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संस्कृति

Dasvi Movie Review दसवीं फिल्म समीक्षा : शिक्षा पाओ तो 'गंगाराम चौधरी' जैसी

Janjwar Desk
19 April 2022 5:26 AM GMT
Dasvi Movie Review दसवीं फिल्म समीक्षा : शिक्षा पाओ तो गंगाराम चौधरी जैसी
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Dasvi Movie Review दसवीं फिल्म समीक्षा : शिक्षा पाओ तो 'गंगाराम चौधरी' जैसी

Dasvi Movie Review: हरियाणवीं बैकग्राउंड पर बनी इस कहानी में 'नेल्सन मंडेला' के द्वारा दिए गए शिक्षा के सन्देश को जन-जन तक पहुंचाने की कोशिश करी गई है। फ़िल्म देखते हुए शुरुआत से ही मन लग जाता है और बिल्कुल भी बोरीयत महसूस नही होती।

Dasvi Movie Review: हरियाणवीं बैकग्राउंड पर बनी इस कहानी में 'नेल्सन मंडेला' के द्वारा दिए गए शिक्षा के सन्देश को जन-जन तक पहुंचाने की कोशिश करी गई है। फ़िल्म देखते हुए शुरुआत से ही मन लग जाता है और बिल्कुल भी बोरीयत महसूस नही होती।

निर्देशक तुषार जलोटा लगभग दो दशक से बॉलीवुड में हैं और वह मर्डर, ज़हर, कलयुग, बर्फी, जन्नत, पद्मावत, रामलीला जैसी फिल्मों से जुड़े थे। इन फिल्मों ने दर्शकों के दिलों पर राज किया, तुषार ने 'दसवीं' के ज़रिए समाज को बहुत से सन्देश एक साथ देकर सिनेमा के सही अर्थ को पूरा किया है।

सबसे महत्वपूर्ण सन्देश यह है कि आईएस अफ़सर को नेताओं का 'नौकर' बना दिया गया है, इसे बंद करना होगा। जेल में आम आदमी और वीआईपी के बीच समान व्यवहार जरूरी है। फ़िल्म महिलाओं में शिक्षा की महत्वता और जातिवाद खत्म करने का सामाजिक सन्देश भी देती है।

फ़िल्म में एक दृश्य है, जब अभिषेक किताब पढ़ते हैं तब उनके पीछे से एक गद्दा आता है । इस दृश्य में अभिषेक के हावभाव और गद्दा दोनों दर्शकों के मन तक यह सन्देश पहुंचाते हैं कि किताब पढ़ते ही अभिषेक को नींद आ जाती है, निर्देशक ने इस दृश्य को पूरा करवाने में कमाल मेहनत की होगी।

अभिषेक बच्चन फ़िल्म में अपनी पहली झलक से ही प्रभावित करते हैं. उन्होंने पढ़ने की जिद लिए हुए एक नेता का किरदार पूरी तरह से निभाया है। यामी गौतम ने भी अभिषेक को अभिनय के मामले में बराबर टक्कर दी है पर फ़िल्म से जिसके कैरियर को रफ़्तार मिलेगी वह हैं निम्रत कौर। निम्रत ने इन दोनों के अभिनय के बीच अपनी अलग ही छाप छोड़ी है। फ़िल्म का बैकग्राउंड स्कोर आनन्द देता है और नेता बने अभिषेक बच्चन को एक रॉकस्टार की तरह पेश करता है।

फ़िल्म का छायांकन अच्छा है। चेहरों को करीब से दिखाने पर ज़ोर रहा है, जो अच्छा भी लगा है। फ़िल्म के कॉस्ट्यूम डिज़ाइनर शीतल शर्मा बॉलीवुड में अपनी अलग पहचान बना रहे हैं। फ़िल्म 'केसरी' में अक्षय कुमार तो 'रईस' में शाहरुख खान पर उनका जादू दिखा था , तो अब यहां अभिषेक और निम्रत पर उनका जादू दिखा है।

फ़िल्म के गानों पर चर्चा की जाए तो लंबे समय बाद बॉलीवुड की किसी एक फ़िल्म की ऑडियो कैसेट में इतने सारे जबरदस्त गाने भरे मिले हैं। 'मचा-मचा' डीजे पर हंगामा बरपाएगा, कतई बावरापन चौधरी 'चौधरियों' की शान में बजता रहेगा, 'कस्तूरी सी सौंधी सौंधी' झूमने पर मजबूर करता है तो 'ठान लिया हमने' मुर्दे में भी जान फूंक दे।

संवादों में 'साला अजीब देश है ,चाहते तो सब हैं जोश में भगत सिंह पैदा हो, लेकिन पड़ोस में', देश की सच्चाई बयां करता है। वहीं 'अपना इकलौता ऐसा देश है ,जहां सरकारी आदमी काम ना करने के लिए तनख्वाह लेता है और काम करने के लिए रिश्वत' सिस्टम पर तीखा व्यंग्य है।

'भैंस की तरह अफसरों की टांगे बांध कर रखो, पब्लिक को बछड़े की तरह दूध बिजली पानी का लालच देकर रखो' आज के समय में इतनी हिम्मत भरे संवाद कम ही देखने को मिलते हैं। फ़िल्म में कुछ पात्रों को बड़ा रोचक नाम और काम दिया गया है, घण्टी और रायबरेली जैसे नाम मजेदार हैं। फ़िल्म के एक दृश्य में अभिषेक बच्चन अकेले नाचते हैं, यह वो दृश्य है जो कैदियों की स्वतंत्रता पाने की छुपी भावनाओं को हमारे सामने ले आता है।

किताब के 'साइमन गो बैक' चित्र से उसका वीडियो और उसमें भूतकाल में जाकर अभिषेक बच्चन का शामिल होना, किताबों के ज़रिए स्वतंत्रता सेनानियों से मिलना और किताबों के समझने के नए-नए तरीके। यह सब प्रयोग किताब पढ़ने की खत्म होती जा रही परम्परा को जीवित कर सकने में सक्षम हैं। फ़िल्म एक नही दो बार तो देखी ही जा सकती है।

  • निर्देशक- तुषार जलोटा
  • अभिनय- अभिषेक बच्चन, यामी गौतम, निम्रत कौर
  • छायांकन- कबीर तेजपाल
  • ओटीटी- नेटफ्लिक्स और जियो सिनेमा
  • समीक्षक- हिमांशु जोशी
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