बेंगलुरु में बंद हो गयीं 50 हजार दुकानें, क्या यही है मोदी का लोकल फॉर वोकल
बंगलोर। कोरोना को लेकर किए गए लॉकडाउन के कारण उद्योग-व्यवसाय बुरी तरह से प्रभावित हैं। उद्योग-धंधे, प्रतिष्ठान आदि बंद हो रहे हैं और लोगों की रोजी-रोटी पर बड़ा संकट है। इस दौर में कर्णाटक की राजधानी बंगलोर में पिछले कुछ माह में 50 हजार से ज्यादा दुकानों पर ताला लग चुका है, यानि ये बंद हो चुके हैं। ये कुल दुकानों के लगभग 15 फीसद हैं और अभी हजारों दुकान बंदी की कगार पर खड़े हो गए हैं। कारण ग्राहकी का न होना बताया जा रहा है।
बंगलोर के वृहत बंगलुरू महानगर पालिका क्षेत्र में लगभग 4 लाख दुकान हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इनमें से लगभग 50 हजार से ज्यादा दुकान बंद हो चुके हैं और 30-35 हजार और दुकानें बंदी की कगार पर खड़ी हैं। कई दुकानदार आगामी त्यौहारी मौसम का इंतजार कर रहे हैं और उसमें भी सही ग्राहकी न हुई तो दुकानों को बंद करने का फैसला ले सकते हैं।
बंद हुई दूकानों में ज्यादातर मोबाइल के दूकान, रेडीमेड कपड़ों की दूकान, जूते-चप्पल की दुकान, स्टेशनरी की दूकान और खाने-पीने की छोटी दुकानें शामिल हैं। ये सब लॉकडाउन के दौरान तो बंद थी हैं, जब खुलीं भी तो ग्राहक नहीं आ रहे, लिहाजा दुकानदारों को दूकान चलाने के लिए रोजमर्रा के खर्च निकालना भी संभव नहीं हो पा रहा है।
फेडरेशन ऑफ कर्नाटका चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (Federation of Karnataka Chamber of Commerce and Industries) के चैयरमैन के. जनार्दन कहते हैं 'वृहत बैंगलुरु महानगर पालिका के अंतर्गत 4 लाख दुकानें हैं, जिनमें 12 से 15 प्रतिशत दुकान बंद हो चुके हैं तथा और 8 से 10 प्रतिशत दूकान बंद होने के कगार पर खड़े हैं। आप बंगलोर के किसी भी इलाके में चले जाएं, वहां दुकानों के बाहर बड़ी संख्या में टु-लेट के बोर्ड दिखाई देंगे। बिक्री न होना और दुकानों का किराया बढ़ते जाना इसका प्रमुख कारण है।'
जनार्दन ने इनकी समस्या बताते हुए कहा 'बंगलोर में बड़ी संख्या में ऐसी दुकानें हैं, जो व्यवसायी किराए पर लेकर चलाते हैं। ऐसे लोग दूसरी जगहों के हैं और दुकान और मकान दोनों किराए पर लिए हुए हैं। ऐसे में इन लोगों पर दोहरी मार है। एक तरफ दुकानों का किराया तो दूसरी ओर घर का किराया देना है। कोरोना काल के पहले की तुलना में अभी 25 फीसदी बिक्री भी नहीं हो रही है, इस स्थिति का सामना आखिर वे लोग कैसे करें?'
बंगलोर के संजयनगर में रेडीमेड कपड़ों की दुकान चलाने वाले एक दुकानदार ने कहा 'मैं अप्रैल से दुकान का किराया नहीं दे पाया हूं। अप्रैल और मई में लॉकडाउन के कारण दुकान बंद थी। उसके बाद दुकान खोली, पर बिक्री नहीं है। दुकान का किराया 12 हजार रुपया प्रतिमाह है। अब दुकान का मालिक कह रहा है कि सुरक्षा राशि का जो ढाई लाख रुपया जमा है, उसमें से किराया का पैसा काट लेगा।'
यह सिर्फ उस दुकानदार की नहीं, बल्कि बंगलोर के अधिकांश दुकानदारों की है। बीजेपी के विधायक और गरुदा मॉल के मालिक उदय गरुदाचर मीडिया से कहते हैं 'किराएदार पिछले चार माह से किराया नहीं दे पा रहे हैं, चूंकि बिक्री नहीं है। उनके मॉल में भी पिछले दो माह में चार दुकान खाली हुए हैं। उनकी परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए हम किराए के लिए दबाव नहीं डाल रहे हैं। अभी केवल मेंटेनेंस चार्ज ही ले रहे हैं, जो बहुत ही कम राशि होती है। इस दौर में सबको एक-दूसरे का सहयोग करना चाहिए।'
सबसे बुरी स्थिति उन दुकानदारों और व्यवसायियों की हो गई है, जिन्होंने कोरोना की आपदा शुरू होने के तुरंत पहले अपना व्यवसाय शुरू किया था। इनके लिए 'प्रथमे ग्रासे मच्छिकापातम' वाली परिस्थिति हो गई है। बैंक से कर्ज लेकर शुरू किए गए व्यवसाय के प्रारंभ होते ही बंद हो जाने के कारण ये लोग बैंकों की ईएमआई भी नहीं भर पा रहे हैं।