Begin typing your search above and press return to search.
हाशिये का समाज

ग्रामीण क्षेत्रों के महज 4 फीसदी SC-ST बच्चे ही नियमित तौर पर कर पा रहे ऑनलाइन पढ़ाई :सर्वे

Janjwar Desk
8 Sep 2021 2:30 AM GMT
ग्रामीण क्षेत्रों के महज 4 फीसदी SC-ST बच्चे ही नियमित तौर पर कर पा रहे ऑनलाइन पढ़ाई :सर्वे
x

SC-ST वर्ग के आधे के लगभग ग्रामीण बच्चे महज कुछ शब्दों से ज्यादा नहीं जानते : सर्वे (प्रतीकात्मक तस्वीर)

ग्रामीण इलाकों में अनुसूचित जाति/ जनजाति के परिवारों के केवल चार प्रतिशत बच्चे ही नियमित तौर पर ऑनलाइन पढ़ाई करते हैं जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में अन्य विद्यार्थियों की संख्या 15 प्रतिशत है..

जनज्वार। देश में वैसे ही शिक्षा की स्थिति कुछ ठीक नहीं मानी जाती, ऊपर से कोरोनाकाल में स्कूलों के लंबे समय तक बंद रहने का शिक्षा पर काफी बुरा असर हुआ है। खासकर दलित, आदिवासी व वंचित तबके के बड़ी संख्या में बच्चे ऑनलाइन क्लास से महरूम रह जा रहे हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, एक हालिया सर्वेक्षण में चौंकाने वाली स्थिति सामने आई है। इस सर्वेक्षण के अनुसार, वंचित परिवारों में भी दलित और आदिवासी परिवारों की स्थिति अधिक खराब है।

सर्वे में कहा गया है कि उदाहरण के लिए ग्रामीण इलाकों में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के परिवारों के केवल चार प्रतिशत बच्चे ही नियमित तौर पर ऑनलाइन पढ़ाई करते हैं जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में अन्य विद्यार्थियों की संख्या 15 प्रतिशत है। इनमें से करीब आधे बच्चे कुछ शब्दों के अलावा कुछ भी नहीं पढ़ सकते।

सर्वेक्षण में दावा किया गया है कि 37 प्रतिशत ग्रामीण विद्यार्थी बिल्कुल पढ़ाई नहीं कर रहे हैं और 48 फीसदी बच्चों को पढ़ाई के नाम पर कुछ शब्दों के अलावा कुछ नहीं आता है।

''दि स्कूल चिल्ड्रेन्स ऑनलाइन एंड ऑफलाइन लर्निंग (एससीएचओओएल) सर्वे ने '' लॉक्ड आउड: इमरजेंसी रिपोर्ट ऑन स्कूल एजुकेशन शीर्षक से सर्वेक्षण के नतीजों को जारी किया है। यह सर्वेक्षण 15 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के वंचित परिवारों से आने वाले करीब 1400 स्कूली बच्चों पर अगस्त महीने के दौरान किया गया।

गौरतलब है कि जिन राज्य के परिवारों को सर्वेक्षण में शामिल किया गया उनमें असम, बिहार, दिल्ली, हरियाणा, झारखंड, महाराष्ट्र, पंजाब, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल शामिल हैं। करीब 100 स्वयंसेवकों ने सर्वेक्षण का कार्य किया और रिपोर्ट समन्वय समिति ने तैयार की जिसमें अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज और निराली बाखला जैसी हस्तियां शामिल थीं।

इसमें कहा गया है, ''इस सर्वेक्षण से जो तस्वीर सामने आई है वह घोर निराशाजनक है। सर्वेक्षण के समय ग्रामीण इलाकों में केवल 28 प्रतिशत बच्चे ही नियमित तौर पर पढ़ाई कर रहे थे जबकि 37 प्रतिशत बच्चे बिल्कुल पढ़ नहीं रहे हैं। सामान्य पढ़ाई की क्षमता को लेकर सर्वेक्षण के नतीजे आगाह करने वाले है क्योंकि इसमें शामिल करीब आधे बच्चे कुछ शब्दों के अलावा कुछ भी नहीं पढ़ पा रहे थे।

एससीएचओओएल ने बताया कि उसका सर्वेक्षण वंचित बस्तियों पर केंद्रित था जहां पर रहने वाले बच्चे आम तौर पर सरकारी स्कूलों में पढ़ने जाते हैं।

सर्वेक्षण के मुताबिक नियमित रूप से ऑनलाइन कक्षा में भाग लेने वाले विद्यार्थियों का अनुपात शहरी और ग्रामीण इलाकों में क्रमश: 24 और आठ प्रतिशत है। सर्वेक्षण में रेखांकित किया गया कि पैसे की कमी, खराब कनेक्टिविटी या स्मार्टफोन की अनुलब्धता विद्यार्थियों तक ऑनलाइन शिक्षा की सीमित पहुंच के कुछ कारण रहे।

एससीएचओओएल सर्वे ने अपनी रिपोर्ट में कहा, ''इसके लिए एक कारण अध्ययन में शामिल परिवारों (ग्रामीण इलाकों में आधे) के पास स्मार्टफोन की अनुपलब्धता है। लेकिन यह महज पहली बाधा है क्योंकि जिन परिवारों के पास स्मार्टफोन है उनमें भी नियमित रूप से ऑनलाइन अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों का अनुपात कम है।

शहरी इलाकों में यह अनुपात 31 प्रतिशत और ग्रामीण इलाकों में यह 15 प्रतिशत रहा। स्मार्टफोन का अक्सर इस्तेमाल परिवार में काम करने वाला वयस्क करता है और यह बच्चों के लिए उपलब्ध नहीं हो पाता, खासतौर पर दो या उससे अधिक बच्चे होने पर परिवार के छोटे सदस्य को।

सर्वेक्षण के मुताबिक वंचित परिवारों में भी दलित और आदिवासी परिवारों की स्थिति अधिक खराब है। उदाहरण के लिए ग्रामीण इलाकों में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के परिवारों के केवल चार प्रतिशत बच्चे ही नियमित तौर पर ऑनलाइन पढ़ाई करते हैं जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में अन्य विद्यार्थियों की संख्या 15 प्रतिशत है। इनमें से करीब आधे बच्चे कुछ शब्दों के अलावा कुछ भी नहीं पढ़ सकते।

सर्वेक्षण के मुताबिक, अधिकतर अभिभावकों का मानना है कि उनके बच्चे की पढ़ने और लिखने की क्षमता लॉकडाउन के दौरान कम हुई है। यहां तक कि 65 प्रतिशत शहरी अभिभावक भी ऐसा मानते हैं। इसके उलट केवल चार प्रतिशत अभिभावक मानते हैं कि उनके बच्चों की क्षमता सुधरी है। ग्रामीण इलाकों में रहने वाले अजा/अजजा अभिभावकों में से 98 प्रतिशत चाहते हैं कि स्कूलों को यथाशीघ्र खोला जाना चाहिए।

Next Story