हाशिये का समाज

दलित युवक का 'मित्र पुलिस' ने तबाह किया कैरियर, निशंक को बम से उड़ाने की धमकी देने का मढ़ा था झूठा आरोप

Janjwar Desk
24 July 2021 5:30 AM GMT
दलित युवक का मित्र पुलिस ने तबाह किया कैरियर, निशंक को बम से उड़ाने की धमकी देने का मढ़ा था झूठा आरोप
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(सालों से न्याय के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहा दलित युवक मनोज, 2 बार कर चुका है भूख हड़ताल)

शंकर सिंह राणा पुलिस के सामने स्वीकार करता है कि उसने ही मुख्यमंत्री निशंक को धमकी दी थी, मगर इसके बाद भी पुलिस दलित युवक मनोज को बंधक बना लेती है, उसके साथ गाली-गलौज करती है, कपड़े उतार मारपीट करती है और जेल में ठूस देती है....

पिथौरागढ़ से किशोर कुमार की रिपोर्ट

जनज्वार ब्यूरो। उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को बम से उड़ा देने की धमकी देने के झूठे आरोप की सजा पिछले 11 साल से एक दलित युवक भुगत रहा है। न्याय के लिए तमाम मुख्यमंत्रियों और प्रधानमंत्री तक को पत्र लिख चुके दलित युवक को न्याय की अभी भी कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही है।

जनज्वार से हुई बातचीत में मनोज कहता है, पूर्व मुख्यमंत्री को बम से उड़ाने की धमकी दी किसी और ने, मगर देहरादून पुलिस प्रशासन मुझ गरीब, दलित और बेकसूर युवा का जीवन बर्बाद कर डाला।

मनोज कहता है, मैं एक साधारण गरीब परिवार से हूं। मेरे सिर झूठा आरोप मढ़कर पुलिस ने शारीरिक एवं मानसिक रूप से बेहद प्रताड़ित किया, जेल में डाल दिया गया। अब खुद के न्याय की लड़ाई लड़ रहे मनोज ने हिम्मत नहीं हारी और अदालत में पहुंच गया। अदालत से वह निर्दोष साबित हुआ है तो अब शासन-प्रशासन से न्याय की गुहार लगा रहा है कि जिस तरह से उसका जीवन और कैरियर तबाह किया गया, उसकी भरपाई की जाये। पुलिस प्रशासन से लेकर मुख्यमंत्री-प्रधानमंत्री तक से वह न्याय के लिए फरियाद कर चुका है। 2 बार आमरण अनशन कर चुके दलित युवक मनोज की कहीं भी सुनवाई नहीं हो रही।

मनोज के मुताबिक, देहरादून पुलिस ने फर्जी तरीके से फंसाकर मुझे जेल में बंद किया। मेरा शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न किया गया, मगर अब न्यायालय ने मुझे दोषमुक्त कर दिया है तो दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ आखिर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही। मुझे इसका मुआवजा मिलना चाहिए।

उत्तराखण्ड के हर मुख्यमंत्री से वह न्याय की गुहार लगा चुके मनोज ने जब न्याय के लिए पिथौरागढ़ के जिला पिथौरागढ़ कार्यालय के समक्ष भूख हड़ताल शुरू की तो उसे आश्वासन की घुट्टी पिलाकर अनशन खत्म करवा दिया गया। लम्बे समय तक जब कोई कार्रवाई नहीं हुई तो मनोज एक बार फिर से अनशन स्थल पर पहुंचा और आमरण अनशन पर बैठ गया। दूसरी बार उसे प्रशासन ने जबर्दस्ती अनशन स्थल से उठाकर अस्पताल में भर्ती कर दिया। मनोज पिछले सात सालों से न्याय के लिए संघर्ष कर रहा है, लेकिन उसकी आवाज नक्कारखाने में तूती साबित हो रही है।

मनोज कुमार पुत्र किसन राम पिथौरागढ़ जिले के एक बेहद अभावग्रस्त गांव सिलिंग जो तहसील बंगापानी के आपदा प्रभावित क्षेत्र के अन्तर्गत आता है, के गरीब परिवार से ताल्लुक रखता है। उसका सपना था कि वह पढ़ लिखकर अपने परिवार का सहारा बने। परिवार को आर्थिक तौर पर मजबूती दिलाने का संकल्प लिये मनोज गांव से सैकड़ों किलोमीटर दूर राज्य की राजधानी देहरादून पहुंच गया। काफी भागदौड़ के बाद वह देहरादून के पृथ्वी राज कथूरिया नामक व्यक्ति के यहां प्राइवेट सुरक्षा गार्ड की नौकरी करने लगता है और साथ में ही डीएबी डिग्री कॉलेज में बीए प्रथम वर्ष की पढ़ाई की भी जारी रखता है।

