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Fatehpur News : खजुहा में औरंगजेब की बागबादशाही पर्यटकों के लिए मनमोहक, यहां की रहस्यमयी सुरंग में दफन हैं कई राज

Janjwar Desk
18 July 2022 6:30 PM IST
Fatehpur News : खजुहा में औरंगजेब की बागबादशाही पर्यटकों के लिए मनमोहक, यहां की रहस्यमयी सुरंग में दफन हैं कई राज
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Fatehpur News : खजुहा में औरंगजेब की बागबादशाही पर्यटकों के लिए मनमोहक, यहां की रहस्यमयी सुरंग में दफन हैं कई राज

Fatehpur News : कहते हैं बागबादशाही की रहस्‍यमयी सुरंग में जो गया आज तक लौटकर वापस नहीं आया, इसे करीब 350 साल पहले औरंगजेब ने बनवाया था, यहां के लोगों की मानें तो ये सुरंग कोलकाता से होकर पेशावर तक जाती है...

लईक अहमद की रिपोर्ट

Fatehpur News : फतेहपुर जिले के बिन्‍दकी तहसील से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर खजुहा गांव में बागबादशाही स्थित है, जिसे देखने हजारों की संख्‍या में दूरदराज से पर्यटक आते रहते हैं। सैकड़ों बीघा जमीन पर स्थित यह ऐतिहासिक धरोहर बागबादशाही एवं बादशाह औरंगजेब की बारादरी के नाम से प्रसिद्ध है।

ऐतिहासिक तथ्‍यों के अनुसार 5 जनवरी, 1959 ईसवी को मुगल बादशाह औरंगजेब और शाह शुजा के मध्‍य हुए युद्ध में जीत के बाद बादशाह औरंगजेब ने बागबादशाही, बारादरी युक्‍त चारबाग, मस्जिद एवं कारवां सराय का निर्माण कराया था। ब्रिटिश शासनकाल में इस स्‍थान को नील की खेती के लिये इस्‍तेमाल किया जाता था। चहारदीवारी से युक्‍त यह बाग मुगल चारबाग शैली का सुन्‍दर नमूना है।

चहारदीवारी के कोनों पर सुन्‍दर छतरियों से सुसज्जित बुर्ज हैं, जबकि पश्चिमी दीवार के मध्‍य स्थित चौपहल भव्‍य दोमंजिला दरवाजा खजुहा कस्‍बे की ओर खुलता है। इसके ऐवान में गचकारी के माध्‍यम से बने ज्‍यामितीय अलंकरणों को नीले और हरे रंगों से सजाया गया है। उत्तरी दीवार से लगी हुई तीन बावलियां बनाई गई है, जिनका उपयोग चारबाग में जल आपूर्ति के लिए होता था।


बाग के मध्‍य में एक बावली एवं हौज है, जिससे जल चारों ओर नहरों-नालियों के माध्‍यम से बाग में पहुंचाया जाता था। नहरों के अवशेष अब मौजूद नहीं हैं। बाग बादशाही के पूर्व भाग में सोपानों में निर्मित लगभग तीन मीटर ऊचे चबूतरे के ऊपर दो बारादरियां निर्मित हैं। बारादरियों के मध्‍य एक हौज है इस हौज से जल चबूतरे पर स्थित नालियों के माध्‍यम से अलंकृत पुश्‍त-ए-माही के ऊपर से होकर चारबाग की ओर जाता था।

पूर्वी बारादरी में बंगला छत है, इसके मुख्‍य हाल से खजुहा के शाही तालाब का मनोरम दृश्‍य दिखाई पड़ता था। पश्चिमी बारादरी में सपाट छत है। बारादरियों में मुख्‍य हाल के अतिरिक्‍त दोनों ओर कमरों की भी व्‍यवस्‍था की गई है। खजुहा स्थित यह बाग मुगल बादशाह बाबर द्वारा प्रारम्‍भ की गई बारादरी युक्‍त बाग निर्माण की परम्‍परा के अन्तिम चरण का प्रतिनिधित्‍व करता है।

बादशाही के पश्चिम दरवाजे पर फर्श में ककई ईंटों से बनायी गयी कलाकृति देखते ही बनती है। बनाई गई कलाकृति में पैमाइश की शुद्धता को देखकर अचम्भित होना स्‍वाभाविक है। चहारदीवारी के अन्‍दर सैय्यद बाबा उर्फ खजांची बाबा की मज़ार है, जिस पर प्रत्‍येक गुरुवार को सभी धर्मों के अकीदतमंद आकर हाज़री देते हैं। मुख्‍य मार्ग मुगल रोड पर स्थित दो विशाल बुलन्‍द दरवाजे हैं जो किले की दीवार से जुड़े हैं। इन बुलन्‍द दरवाजों में लकड़ी के गेट लगे हुए है, मुगल हुकूमत के समय में आक्रमण का संदेश मिलने पर इन दरवाजों को बन्‍द कर दिया जाता था और फौज को तैनात कर शहर की सुरक्षा की जाती थी। इस सुन्‍दर स्‍थान पर पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है, विदेशी पर्यटकों को भी इसकी सुन्‍दरता अपनी ओर मोहित करती है।

