बंगाली किसान इस बार नेपाल नहीं भेज पाएंगे अनानास, करीब 12 करोड़ का होगा नुकसान
जनज्वार। पश्चिम बंगाल के उत्तरी हिस्से के अनानास उत्पादक किसानों को इस साल बड़ा आर्थिक नुकसान होने जा रहा है। भारत एवं नेपाल के बीच तारी तनाव को लेकर उत्तर बंगाल के किसानों की अनानास की फसल की खपत इस बार नेपाल में नहीं हो पाएगी। भारत एवं नेपाल के बीच दशकों से घनिष्ठ मित्रतापूर्ण रिश्ते रहे हैं। पर, हाल में उसने कुछ ऐसे निर्णय लिए हैं, जिसने भारत को निराश किया है। नेपाल की संसद ने एक नए नक्शे को पारित किया जिसमें तीन भारतीय इलाकों कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा को अपने इलाके के रूप में दिखाया है। इसके बाद से दोनों देशों के संबंध में तनाव है।
इस तनाव की मार दार्जिलिंग व उत्तर दीनाजपुर जिले के अनानास की खेती करने वाले किसानों पर पड़ने जा रही है। दार्जिलिंग के बिधाननगर और उत्तर दीनाजपुर के इस्लामपुर में अनानास की खेती प्रमुखता से होती है। अनानास मर्चेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष काजल घोष कहते हैं कि नेपाल द्वारा लिए गए फैसलों के कारण हम अनानास वहां नहीं भेज पांएगे।
उत्तर बंगाल में 20 हजार हेक्टेयर भूमि पर अनानास की खेती होती है और हर साल करीब 6.2 लाख मिट्रिक टन अनानास का उत्पादन होता है। इस काम से प्रत्यक्ष एक प्रत्यक्ष तौर पर एक लाख लोग जुड़े हुए हैं। यहां से नेपाल के अलावा दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र एवं उत्तरप्रदेश भी अनानास भेजा जाता है।
अनानास के कारोबार से जुड़े एक व्यक्ति का कहना है कि फसल के समय हर दिन यहां से 25 हजार अनानास नेपाल भेजा जाता है और सालाना तीन हजार मिट्रिक टन अनानास का नेपाल में निर्यात होता है, जिसकी कीमत 10 से 12 करोड रुपये होती है। भारत में अनानास की कीमत अपेक्षाकृत कम मिलती है, नेपाल में वह निर्यात करने पर 40 रुपये किलो तक बिकता है। फलों के लिए नेपाल बहुंत हद तक भारत पर निर्भर है। हालांकि इस कारोबार से जुड़े कुछ दूसरे लोगों का कहना है कि भारत में थोड़ी कम कीमत पर फसल बेचना पड़ सकता है, लेकिन कोई बड़ा नुकसान नहीं होगा।
अनानास उत्पादकों ने बिधाननगर में अनानास विकास एवं अनुसंधान केंद्र बनाने की मांग की है ताकि उनकी फसलों को अधिक अच्छा बाजार एवं सुविधाएं मिल सके।