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MP Vyapam Scam : एमपी का व्यापम घोटाला उजागर करने वाले आशीष चतुर्वेदी जूझ रहे जिंदगी और मौत से, मांगी सबसे मदद
MP Vyapam Scam : एमपी का व्यापम घोटाला उजागर करने वाले आशीष चतुर्वेदी जूझ रहे जिंदगी और मौत से, मांगी सबसे मदद
जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट
MP Vyapam scam: दिल्ली के गंगाराम अस्पताल के वार्ड में भर्ती आशीष चतुर्वेदी जिंदगी व मौत से जंग लड़ रहे हैं। यह वे शख्स हैं,जिन्होंने व्यापम घोटाले को उजागकर कर मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान की सरकार को हिला कर रख दिया था। आज आशीष को जब मदद की दरकार है, तो आवाज उन तक नहीं पहुंच रही जो भ्रष्टाचार के खिलाफ कदम ताल करने की बात करते थे व एक से एक बढ़कर दावे भी।
व्यापम घोटाला मध्य प्रदेश से जुड़ा प्रवेश एवं भर्ती से संबंधित ऐसा घोटाला रहा, जिसके पीछे कई नेताओं, वरिष्ठ अधिकारियों और व्यवसायियों का हाथ रहा। मध्य प्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल अथवा व्यापम (व्यावसायिक परीक्षा मण्डल) राज्य में कई प्रवेश परीक्षाओं के संचालन के लिए जिम्मेदार राज्य सरकार द्वारा गठित एक स्व-वित्तपोषित और स्वायत्त निकाय है। ये प्रवेश परीक्षाएँ, राज्य के शैक्षिक संस्थानों में तथा सरकारी नौकरियों में दाखिले और भर्ती के लिए आयोजित की जाती हैं। इन प्रवेश परीक्षाओं में तथा नौकरियों में अपात्र परीक्षार्थियों और उम्मीदवारों को बिचैलियों, उच्च पदस्थ अधिकारियों एवं राजनेताओं की मिलीभगत से रिश्वत के लेनदेन और भ्रष्टाचार के माध्यम से प्रवेश दिया गया एवं बड़े पैमाने पर अयोग्य लोगों की भर्तियाँ की गयी।
मध्य प्रदेश की बीजेपी सरकार के संरक्षण में चलने वाले, आजाद भारत के सबसे बड़े शिक्षा घोटाले का खुलासा आशीष चतुर्वेदी ने ही किया था। इसका इनाम उसे इस रूप में मिला कि उसके ऊपर कई बार प्राणघातक हमले व अपहरण की कोशिशें की गईं। उनके पिताजी के ऊपर गाड़ी चढ़ा दी गई थी, जिसमें मुश्किल से उनकी जान बची थी। व्यापम महाघोटाले के खिलाफ लिखने-बोलने वाले, इससे जुडे गवाहों समेत करीब 24 लोगों की अब तक हत्या हो चुकी है।
आजादी के नए योद्धा कहे जानेवाले आरटीआई वर्करों को जो सरकारी मशीनरी का दंश झेलना पड़ता है,उसी का हिस्सा रहे आशीष चतुर्वेदी। आज आशीष चतुर्वेदी की हालत गंभीर है। सरकार बेखबर है और उनकी कोई रुचि नहीं दिखाई दे रही। आशीष के पिता कई दिनों से मदद के लिए पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से संपर्क करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन उनका फोन नही उठ रहा है,कमलनाथ अनजान हैं।
