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संस्कृति

नैनीताल के अद्भुत फोटोग्राफर अमित साह को अब दुनिया रखेगी उनकी खींची तस्वीरों से याद, दिखाया पहाड़ की खूबसूरती के साथ कठिन जीवन का आईना

Janjwar Desk
20 Sep 2023 5:49 AM GMT
नैनीताल के अद्भुत फोटोग्राफर अमित साह को अब दुनिया रखेगी उनकी खींची तस्वीरों से याद, दिखाया पहाड़ की खूबसूरती के साथ कठिन जीवन का आईना
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'नगाड़े खामोश हैं' नाटक में अमित साह

नैनीताल निवासी अमित ने बचपन से ही नैनीताल की खूबसूरती देखी और बाद में उसी खूबसूरती को वह अपनी तस्वीरों के जरिए भी कैद करने लगे। घुमक्कड़ी के भी शौकीन रहे अमित की हिमालय से जुड़ी फोटो अपने आप में खास होती थी, इनमें हमें हिमालय की खूबसूरती तो दिखती ही थी साथ ही हम पहाड़ के कठिन जीवन से भी परिचित होते थे....

हिमांशु जोशी की टिप्पणी

Amit Sah no more : अमित साह की नैनीताल से जुड़ी वीडियो और तस्वीरें सोशल मीडिया के जरिए पूरी दुनिया में लोकप्रिय हैं, 18 सितंबर को उनका मात्र 43 वर्ष की उम्र में निधन हो गया।

29 अगस्त की सुबह युगमंच द्वारा मंचन किए गए नाटक 'नगाड़े खामोश हैं' में किरदार निभाने के बाद उसकी तस्वीर फेसबुक में पोस्ट करते फोटोग्राफर, कलाकार, युट्यूबर अमित साह ने 'कल खेल में हम हों न हों, गर्दिश में तारे रहेंगे सदा' पंक्ति लिखी थी। इन पंक्तियों को लिखते हुए शायद अमित साह को यह पता नही था कि उनकी इन पंक्तियों को अगले ही महीने उनकी याद में साझा किया जाएगा।

18 सितंबर की सुबह सीने में दर्द की शिकायत के बाद नैनीताल निवासी 43 वर्षीय अमित साह को अस्पताल ले जाया गया, जहां उनको नही बचाया जा सका। नैनीताल निवासी अमित ने बचपन से ही नैनीताल की खूबसूरती देखी और बाद में उसी खूबसूरती को वह अपनी तस्वीरों के जरिए भी कैद करने लगे। घुमक्कड़ी के भी शौकीन रहे अमित की हिमालय से जुड़ी फोटो अपने आप में खास होती थी, इनमें हमें हिमालय की खूबसूरती तो दिखती ही थी साथ ही हम पहाड़ के कठिन जीवन से भी परिचित होते थे।

लेखक अशोक पांडे उन्हें याद करते हुए लिखते हैं 2013 की सर्दियों का वाक़या है। मेरे अंतरंग मित्र दिवंगत सुनील शाह उन दिनों ‘अमर उजाला’ के कुमाऊँ संस्करण के सम्पादक थे। मोबाइल फोन को आए बहुत समय नहीं हुआ था और कैमरे वाले मोबाइल तो और भी नई चीज़ थे। फोटो बहुत कम रेज़ोल्यूशन की आती थी, लेकिन आम जन के लिए कैमरा सुलभ होता जा रहा था। शाह जी ने एक शाम मुझे बताया कि उन्होंने अपने अखबार में पाठकों द्वारा मोबाइल से खींचे गए फोटो छापने का फैसला किया है। अगले दिन के अखबार में इस बाबत सूचना जारी की गई और शाम तक अखबार का मेलबॉक्स सैकड़ों फोटुओं से अट गया।

