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जनज्वार विशेष

मोदी राज में 'आंशिक लोकतंत्र' के टैग के साथ भारत का दुनिया में बज रहा डंका, अब नहीं रहा वैश्विक लोकतांत्रिक अगुआ

Janjwar Desk
13 March 2021 1:27 PM GMT
मोदी राज में आंशिक लोकतंत्र के टैग के साथ भारत का दुनिया में बज रहा डंका, अब नहीं रहा वैश्विक लोकतांत्रिक अगुआ
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फ्रीडम हाउस की इस रिपोर्ट से एक महीना पहले दो फरवरी को द इकोनॉमिस्ट इंटेलीजेंस यूनिट ने अपना सालाना डेमोक्रेसी इंडेक्स जारी किया था। उसमें भी भारत दो स्थान नीचे गिर कर 53वें स्थान पर पहुंच गया है।

वरिष्ठ पत्रकार दिनकर कुमार का विश्लेषण

अमेरिकी संस्था फ्रीडम हाउस ने लोकतंत्र और आजादी को लेकर जारी की गई अपनी ताजा रैंकिंग में भारत का स्थान नीचे कर दिया है। फ्रीडम हाउस ने भारत को फ्री यानी आजाद मुल्क की श्रेणी से हटा कर पार्टली फ्री यानी आंशिक आजादी वाले देशों की श्रेणी में डाल दिया है। इसने 211 देशों की रैंकिंग की है, जिसमें भारत की रैंकिंग 83 से घटा कर 88 कर दी गई है और एक सौ में से भारत को 67 अंक मिले हैं। पिछली बार भारत को 71 अंक मिले थे।

फ्रीडम हाउस की इस रिपोर्ट से एक महीना पहले दो फरवरी को द इकोनॉमिस्ट इंटेलीजेंस यूनिट ने अपना सालाना डेमोक्रेसी इंडेक्स जारी किया था। उसमें भी भारत दो स्थान नीचे गिर कर 53वें स्थान पर पहुंच गया है। भारत को 10 में से 6.61 अंक मिले। पिछले साल 6.69 फीसदी अंक मिले थे और 2014 में जब भारत की स्थिति सबसे अच्छी थी तब उसे 7.92 अंक मिले थे। यानी 2014 के बाद से भारत में लोकतंत्र की स्थिति क्रमशः बिगड़ती जा रही है। द इकोनॉमिस्ट इंटेलीजेंस यूनिट ने दुनिया के देशों को चार श्रेणी में बांटा है। उसने 167 देशों की सूची बनाई है, जिसमें 23 देशों को पूर्ण लोकतंत्र का दर्जा दिया है और 53 देशों को 'फ्लॉड डेमोक्रेसी' यानी खामियों वाले लोकतंत्र की श्रेणी में रखा है। भारत को इसी श्रेणी में जगह मिली है।

'दुनिया में स्वतंत्रता 2021-लोकतंत्र के तहत घेराबंदी' शीर्षक के तहत हाल ही में किए गए एक अध्ययन में कहा गया है कि भारत वैश्विक लोकतांत्रिक अगुआ के रूप में कार्य करने की क्षमता खो चुका है। इसने कहा कि भारत का "स्वतंत्र राष्ट्रों के शीर्ष रैंक से पिछड़ने का वैश्विक लोकतांत्रिक मूल्यों पर विशेष रूप से विनाशकारी प्रभाव हो सकता है।"

भारत को फ्रीडम हाउस के 2018, 2019 और 2020 सर्वेक्षणों में 'स्वतंत्र' के रूप में स्थान दिया गया था, हालांकि उस समय इसके स्कोर 77 से घटकर 71 हो गए थे। 'सबसे हालिया सर्वेक्षण रिपोर्ट' में भारत की 100 में से 67 की रैंकिंग है। भारत की स्थिति 'स्वतंत्र' से 'आंशिक रूप से स्वतंत्र' तक पहुंच गई है। इस रैंकिंग ने फर्जी राष्ट्रवाद और उग्र हिन्दुत्व पर आधारित मोदी सरकार और उसके भागीदारों के बढ़ते अत्याचार और अनुचित दृष्टिकोणों को निर्देशित किया है। इसने मुस्लिम आबादी को प्रताड़ित किया है और मीडिया, विद्वानों, नागरिक संगठनों और असहमत समूहों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कार्रवाई की है।


यद्यपि भारत एक बहु-पक्षीय लोकतंत्र है, लेकिन मोदी सरकार ने दमनकारी नीतियों पर नियंत्रण बनाए रखा है और मुस्लिम अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा, और पत्रकारों, गैर-सरकारी संगठनों और अन्य सरकार के विरोधियों के उत्पीड़न में काफी वृद्धि हुई है। न्यायिक अखंडता भी तनावपूर्ण रही है; सर्वेक्षण रिपोर्ट में कहा गया है कि नई दिल्ली के दंगों के दौरान पुलिस द्वारा कोई कार्रवाई नहीं करने के लिए एक न्यायाधीश ने जब पुलिस को फटकार लगाई थी, तब उनका ट्रांसफर कर दिया गया था। हिंसा में 50 से अधिक लोग, मुख्य रूप से मुस्लिम, मारे गए थे।

