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ED Report Card : प्रवर्तन निदेशालय की साख है दांव पर, 17 साल में सिर्फ 23 को हुई सजा

Janjwar Desk
2 Jun 2022 5:18 PM IST
ED Report Card : प्रवर्तन निदेशालय की साख है दांव पर, 17 साल में सिर्फ 23 को हुई सजा
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ED Report Card : प्रवर्तन निदेशालय की साख है दांव पर, 17 साल में सिर्फ 23 को हुई सजा

ED Report Card: सत्तर के दशक में जब देश में आयकर रिटर्न 98% से गिरकर 75% पर आ गया तो इनकम टैक्स विभाग (Income Tax Department) के छापे तेज हो गए। हर राज्य में छापे पड़ने लगे तो लोगों ने भी मजाक में कहना शुरू कर दिया कि भई, सुर्खियां बटोरनी है तो अपने घर इनकम टैक्स की रेड (IT Raid) पड़वा दो।

ED Report Card: सत्तर के दशक में जब देश में आयकर रिटर्न 98% से गिरकर 75% पर आ गया तो इनकम टैक्स विभाग (Income Tax Department) के छापे तेज हो गए। हर राज्य में छापे पड़ने लगे तो लोगों ने भी मजाक में कहना शुरू कर दिया कि भई, सुर्खियां बटोरनी है तो अपने घर इनकम टैक्स की रेड (IT Raid) पड़वा दो। तकरीबन कुछ इसी तरह की बात प्रवर्तन निदेशालय के छापों के बारे में भी कही जा रही है। वजह यह है कि जुलाई 2005 से फरवरी 2022 तक देशभर में मारे गए छापों में अभी तक सिर्फ 23 लोगों को ही सजा हो सकी है।

इसी साल बजट सत्र के दौरान कांग्रेस के मनीष तिवारी (Manish Tiwari) के सवाल के जवाब में सरकार ने बताया कि 2011 से 2020 तक प्रवर्तन निदेशालय ने फेमा कानून (Fema Act) के तहत 1027 छापे मारे, जबकि मनी लॉन्ड्रिंग कानून (PMLA) के तहत 1758 छापे और जांच की गई। 1999 मामलों में इन्फोर्समेंट केस इंन्फॉर्मेशन (ECIR) दाखिल हुई और अभियोजन ने 943 शिकायतें दर्ज कीं। लेकिन अभी तक सजा हुई केवल 23 लोगों को। अकेले 2014 से 2022 के बीच मारे गए 2974 छापों में 95 हजार 432 करोड़ की अघोषित संपत्ति का पता चला और आरोपियों के खिलाफ 839 मामले दर्ज हुए। केंद्र सरकार भले ही इसे भ्रष्टाचार और काले धन (Black Money) की रोकथाम के लिए तंत्र को मजबूत करने की बात कहे, लेकिन जैसे ही सजा की बात आती है, मामला राजनीतिक लगने लगता है।

सत्येंद्र जैन की गिरफ्तारी और राजनीतिक बवाल

दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार (Arvind Kejriwal) में कैबिनेट मंत्री सत्येंद्र जैन (Satyendar Jain) के खिलाफ 8 साल पुराने मामले में मनी लॉन्ड्रिंग कानून के तहत प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate ) के छापे और उनकी गिरफ्तारी के बाद राजनीतिक बवाल खड़ा हो गया है कि कहीं यह सब सरकार के इशारे पर तो नहीं हुआ, क्योंकि 4.8 करोड़ के कथित मनी लॉन्ड्रिंग के इस मामले की जांच सीबीआई भी कर रही है। इसके बाद प्रवर्तन निदेशालय ने नेश्नल हेराल्ड (National Herald) के एक मामले में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) और राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को भी पूछताछ के लिए समन भेजा है। दोनों ही मामलों को राजनीतिक बदले की कार्रवाई के रूप में देखा जा रहा है। आम आदमी पार्टी (AAP) के एक नेता का कहना है कि बीजेपी दरअसल आम आदमी पार्टी के द्वारा पंजाब में शुरू किए गए भ्रष्टाचार निरोधक अभियान को तोड़ना चाहती है। पंजाब सरकार ने अपने ही स्वास्थ्य मंत्री विजय सिंगला का स्टिंग कर उन्हें कमीशनखोरी के आरोप में गिरफ्तार करवा दिया था। माना जा रहा है कि बीजेपी यह नहीं चाहती कि आम आदमी पार्टी इसे एक उपलब्धि के रूप में राजनीतिक रूप से अन्य राज्यों में भुनाए। ऐसे मामलों में कानूनी उलझनों को समझने वालों का यह कहना है कि अदालती मुकदमें में कुछ दिन बाद आरोपी की जमानत हो जाती है और फिर मामला सालों-साल लंबा खिंच जाता है। इस बीच सरकारें बदलती हैं, नए समीकरण उभरते हैं और आरोपी छूट भी जाता है।

सीबीआई पर चीफ जस्टिस की टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रामन्ना (NV Ramana) ने पहली अप्रैल को सीबीआई (CBI) अधिकारियों को दिए एक उद्बोधन में सीबीआई की साख पर सवाल उठाया था। जस्टिस रामन्ना ने कहा कि सीबाआई जैसा प्रतिष्ठित संगठन भी अब सवालों के घेरे में है। कुछ मामलों में संगठन की सक्रियता और निष्क्रियता ने उसकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़े किए हैं। सवाल तो प्रवर्तन निदेशालय पर भी हैं, क्योंकि जांच की धीमी गति और मामले को अभियोजन के बाद आगे सजा तक ले जाने में संगठन की कमजोरी लगातार उजागर हो रही है। इससे बचने के लिए केंद्र सरकार को दोनों संगठनों के ढांचे में व्यापक बदलाव करना चाहिए, जो नहीं हो पा रहा है।

सरकार के लिए नुकसानदेह

अगर सत्येंद्र जैन के मामले में प्रवर्तन निदेशालय और सीबीआई दोनों खाली हाथ रहते हैं तो इससे सरकार की भ्रष्टाचार विरोधी छवि पर भी असर पड़ सकता है। खासतौर पर इसलिए, क्योंकि बीजेपी के कुछ आला नेताओं, मंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायतों के बाद भी उनकी जांच नहीं हो रही है। ठीक उसी तरह, जैसे 2015 से 2020 के दौरान राजद्रोह (Sedition) के मामले में गिरफ्तार 548 लोगों में से केवल 12 व्यक्तियों को ही सजा हो पाई है। करप्शन परसेप्शन इंडेक्स में भारत ने बीते साल 188 देशों की लिस्ट में एक अंक का सुधार कर 85वें स्थान पर जगह बनाई है। ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल कहता है कि पिछले एक दशक में भारत में भ्रष्टाचार की स्थिति सुधरी नहीं, बल्कि बिगड़ी ही है। वजह यह है कि जिन तंत्रों पर भ्रष्टाचार को काबू रखने की जिम्मेदारी है, वे कमजोर हो रहे हैं। इसलिए सरकार को लोगों का भरोसा जीतने के लिए अपनी एजेंसियों के कामकाज में सुधार लाने और पक्षपाती नजरिए को बदलने की जरूरत है।

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