- Home
- /
- जनज्वार विशेष
- /
- लॉकडाउन के कारण...
लॉकडाउन के कारण कामगारों पर टूटा मुसीबतों का पहाड़, नहीं मिली सरकार से सहायता
हिमांशु सिंह की रिपोर्ट
देश कोरोना महामारी से जूझ रहा है। लॉकडाउन के कारण देश की आर्थिक गतिविधि पूरी तरीके से ठप्प पड़ गई है जिससे देश का हर एक वर्ग बुरी तरह से प्रभावित हुआ। लॉकडाउन में सबसे ज्यादा देश का किसान, मजदूर व कामगार प्रभावित हुए हैं। फिर महामारी के कारण संगठित और असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे कई लोगों की नौकरियां तक छिन गईं। हालांकि संगठित क्षेत्र की अपेक्षा असंगठित क्षेत्र में कार्य कर रहे लोग लॉकडाउन से ज्यादा प्रभावित हुए हैं। कामगारों के सामने जीवन-यापन का संकट गहरा गया है।
हमने लॉकडाउन से प्रभावित छत्तीसगढ़ के कामगारों से जानने का प्रयास किया कि इस मुसीबत की घड़ी में सरकार की ओर से लॉकडाउन के दौरान उनको कितनी मदद मिली है।
छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिला के रसमड़ा गांव में रहने वाले कामगार महेश सिन्हा बताते हैं कि वे प्लांट में सेंटिंग मिस्त्री का काम करते हैं। सेटिंग मिस्त्री का काम करके रोजाना 300 रुपए का कमा लेते हैं। महेश ने बताया कि लॉकडाउन के कारण 3 से 4 माह तक प्लांट बंद था। लॉकडाउन के कारण काम बंद होने से आय का साधन कुछ भी नहीं था जिससे उनको आर्थिक समस्याओं से जूझना पड़ा है। उन्होंने बताया कि उनके परिवार में 5 लोग हैं और 5 लोगों के बीच घर में वे अकेले कमाने वाले हैं जिससे उनको आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा।
महेश ने आगे बताया कि लॉकडाउन से पहले उनके बच्चे नजदीक के प्राइवेट स्कूल में शिक्षा ले रहे थे लेकिन अब आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि अब वे अपने 2 बच्चों को प्राइवेट स्कूल से निकालकर सरकारी स्कूल में दाखिला दिलाने वाले हैं।
महेश आगे बताते हैं कि उनके तीन बच्चे हैं। तीन बच्चों में 1 लड़की व 2 लड़के हैं लेकिन उनकी बेटी जन्म से ही विकलांग है। विकलांग होने के साथ ही उनकी बेटी दोहरी मुसीबत झेल रहीं। उन्होंने बताया कि उनकी बेटी को मिर्गी के दौरे आते हैं जिससे बेटी के इलाज पर दवाइयों में हर माह 1000 रुपए खर्च होते हैं। लॉकडाउन के कारण महेश का काम बंद होने से बेटी की दवाइयों के लिए पैसे नहीं होने पर उन्होंने आस पास के लोगों से चंदा के रूप में सहायता लेकर दवाइयां खरीदी हैं।
आगे बातचीत में महेश ने बताया कि उन्होंने भविष्य के लिए प्लांट में पीएफ का पैसा जमा कर रखा था। लॉकडाउन के कारण उनके द्वारा बचाई गई सेविंग्स से अपने परिवार का गुजर बसर करने के लिए सहारा लेना पड़ा। उन्होंने यह भी बताया कि स्थिति इतनी खराब हो गई थी कि केवल बच्चों को खाना खिलाकर उनको और उनकी पत्नी को भूखे पेट भी सोना पड़ा है।
महेश मायूस होकर आगे बताते हैं कि लॉकडाउन ने उनकी कमर तोड़कर रख दी है जिससे जीवन-यापन करने उन्हें व उनके परिवार को जद्दोजहद करनी पड़ रही है। आगे वे कहते हैं कि सरकार के द्वारा लॉकडाउन में सबको राशन व पैसा देकर मदद की गई लेकिन हमारी किसी भी तरह की सहायता नहीं की गई। उनका कहना है कि उन्हें राज्य सरकार से मदद की आस थी, लेकिन सरकार ने हमारी 1 पैसे की मदद नहीं की। जिससे वे सरकार से काफी नाखुश भी दिखे।
इसी कड़ी में बातचीत के दौरान छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के रहने वाले कामगार उमेश कुमार बताते हैं कि वे स्टील प्लांट में काम करते हैं। उन्होंने बताया कि लॉकडाउन से पहले सब कुछ ठीक चल रहा था लेकिन लॉकडाउन हुआ तबसे मुसीबत पीछा छोड़ ही नहीं रही है। उमेश के परिवार में 6 सदस्य हैं और परिवार में कमाने वाले सिर्फ वही हैं जिससे परिवार के सभी सदस्यों की जिम्मेदारी उन्हीं के कंधे पर है। उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के कारण 3 से 4 महीने तक काम बंद था जिससे उनके सामने सबसे बड़ी समस्या पैसों की थी। लॉकडाउन के दौरान परिवार का भरण पोषण करने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। उमेश ने यह भी बताया कि उनके सामने एक समय तो ऐसी स्थिति भी थी कि दो वक्त के भोजन के लिए भी मोहताज होना पड़ा।
