जनज्वार विशेष

Gandhi Jayanti (2022) : तुम कुछ भी करो, गांधी को नकार नहीं सकते

Janjwar Desk
2 Oct 2022 5:01 AM GMT
Gandhi Jayanti (2022) : तुम कुछ भी करो, गांधी को नकार नहीं सकते
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Gandhi Jayanti (2022) : गोडसे फांसी पर चढ़ा, तब उसके हाथ में भगवा ध्वज था और होठों पर संघ की प्रार्थना- नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमि, पर यही बात बताने वाला गाँधीवादी गाइड दामोदरन नौकरी से निकाल दिया गया...

महेंद्र पांडेय की टिप्पणी

Gandhi jayanti (2022) : गांधी जी को अपने देश में मारने के कोशिश पिछले कुछ वर्षों से लगातार की जा रही है। कभी उनके पुतले को गोली मारी जाती है, कभी उनकी मूर्ति गिराई जाती है, कभी उनके सादे आश्रम को पांच सितारा पर्यटन स्थल बनाने का प्रयास किया जाता है, कभी उन्हें चतुर बनिया कहा जाता है, कभी उनके पसंदीदा भजन की धुन को विजय चौक पर खामोश कर दिया जाता है और कभी नाथूराम गोडसे के मंदिर बनने लगते हैं। दरअसल, उन्हें मिटाने का प्रयास करने वाले निहायत ही बेवकूफ किस्म के लोग हैं, क्योंकि उनकी हरेक ऐसी कोशिश गांधी जी को हमारे समाज में पहले से अधिक मजबूत कर जाती है।

अब तो हमारे प्रधानमंत्री जी को विदेशी दौरों पर विदेशी नेता ही गांधी जी की याद दिला जाते हैं। सही मायने में, हमारे देश की एकमात्र अंतरराष्ट्रीय हस्ती गांधी जी ही हैं। पिछले कुछ वर्षों से यूनाइटेड किंगडम में पर्यावरण बचाने के आन्दोलनकारी सविनय अवज्ञा और असहयोग जैसे शब्दों का प्रयोग करते हैं। यूरोप और मध्य पूर्व की जेलों में बंद अनेक राजनैतिक बंदी जेलों में लगातार भूख हड़ताल करते हैं। जाहिर है, गांधी जी को मिटाने का प्रयास करने वालों की ही हस्ती मिटने का खतरा रहता है।

गांधी जी ने हिंदी साहित्य जगत को बहुत प्रभावित किया है। हरिशंकर परसाई ने जनसंघ के जमाने में, जब मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री थे, तब गांधी जी के नाम अपने ही अंदाज में एक पत्र लिखा था – जिसे पढ़कर आप पारसाई जी के व्यंग से अधिक उनके दूरदर्शी राजनैतिक विश्लेषण से प्रभावित होंगें। उन्होंने लिखा है, "आपके नाम पर सड़कें हैं- महात्मा गाँधी मार्ग, गाँधी पथ। इनपर हमारे नेता चलते हैं। कौन कह सकता है कि इन्होंने आपका मार्ग छोड़ दिया है। वे तो रोज़ महात्मा गाँधी रोड पर चलते हैं। इधर आपको और तरह से अमर बनाने की कोशिश हो रही है। पिछली दिवाली पर दिल्ली के जनसंघी शासन ने सस्ती मोमबत्ती सप्लाई करायी थी। मोमबत्ती के पैकेट पर आपका फोटो था। फोटो में आप आरएसएस के ध्वज को प्रणाम कर रहे हैं। पीछे हेडगेवार खड़े हैं। एक ही कमी रह गयी। आगे पूरी हो जायेगी। अगली बार आपको हाफ पैंट पहना दिया जायेगा और भगवा टोपी पहना दी जायेगी। आप मजे में आरएसएस के स्वयंसेवक के रुप में अमर हो सकते हैं। आगे वही अमर होगा जिसे जनसंघ करेगा।"

परसाई जी ने आगे लिखा है, "कांग्रेसियों से आप उम्मीद मत कीजिये। यह नस्ल खत्म हो रही है। आगे गड़ाये जाने वाले कालपत्र में एक नमूना कांग्रेस का भी रखा जायेगा, जिससे आगे आनेवाले यह जान सकें कि पृथ्वी पर एक प्राणी ऐसा भी था। गैण्डा तो अपना अस्तितव कायम रखे है, लेकिन कांग्रेसी नहीं रख सका। मोरारजी भाई भी आपके लिए कुछ नहीं कर सकेंगे। वे सत्यवादी हैं। इसलिए अब वे यह नहीं कहते कि आपको मारने वाला गोडसे आरएसएस का था।

