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BIG BREAKING: भीमा कोरेगांव मामले में आरोपी आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता स्टेन स्वामी का निधन

Janjwar Desk
5 July 2021 9:34 AM GMT
BIG BREAKING: भीमा कोरेगांव मामले में आरोपी आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता स्टेन स्वामी का निधन
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(पिछले 10 माह से जेल की सलाखों के पीछे बंद बुजुर्ग सामाजिक कार्यकर्ता स्टेन स्वामी की हालत है बहुत गंभीर)

जनज्वार डेस्क। आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता स्टेन स्वामी का मुंबई के भद्रा अस्पताल में निधन हो गया है जहां उन्हें भर्ती कराया गया था। स्टेन स्वामी को वेंटिलेटर पर रखा गया था। बता दें कि खराब स्वास्थ्य के बावजूद स्टेन स्वामी को भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में आरोपी बनाया गया था। जिसके बाद से वह जेल में बंद थे।

भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में आरोपित और जेल में बंद सोशल एक्टिविस्ट फादर स्टेन स्वामी की स्थिति काफी गंभीर बनी हुयी थी। उनको होली फैमिली हॉस्पिटल,बांड्रा के चिकित्सकों ने 4 जुलाई को वेंटिलेटर पर शिफ्ट कर दिया था।

तमिलनाडु के रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी करीब पांच दशक से झारखंड के आदिवासी क्षेत्रों में काम कर रहे थे। विशेष रूप से वे विस्थापन, कंपनियों द्वारा प्राकृतिक संसाधनों की लूट रोकने, विचाराधीन कैदियों को रिहा कराने और पेसा कानून लागू करवाने आदि के मुद्दे पर काम करते रहे। यह भी उल्लेखनीय है कि जुलाई, 2018 में झारखंड की खूंटी पुलिस द्वारा पत्थलगड़ी आंदोलन मामले में फादर स्टेन स्वामी और कांग्रेस के पूर्व विधायक थियोडोर किड़ो सहित 20 अन्य लोगों पर राजद्रोह का केस दर्ज किया गया था, जिसे हेमंत सोरेन ने सीएम बनने के बाद वापस ले लिया था।

हालांकि भीमा-कोरेगांव मामले में 12 जुलाई 2019 को महाराष्ट्र पुलिस की आठ सदस्यीय टीम ने स्टेन स्वामी के घर पर छापा मारा था। लगभग चार घंटों तक उनके कमरे की छानबीन की गई थी। इसके बाद उनके कंप्यूटर के हार्ड डिस्क और इंटरनेट मॉडेम आदि को जब्त कर लिया गया था। इसके पहले 28 अगस्त, 2018 को भी महाराष्ट्र पुलिस ने स्टेन स्वामी के कमरे की तलाशी ली थी।

गौरतलब है कि पिछले साल 8 अक्टूबर को झारखंड के प्रसिद्ध मानवाधिकार कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी को भीमा कोरेगांव के मामले में रांची के नामकुम स्थित 'बगाईचा' से गिरफ्तार कर लिया गया था और अगले ही दिन मुंबई के NIA के विशेष अदालत में पेश कर मुंबई के तलोजा जेल भेज दिया गया।

स्टेन स्वामी को ​वेंटिलेटर पर शिफ्ट किये जाने के बाद झारखंड जनाधिकार महासभा ने उनकी अविलंब रिहाई की मांग की थी। संगठन ने कहा था कि भारत सरकार और जाँच संस्था NIA इस बुज़ुर्ग की पीड़ाओं के लिए और उनको इस दयनीय स्थिति तक पहुँचाने के लिए पूरी तरह ज़िम्मेवार है। सम्बंधित NIA अदालत ने भी इनके मेडिकल और नियमित बेल याचनाओं पर कार्यवाही न कर इस यातना में अपनी भागीदारी बनायी है। महाराष्ट्र सरकार के मदद के आश्वासन भी आश्वासन ही रहे, कोई ठोस मदद नहीं मिली।

गौरतलब है कि मई महीने की शुरुआत से ही तलोजा जेल में स्टेन स्वामी का स्वास्थ्य बिगड़ने लगा था। खांसी, बुख़ार, कमजोरी और ख़राब पेट की शिकायत होती रही। कोविड के लक्षण होने के बावजूद इसका जाँच नहीं की गयी। काफ़ी शोर मचाने के बाद इन्हें कोविड का टीका लगा जो इन्हें दूसरे वेव की शुरुआत में न देकर जब वे गम्भीर रूप से बीमार हो गए तब दिया गया। इस दौरान वे कोविड पॉजिटिव भी पाए गए। उच्च न्यायालय ने 28 मई को इलाज के लिए इन्हें होली फ़ैमिली अस्पताल जाने की अनुमति दी।

आदिवासी संगठन, बहुत सारी ग्रामसभाओं सिविल सोसाइटी, राजनीतिक नेता और यहाँ तक कि झारखंड के मुख्यमंत्री तक ने स्टेन स्वाी की गिरफ़्तारी की भर्त्सना की और उनके प्रति समर्थन जताया। NIA द्वारा पेश किए गए इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों के बारे में आर्सेनल रिपोर्ट में खुलासे के बाद साफ़ हो गया है कि भीमा कोरेगाँव में फँसाए गए अभियुक्तों के कम्प्यूटर में जाली दस्तावेज डाले गए। स्टेन भी बार बार कहते आए हैं कि जो दस्तावेज उनके कम्प्यूटर से बताए जा रहे हैं, वे नक़ली हैं और उनका कोई सम्बंध नहीं।

झारखंड जनाधिकार महासभा ने कहा है कि बिना किसी सबूत के स्टेन पिछले दस महीनों से जेल में बंद हैं और अब जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हैं। 84 साल के एक बुज़ुर्ग को जो कई गम्भीर बीमारियों से पीड़ित है और जो चल फिर भी नहीं सकते, जिनका किसी भी प्रकार के हिंसक गतिविधि में शामिल होने का कोई इतिहास नहीं है, उन्हें इस प्रकार की यातना देना एक लोकतांत्रिक राज्य में अकल्पनीय है। अगर जांच एजेंसी और न्यायालय द्वारा एक मानवीय दृष्टिकोण लिया जाता, तो आज स्टेन को इन यातनाओं को गुजरना नहीं पड़ता।

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