कॉलेज की पढ़ाई के सिलसिले में वह 3 अगस्त 2010 को स्कूल की पढ़ाई का शपथ पत्र बनवाने के लिए कोर्ट परिसर में जाता है, लेकिन इसी दिन 3.20 पर देहरादून के पुलिस कंट्रोल रूम पर किसी अज्ञात मोबाईल नम्बर से उत्तराखण्ड के तत्कालीन मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को 15 अगस्त के दिन बम से उड़ा देने की धमकी मिलती है। धमकी मिलते ही पुलिस सक्रिय होती है। इस घटनाक्रम से अनभिज्ञ मनोज जब शाम 3.45 पर अपने कमरे में लौटता है तो पुलिस उसका इंतजार करते मिलती है।

मनोज के पहुंचते ही पुलिस उसका नाम और मोबाइल नम्बर के बारे में जानकारी लेती है। उस समय वहां मौजूद लक्ष्मण, नवीन और जिसने निशंक को बम से उड़ाने की धमकी वाला कॉल किया था, शंकर सिंह राणा के साथ ही पुलिस मनोज को भी उठा ले जाती है। पुलिस तलाशी लेती है तो शंकर सिंह राणा की जेब से मोटोरोला मॉडल का मोबाइल बरामद होता है।

पुलिसिया पूछताछ के दौरान शंकर सिंह राणा ने खुद को इन्टरमीडिएट का टॉपर बताने के साथ ही गोपेश्वर महाविद्यालय का गोल्ड मेडलिस्ट और इसी विद्यालय में छात्रसंघ चुनाव लड़ चुका प्रत्याशी तथा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी एवं पत्रकार संस्था से जुड़ने की बात कहते हुए अपना जुर्म स्वीकार करता है।

बकौल मनोज, शंकर सिंह राणा पुलिस के सामने स्वीकार करता है कि उसने ही मुख्यमंत्री निशंक को धमकी दी थी, मगर इसके बाद भी पुलिस मुझे बंधक बना लेती है। मनोज के मुताबिक पुलिस उसके साथ गाली-गलौज करती है, उसका कपड़े उतारती है और मारपीट करती है।

इस सम्बन्ध में मनोज कुमार उत्तराखण्ड में सत्तासीन रहे तमाम मुख्यमंत्रियों को पत्र लिख चुका है, लेकिन कहीं भी उसकी सुनवाई नहीं हो रही। 11 जनवरी 2017 को देहरादून अदालत से बरी और निर्दोष साबित होने के बाद सरकार से न्याय दिलाने कि गुहार लगा रहा है, कोई सुनवाई नहीं होने पर मजबूरन जिला प्रशासन पिथौरागढ़ में भूख हड़ताल पर बैठता है मगर कोई कार्रवाई नहीं हुई।

मनोज अपनी मांगों को पिथौरागढ़ में 25 जनवरी 2019 को जनता दरबार में जिला अधिकारी के सामने रखता है। मनोज का आरोप है कि उसने जिला अधिकारी पिथौरागढ़ के सामने अपनी बात रखी और बाद में बाहर आकर वह अपने परिचितों से बातचीत कर रहा था तो इसी दौरान वहां पर मौजूद अधिकारी संतोष कुमार पाण्डेय बजाय न्याय के उसके साथ मारपीट करते हैं। किसी तरह वह बचकर घर आता है और इस घटनाक्रम के बारे में अपने जानने वालों को अवगत कराता है।

अधिकारी संतोष कुमार पाण्डेय द्वारा की गयी मारपीट और 3 अगस्त 2010 से उसके साथ हो रहे अन्याय-अत्याचार के खिलाफ वह जिला प्रशासन पिथौरागढ़, पुलिस महानिदेशक देहरादून और पुलिस अध्यक्ष पिथौरागढ़ को एक पत्र लिखता है। साथ ही मांग करता है कि उसके साथ मारपीट करने वाले अधिकारी के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाये, मगर वहां भी कोई भी कार्रवाई नहीं की गयी।

दो बार भूख हड़ताल कर चुके मनोज कुमार का कहना है कि अभी भी उसकी बात नहीं सुनी गयी तो वह जिला कलेक्टर पिथौरागढ़ में 2 अक्टूबर 2021 से भूख हड़ताल पर बैठने को मजबूर होगा। मनोज की मांग है कि एक झूठे आरोप में 3 अगस्त 2010 से उसे जो आर्थिक नुकसान झेलना पड़ा है, जिस सरकारी नौकरी के लिए वह गार्ड की नौकरी के साथ साथ पढ़ाई कर रहा था, वह उसे दी जाये। साथ ही उसके साथ उसके साथ मारपीट करने वाले अधिकारी संतोष कुमार पाण्डेय और देहरादून पुलिस के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाये। भूख हड़ताल के दौरान अगर उसकी जान को किसी भी तरह का नुकसान होगा तो इसके लिए उत्तराखण्ड सरकार, जिला प्रशासन पिथौरागढ़, पुलिस महानिदेशक देहरादून और पुलिस अध्यक्ष पिथौरागढ़ जिम्मेदार होंगे।

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