इसने भारत को राष्ट्रीय, नस्लीय और धार्मिक अल्पसंख्यकों सहित जनसंख्या के विभिन्न समूहों की स्थिति पर एक महत्वपूर्ण समीक्षा प्रस्तुत की है, जिसमें पूर्ण मतदान के अधिकार और चुनावी अवसर जैसे विषय शामिल हैं। "विवादित क्षेत्रों को अक्सर अलग से मापा जाता है यदि वे कुछ शर्तों का पालन करते हैं, जिसमें ऐसे मापदंड शामिल हैं जो कि वर्ष-दर-वर्ष तुलनाओं को सक्षम करने के लिए उचित रूप से संगत हैं।" अध्ययन ने कहा।

चाहे फ्रीडम हाउस की रिपोर्ट हो या द इकोनॉमिस्ट इंटेलीजेंस यूनिट का इंडेक्स हो, दोनों में भारत के बारे में कई बातें एक जैसी कही गई हैं। दोनों ने कहा है कि भारत में लोकतंत्र नीचे गिरता जा रहा है और आम लोगों की आजादी पर हमले हो रहे हैं। नागरिकता संशोधन कानून से लेकर कोरोना वायरस को रोकने के लिए अपनाई गई रणनीति तक में ऐसी बारीकियों को एजेंसी ने पकड़ा है, जिनसे यह जाहिर हुआ है कि नागरिकों की आजादी को बाधित किया जा रहा है।

फ्रीडम हाउस ने अपनी रिपोर्ट में भारत के बारे में चिंता जताते हुए कहा है कि देश में बोलने की आजादी के मामले में भारत की रैंकिंग लगातार तीन साल से गिर रही है। उसने इंटरनेट की सेवा बंद करने, सरकार से असहमति की आवाजों को दबाने या उनकी साख बिगाड़ने के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म्स और सोशल मीडिया में लक्षित हमले करने और राजनेताओं द्वारा गलत या अधूरी सूचनाओं का व्यापक प्रसारण करने के तीन खतरों का जिक्र किया है।


अब डिजिटल प्लेटफॉर्म्स और सोशल मीडिया को नियंत्रित करने का कानून लाया जा रहा है। सरकार ने इसका मसौदा जारी कर दिया है और अगले तीन महीने में इसे कानून बना दिया जाएगा। इस कानून के लागू होने के बाद ओवर द टॉप यानी ओटीटी प्लेटफॉर्म्स और संचार सेवा से जुड़ी इंटरमीडियरी कंपनियों जैसे कंटेंट प्रोवाइडर्स, इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स आदि को कई तरह से पाबंद किया जाएगा। डिजिटल अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था द इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन ने इस कानून के मसौदे को 'अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक' बताया है।

हालांकि सर्वेक्षण रिपोर्ट ने राजनीतिक दलों के अस्पष्ट फंड के बारे में चिंता व्यक्त की- विशेष रूप से चुनावी बांड के माध्यम से जो दाताओं को उनकी पहचान को अस्पष्ट करने में सक्षम बनाते हैं। फ्रीडम हाउस ने कहा, "कुछ राजनीतिक नेताओं ने अपने समर्थकों को उकसाते हुए सांप्रदायिक संघर्ष को भड़काने की कोशिश की है।"

दूसरी तरफ वी-डेम इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट में कहा गया है कि 1.37 बिलियन नागरिकों वाला दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत 'इलेक्टोरल ऑटोक्रेसी' में बदल गया है। भारत को पहले 'इलेक्टोरल डेमोक्रेसी' की श्रेणी में रखा गया था। सेंसरशिप के संदर्भ में रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत अब उतना ही 'इलेक्टोरल ऑटोक्रेसी' है जितना कि पाकिस्तान और वो भी उसके पड़ोसी बांग्लादेश और नेपाल दोनों से भी बदतर हालत में है। इसमें यह भी कहा गया है कि बीजेपी के सत्ता में आने और नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद सरकार आलोचकों को कानून की मदद से मौन कर रही है।

रिपोर्ट में कहा गया है "सामान्य तौर पर भारत में पीएम मोदी की अगुवाई वाली सरकार ने आलोचकों पर राजद्रोह, मानहानि और आतंकवाद विरोधी कानून का इस्तेमाल किया है। बीजेपी के सत्ता संभालने के बाद 7,000 से अधिक लोगों पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया है। इसमें से अधिकांश आरोपी सत्तारूढ़ पार्टी के आलोचक हैं।" जिस वजह से भारत लिबरल डेमोक्रेसी इंडेक्स (एलडीआई) पैमाने पर नीचे आया है।

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