गौतम नवलखा को दिल्ली हाईकोर्ट से मिली राहत को सुप्रीम कोर्ट ने किया ख़ारिज
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राधिका रॉय की रिपोर्ट
जनज्वार। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार 6 जुलाई को दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश को निरस्त कर दिया, जिसमें उसने राष्ट्रीय जाँच एजेंसी को निर्देश दिया था कि वो गौतम नवलखा को दिल्ली से मुंबई हस्तांतरित करने के लिए जारी किये गए प्रोडक्शन वारंट सम्बन्धी सभी दस्तावेजों को कोर्ट के समक्ष पेश करे।
राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (एनआईए) ने कोर्ट के जिस निर्देश को चुनौती दी थी उसे दिल्ली हाई कोर्ट के जज अनूप जयराम भंभानी ने प्रथम दृष्टया इस अवलोकन के आधार पर जारी किया था कि एनआईए ने नवलखा को दिल्ली कोर्ट के अधिकार क्षेत्र से बाहर निकालने की लिए "बेवजह ज़ल्दबाज़ी" दिखाई थी, जबकि कोर्ट नवलखा की जमानत के प्रार्थना-पत्र पर सुनवाई कर रहा था।
हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ एनआईए की अपील स्वीकार करते हुए जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस नवीन सिन्हा और जस्टिस इंदिरा बनर्जी की पीठ ने यह आदेश भी जारी किया कि नवलखा की बेल-सुनवाई के दौरान दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा एनआईए के खिलाफ की गयी टिप्पणियों को हटा लिया जाए।
गौरतलब है कि 2 जून को सर्वोच्च न्यायलय ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी। आजकल नवलखा मुंबई के तलोजा जेल में क़ैद हैं।
आज 6 जुलाई केा सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट का आदेश "अभूतपूर्व" था। उन्होंने कहा," नवलखा द्वारा आत्मसमर्पण के समय भारत में लॉकडाउन चल रहा था। हमारे तर्कों से संतुष्ट होने पर ही मुंबई के विशिष्ट जज ने नवलखा के हस्तांतरण का आदेश पारित किया। हमने कोर्ट से कुछ भी नहीं छुपाया। चूंकि नए साक्ष्य पाए गए हैं इसलिए एनआईए मुंबई को हिरासत की ज़रुरत है।"
अपनी बात आगे रखते हुए सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि हस्तांतरण को हाईकोर्ट की जानकारी में लाया गया था और इसके बाद दिल्ली हाईकोर्ट का इस मामले पर अधिकार क्षेत्र ख़त्म हो जाता है।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने यह भी कहा कि नवलखा को मुंबई में विशेष जज की अदालत में पेश किया गया था जहां उन्हें रिमांड पर लेने के आदेश पारित किये गए थे।
नवलखा की तरफ से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल का कहना था कि हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ स्पेशल लीव पेटिशन चलाने योग्य नहीं थी, क्योंकि कोर्ट ने केवल दस्तावेजों की मांग की थी।
"136 उस आदेश के खिलाफ कैसे झूठ बोल सकता है जो कहता है 'एक शपथ पत्र दाखिल' करें? बेल दिए जाने सम्बन्धी कोई रद्द किया गया आदेश नहीं है। ये एक आदेश मात्र है जो उन हालात का जायज़ा लेता है जिसमें वे उस व्यक्ति को मुंबई ले गए।"
इस पर जस्टिस मिश्रा ने सिब्बल से पूछा कि मुंबई में विशेष एनआईए कोर्ट के समक्ष चली प्रक्रियाओं के ब्योरे सम्बन्धी शपथ पत्र पेश करने का निर्देश दिल्ली हाई कोर्ट कैसे दे सकता था। उन्होंने सिब्बल से आगे पूछा कि उन्होंने गैर-क़ानूनी गतिविधियां (निषेध) क़ानून की धारा 43 D के तहत एनआईए कोर्ट में याचिका क्यों नहीं लगाई?
