बनारस के गांव में गंगा की बाढ़ से करोड़ों की सब्जी की फसल बर्बाद, किसानों की इतनी बड़ी तबाही के बाद भी कोई सरकारी सर्वे नहीं
अंकित सिंह की रिपोर्ट
Ground Report : वाराणसी शहर से सट्टा रमना गांव सेम की सब्जी के लिए जाना जाता है, लेकिन इस बार गंगा नदी में बाढ़ आने के बाद यहां करोड़ों रुपए की सब्जी पूरी तरह से बर्बाद हो चुकी है। रमना गांव के नैपुरा खुर्द इलाके में 700 से 800 बीघा में लगे सेम की फसल पूरी तरह से बाढ़ की चपेट में आ चुकी है, मगर अभी तक बर्बाद फसलों की सर्वे के लिए कोई सरकारी अधिकारी यहां नहीं पहुंचा है, जबकि रमना, नरोत्तमपुर इलाके में बाढ़ से बर्बाद सब्जी की फसल से जुड़े सर्वे का कार्य शुरू हो चुका है। बड़ी बात यह है कि इस बार बाढ़ के पानी से जो तबाही मची है, उसका एक बड़ा कारण गंगा का जहरीला पानी भी है।
रमना गांव के रहने वाले रामधारी सिंह ने नैपुरा खुर्द क्षेत्र में 30 हजार रुपए पर ढाई बीघा जमीन किराये पर ली हुयी थी, मगर पूरी फसल बर्बाद होने से इन्हें लगभग 80 से 90 हजार रुपए का घाटा हो चुका है। रामधारी सिंह कहते हैं, बाढ़ तो प्रतिवर्ष आती ही है, लेकिन इस वर्ष बाढ़ का पानी ज्यादा प्रदूषित होने से फसल पूरी तरह से सूख गयी। 2013 में भी बाढ़ आयी थी, मगर उस समय आधा फसल बच गयी। इस बार तो पूरी फसल तबाह हो गयी है, कसम खाने के लिए भी खेत में कुछ नहीं बचा।
अन्य किसान भी कहते हैं, इस साल बाढ़ का पानी जिन खेतों में गया है, उसकी फसल पूरी तरह से बर्बाद हो चुकी है। जिन्होंने कर्ज लेकर फसल पर पैसा लगाया है, उनकी तो आत्महत्या करने की नौबत आ चुकी है। सब्जी की फसल बर्बाद होने से कर्ज तो ज्यादा बढ़ ही गया है, रोजी-रोटी के भी लाले पड़ जायेंगे, क्योंकि इनकी आजीविका का बड़ा साधन सब्जी ही थी। रमना क्षेत्र के नैपुरा खुर्द में चकबंदी भी नहीं हुई है, जिसके चलते सरकारी अधिकारी यहां सर्वे करने भी नहीं आते है।
किसान रामधारी सिंह बताते हैं, गंगा नदी के किनारे एक छोटा सा बांध बनाया गया है, अगर उसकी ऊंचाई तीन से चार फीट और ऊंची हो जाए तो हमारी सब्जी का नुकसान कम होगा। केवल रमना के नैपुरा खुर्द में 700 से 800 बीघे सब्जी की खेती बाढ़ के चलते एमदम तबाह हो चुकी है। लाखों रुपयों की फसल बर्बाद होने के बावजूद सर्वे करने के लिए अभी तक कोई अधिकारी यहां नहीं आया है।
रमना के नैपुरा खुर्द इलाके में लगभग 800 बीघा के आसपास सेम एवं अन्य फसल बर्बाद हुई है। वहीं गंगा के तवर्तीय क्षेत्रों के 300 से 400 किसान पूर्ण या आंशिक रूप से इस त्रासदी से प्रभावित हुए हैं।। यानी कई करोड़ रुपये की फसल बर्बाद हो चुकी है। यहीं के स्थानीय किसान रामधारी सिंह बताते हैं, एक बीघा में लगभग 80 हजार रुपये की कमाई हो जाया करती थी, लेकिन बाढ़ के प्रकोप से सब बर्बाद हो गया। वहीं प्रति बीघा 8 से 10 कुंतल सेम निकलता है और एक कुन्तल सेम 4000 से 5000 रुपए प्रति कुन्तल बाजार में बिकता है। सिर्फ सेम की फसल का ही आंकलन किया जाये तो 3 करोड़ ये ज्यादा की बर्बादी हुई है, अन्य फसलों को मिलाकर यह नुकसान और भी ज्यादा है।
रमना गांव के ही रहने वाले युवा किसान अजय पटेल बाढ़ के दौरान फसल बर्बाद होने के बाद एक फिर अपने ढाई बीघे जमीन में सेम की नर्सरी लगा रहे हैं। अजय कहते हैं, पहली बार 70 से 80 हजार रुपए खर्च करने के बाद जब फसल का लाभ लेने का समय आया तो बाढ़ पूरी फसल को लील गयी। अब फिर से प्रयास किया जा रहा है।
