ग्राउंड रिपोर्ट : बदहाल हुआ कानपुर का 6 दशक पुराना साइकिल बाजार, व्यापारी बोले कहीं का नहीं छोड़ा मोदी सरकार ने
मनीष दुबे की रिपोर्ट
कानपुर, जनज्वार। उत्तर प्रदेश के कानपुर में लाल इमली चौराहे पर बनी साइकिल मार्केट की हालत लॉकडाउन के बाद बेहद खराब हो चुकी है। लगभग आधा किलोमीटर के दायरे में फैली इस मार्केट में 100 से अधिक साइकिल की दुकाने हैं। शहर का 65 वर्ष पुराना यह बाजार लॉकडाउन लगने के बाद इस तरह धड़ाम हुआ कि फिर दुबारा उबर न सका।
कभी हजारों की तादाद में यहां उमड़ने वाली भीड़ चीनी कोरोना महामारी के बाद बाजारों से गायब हो गई है। साइकिल बाजार को चला रहे मालिक—मजदूर कहते हैं, अब यह बाजार सिर्फ कागजों में सिमट गया है। काम धाम है नहीं, दिनभर हम लोग सिर्फ मक्खियां मारकर काम चला रहे हैं। इस बाजार के दुकानदार और दुकान मालिक पूरी तरह से धंधा मंदा होने से आजिज आ चुके हैं। इसके अलावा उनके पास कोई काम भी जो नहीं है।
यहां की सबसे पुरानी साइकिल दुकान के मालिक इंद्रजीत शर्मा बताते हैं, इस मार्केट की कभी एक शान हुआ करती थी। दूर-दराज के रहने वाले लोग यहां की चकाचौंध और उचित कीमत देखकर माल खरीदने आते थे, लेकिन लॉकडाउन के बाद यह धंधा महज कागजों तक ही सिमट गया है। कस्टमर हैं नहीं, सेल खत्म हो चुकी है। ऐसे ने यह लोग पूरे-पूरे दिन खाली बैठकर सड़कें ताकते रहते हैं, की कहीं से कोई ग्राहक आ जाये तो कुछ आमदनी हो जाये।
एक साइकिल विक्रेता अख्तर हुसैन ने जनज्वार से बात करते हुए कहा, बस अल्ला ताला की मेहरबानी है, जो खा-कमा रहे हैं। इस कमाई से बाल बच्चे पल जाएं, वही बहुत है। अख्तर सरकार को भी कोसते हैं, कहते हैं इस सरकार ने हमें कहीं का नहीं छोड़ा। अल्ला ताला का भरोसा है, सरकार का तो बिकुल नहीं। सरकार ने तो हमे सड़क पर ला छोड़ा है। सरकार हमारे लिए ना कुछ कर रही है और न ही उम्मीद है कि कुछ करेगी भी।
साइकल कारीगर मोहम्मद नफीस कहते हैं, गनीमत है कि हमारे मालिक काम न होने के बाद भी हमें तनख्वाह दे रहे हैं। अगर ऐसा ना होता तो अब तक हम लोग सड़क पर आ गए होते। नफीस के तीन बच्चे हैं, क्या खाते, कैसे गुजारा करते। ऊपर वाले की रहमज है, जो आज खा रहे हैं कल का कोई भरोसा नहीं है। कल को काम पूरी तरह से ठप्प हो जाये तो हम लोगों को जीने के लाले भी पड़ सकते हैं।
यहां 50 साल पुरानी दुकान चला रहे परमजीत सरदार कहते हैं कि पूरा-पूरा दिन उनका मक्खियां मारते जाता है। बस नाम भर रह गया है इस मार्केट का, बशर्ते काम कुछ नहीं बचा है। एटलस साइकिल बन्द होने के बाद अन्य संस्थानों में सप्लाई का दबाव अधिक बढ़ गया है। हीरो, हरक्यूलिस आदि तमाम कंपनियां समय से आपूर्ति नहीं कर पा रही हैं, ऐसे में आर्डर कैंसल हो जाता है। मार्केट में माल की भी बेहद कमी हो चुकी है।
परमजीत हमसे एक बहुत अहम बात भी बताते हैं वह यह कि कानपुर में कहीं भी साइकिल चलाने के लिए ट्रैक नहीं बने हैं, जबकि लखनऊ या अन्य शहरों में साइकिलिंग के लिए ट्रैक हैं। सड़कों की हालत बेहद जर्जर है। सरकार पता नहीं क्यों ध्यान नहीं देती है। ऐसे में आदमी साइकिल लेकर चलाये तो कहां। परमजीत जनज्वार के माध्यम से सरकार को इस तरफ ध्यान देने की अपील भी करते हैं।
यहां के कई मजदूर बेहाल हैं। गनीमत है कि उनके मालिक उनका परिवार और उनकी दिक्कतों को ध्यान में रखकर कुछ दया दिखा रहे हैं। ये दया और दया से मिली तनख्वाह आगे भी चलती रहेगी, कहना मुश्किल है। फिर ऐसे में यह लाल इमली मील की तरह यह मार्केट भी बंदी की भेंट चढ़ सकती है।
साइकिल मार्केट के मजदूर-दुकानदार कहते हैं हम बेपटरी हो जायें तो किसी को क्या फर्क पड़ रहा है, आखिर ये बन्द होंगे तभी तो अडानी-अम्बानी जैसे धनपशु साइकिल व्यापार पर कब्जा कर अकूत पैसा बटोरेंगे।