गौरतलब है कि गौतम नवलखा की बेल अर्ज़ी की सुनवाई के समय 27 मई को दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस अनूप जयराम भंभानी ने एनआईए को निर्देश दिया कि वो कोर्ट द्वारा देखे जाने के लिए मुंबई के विशेष जज के समक्ष पेश किये जाने वाले प्रोडक्शन वॉरंट्स को जारी करने के लिए लगाई गयी अर्ज़ी सम्बन्धी सभी प्रक्रियाओं के सम्पूर्ण दस्तावेजों को उपस्थित कराए।
जस्टिस भंभानी ने सभी उन दस्तावेजों को भी पेश करने को कहा जो नवलखा की न्यायिक हिरासत बढ़ाने के लिए एनआईए कोर्ट की दिल्ली पीठ के समक्ष अर्ज़ी देते वक्त लगाए गए थे।
दिल्ली हाईकोर्ट के इस आदेश को एनआईए ने 2 जून को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष चुनौती दी। इसमें एनआईए की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि रद्द किया गया आदेश साफ़ तौर पर गैर-क़ानूनी और अधिकार क्षेत्र से बाहर का था। इन बातों को ध्यान में रखते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष चल रहीं प्रक्रियाओं पर रोक लगा दी और नवलखा को नोटिस जारी करते हुए उत्तर देने की मांग की।
इसके पूर्व 16 मार्च को उच्चतम न्यायालय ने एक्टिविस्ट गौतम नवलखा और आनंद तेलतुंबड़े को अग्रिम जमानत देने से मना कर दिया था। गौरतलब है कि भीमा कोरेगांव हिंसा के सन्दर्भ में माओवादियों से उनके सम्बन्ध होने के आरोप लगा गैर-क़ानूनी गतिविधि निषेध कानून के तहत उन पर केस दर्ज़ किया गया था।
बाद में नवलखा ने 14 अप्रैल को दिल्ली में एनआईए के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया।
यह केस दलित संगठनों द्वारा 1 जनवरी 2018 को पुणे के समीप भीमा कोरेगांव में कोरेगांव युद्ध में जीत की २००वीं जयन्ती मनाने के समय हुई हिंसक घटनाओं को तथाकथित माओवादियों से जोड़ने को लेकर है। पुणे पुलिस का आरोप था कि पिछले दिन पुणे में हुई एल्गार परिषद की बैठक ने हिंसा को बढ़ावा दिया।
आरोप लगाया गया कि इस बैठक का जिन लोगों ने आयोजन किया उनके प्रतिबंधित माओवादी संगठनों से नज़दीकियों थीं।
पुलिस द्वारा पहले दौर की पकड़-धकड़ जून 2018 में की गई। गिरफ्तार किये गए व्यक्तियों में शामिल थे-जाति विरोधी कार्यकर्ता सुधीर धवले, मानव अधिकार वकील सुरेंद्र गैड़लिंग, वन अधिकार क़ानून कार्यकर्ता महेश राउत, अंग्रेज़ी के अवकाश प्राप्त प्रोफ़ेसर शोमा सेन और मानव अधिकार कार्यकर्ता रोना विल्सन .
बाद में एक्टिविस्ट वकील सुधा भारद्वाज, तेलुगू कवि वरवरा राव, एक्टिविस्ट्स अरुण फ़रेरा और वर्नन गोंजाल्वेस को भी गिरफ्तार कर लिया गया।
जून 2018 में गिरफ़्तार किये गए 6 लोगों के ख़िलाफ़ पुलिस ने नवम्बर 2018 में पहली चार्जशीट दाखिल की। फरवरी 2019 में सुधा भारद्वाज, वरवरा राव, अरुण फ़रेरा और गोंजाल्वेस के खिलाफ पूरक चार्जशीट दाखिल की गयी थी।
(राधिका रॉय की यह रिपोर्ट Live Law से साभार।)