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विकास की भेंट चढ़कर अस्तित्व खोने को तैयार है अंग्रेजों का बसाया खूबसूरत नैनीताल, बेतरतीब निर्माण दे रहा आपदाओं को आमंत्रण
![विकास की भेंट चढ़कर अस्तित्व खोने को तैयार है अंग्रेजों का बसाया खूबसूरत नैनीताल, बेतरतीब निर्माण दे रहा आपदाओं को आमंत्रण विकास की भेंट चढ़कर अस्तित्व खोने को तैयार है अंग्रेजों का बसाया खूबसूरत नैनीताल, बेतरतीब निर्माण दे रहा आपदाओं को आमंत्रण](https://janjwar.com/h-upload/2022/09/19/797907-nainital.jpg)
विकास की भेंट चढ़कर अस्तित्व खोने को तैयार है अंग्रेजों का बसाया खूबसूरत नैनीताल, बेतरतीब निर्माण दे रहा आपदाओं को आमंत्रण
सलीम मलिक की रिपोर्ट
Nainital : उत्तराखंड में अनियंत्रित विकास को लेकर वैज्ञानिक अध्ययन करने वाले लोग अक्सर ही चेताते रहते हैं, लेकिन इन्हें विकास विरोधी बताने से इनकी आवाज नक्कारखाने में तूती बनकर रह जाती है। इन्हीं अनसुनी आवाजों का कुल जमा हासिल अब उत्तराखंड के कम से कम दो शहरों के बर्बादी के मुहाने पर पहुंचने के रूप में सामने आ रहा है। जिन दो शहरों की बात की जा रही है, वह दोनों ही समुद्र सतह से छः हजार फीट की ऊंचाई पर बसे शहर हैं। नाम इनके नैनीताल और जोशीमठ हैं। नैनीताल अपने आप में जहां जिला मुख्यालय है तो जोशीमठ चमोली जिले का एक नगर पालिका क्षेत्र है।
पहले 6150 फिट की ऊंचाई पर बसे नैनीताल शहर की बात करें, तो यह शहर किसी परिचय का मोहताज नहीं है। नाशपाती के आकार की विशाल पानी की झील के चारों तरफ बसा और अप्रतिम प्राकृतिक सौंदर्य को अपने में समेटा यह शहर ब्रिटिशकालीन बसावत है। 181 साल पहले 18 नवंबर 1841 को पीटर बैरन नाम के एक अंग्रेज व्यापारी की नजर नैनीताल पर उस समय पड़ी थी जब वह अपने घुमक्कड़ी के शौक को पूरा करने के दौरान यहां से गुजर रहे थे। तब नैनीताल स्थानीय निवासी दानसिंह थोकदार के अधिकार में था। खरीद फरोख्त की प्रक्रिया के बाद इस शहर को बसाया गया था। भारत की झुलसा देने वाली लू और गर्मी की वजह से अंग्रेजों को राहत देने वाली इस बसावत को छोटी विलायत कहा जाता रहा है।
इस शहर को बसाने के साथ ही अंग्रेजों ने इसकी पहाड़ियों पर बसावत की एक मियाद तय की थी कि इतने से अधिक जनसंख्या इस शहर की नहीं होनी चाहिए। इसके बाद भी जब नैनीताल अपनी स्थापना के चार दशक भी पूरे नहीं कर पाया था, साल 1880 के 18 सितंबर को इसकी एक अल्मा नाम की पहाड़ी उस समय भर-भराकर भू स्खलन का शिकार हुई, जब नैनीताल की कुल आबादी दस हजार ही हुआ करती थी। इस हादसे में 41 अंग्रेजों सहित कुल 151 लोगों को जान तो गंवानी पड़ी, लेकिन इसके बाद अंग्रेजों ने इस घटना से ऐसा सबक हासिल किया कि उनके अगले करीब सत्तर साल के शासन में ऐसा कोई हादसा नहीं हुआ। अंग्रेजों ने नैनीताल की पहाड़ियों की वजन सहन करने की क्षमता का एक आकलन करते हुए यहां की जनसंख्या को पूरी तरह नियंत्रित किए रखा।
अंग्रेजों के कड़े नियम और अनुशासन से नैनीताल को मुक्ति देश आजाद होने पर ही मिली। अंग्रेजों के जाने के बाद से ही यहां अनियंत्रित निर्माण का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह आज तक नहीं रुक पाया है। सत्तर के दशक से होटल लॉबी के विस्तार ने इस शहर को नई ऊंचाईयां तो दी, लेकिन शहर के बेतरतीब निर्माण ने भी इसी काल में अपने पैर पसारे। नैनीताल शहर का आधार समझे जाने वाले बलिया नाले के जलागम क्षेत्र से भू स्खलन का सिलसिला भी इसी दशक के 1972 से शुरू हो चुका था। कई घरों को अपने में समा चुका बलिया नाला इस समय तल्लीताल क्षेत्र के बड़े हिस्से को निगलने को तैयार बैठा है। इसे नैनीताल के अस्तित्व के समाप्ति की पूर्व घोषणा भी कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
जिस अल्मा पहाड़ी पर हुए 1880 के भू स्खलन को नैनीताल के इतिहास का सबसे काला दिन समझा जाता है, उस अल्मा पहाड़ी की सच्चाई यह है कि यहां इसी साल 24 जुलाई को एक बड़ा भूस्खलन हो चुका है। यह भूस्खलन अल्मा पहाड़ी के खतरे का अलार्म माना जा रहा है। इसके अलावा भी नैनीताल के कई हिस्सों में भू स्खलन की घटनाएं सामने आ रही हैं। जो बताती हैं कि यह खूबसूरत शहर धीरे-धीरे मानव निर्मित तयशुदा मौत की ओर बढ़ रहा है।
181 साल पहले अंग्रेजों ने जिस बात को अपने अनुभव से समझा था, उसी बात पर मुहर लगाते हुए तमाम भूगर्भ वैज्ञानिकों का कहना है कि यह बात पूरी तरह से सही है कि हर पहाड़ की एक तयशुदा भार क्षमता होती है। उसी पहाड़ पर बसे शहर की भी भार सहने की क्षमता पहाड़ से अधिक नहीं हो सकती। यदि ऐसी जगह पर एक तय सीमा से अधिक निर्माण होगा तो वह जमीन नीचे को ही धंसेगी। नैनीताल के साथ भी यही स्थिति आ चुकी है, जिसकी गवाही इसकी दरकती पहाड़ियां दे रहीं हैं। इस बारे में अब भूगर्भ वैज्ञानिकों की बहुत साफ शब्दों में चेतावनी है कि अगर नैनीताल शहर की इन पहाड़ियों पर तत्काल प्रभाव से निर्माण कार्य नहीं रोक गए तो इस खूबसूरत पर्यटक शहर को बचा पाना बेहद मुश्किल होगा। इन पहाड़ियों पर निर्माण की यह बीमारी नीम हकीमों वाले नुस्खों के उपचार से कहीं आगे जा चुकी है। बेवजह के नुस्खे छोड़कर सख्ती भरा कोई निर्णय ही नैनीताल का अस्तित्व बनाए रख सकता है, लेकिन इसके लिए न तो लोग ही और न सरकार ही तैयार दिखती है।
(अगले भाग में उत्तराखंड के जोशीमठ शहर की कहानी)