14 साल बाद फिर मंडरा रहा है दुनिया में आर्थिक मंदी का खतरा, जानें भारत पर कितना होगा इसका असर
सावधान! 14 साल बाद फिर मंडरा रहा है दुनिया में आर्थिक मंदी का खतरा, जानें भारत पर कितना होगा इसका असर
नई दिल्ली। हाल ही में world bank ने कहा है कि इस साल के अंत तक दुनिया के देशों में आर्थिक मंदी ( World Economic recession ) आने वाली है। सभी को इसकी तैयारी कर लेनी चाहिए। तो सही मायने में मंदी आने वाली है? बीते कुछ महीनों में महंगाई बेतहाशा बढ़ गई है। पेट्रोल डीजल के दाम से लेकर खाने पीने की चीजों के दाम देखें या फिर कुछ और, महंगाई अपने चरम पर जाती दिख रही हैं। भारत ( India ) में पिछले कई सालों में की तुलना में हालत सबसे ज्यादा खराब है। सवाल उठ रहे हैं कि क्या आर्थिक मंदी के लिए सिर्फ महंगाई ही जिम्मेदार है? ऐसा नहीं है तो फिर मंदी का सवाल क्यों उठ रहा है?
दुनिया में कब-कब आया आर्थिक मंदी?
अमूमन मंदी आने से पहले अर्थव्यवस्था ( Global Economy ) में लगातार कुछ समय तक विकास थम जाता है। रोजगार ( employment ) कम हो जाता है। महंगाई बढ़ने लगती है। लोगों की आमदनी घटने लगती है। इसे आर्थिक मंदी ( Economic recession ) कहा जाता है। अभी तक पूरी दुनिया में चार बार आर्थिक मंदी आ चुकी है। पहली बार 1975 में दूसरी बार 1982 में, तीसरी बार 1991 में और चौथी बार 2008 आर्थिक मंदी आई थी। पांचवीं बार विश्व बैंक ( World Bank ) ने इसकी आशंका जताई दी है।
विश्व बैंक ने क्या कहा?
विश्व बैंक ( World bank ) ने कहा है कि दुनिया के देशों को आर्थिक मंदी की तैयारी कर लेनी चाहिए। इस साल के अंत तक दुनिया की आर्थिक मंदी दस्तक दे सकती है। पूरी दुनिया जयादा महंगाई और कम विकास दर से जूझ रही है, जिसकी वजह से 1970 के दशक जैसी मंदी आ सकती है। दुनिया भर में सका असर दिखने भी लगा है। तय है भारत भी इससे अछूता नहीं रहेगा।
गूगल ने दिए भर्ती रोकने के संकेत
गूगल की पैरेंट कंपनी एल्फाबेट ने कहा है कि वो इस साल के बचे हुए महीनों में भर्ती कम करेगी। ऐसा आने वाले महीनों में मंदी को देखते हुए किया जा रहा है। कंपनी को भेजे एक ईमेल में सीईओ सुंदर पिचाई ने कहा है कि 2022-23 में कंपनी का फोकस सिर्फ इंजीनियरिंग, तकनीकी विशेषज्ञ और महत्वपूर्ण पदों पर बहाली करने पर होगा। 2008-09 में जब आर्थिक मंदी आई थी तो भी गूगल ने अपनी भर्ती प्रक्रिया रोक दी थी। केवल गूगल ही नहीं, जानकारी तो ये भी है कि फेसबुक भी 2022 में 10 जार के टारगेट के बजाए सिर्फ 6 हजार से 7 हजार नये इंजीनियर की भर्ती करेगा। 2022-23 में संभावित मंदी को देखते हुए माइक्रोसॉफ्ट ने भी भर्तियों में कटौती का फैसला किया है।
मंदी का खतरा क्यों?
विश्वव्यापी आर्थिक मंदी के पीछे पहला कारण 2020 में जब कोविड आया तो पूरी दुनिया में लॉकडाउन हो गया जिसकी वजह से अर्थव्यवस्था की विकास दर घट गई। करोड़ों लोग बेरोजगार हो गए। लॉकडाउन खुला तो चीन की ओर से भेजे जाने वाले सामानों की सप्लाई चेन में रुकावट आ गई। सप्लाई कम हुई तो दुनिया भर में चीजों की डिमांड बढ़ गई जिसकी वजह से महंगाई बढ़ी है। फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूस ने हमला कर दिया जिससे दुनियाभर में खाने के सामान और तेल की सप्लाई चेन पर असर हुआ। कच्चा तेल महंगा हुआ तो इसका भी सीधा असर महंगाई पर देखने को मिला। महंगाई से निपटने के लिए दुनिया के केंद्रीय बैंक ब्याज दरों में वृद्धि कर रहे हैं। बैंकों ने ब्याज दरें बढ़ाई तो शेयर मार्केट से विदेशी निवेशकों ने पेसे निकाल लिए हैं। विदेशी निवेशकों ने पैसे निकाले तो सीधा असर उस देश की करेंसी ( inflation ) पर आया जेसे भारत का रुपए लगातार गिर रहा है।
महंगाई और बेरोजगारी चरम पर
अमेरिका में महंगाई दर 9.1 फीसदी तक पहुंच गई है जो पिछले 40 सालों में सबसे ज्यादा है। युनाइटेड किंगडम में भी महंगाई 40 साल में सबसे ज्यादा 9.1 फीसदी तक पहुंच गई है। यूरोपियन यूनियन में महंगाई 7.6 फीसदी तक पहुंच गई है। दुनिया में इस वक्त साढ़े 20 करोड़ लोगों के बेरोजगार ( Unemployment ) होने की आशंका है। 2019 में 18 करोड 70 लाख लोग बेरोजगार हुए थे।
भारत में महंगाई और बेरोजगारी दर
जहां तक बात भारत की है तो अप्रैल 2021 में महंगाई दर 4.23 प्रतिशत थी। इस बार महंगाई दर के इतना ऊपर जाने में बड़ी भूमिका खाने पीने की चीजों के दामों की है। उनमें 8.38 प्रतिशत महंगाई दर दर्ज की गई है, जब कि एक महीना पहले यह दर 7.68 प्रतिशत थी।
वहीं पीएलएफएस के सर्वे के मुताबिक अक्टूबर से दिसंबर 2019 की तिमाही में भारत में बेरोजगारी दर 7.9% थी। ये वो वक्त था जब कोरोना नहीं आया था। कोरोना आने के बाद जनवरी से मार्च 2020 के बीच बेरोजगारी दर बढ़कर 9.1% के पार पहुंच गई। कोरोना को काबू करने के लिए पहली लहर में अप्रैल से जून के बीच सख्त लॉकडाउन लगा रहा। आर्थिक गतिविधियां बंद हो गई थीं। बेरोजगारी दर बढ़कर करीब 21% पर आ गई। जब अनलॉक की प्रक्रिया शुरू हुई तो बेरोजगारी दर में थोड़ी कमी भी आई। जुलाई से सितंबर 2020 के बीच बेरोजगारी दर 13.3% और अक्टूबर से दिसंबर 2020 के बीच घटकर 10.3% रही। अप्रैल से जून 2021 तिमाही में बेरोजगारी दर 12.7 रही, जबकि इससे पहले जनवरी से मार्च तिमाही में ये दर 9.4% थी। दूसरी लहर के बाद हालात जैसे ही काबू में आए तो बेरोजगारी दर फिर कम होकर 9.8% पर आ गई।