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हर दिन भी लगेगा 30 लाख को टीका, तब भी देश की 75 फीसदी आबादी के कोरोना वैक्सीनेशन में लगेंगे 21 माह
नया OBC संविधान संशोधन बिल : सत्ताधारी की दिलचस्पी रोग में, उपाय में नहीं
कोविड 19 के कथित सरकारी भरपूर इंतजाम में किस तरह मर रहे हैं लोग, पढ़िये वरिष्ठ लेखक महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
जनज्वार। प्रधानमंत्री जी ने कोविड 19 के पिछले दौर के बाद "आपदा में अवसर" का खूब इस्तेमाल किया था, हालांकि यह अवसर केवल उनकी सत्तालोभी सरकार को पहले से अधिक मानवाधिकार हनन से मौके से अधिक कुछ भी नहीं था। प्रधानमंत्री जी के इस अवसर में अर्थव्यवस्था बर्बाद हो गयी, माध्यम वर्ग और श्रमिक वर्ग बर्बाद हो गया, महंगाई बढ़ गयी और देश बेरोजगार हो गया।
सरकार की तानाशाही शक्तियों को बढाने के अतिरिक्त इस आपदा ने केवल पूंजीपतियों को पहले से भी अधिक अमीर बनाने का अवसर दिया था। प्रधानमंत्री जी फिर से आपदा में अवसर तलाश रहे हैं, और उनका यह अवसर पश्चिम बंगाल समेत 5 राज्यों के परिणामों पर उजागर होगा।
देश में कोविड 19 के लगातार बढ़ते मामलों के बीच प्रधानमंत्री समेत सभी नेता आज देशभर में लॉकडाउन नहीं लगाने की बात कर रहे हैं। यदि प्रधानमंत्री को जरा भी भनक मिली कि पश्चिम बंगाल में उनके लगातार भोंडे, अश्लील और फूहड़ दुष्प्रचार के बाद भी बीजेपी की जीत में शक है, तब यकीन मानिए अंतिम चरण के चुनावों के ठीक बाद राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन घोषित कर दिया जाएगा। इससे मतगणना केन्द्रों तक कोई नहीं जा पायेगा, और फिर ईवीएम में और चुनाव नतीजों में व्यापक फेरबदल करना आसान हो जाएगा।
लगभग हरेक खबर में बताया जा रहा है कि अनेक राज्यों में कोविड 19 के टीके की भयानक किल्लत हो रही है, पर प्रधानमंत्री जी और स्वास्थ्य मंत्री समेत दूसरे मंत्री चीख-चीख कर बता रहे हैं कि टीके की कोई कमी नहीं है। सरकारी वक्तव्यों में उपलब्ध भरपूर टीके के बीच अचानक रसियन टीके स्पुतनिक को इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी दे दी गयी।
यह सबको पता है किम कोविड 19 के दो टीकों का उत्पादन देश में किया जा रहा है, प्रधानमंत्री भी बार-बार यह दुहराते रहे हैं। प्रधानमंत्री जी कोविड 19 के दौर में आत्मनिर्भर भारत का भी खूब राग अलाप चुके हैं। दरअसल प्रधानमंत्री जी की समस्या यह है कि वे जो बोलते हैं उसे याद नहीं रखते, या फिर जनता को परले दर्जे का बेवकूफ समझते हैं।
प्रधानमंत्री जी के आत्मनिर्भर भारत की हकीकत तो देखिये – देश में स्वदेशी दो टीके हैं, सरकारी वक्तव्यों में टीके की कोई कमी भी नहीं है – फिर भी रूस से हम टीका खरीदेंगे। दरअसल रूस को खुश रखना उनकी और लगातार मानवाधिकार हनन करने वाले दूसरे देशों को मजबूरी है। यह मजबूरी ट्रम्प तक नहीं थी, पर जो बाईडेन के बाद अमेरिका के प्रतारणा से बचने के लिए रूस की लगातार जरूरत होगी, यह मोदी जी भी जानते हैं।