यह सभी जानते हैं कि गोडसे फांसी पर चढ़ा, तब उसके हाथ में भगवा ध्वज था और होठों पर संघ की प्रार्थना- नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमि। पर यही बात बताने वाला गाँधीवादी गाइड दामोदरन नौकरी से निकाल दिया गया। उसे आपके मोरारजी भाई ने नहीं बचाया। मोरारजी सत्य पर अटल रहते हैं। इस समय उनके लिए सत्य है प्रधानमंत्री बने रहना। इस सत्य की उन्हें रक्षा करनी है। इस सत्य की रक्षा के लिए जनसंघ का सहयोग जरूरी है। इसलिए वे यह झूठ नहीं कहेंगे कि गोडसे आरएसएस का था। वे सत्यवादी है। तो महात्माजी, जो कुछ उम्मीद है, बाला साहब देवरास से है। वे जो करेंगे वही आपके लिए होगा। वैसे काम चालू हो गया है। गोडसे को भगत सिंह का दर्जा देने की कोशिश चल रह रही है।

गोडसे ने हिंदू राष्ट्र के विरोधी गाँधी को मारा था। गोडसे जब भगत सिंह की तरह राष्ट्रीय हीरो हो जायेगा, तब तीस जनवरी का क्या होगा? अभी तक यह "गाँधी निर्वाण दिवस" है, आगे 'गोडसे गौरव दिवस' हो जायेगा। इस दिन कोई राजघाट नहीं जायेगा, फिर भी आपको याद जरूर किया जायेगा। जब तीस जनवरी को गोडसे की जय-जयकार होगी, तब यह तो बताना ही पड़ेगा कि उसने कौन-सा महान कर्म किया था। बताया जायेगा कि इस दिन उस वीर ने गाँधी को मार डाला था। तो आप गोडसे के बहाने याद किए जायेंगे। अभी तक गोडसे को आपके बहाने याद किया जाता था। एक महान पुरुष के हाथों मरने का कितना फायदा मिलेगा आपको? लोग पूछेंगे- यह गाँधी कौन था? जवाब मिलेगा- वही, जिसे गोडसे ने मारा था।"

हूबनाथ पाण्डेय की एक कविता है, वसीयत. इसमें उन्होंने बताया है कि गांधी के मरने के बाद किस तरह समाज ने उन्हें अपनी सुविधा के अनुसार बाँट दिया है।

वसीयत/हूबनाथ पाण्डेय

गांधी के मरने के बाद

चश्मा मिला

अंधी जनता को

घड़ी ले गए अंग्रेज़

धोती और सिद्धांत

जल गए चिता के साथ

गांधीजनों ने पाया

राजघाट

संस्थाओं ने आत्मकथा

और डंडा

नेताओं ने हथियाया

और हांक रहे हैं

देश को

गांधी से पूछे बिना

गांधी को बांट लिया हमने

अपनी अपनी तरह से

भारत यायावर की एक कविता है, अमर बन। इसमें उन्होंने लिखा है, जो मरा हुआ है वह क्या मारेगा?

अमर बन/भारत यायावर

सब ज़िन्दा हैं और रहेंगे।

लोग चिल्लाते रहते हैं

कि मार दिया

सुकरात को मार दिया

ईसा को मार दिया

गांधी को मार दिया!

भला कौन मार सकता है

अमर है वह चेतना

अमर है वह वाणी

तो अमर है अस्तित्व!

जो मरा हुआ है

वह क्या मारेगा

लेकिन डर-डर कर जीने वाला

मर-मर कर जीता है

स-मर में अ-मर कर

अजर-अमर बन!

हिंदी के मूर्धन्य कवि रामधारी सिंह दिनकर की एक प्रसिद्ध कविता है, गांधी।

गांधी/रामधारी सिंह दिनकर

देश में जिधर भी जाता हूँ,

उधर ही एक आह्वान सुनता हूँ

"जड़ता को तोड़ने के लिए

भूकम्प लाओ,

घुप्प अँधेरे में फिर

अपनी मशाल जलाओ,

पूरे पहाड़ हथेली पर उठाकर

पवनकुमार के समान तरजो,

कोई तूफ़ान उठाने को

कवि, गरजो, गरजो, गरजो"

सोचता हूँ, मैं कब गरजा था ?