अजय आगे बताते हैं, नैपुरा खुर्द इलाके में सर्वे के लिए कोई अधिकारी नहीं पहुंचा है। जिन इलाकों में सर्वे होता भी है, वहां 300 से 500 रुपए मुआवजा मिल जाता है। आखिर इतने मुआवजे का क्या मतलब है। इस इलाके में प्रतिवर्ष बाढ़ आती है और लाखों रूपए की सेम की फसल बर्बाद हो जाती है। पहले बाढ़ आती थी तो आधी फसल बच जाती थी, लेकिन इस वर्ष पूरी फसल ही खत्म हो गई।
इसी कड़ी में हमारी मुलाकात आशीष पटेल से हुई, जिन्होंने 3 बीघा खेत 16 हजार रुपए प्रति बीघा किराया देकर लिये हुए हैं, लेकिन इनके खेत में अब केवल फसल के अवशेष बचे हुए हैं। वह कहते हैं, अब तक 1.25 लाख रुपये का नुकसान हो चुका है। अब फिर से खीरा और अन्य सब्जी की नर्सरी लगाकर कुछ घाटे को कम करने का प्रयास कर रहा हूं, अगर ऐसा ही हाल रहा तो खेती छोड़कर मजदूरी करनी पड़ेगी।
बाढ़ से प्रभावित सभी इलाकों का सर्वे हो रहा है, लेकिन नैपुरा खुर्द इलाके की जमीन से सरकार को पता नहीं क्या दिक्कत है, जो यहां सर्वे नहीं किया जाता है। बाढ़ से प्रतिवर्ष फसल बर्बाद होती है, लेकिन इस वर्ष तो पूरी तरह फसल ही खत्म हो गई। गंगा नदी के पास मिट्टी का एक बांध बनाया गया है, अगर सरकार उसकी ऊंचाई बढ़ा देती तो किसानों का कुछ नुकसान कम हो सकता है, हम लोगों के लिए रोजी रोटी का इतना भयानक संकट पैदा नहीं हुआ होता।इस हाल में पहुंच चुकी है सब्जियों की खेती
बाढ़ के दौरान गंगा के पानी में प्रदूषण को लेकर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के महामना मालवीय रिसर्च सेंटर और गंगा रीवर डेवलपमेंट एंड वॉटर रिसोर्स मैनेजमेंट के चेयरमैन प्रोफेसर बीडी त्रिपाठी कहते हैं, 'गंगा नदी में जब बाढ़ आती है तो उस दौरान मिट्टी भी साथ आती है और लोगों को लगता है कि यह ज्यादा प्रदूषित है। जबकि इसकी तुलना में गर्मियों में गंगा का पानी कुछ प्रदूषित रहता है। जहां तक किसानों का प्रदूषित पानी के कारण फसल बर्बाद होने की बात करना है, तो ज्यादा दिन तक पानी सब्जी की फसल में रुक जायेगा, फसल तो निश्चित रूप से बर्बाद होगी ही।
वैसे प्रोफेसर बीडी त्रिपाठी ने इस बात को भी स्वीकार किया कि अभी बाढ़ के दौरान हमने पानी की जांच नहीं की थी, लेकिन उनका यह भी कहना कि गंगा का पानी ज्यादा प्रदूषित था, वह पूरी तरह से गलत है। जिस खेत मे ज्यादा पानी रुक जाएगा और बाढ़ के दौरान जो कुछ कचरा आता है, उससे फसल बर्बाद हो जाती है। हर फसल की अलग अलग क्षमता होता है, कोई ज्यादा पानी सहन कर लेती है तो कोई फसल मामूली पानी भी नहीं झेल पाती।
एक तरफ सरकार ने सर्वे के माध्यम से सूखे का आकलन करने का आदेश जारी कर दिया है तो दूसरी ओर बाढ़ की चपेट में आने से करोड़ों रुपए की बर्बाद हुई। अब इतनी तबाही के बाद रमना के नैपुरा खुर्द में आने वाली जमीनों का सर्वे की मांग किसान करने लगे हैं।
गंगा के तटवर्तीय इलाके में बांध बनाने को लेकर स्थानीय विधायक डॉ. सुनील पटेल ने प्रदेश के जल शक्ति एवं बाढ़ नियंत्रण मंत्री स्वतंत्र देव सिंह को पत्र भी दिया चुका है। वहीं जुलाई महीने में इसको लेकर विधायक के द्वारा पत्र दिया गया था, लेकिन उस पर अभी तक से कार्य नहीं हो पाया है। अगर इस पर कार्य हो गया होता तो शायद किसानों को इतना नुकसान नहीं हुआ होता।