प्रधानमंत्री जी जब भी आपदा में अवसर की बातें करते थे, तब सारे उदाहरण बाजार के ही होते थे। उनके उदाहरण पीपीई किट और मास्क के उत्पादन और निर्यात पर ही टिके थे। कभी भी उनके आपदा में अवसर का उदाहरण लोगों का बेहतर जीवन स्तर या फिर बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं से सम्बंधित नहीं रहा। पिछले एक वर्ष से हमारी चरमराती स्वास्थ्य सेवायें वैश्विक महामारी का बोझ बर्दाश्त करती जा रही हैं।
पिछले वर्ष डॉक्टरों समेत फ्रोंत्लिने वर्कर्स की खबरें आती रहीं, उनकी संख्या भी अलग-अलग स्त्रोतों से आती रहीं, पर पिछले वर्ष से आज तक कितने कोविड 19 मरीजों की जान सरकारी लापरवाही के कारण अस्पतालों में सुविधाएं नहीं मिलने के कारण गयी, यह कभी नहीं बताया गया। इस समय फिर वही आलम है – दवाओं की कालाबाजारी, अस्पतालों के बाहर सड़कों पर पड़े मरीज, अस्पतालों में घूमते कुत्ते और चूहे, ऑक्सीजन सिलिंडर की कमी और वेंटीलेटर्स का अकाल।
इस बीच भारत कोविड 19 के कुल मामलों के सन्दर्भ में ब्राज़ील को पीछे धकेलते हुए दुनिया में दूसरे स्थान पर पहुँच गया है। दूसरे स्थान पर पहुचने के ठीक पहले प्रधानमंत्री जी का घोषित कार्यक्रम, टीका उत्सव, शुरू किया गया था, जिससे आप कोविड 19 के मरीजों और इससे होने वाली मौतों को भूलकर टीके की बातें करने लगें। उत्साहित और सरकारी प्रचार तंत्र बना मीडिया बता रहा है कि एक दिन में तीस लाख लोगों को टीके लगे और अब तक दस करोड़ लोगों को टीका लग चुका है। मीडिया ने यह नहीं बताया कि यदि हरेक दिन तीस लाख टीके भी लगेंगे तब भी देश की 75 प्रतिशत आबादी तक टीका पहुँचने में 21 महीने और लगेंगे।
कोविड 19 का टीका भी अजीब सा है। टीका लगाने के बाद भी कोविड 19 से आप ग्रस्त हो सकते हैं और टीके के बाद भी आपको वही सावधानियां बरतनी हैं, जो बिना टीका लिए आप बरतते हैं। इस सबके बाद यह सवाल जरूर उठता है कि आखिर टीका किस रोग से हमें बचा रहा है?
पहले लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, फिर दिल्ली के गंगाराम अस्पताल और एम्स में थोक की संख्या में डॉक्टर कोविड 19 से संक्रमित होते गए। डॉक्टर फ्रोंत्लिने वर्कर्स में सबसे आगे हैं, और इनको टीका देने का काम बड़े तामझाम से जनवरी में शुरू किया गया था। जाहिर है जिन डॉक्टर को आज कोविड 19 हो रहा है, उन्हें लगभग एक महीने पहले ही इसे टीके की दोनों डोज मिल चुकी होगी।
हास्यास्पद तो यह है कि कोविड 19 के दौर में लगातार चुनावी रैली करने वाले प्रधानमंत्री जी, दूसरे मंत्री और बीजेपी के दूसरे नेता स्वयं कोविड 19 से सम्बंधित नियमों को ध्वस्त करते हैं, और फिर जनता को इन नियमों को मानने का आदेश देते हैं और कोविड 19 के बढ़ते मामलों के लिए भी जनता को ही जिम्मेदार बताते हैं।
कोविड 19 से जुड़ा सबसे बड़ा सवाल है कि बड़े तामझाम से शुरू किया गया पीएम केयर्स फंड कहाँ गया? दुनियाभर में शायद ही कहीं पीएम केयर्स फंड जैसा घोटाला एक वैश्विक महामारी के नाम पर किया गया होगा, यही तो था आपदा में अवसर।