आगे उमेश बातचीत में बताते हैं कि लॉकडाउन के दौरान उनके पास काम नहीं होने से गांव के आसपास ही किसी के घर में 1-2 दिन जाकर छोटा मोटा काम करके किसी तरह अपने परिवार का गुजर-बसर किया।
उन्होंने यह भी बताया कि उनको राज्य सरकार की ओर से किसी भी प्रकार की आर्थिक सहायता नहीं प्राप्त हुई है। इस मुसीबत के समय में उन्हें उम्मीद थी कि राज्य की सरकार उनकी मदद करेगी लेकिन मदद नहीं मिलने से उमेश काफी दुखी व नाराज नजर आए। उमेश का कहना है कि लॉकडाउन के कारण उनके साथी कामगारों पर भी मुसीबतों का पहाड़ टूटा है। साथ ही उनके आस-पास में मौजूद किसी एक भी साथी कामगारों को अब तक किसी भी प्रकार की मदद नहीं मिली है।
आगे बातचीत में छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के निवासी कामगार धनेश्वर बताते हैं कि वे स्टील प्लांट में काम करते हैं। लॉकडाउन के दौरान मार्च से जुलाई तक 5 महीने प्लांट बंद था। जिससे लॉकडाउन के कारण उनके सामने सबसे बड़ी समस्या पैसे को लेकर थी। जिससे उन्हें व उनके परिवार के सदस्यों को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा।
धनेश्वर बताते हैं कि उनके परिवार में 10 सदस्य हैं और 10 सदस्यों के बीच धनेश्वर व उनके बड़े भाई ही कमाने वाले हैं। जिससे लॉकडाउन के कारण दोनों भाइयों का रोजगार खत्म हो गया। रोजगार छिन जाने से परिवार चलाना मुश्किल हो गया था। भविष्य के लिए बचाकर रखी जमापूंजी भी खर्च हो गई।
धनेश्वर ने आगे बताया कि उनकी व उनके भाई की समस्या यहीं खत्म नहीं हुई है। समस्या का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि उनके व उनके भाई के 2-2 बच्चे हैं। बच्चे नजदीक के प्राइवेट स्कूल में शिक्षा ले रहे हैं। जिससे स्कूल की फीस देना उनके व उनके भाई के सामने सबसे बड़ी चुनौती है।
आगे उन्होंने बताया कि एक स्थिति ऐसी भी आई कि केवल नमक खाकर ही गुजारा करना पड़ा है। काम बंद होने से घर चलाने के लिए कर्ज तक लेना पड़ गया है। जिससे उस कर्ज को चुकाने का भी उन पर दबाव है। उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के समय उन्हें व उनके परिवार को किसी भी तरह की सरकार की ओर से सहायता नहीं मिली है। उनको उम्मीद थी कि इस मुश्किल घड़ी में सरकार की ओर से कुछ ना कुछ मदद मिलेगी। लेकिन उनकी उम्मीदों पर पानी फिर गया।
सरकार का दावा झूठा
लॉकडाउन ने देश के हर वर्ग को आर्थिक रूप से पंगु बना दिया है, लॉकडाउन से सबसे ज्यादा प्रभावित कामगार हुए हैं। कामगारों से बात करने पर पता चला कि उनके सामने सबसे बड़ी समस्या पैसों की थी। हालांकि इस कठिन परिस्थिति में कामगारों को मदद देने का ऐलान राज्य सरकार व केंद्र सरकार के द्वारा किया गया था, लेकिन दुर्ग जिले के कामगारों से बात करने के बाद पता चला कि मदद देने के सारे वादे झूठे हैं।
हालांकि कामगारों का कहना है कि आर्थिक रुप से असहाय लोगों के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकार को सहायता के लिए मुख्यमंत्री राहत कोष व प्रधानमंत्री राहत कोष में कई करोड़ रुपए मिले हैं। कामगारों के मन में सबसे बड़ा सवाल यह खड़ा हो रहा है कि जब सरकार के द्वारा राहत कोष में प्राप्त हुई राशि से कामगारों की सहायता नहीं की गई तो पैसे खर्च कहां किए गए। कामगारों का मानना है कि सरकार लॉकडाउन लागू होने से लेकर अब तक उनकी मदद करने में असफल रही है जिससे कामगारों की आर्थिक स्थिति वेंटिलेटर पर नजर आ रही है।