- Home
- /
- ग्राउंड रिपोर्ट
- /
- Ground Report : नाले...
Ground Report : नाले में तब्दील गंगा की छोटी बहन असि की करुण पुकार, कोई तो भागीरथ मिले जो कर दे उद्धार
(वाराणसी शहर के कचरे, मल-मूत्र, औद्योगिक कचरे इत्यादि को अपने आंचल में समाते हुए यह नदी पूरी तरह से नाले के रूप में तब्दील हो चुकी है)
संतोष देव गिरि की रिपोर्ट
जनज्वार/वाराणसी। देश-विदेश में विख्यात मोक्ष नगरी एवं बाबा भोलेनाथ की पौराणिक नगरी काशी यानी वाराणसी, जिसे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र होने का भी गौरव प्राप्त है। यह नगरी आदि गंगा नदी के पावन तट पर स्थित होने के साथ ही साथ गंगा नदी की छोटी बहनें वरुणा एवं असि नदियों का संगम कराते हुए शहर के बीच से होकर बहती हैं। अब यह अलग बात है कि गंगा नदी का अपना विशाल स्वरूप तो दिखाई देता है, लेकिन वरुणा और असि नदी का अस्तित्व विलुप्त होने के कगार पर है। यह नदियां नाले का रूप धर चुकी हैं। खासकर असि नदी तो पूरी तरह से एक नाले के रूप में तब्दील हो चुकी है। जिसे देख कोई यह नहीं कह सकता है कि क्या यही असि नदी है?
आखिरकार कहें भी तो कैसे, नदी का अपना एक दायरा होता है। चाहे वह छोटी हो या बड़ी। असि नदी का भी एक समय था जब निर्मल जल के साथ उसका अपना विशाल दायरा था। इस नदी का अपना ही एक अलग इतिहास था, लेकिन कालांतर में विस्तारवादी, भोगवादी नीतियों के चलते यह नदी पूरी तरह से अस्तित्व विहीन होकर नाले के रूप में तब्दील हो चुकी है। जिसके नजदीक जाना तो दूर उसे देखना भी लोगों के लिए मुश्किल हो जाता है।
वाराणसी शहर के कचरे, मल-मूत्र, औद्योगिक कचरे इत्यादि को अपने आंचल में समाते हुए यह नदी पूरी तरह से नाले के रूप में तब्दील हो चुकी है, जिसके जीर्णोद्धार के लिए सरकार के द्वारा चलाई गईं तमाम योजनाएं भी कागजों में सिमट कर रह गई हैं। उसी प्रकार यह असि नदी भी धीरे-धीरे नाले के आकार में तब्दील हो चुकी है। कहने को तो राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) वाराणसी असि व वरुणा नदी के प्रवाह क्षेत्र पर अतिक्रमण व प्रदूषण को लेकर गंभीर है। प्राधिकरण ने वाराणसी प्रशासन से इस पर एक विस्तृत रिपोर्ट भी मांगी है।
इसका असर यह रहा कि पिछले दिनों वाराणसी सदर तहसील प्रशासन रिपोर्ट को जल्द से जल्द तैयार करने में भी जुटा रहा। राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण की कड़ाई के बाद नदी के किनारे से कब्जे भी हटाए गए। वाराणसी सदर तहसील की टीम ने वरूणा नदी के तटीय क्षेत्र के लगभग 83 से अधिक स्थानों का मौका मुआयना और पैमाइश भी की है, लेकिन सभी कार्यवाही ढाक के तीन पात साबित हुई हैं।
कब्जा, कार्रवाई फिर भी असि नदी की दुर्दशा नहीं हुई दूर
आप लापरवाही कहें या महज खानापूर्ति, लेकिन यह हकीकत है। विश्व विख्यात काशी नगरी (वाराणसी) को नाम देने वाली नदियों का जो अस्तित्व मौजूदा समय में देखने को मिलता है, उसे देखकर इस नगरी से अटूट आस्था रखने वाले लोग आहत होते हैं। देश-विदेश के कोने-कोने से आने वाले सैलानी उस असि नदी को ढूंढते फिरते हैं जिसने वाराणसी को एक नाम दिया है, लेकिन यह नदी ढूंढे भी नहीं मिल पाती है। कारण कि यह नदी अब नाले के रूप में तब्दील हो चुकी है।
पिछले दिनों राजस्व विभाग की टीम ने वाराणसी की असि नदी के उद्गम स्थल कंचनपुर से लेकर विभिन्न राजस्व ग्रामों से होते हुए अंतिम बिंदु अस्सी घाट तक के दुर्गम स्थलों का मौका मुआयना किया था। इसमें कंचनपुर, करौंंदी, चितईपुर, सरायनंदन, भदैनी आदि शामिल रहे हैं। टीम में कई स्थानों पर कब्जे अतिक्रमण को चिन्हित भी किया था तथा इस पर विकास प्राधिकरण व नगर निगम को कार्रवाई के लिए निर्देश भी दिए। बावजूद अभी तक कुछ सफलता हासिल नहीं हो पाई है।
अधिकारियों ने दर्जनों अतिक्रमणकारियों को नोटिस जरूर जारी करते हुए तत्काल कब्जे हटाने की चेतावनी दे दी है तथा इसके साथ ही नदी में गिरने वाले नाले को भी चिह्नित किया जा रहा है। इसकी रिपोर्ट भी एनजीटी को भेजी जानी है, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि इतने के बाद भी नाले में तब्दील हो चुकी असि नदी क्या फिर से अपने स्वरूप में वापस लौट सकेगी?