अब सवाल उठता है कि ऐसे हालात में भष्टाचार के खिलाफ आवाज उठानेवालों को ताकत देने की बात करनेवाले विपक्षी दलों पर ये कैसे भरोसा करें। आशीष चतुर्वेदी जिस गंगाराम अस्पताल में अपनी जिंदगी से जंग लड़ रहे हैं, वहां उनकी चिख व परिजनों की गुहार उन नेताओं के कान तक नहीं पहुंच रही,जो हर दिन केंद्र सरकार के जनविरोधी कार्यों को लेकर घेरने की बात करते हैं। इन सभी नेताओे के ठिकाने अस्पताल से 8 से 10 किलोमीटर की दूरी पर हैै। अस्पताल से कांग्रेस पार्टी का केंद्रीय कार्यालय 24 अकबर रोड हो या आम आदमी पार्टी के केंद्रीय कार्यालय 226, राउज एवेन्यू, दीन दयाल उपाध्याय मार्ग, आईटीओ। इसी तरह कांग्रेस की सोनिया गांधी का 10 जनपथ आवास हो या आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल का दिल्ली स्थित सिविल लाइंस स्थित आवास। इन सबकी दूरी गंगाराम अस्पताल से मात्र चंद किलोमीटर पर है। इसके बाद भी आशीष चतुर्वेदी के संघर्ष को कभी मिशाल के रूप में पेश करनेवाले ये नेता व इनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं के एजेंडे में आशीष चतुर्वेदी नहीं है।
खास बात यह है कि आशीष के द्वारा उजागर किए गए घोटाले ही कांग्रेस पार्टी समेत अन्य विपक्षी दलों के लिए मध्यप्रदेश के चुनावों में राजनीतिक हथियार रहे हैं। ऐसे में इनके द्वारा एक दशक के अंदर ही वे मुददे व आशीष के संघर्ष को ये नेता भूल जाएं इसका किसी को विश्वास नहीं होता। बल्कि लोग यह सवाल खड़ा कर रहे हैं कि नेताओं के लिए ये आरटीआई वर्कर मात्र मोहरा बनकर रह जाते हैं। इसके बाद ये अपने सत्ता के खेल में व्यस्त हो जाते है। जिसका नतीजा है कि आशीष के मदद को लेकर लोगों द्वारा की जा रही अपील इन नेताओं तक नहीं पहुंच पा रही है।
ऐसे चर्चा में रहा व्यापम घोटाला
व्यापक द्वारा आयोजित प्रवेश परीक्षाओं में अनियमितताओं के मामले 1990 से होते रहे पर पहली एफआईआर 2009 में दर्ज हुई। राज्य सरकार ने मामले की जाँच के लिए एक समिति कि स्थापना की। समिति ने 2011 में अपनी रिपोर्ट जारी की, और एक सौ से अधिक लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया। जानकारी के मुताबिक वर्ष 2009 में व्यापमं संचालक और चिकित्सा शिक्षा विभाग ने राजधानी के एमपी नगर थाने में फर्जी छात्रों के परीक्षा में बैठने की शिकायत दर्ज कराई थी। विधानसभा में विधायकों ने कई सवाल उठाए। जवाब भी आए। समिति भी बनी। छानबीन भी हुई। कमेटी की पहली बैठक 13 माह बाद 28 जनवरी 2011 और दूसरी अप्रैल में हुई। इसके बाद 29 नवंबर को मुख्यमंत्री ने पहली बार माना कि कमेटी ने 2009 पीएमटी परीक्षा में 114 फर्जी विद्यार्थी चिन्हित गए हैं।
पुलिस में एफआईआर दर्ज करने के निर्देश महाविद्यालयों को दिए गए, पर फर्जीवाड़े में शामिल गिरोह, रसूखदार व्यक्ति, व्यापमं तथा चिकित्सा विभाग के अफसरों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई नहीं की गई। किसी भी जांच एजेंसी को गहराई से विवेचना करने का काम नहीं सौंपा गया। विभागीय स्तर पर भी यह जानने की कोशिश नहीं की गई कि इतना बड़ा फर्जीवाड़ा कैसे हो गया।
