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Why Bundelkhand youth commit suicide: बुंदेलखंड के युवा-किसान क्यों जान देने पर उतारू है, ख़ुदकुशी के आंकड़े बन रहे चिंता का कारण
झांसी से लक्ष्मी नारायण शर्मा की रिपोर्ट
Why Bundelkhand youth commit suicide: झांसी जिले के राजापुर गांव के 45 साल के संतोष बरार ने 09 मार्च को फांसी लगाकर ख़ुदकुशी कर ली। संतोष पांच बीघे का काश्तकार था और किसानी व चौकीदारी कर अपने परिवार का पालन-पोषण करता था। संतोष पर बूढी मां, पत्नी, दो बच्चों और चार बच्चियों को पालने की जिम्मेदारी थी। इनमें से दो बच्चियों की शादी की भी वह तैयारी कर रहा था। एक ओर उस पर बैंक का कर्ज था तो दूसरी ओर साहूकारों से भी उसने कर्ज ले रखा था और उसे अदा करने का उस पर दवाब था।
इससे पहले झांसी जिले के पड़रा गांव में 20 फरवरी को 41 साल के कृपाराम ने फांसी लगाकर अपनी जान दे दी थी। कृपाराम पर पत्नी और दो बच्चों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी थी। कृपा राम पर सरकारी बैंक का और साहूकारों का कर्ज था। साथ ही वह अपनी बेटी की शादी के लिए काफी समय से प्रयास में जुटा हुआ था और शादी का खर्च जोड़ने में भी उसे काफी मशक्कत करनी पड़ रही थी।
ये दो घटनाएं तो बानगी भर हैं। बुन्देलखण्ड के सभी हिस्सों से खुदकुशी की ऐसी घटनाएं सामने आ रही हैं।बुंदेलखंड में ख़ुदकुशी की घटनाओं में एक बार फिर से चिंताजनक रूप से बढ़ोत्तरी दिखाई दे रही है। एक अनुमान के मुताबिक़ सिर्फ झांसी और ललितपुर जिले में पिछले 71 दिनों में 76 लोगों ने आत्महत्या कर ली। इनमें से 61 लोग झांसी के हैं और 15 ललितपुर के। साथ ही इस दौरान 500 से अधिक लोगों ने ख़ुदकुशी करने की कोशिश की। ख़ुदकुशी करने वालों में किसान, बेरोजगार, विद्यार्थी और महिलाएं सहित अलग-अलग वर्गों के लोग शामिल हैं। इनमें सबसे अधिक किसान और युवा हैं।
किसान कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष शिव नारायण सिंह परिहार कहते हैं कि बुंदेलखंड में खुदकुशी का सबसे बड़ा कारण है यह है कि यहां लोगों की आमदनी बेहद कम है और उसमें वह रोजमर्रा के खर्चे भी वहन नहीं कर पाता। खेती में उपज ठीकठाक होती नहीं है। यहां प्राकृतिक आपदाएं लगातार आती हैं और फसलें ख़राब कर देती हैं। किसानों को योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता। उदाहरण के तौर पर देखें तो खरीफ सीजन में नष्ट हुयी उर्द, तिल, मूंग का अभी लगभग आधे से अधिक किसानों का मुआवजा तक नहीं मिला है। फसल बीमा का प्रीमियम ले लेते हैं लेकिन फसल बर्बाद होने पर क्लेम नहीं मिलता। इस क्षेत्र में खेती ही रोजगार का बड़ा जरिया है लेकिन उससे आमदनी न के बराबर है। परिवार चलाने के लिए खर्चा तो बराबर होता रहता है। यहां शादी के लिए लोग जमीन बेचते हैं या कर्ज लेते हैं। कर्ज नहीं चुका पाने में नाकाम होने पर वे ख़ुदकुशी की ओर कदम बढ़ाते हैं।
सामाजिक कार्यकर्ता डॉ संजय सिंह सिंह कहते हैं कि इस क्षेत्र में दो बड़े कारण हैं जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से ख़ुदकुशी की अधिकांश घटनाओं के पीछे दिखाई देते हैं। पहला कारण है कृषि से जुडी समस्याएं, मसलन - सिंचाई के साधनों का संकट, खेतों में जानवरों का घुस जाना, अतिवृष्टि या ओलावृष्टि से फसल बर्बाद हो जाना, खेती के लिए कर्ज लेना, फसल का उचित दाम नहीं मिलना और खेती से जुडी इस तरह की अन्य समस्याएं। दूसरा बड़ा कारण है - बेरोजगारी। बुंदेलखंड क्षेत्र में कृषि में कई तरह के संकट हैं और वैकल्पिक तौर पर रोजगार के साधनों की बेहद कमी है। इन कारणों से एक बड़ी आबादी में निराशा है और यह उन्हें ख़ुदकुशी जैसे नकारात्मक कदम उठाने को प्रेरित कर रही है।
संजय कहते हैं कि कोरोना काल में रोजगार का संकट बढ़ा है। बड़ी संख्या में लोगों की नौकरियां गई हैं। मनरेगा के तहत अब लोगों को काम मिलता नहीं है। खेती किसानी के लिए कर्ज लेने वाले लोग अवसाद में चले जा रहे हैं। ख़ुदकुशी करने वाले अधिकांश लोगों की उम्र पचास साल से कम है। सरकार अनाज बांट रही है और कृषकों को आर्थिक मदद भी दे रही है लेकिन रोजगार से जुड़े संगठित व्यवस्थाओं को ठीक करने की जरूरत है। लोगों की परेशानी को सुनने की जरूरत है। लोग जीवन की उम्मीद तोड़ दे रहे हैं तभी वे ख़ुदकुशी की ओर बढ़ रहे हैं। बुंदेलखंड में कर्ज, पलायन और खेती का संकट बरकरार है। सबसे बड़ी समस्या रोजगार के साधन की कमी है।