एक तरफ किसान मांग रहे MSP, वहीं दूध का क्रय मूल्य नहीं बढ़ने से पशुपालन बन रहा घाटे का सौदा
(प्रतीकात्मक तस्वीर)
जनज्वार ब्यूरो, पटना। नए कृषि कानूनों के विरोध में किसान पिछले 40 दिनों से आंदोलन पर हैं। किसानों की मुख्य मांग अनाज का एमएसपी तय करने का है। बिहार में हालांकि कृषि उत्पादन सहयोग समितियों को बहुत पहले भंग किया जा चुका है, पर दुग्ध किसानों के लिए कम्फेड जैसे सहकारी संगठन बनाए गए हैं, जहां पशुपालक किसान दूध की बिक्री करते हैं। इन डेयरी में दूध की बिक्री के लिए न्यूनतम क्रय मूल्य तय किया गया है, पर क्रय मूल्य कम होने और समय-समय पर इसमें वृद्धि नहीं होने जैसे कारणों से दुग्ध कृषक अपने उत्पाद डेयरी में कम दे रहे हैं।
इस कारण से नालंदा डेयरी में जहां दुग्ध पावडर प्रोडक्शन प्लांट बंद करना पड़ा है, वहीं मुख्य सीजन में भी लगातार दूध की किल्लत बनी हुई है। आलम यह है कि तमाम सरकारी योजनाओं के बावजूद डेयरी उद्योग पनप नहीं पा रहा है और दुग्ध किसान इससे विमुख हो रहे हैं।
बिहार में दुग्ध कृषकों के लिए उत्पादन के आधार पर सीजन का बंटवारा किया गया है। इसे फ़्लश सीजन और थीन सीजन के नाम से बांटा गया है। फ़्लश सीजन उस अवधि को कहा जाता है, जब दूध की पर्याप्त उपलब्धता हो। फ्लश अवधि अगस्त से लेकर अप्रैल तक की अवधि को कहा जाता है। थीन सीजन यानि दूध की कमी वाले सीजन को मई से जुलाई तक का माना जाता है।
आश्चर्यजनक रूप से साल 2020 के नवंबर और दिसंबर महीने, जो फ़्लश सीजन के तहत आते हैं, उस समय से ही राज्य के डेयरियों में दूध की कमी होने लगी। यह कमी कोई थोड़ी-बहुत नहीं हुई, बल्कि थीन सीजन या उससे भी ज्यादा कमी हो गई।
स्थिति यह हुई कि क्रय मूल्य कम होने के कारण किसान डेयरी को दूध कम दे पा रहे हैं। ऐसे में बाजार की डिमांड को देखते हुए दूसरे प्रदेशों से दूध और उसके उत्पाद मंगाये जाने लगे हैं, जो राज्य के दुग्ध उत्पादन सहकारी समितियों और दुग्ध उत्पादक किसान दोनों के लिए चिंता का विषय है।
बिहार में राज्य सरकार दूध उत्पादक किसानों को दूध उत्पादन के प्रति जागरूक करने और इसे बढ़ावा देने के लिए डेयरी खोलने पर कई तरह के अनुदान दे रही है। बैंकों से ऋण की व्यवस्था भी करायी गई है। गव्य विकास के क्षेत्र में कई तरह के कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। इन सबके बावजूद फ़्लश सीजन में दूध की कमी होना कई सवाल खड़े कर रहा है।
स्थिति यह है कि फ़्लश सीजन में भी दूध की कमी के कारण बिहारशरीफ जिला स्थित नालंदा डेयरी का मिल्क पाउडर प्रोडक्शन प्लांट बंद करना पड़ा है और नालंदा डेयरी को मिल्क पाउडर से लेकर बटर और मिल्क दूसरे प्रदेशों के डेयरी से मंगाना पड़ रहा है।
दूध की कमी आखिर डेयरी में कम क्यों हुई यह तो पड़ताल का विषय है, लेकिन प्रारंभिक तौर पर जो बातें सामने आ रही हैं, उनमें सबसे बड़ी वजह यह निकलकर आ रही है कि दुग्ध उत्पादन से जुड़े किसानों को डेयरी में अपना प्रोडक्ट बेचने के बाद सही तरीके से रिटर्न नहीं मिल रहा है। यानी उत्पाद की लागत तो किसी तरह मिल रही है मुनाफा नहीं हो रहा है।
जिस कारण से दुग्ध उत्पादक किसान डेयरी से विमुख होकर या तो स्वयं दूध का उत्पाद बना रहै हैं या फिर सीधे बाजार को बेच रहे हैं या फिर पशुपालन से विमुख हो जा रहे हैं।
दुग्ध उत्पादक किसान और डेयरी उद्योग से जुड़े लोग बताते हैं कि अगर कम्फेड ने किसानों की समस्या को गंभीरता से नहीं लिया तो इसका असर बिहार की सभी डेयरियों पर पड़ेगा। कम्फेड बिहार की सबसे सशक्त सहकारिता इकाई मानी जाती है, लेकिन जिस तरह किसान इससे विमुख हो रहे हैं, यह चिंता का विषय है।
राज्य के किसानों को दुग्ध का उत्पादन लागत भी नहीं निकल पा रहा है। स्थिति यह है कि ढेर सारे किसान डेयरी से विमुख होकर मवेशी बेचने को मजबूर हो रहे हैं। यही वजह है कि पिछले काफी दिनों से किसान दूध का क्रय मूल्य बढ़ाने की मांग कर रहे है। हालांकि अब तक क्रय मूल्य बढाने का निर्णय नहीं हो सका है, लेकिन अगर दूध का क्रयमूल्य बढ़ाया नहीं गया तो दुग्ध आपूर्ति और ज्यादा प्रभावित होगी।
वैशाली-पाटलिपुत्र दुग्ध उत्पादक सहकारी संघ लिमिटेड के अध्यक्ष संजय कुमार ने तो पत्र लिखकर कहा है कि दूध व्यवसाय घाटे का सौदा बन गया है। राशन बैलेंसिंग कार्यक्रम (आरबीपी) के मानक के अनुरूप 1 लीटर दूध के उत्पादन में मार्च 2018 की तुलना में वर्ष 2019 में 2.60 रुपये की बढ़ोतरी हुई, जबमि मार्च 2020 में यह वृद्धि 4.85 रुपये की हुई।
उन्होंने कहा है कि इस गणना में गाय की लागत पूंजी का ह्रास और मानव बल की मजदूरी शामिल नहीं है। इस तरह गाय के दूध का न्यूनतम मूल्य 30 रुपया करने की जरूरत भी जतायी है। अक्टूबर 2020 का डाटा बताता है कि पटना संघ के माध्यम से रोजाना औसत दूध संग्रहण 1.92 लाख लीटर है जबकि बिक्री 2 लाख 80 हजार 500 लीटर है।