6 मई 2011 को सरकारी मेडिकल कॉलेज को 2007 से 11 की पीएमटी परीक्षा में फर्जीवाड़े की जांच एक माह में करने के आदेश दिए गए पर 17 स्मरण पत्र देने के 30 माह बाद भी जांच नहीं हुई। 3 दिसंबर 2013 को कॉलेजों ने रिपोर्ट चिकित्सा शिक्षा विभाग को सौंपी और उसमें 296 विद्यार्थी फर्जी पाए गए पर किसी के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई। इस मामले को उठाते हुए आशीष चतुर्वेदी ने कहा था कि 23 फरवरी 2012 को भी मुख्यमंत्री ने गलत बयान दिया। उन्होंने कहा था कि फर्जी केंडीडेट के प्रूफ जांच के लिए फॉरेंसिंक लैब को भेजे गए, जबकि हैदराबाद सहित एक अन्य एजेंसी से सूचना का अधिकार में पूछा तो उन्होंने साफ इंकार कर दिया कि उन्हें ऐसा कोई प्रूफ परीक्षण के लिए दिया ही नहीं गया।
पूर्व पुलिस महानिदेशक अरुण गुर्टू ने कहा था कि कि तजुर्बेकार अफसरों को बैठाने के बाद भी लंबे समय तक घोटाला होता है तो जिम्मेदारी बनती ही है। अफसरों को काम करने के लिए फ्रीडम दी गई है। यदि कोई गड़बड़ी होती है तो छोटों से पहले बड़े अफसरों का दोष तय होना चाहिए, लेकिन बड़ों को छोड़ दिया गया। यही वजह है कि बड़े अफसरों पर आरोप लग रहे हैं, लाजमी भी हैं।
जानकारों का कहना है कि व्यापमं घोटाला पूरी तरह से एडमिनिस्ट्रेटिव फेलोअर है, लेकिन दोषी राजनीतिक बिरादरी भी कम नहीं है। गड़बड़ी होती रही और शासन-प्रशासन मूक दर्शक बना रहा। प्रमुख सचिवों ने भी संज्ञान नहीं ली। सिस्टम को तोड़ा जाता रहा, पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। पूर्व मुख्य सचिव केएस शर्मा के मुताबिक इसमें कोई शक नहीं है कि प्रशासनिक व्यवस्था लचर रही पर इसे ही पूरी तरह से गड़बड़ी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। नेतृत्व राजनीतिक होता है। मंत्री की जिम्मेदारी बनती है कि वे देखें नीचे क्या हो रहा है। गड़बड़ियों पर मंत्री पल्ला नहीं झाड़ सकता है। अध्यक्ष की बड़ी जिम्मेदारी है। इनकी नाक के नीचे ऐसी गड़बड़ी होती रही, यह अक्षमता है या मिलीभगत। हर स्तर पर गड़बड़ी उजागर हुई है। विजिलेंस टीम क्या रही थी। उसे पता क्यों नहीं लगा।
जुलाई 2015 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने देश के प्रमुख जांच एजेंसी केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को मामले की जाँच स्थानांतरित करने के लिए एक आदेश जारी किया। अगर कांग्रेस पार्टी के बिचारों को प्राथमिकता दी जाए तो व्यापम घोटाले के दोषी लक्ष्मीकांत शर्मा और मुख्य रूप से मुख्यमंत्री शिवराजसिंह हैं जिनमे से स्वसत्ता के चलते मुख्यमंत्री के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हुई है मुख्यमंत्री शिवराजसिंह ने व्यापम घोटाले को दवाने के लिए भोपाल में ही एक फर्जी एनकाउंटर करवा दिया। इसकी जड़े तत्कालीन राज्यपाल रामनरेश यादव के घर तक पहुंची थी। कहा जाता है कि श्री यादव के पुत्र शैलेंद्र यादव ने इसी प्रकरण को लेकर लखनउ स्थित आवास में आत्महत्या कर ली थी। इससे जुड़े दर्जनों लोगों ने जान दे दी या उनकी हत्या हो गई।