जिसे लोग मेरा गर्जन समझते हैं,

वह असल में गाँधी का था,

उस गाँधी का था, जिस ने हमें जन्म दिया था

तब भी हम ने गाँधी के

तूफ़ान को ही देखा,

गाँधी को नहीं

वे तूफ़ान और गर्जन के

पीछे बसते थे

सच तो यह है

कि अपनी लीला में

तूफ़ान और गर्जन को

शामिल होते देख

वे हँसते थे

तूफ़ान मोटी नहीं,

महीन आवाज़ से उठता है

वह आवाज़

जो मोम के दीप के समान

एकान्त में जलती है,

और बाज नहीं,

कबूतर के चाल से चलती है

गाँधी तूफ़ान के पिता

और बाजों के भी बाज थे

क्योंकि वे नीरवता की आवाज थे

कवि और लेखक रूपम मिश्र की भी एक कविता का शीर्षक है, गांधी। यह एक विशेष कविता है, जिसमें गांधी जी के बारे में फैलाई गयी तमाम अफवाहों का भी समावेश है।

गाँधी/रूपम मिश्र

तुम उदास न होना गाँधी

सत्य अभी भी संसार में सबसे ज़्यादा चमकता है

झूठ अभी सत्य के पीछे छुपकर खड़ा होता है

अब भी क्रूरता को कहना ही पड़ता है — अहिंसा परमोधर्मः

आततायी अब भी न्याय का सहारा लेकर

अपने दम्भ को उजागर करते हैं

प्रार्थना सभाओं में अब भी गाए जाएँगे — वैष्णव जन ते......

हाँ, ये खेद रहेगा कि वहाँ बैठे जन पराई पीर न जानेंगे

अब भी जिसमें ज़रा भी करुणा बची होगी

वो गोडसे नाम सुनते ही शर्म से सिर झुका लेगा

साबरमती के बूढ़े फकीर, तुम युगप्रवर्तक थे

क्षमा दया का पारावार जानने के लिए

संसार तुम्हारे समक्ष हमेशा हाथ फैलाता रहेगा

अभी एकदम निराश न होना गाँधी

लोग धीरे-धीरे ही सही लौटेंगे अहिंसा की ओर

देखना एकदिन कृष्ण लौट आएँगे समरभूमि से गोकुल

राम की आँखों से दुख के आँसू गिरेंगे शम्बूक वध पर

कर्ण प्रतिकार भूलकर न्याय को सिर माथे पर रखेगा

एकलव्य के कटे अँगूठे को देखकर द्रोण ग्लानि से भर जाएँगें

तुम आस बचाए रखना गाँधी, आने वाला युग अन्धी जड़ता को ठोकर मारेगा

जानते हो गाँधी, अभी भी बच्चे चश्मा, लाठी और एक कमज़ोर सी देह की छाया देखकर उल्लास से कहते हैं — वो देखो गांधी!!

भले ही उनके कोमल मन पर थोप दिया गया है कि

देश मे दंगो का कारण गांधी हैं

अब भी धारा का सबसे पिछड़ा व्यक्ति तुम्हें जानता है गांधी

भले इस झूठ के साथ कि पाकिस्तान बनने का कारण गांधी थे

महेंद्र पाण्डेय की एक कविता है, गांधी को नकार नहीं सकते...

गांधी को नकार नहीं सकते/महेंद्र पाण्डेय

गांधी के पक्ष में खड़े हो सकते हो

गांधी के विपक्ष में बोल सकते हो

गाली भी दे सकते हो

गांधी की प्रतिमा तोड़ सकते हो

गांधी की प्रतिमा बना सकते हो

देश की आजादी का प्रतीक मान सकते हो

विभाजन का जिम्मेदार भी ठहरा सकते हो

गांधी को सत्य अहिंसा का पुजारी मान सकते हो

चतुर बनिया भी बता सकते हो

गांधी को केवल सफाई तक सीमित रख सकते हो

गांधी के लिए घृणा भी फैला सकते हो

गांधी से चरखा छीन सकते हो

खादी भी छीन सकते हो

पर, सुनो

तुम कुछ भी करो

गांधी को नकार नहीं सकते

मालूम है, कोशिश की थी तुमने

पर देखो

गांधी जी मुस्करा रहे हैं तुम्हारी नादानी पर

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