइजीरिया समेत 54 देशों में वर्ष 1998 से 2016 के बीच मृत बच्चे पैदा होने की वर्षवार संख्या और वायु प्रदूषण के स्तर का वास्तविक अध्ययन कर इसके आधार पर अन्य देशों में ऐसे मामलों की संख्या का आकलन किया गया।

वर्ष 2020 में यूनिसेफ ने मृत बच्चों के पैदा होने को उपेक्षित त्रासदी करार दिया था और यह केवल एक माँ और उसके परिवार की त्रासदी नहीं है, बल्कि इससे सामाजिक समानता भी प्रभावित होती है। अनेक अध्ययन समय समय पर वायु प्रदूषण द्वारा गर्भ में पलते शिशु पर प्रभाव बताते रहे हैं, पर नए अध्ययन में पहली बार वैश्विक संख्या का आकलन किया गया है।

आधुनिक विज्ञान ने हमारे जीवन को सुगम कर दिया है – खाद्यान्न उत्पादन बढ़ा, परिवहन के नए साधन हैं और उपभोक्ता उत्पादों से बाजार भरा है। पर इसी सुगम जीवन की चाह ने हमारे जीवन को तापमान बृद्धि के साथ ही तरह-तरह के प्रदूषण से भर दिया है। इसमें सबसे आगे वायु प्रदूषण है, विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार विश्व की 99 प्रतिशत से अधिक आबादी वायु प्रदूषण की मार झेल रही है।

प्रदूषण का असर अब गर्भ में पल रहे बच्चों पर भी पड़ रहा है और अनेक वैज्ञानिक अब इन्हें प्रदूषित शिशु, या पोल्युटेड बेबीज कहने लगे हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया के वैज्ञानिकों ने 171 गर्भवती महिलाओं के विस्तृत परीक्षण और विश्लेषण के बाद निष्कर्ष निकाला है कि 90 प्रतिशत महिलाओं के शरीर के उत्तकों और रक्त में कम से कम 19 ऐसे खतरनाक रसायन या कीटनाशक हैं जो गर्भ में पल रहे शिशुओं तक पहुँचने की क्षमता रखते हैं। जाहिर है, इन महिलाओं के गर्भ में पल रहे शिशु अपने शरीर में प्रदूषण के साथ ही दुनिया में प्रवेश करेंगे।

अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ हेल्थ ने कुछ वर्ष पहले ही बताया था कि हम प्रदूषण के उस दौर में हैं जहां शिशु प्रदूषण के साथ ही पैदा होकर एक प्रदूषित दुनिया में कदम रखते हैं। इससे पहले अनेक अध्ययनों में गर्भ में पल रहे शिशुओं में माइक्रो-प्लास्टिक मिले थे। अनेक दूसरे अध्ययन वायु प्रदूषण को गर्भपात, समय से पहले जन्म, कम वजन वाले बच्चों और बच्चों में असामान्य मस्तिष्क विकास से जोड़ते रहे हैं।

इस अध्ययन के अनुसार दुनिया में अनेक देश ऐसे हैं, जहां मृत बच्चों के कुल जन्म में से 95 प्रतिशत से अधिक वायु प्रदूषण की देन है। इस सूची में सबसे पहले भारत का नाम है, यहाँ 217000 ऐसे मामले वायु प्रदूषण की देन हैं। इसके बाद पाकिस्तान में 110000, नाइजीरिया में 93000, चीन में 64000 और बांग्लादेश में 49000 मृत बच्चों के जन्म का मुख्य कारण वायु प्रदूषण है। वैज्ञानिकों का आकलन है कि पीएम 2.5 के स्तर में 10 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर की बृद्धि से मृत बच्चों के पैदा होने की दर 11 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। यदि पीएम2.5 के स्तर में 10 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर की कमी लाई जा सके तो दुनिया में प्रति वर्ष 710000 मृत बच्चों के जन्म को रोका जा सकता है।

इस रिपोर्ट के अनुसार पिछले 10 वर्षों में वैश्विक स्तर पर मृत शिशुओं के जन्म की संख्या कम हो रही है, इसका सबसे बड़ा कारण है चीन ने पिछले कुछ वर्षों से वायु प्रदूषण के नियंत्रण में युद्ध-स्तर पर कार्य किया है और वाहान इसे मामले तेजी से कम हो रहे हैं। वर्ष 2010 में दुनिया में 23 लाख मृत शिशुओं का जन्म दर्ज किया गया था, पर वर्ष 2019 में इनकी संख्या 19 लाख रह गयी। अध्ययन के अनुसार यदि गर्भवती महिलायें वायु प्रदूषण से बचने के लिए फेस मास्क, घरों में एयर प्युरिफायर इत्यादि का प्रयोग करे, तो ऐसे मामलों में कमी लाई जा सकती है।

इसके अतिरिक्त गर्भवती महिलाओं को अनावश्यक बाहर जाने से बचने को भी कहा गया है। इस वर्ष 10 दिसम्बर को लोकसभा में स्वास्थ्य राज्य मंत्री, भारती पंवार ने वायु प्रदूषण से सम्बंधित एक प्रश्न के उत्तर में कहा था, "कोई ऐसा अध्ययन नहीं है, जो स्पष्ट तौर पर बताता हो कि वायु प्रदूषण से कोई मरता या बीमार पड़ता है। वायु प्रदूषण के कारण केवल उनका स्वास्थ्य प्रभावित होता है, जिन्हें स्वांस संबंधी समस्या पहले से ही हो।

स्वास्थ्य को बहुत सारे कारक प्रभावित करते हैं, जिनमें प्रमुख हैं – खाने की आदतें, कारोबार से सम्बंधित आदतें, सामाजिक-आर्थिक स्तर, किसी का स्वास्थ्य इतिहास, रोग-प्रतिरोधक क्षमता, और वंशानुगत स्वास्थ्य समस्याएं।" वर्ष 2014 के बाद से संसद में जब भी वायु प्रदूषण से सम्बंधित प्रश्न पूछा जाता है, यही रटा-रटाया जवाब दिया जाता है। जवाब देने वाले चेहरे बदल जाते हैं, पर जवाब नहीं बदलता।

यही जवाब कभी डॉ हर्षवर्धन ने दिया था, डॉ महेश शर्मा ने दिया था, 6 दिसम्बर 2019 को प्रकाश जावडेकर ने दिया था, 28 जून 2019 को बाबुल सुप्रियो ने दिया था और 18 जुलाई को अश्विनी चौबे ने दिया था। इस तरह कम से कम वायु प्रदूषण से आयु कम होना, मृत्यु होना या बीमार पड़ने को नकारने में हम पूरी तरह विश्वगुरु बन चुके हैं, जबकि हरेक वर्ष 2-3 प्रमुख वैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि दुनिया में कितने लोग वायु प्रदूषण के कारण अपना जीवन गँवा देते हैं।

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