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Ground Report : गुजरात के कच्छ में स्ट्रीट वेंडर मर रहे भूखों, आत्मदाह और सामूहिक मुंडन को मजबूर

Janjwar Desk
16 May 2021 8:15 AM GMT
Ground Report : गुजरात के कच्छ में स्ट्रीट वेंडर मर रहे भूखों, आत्मदाह और सामूहिक मुंडन को मजबूर
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अप्रैल से जारी कोरोना लॉकडाउन के बाद स्ट्रीट वेंडर का रोजगार हो गया है चौपट, रोज कमाकर खाने वालों के परिवार गंभीर आर्थिक संकट में...

कच्छ से दत्तेश भावसार की रिपोर्ट

जनज्वार। गुजरात सरकार बिना लॉकडाउन के कोरोना से निपटने की बात कर रही है, पर जमीनी हकीकत सरकार की बातों से कोसों दूर दिखाई देती है। पिछले माह अप्रैल में गुजरात के कई शहरों में लॉकडाउन किया गया था, लेकिन यह विधायकों, सांसदों और प्रशासनिक दबाव में किया गया था। तब पांच दिन के लॉकडाउन के बाद सारे रोजगार चालू करने की बात कहकर जबरन लॉकडाउन करवाया गया था, लेकिन कोरोना के भयावह होते हालतों के बाद आधा-अधूरा लॉकडाउन कई बार बढ़ाया गया, जिससे रोज कमाकर खाने वाले मजदूरों और खासकर स्ट्रीट वेंडर्स के हालत बद से बदतर हो गए हैं।

अपने बुरे आर्थिक हालातों पर शासन-प्रशासन को स्ट्रीट वेंडर्स के संगठन कई बार ज्ञापन सौंप चुके हैं, मगर कोई राहत न मिलने पर तंग आकर स्ट्रीट वेंडरों ने सामूहिक मुंडन करवा के अपना विरोध प्रदर्शन जताया।

बावजूद इसके शासन प्रशासन के कान में जूं नहीं रेंगी। जब कहीं कोई सुनवाई होती नहीं दिखी तो स्ट्रीट वेंडर संगठन के संयोजक मोहम्मद लाखा ने आत्मदाह की कोशिश की। हालांकि समय पर वहां पुलिस पहुंची गयी इसलिए वो बच गये, मगर हालात बताते हैं कि डबल इंजन की सरकार होने के बाबजूद आम आवाम के लिए सत्तासीन नाकारा साबित हो रहे हैं।

जनज्वार से हुई बातचीत में स्ट्रीट वेंडर एसोसिएशन के संयोजक मोहम्मद लाखा बताते हैं, कोविड के चलते उनके संगठन ने सरकार की गुजारिश पर स्वयंभू लॉकडाउन किया था, लेकिन सब्जी की रेहड़ी वालों के अलावा सारे रेहड़ी-पटरी वाले अप्रैल माह से बेरोजगार बैठे हैं। खाने-पीने के धंधे से जुड़े होटल वालो को पार्सल की सुविधा देने की छूट है, पर यह छूट स्ट्रीट वेंडरों के नहीं दी जा रही।

सिर्फ भुज शहर में ही लगभग 2200 के करीब स्ट्रीट वेंडर्स अप्रेल के बाद से पूरी तरह बेरोजगार बैठे हैं। 2200 धंधे वाले बेरोजगार हैं। मतलब उनके परिवारों का हिसाब लगाएं तो लगभग 15 से 20 हजार लोगों की रोजी रोटी इससे सीधे प्रभावित हुयी है। अगर सरकार होटलों को पार्सल की सुविधा दे रही है तो स्ट्रीट वेंडर को भी मिलनी चाहिए या फिर हर महीने न्यूनतम 5 हजार की धनराशि उन्हें जीवन यापन के लिए दी जाये, जब तक कि स्थितियां ठीक नहीं होतीं।

मोहम्मद लाखा कहते हैं, उनकी तरफ से नगर पंचायत जिला प्रशासन को अनेक बार ज्ञापन देकर इस तरह की मांग उठायी गयी है, मगर कोई जवाब न मिलने पर पहले संगठन के लोगों ने सामूहिक मुंडन करवाया, फिर भी प्रशासन की नींद न खुलने पर अंत में उन्हें आत्मदाह जैसे गंभीर कदम उठाने पड़ रहे हैं।

मजबूरन मुंडन करवाने वाले रेहड़ी पटरी वाले कहते हैं, 'मुंडन क्या यही हालत रही तो हम परिवार के साथ आत्महत्या करेंगे। कोरोना तो हमें बाद में मारेगा, भूख से हम और हमारे परिवार पहले खत्म हो जायेंगे। दाने-दाने को मोहताज हो गये हैं हम लोग। अभी भी हमें कोई मदद नहीं मिली तो पता नहीं कैसे जियेंगे हम।'

केंद्र और राज्य दोनों जगह भाजपा की सरकार यानी डबल इंजन की सरकार होने के बावजूद अंतिम पायदान के लोगों को जब अपनी रोजी रोटी के लिए ऐसे कदम उठाने पड़ रहे हैं तो इससे साफ हो जाता है कि गुजरात मॉडल कितना कारगर है और गुजरात में आम जनता किस हाल में जी रही होगी। यह तो सिर्फ एक शहर का आंकड़ा है, सारा गुजरात लगभग ऐसी ही स्थितियों से जूझ रहा है।

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