बागबादशाही परिसर के दोनों दरवाजों के मध्‍य स्थित शाही जामा मस्जिद में पांचों वक्‍त की नमाज़ अदा की जाती है। मस्जिद के मेम्‍बर का गुम्‍बद वाला हिस्‍सा आज भी पुराने हिसाब से बना है। खजुहा कस्‍बे के रहने वाले नसीम खान, मोहम्‍मद फारूक, अली खान व शफीक खान बताते हैं, 'इस कस्‍बे में बादशाह औरंगजेब के शासनकाल में लगभग 15 मस्जिदें निरमित करवायी गयी थीं, जिनमें कुछ मस्जिदें आबाद है तो कुछ वीरान हैं तो कुछ ऐसी भी हैं जिनका अस्तित्‍व लगभग समाप्‍त हो चुका है। बताया कि बागबादशाही के अन्‍दर एक सुरंग होने की बात कही जाती है कि वह सुरंग दिल्‍ली तक पहुंचती थी, लेकिन इस सुरंग की सत्‍यतता आज तक सामने नहीं आई है और न ही कभी पुरातत्‍व विभाग के द्वारा इसके बारे में कुछ कहा गया है।'


स्थानीय लोगों की मानें रहस्‍यमयी सुरंग में जो गया आज तक लौटकर वापस नहीं आया। इसे करीब 350 साल पहले औरंगजेब ने बनवाया था। यहां के लोगों की मानें तो ये सुरंग कोलकाता से होकर पेशावर तक जाती है। अब इसे बंद कर दिया गया है।

यहां था शाहजहां के बेटे शाहशुजा का राज

जानकार बताते हैं कि उस समय यहां पर शाहजहां के बेटे शाहशुजा का राज था। औरंगजेब ने इसे हड़पने के लिए कई बार यहां पर आक्रमण किया, लेकिन वो हार गया। 5 जनवरी 1659 को औरंगजेब ने फिर से यहां पर आक्रमण किया और शाहशुजा को हरा दिया। इस विजय की खुशी में औरंगजेब ने यहां पर जश्न मनाया और इस बागबादशाही का निर्माण करवाया।

बागबादशाही देखरेख के अभाव में अब काफी जर्जर हो चुका है। जानकारों की मानें तो इन्हीं बारादरी में औरंगजेब रहता था, जबकि बारादरी के सामने बाग था।


हजारों फीट गहरे हैं कुएं

उत्तर की तरफ चहारदीवारी में तीन बड़े-बड़े कुएं बनाए गए थे, जो कई हजार फीट गहरे हैं। ये कुएं आज भी यहां देखे जा सकते हैं। इनमें बड़ी-बड़ी जंजीरें पड़ी हुई हैं। कहा जाता है कि इन कुओं से बाग में पानी की आपूर्ति की जाती थी।

आज भी गांव के चारों तरफ मौजूद हैं दीवारें

यहां पर पश्चिम में एक विशाल गेट है, जबकि दूसरा गेट खजुआ गांव की तरफ है। इन गेट के ऊपर चढ़कर पूरे बागबादशाही का नजारा देखा जा सकता है। गांव के अंदर चारों तरफ दीवारें बनी हुई हैं और विशाल फाटक बनाए गए हैं। बताया जाता है कि यहां पर घुड़सवाल था, जिसमें घोड़े और सैनिक रहते थे।

लोग यह भी बताते हैं जो यहां निर्माण करवाया गया है, वो मुगल बादशाह बाबर के जमाने में शुरू की गई बारादरी बाग निर्माण परंपरा की निशानी है और चारबाग शैली का नमूना है।

इसके अतिरिक्त सराय में 130 कमरे हैं जो आज अत्यंत बुरी अवस्था में है। इसे पुरातत्व विभाग ने संरक्षित कर लिया है, लेकिन बजट के अभाव में इन पर मरम्म्त का काम शुरू नहीं हो पाया है। इसकी मरम्मत के लिए सरकार ने पुरातत्व विभाग को जो बजट दिया, वह सिर्फ खानापूर्ति है।

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