मां गंगा के पुत्र पीएम मोदी ने भी साध ली है चुप्पी
गौरतलब है कि 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले चुनाव प्रचार के लिए अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में बड़े गर्मजोशी से कहा था कि "मैं आया नहीं, मुझे तो मां गंगा ने बुलाया है।" मजे की बात है कि मां गंगा के इस पुत्र ने भी कभी इसी मां गंगा की छोटी बहन कहे जाने वाली असि नदी के जीर्णोद्धार और इनके पुराने स्वरूप को वापस लौटाने की दिशा में कभी भी कोई पहल नहीं की, ना ही कभी उन्होंने इनकी ओर झांकना भी गंवारा समझा है।
वरिष्ठ पत्रकार व लेखक अंंजान मित्र खरे-खरे शब्दों में कहते हैं कि "वाराणसी को नाम और पहचान दिलाने वाली वरुणा और असि नदी के स्वरूप को कुरुप बनाने के लिए कोई एक जिम्मेदार नहीं है। इसके लिए सभी वह जनप्रतिनिधि, सभी वह अधिकारी, वह संबंधित लोग जिम्मेदार हैं, साथ ही साथ वह नागरिक भी जिम्मेदार है जिन्होंने इस नदी के उद्गम स्थलों सहित दोनों पाटों को पाट-पाट कर अतिक्रमण कर बिल्डिंगें तान ली और कब्जे कर लिए। ऊपर से इन दोनों नदियों के उद्धार के लिए कितनी योजनाएं बनी। अरबों खरबों की परियोजनाएं ध्वस्त हो गई खर्च हो गए, लेकिन इन दोनों नदियों का स्वरूप बदलने को कौन कहे दिन प्रतिदिन बिगड़ता ही गया। एक बड़ा सवाल उठता है कि क्या इन दोनों नदियों के पुराने दिन, पुराने स्वरूप लौट पाएंगे? सवाल लोगों के जेहन में एक यक्ष प्रश्न की तरह कौंंध रहा है शायद जवाब अनुत्तरित ही मिले।"
अधिकारियों से लेकर जनप्रतिनिधि तक जिम्मेदार है असि नदी को नाला बनाने में?
वाराणसी की विख्यात असि नदी के साथ सरकार और जनप्रतिनिधियों ने भी बड़ा खेल खेला है। इसके स्वरूप को बिगाड़ने में इनका बहुत बड़ा योगदान रहा है। तस्वीर में जो दो शिलापट्ट आपको दिखलाई दे रहे हैं। इनमें एक 11 फरवरी 2001 का है। तब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह थे, जिन्होंने रविंद्रपुरी लंका बाईपास मार्ग पर नदी के ऊपर सेतु/पुल का लोकार्पण किया था। शिलापट्ट पर नाम दिया गया था रामेश्वरम सेतु का लोकार्पण।
दूसरी तस्वीर 14 जनवरी 2014 की है। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी। सुरेंद्र पटेल वाराणसी से रोहनिया के विधायक तथा लोक निर्माण राज्यमंत्री थे। इनके ही कार्यकाल में वाराणसी विकास प्राधिकरण की अवस्थापना निधि से 'असि नाले' पर नवनिर्मित दूसरी लेन के पुल का लोकार्पण किया गया था। शब्दों पर आप गौर करिएगा जिस असि नदी ने वाराणसी को नाम व पहचान दी उस नदी को वाराणसी विकास प्राधिकरण के लोगों, अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों ने भी नकार दिया और नाला बना दिया। कागजों में भी इसे नाला दिखाया गया है।