पाठकों के इस रिस्पांस से उत्साहित सुनील शाह मुझे दिखाने को उनमें से एक फोटो विशेष रूप से लेकर आए। नैनीताल के एक तीस वर्षीय युवा अमित साह के उस फोटो में पतझड़ के मौसम में नैनीताल की मॉल रोड को कैद किया गया था। जिस कोण से फोटो लिया गया था, मैंने बीसियों बरसों में नैनीताल को कभी वैसे नहीं देखा था। बेहद साधारण फोन से खींची गई वह तस्वीर बताती थी कि फोटो खींचने वाले के पास विजुअल इमेज को पकड़ने की असाधारण कला-दृष्टि है। ज़ाहिर है ‘अमर उजाला’ ने उस सीरीज की शुरुआत अमित की उसी फोटो से ही करनी थी।

यह अमित और उसकी कला से पहला परिचय था। फिर एक दफा सुनील शाह और मैं ख़ास उसी से मिलने नैनीताल गए। फ्लैट्स किनारे जनवरी की धूप में चाय पीते हुए वह एक बेहद शर्मीला और संकोची युवा नज़र आया। जब उससे मॉल रोड वाली फोटो के बारे में पूछा तो उसने बताया कि एक सुबह जिम की तरफ जाते हुए उसने अपने फोन से वह फोटो यूं ही क्लिक कर लिया था। अखबार से मिले प्रोत्साहन के बाद उसने अपना पहला कैमरा खरीदा और अगले दस सालों में वह इलाके के सबसे शानदार फोटोग्राफरों में शुमार हो गया।

वह नैनीताल से बेपनाह प्यार करता था सो शुरू के सालों में उसने केवल नैनीताल की तस्वीरें खींचीं। शुरू के सालों में जब वह हर रोज़ नैनीताल की तस्वीरें सोशल मीडिया में लगाता, मैं अक्सर सोचता था कि बित्तेभर के नैनीताल की तस्वीरें कोई आखिर कितने कोनों-कोणों से खींच सकता है। एक न एक दिन ऐसा आएगा कि नैनीताल को कैमरे में दर्ज करने को कोई नया फ्रेम मिलेगा ही नहीं। अमित ने मेरे इस विचार को झूठा साबित करते हुए इस शहर की ऐसी-ऐसी अकल्पनीय तस्वीरें निकालीं कि उसके जीनियस को देखकर सिर्फ हैरानी होती थी।

उनकी याद में हम उनकी खींची कुछ तस्वीरें साझा कर रहे हैं।

नैनीताल के आसपास की खींची यह तस्वीर अमित की आखिरी तस्वीरों में से एक है, देर शाम के वक्त ऊपर आसमान में घिरे तारे और नीचे कोहरे की चादर ओढ़े पहाड़ अद्भुत हैं।


बर्फ से लदा हुआ हिमालय, कितना सुंदर दृश्य है


हिमालय को ऐसे देखना, हर किसी का सपना है।


पानी में हिमालय की परछाई, इस दृश्य को दिन भर देखा जा सकता है।


खाली होते पहाड़ों को कॄषि ही बचा सकती है, पहाड़ की मेहनती महिलाओं का एक दृश्य।


तस्वीर में सेना के जवान हैं, इन्हीं की वजह से देश सुरक्षित है।


यह छूटा हुआ घर, पहाड़ में पलायन की वास्तविक स्थिति दिखाता है।


पहाड़ी परिधान, संस्कृति ही हमारी पहचान है।


पहाड़ों में जीवन कठिन तो है पर ऐसी शांति अन्यत्र नही मिल सकती।


पेट के लिए मेहनत जरूरी है।


सूरज की इन किरणों से हिमालय लालिमा बिखेर रहा है और यह दृश्य दिखाता है कि दुनिया खूबसूरत है, इसे बचाए रखना है।


पैर फिसला और काम तमाम, पहाड़ के खतरों को आसान नही समझना चाहिए।


इन आँखों को दुनिया को दिखाने के लिए शुक्रिया अमित, अलविदा।



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