Begin typing your search above and press return to search.
जनज्वार विशेष

BHU : बनारस पुलिस के गले की फांस बन गया दो साल से लापता स्टूडेंट, ऐसे फंसी अपने ही बनाए जाल में

Janjwar Desk
22 April 2022 3:12 PM GMT
तस्वीर में बांये से BHU के मृतक छात्र शिव के पिता प्रदीप त्रिवेदी, बीच में वकील सौरभ तिवारी और दायें शिव त्रिवेदी की फाइल फोटो
x

तस्वीर में बांये से BHU के मृतक छात्र शिव के पिता प्रदीप त्रिवेदी, बीच में वकील सौरभ तिवारी और दायें शिव त्रिवेदी की फाइल फोटो

BHU : 'मेरा बेटा लापता नहीं हुआ था, उसे थाने लाकर टाचर्र किया गया, पुलिसिया मारपीट से ही मेरे बेटे की जान चली गई और अब पुलिस ने नई कहानी यह गढ़ी है कि उसकी मौत डूबने से हुई है'....

उपेंद्र प्रताप की रिपोर्ट

BHU : उत्तर प्रदेश के वाराणसी (Varanasi) स्थित बीएचयू के जिस स्टूडेंट को लंका थाना पुलिस (Lanka Police Station) लापता बता रही थी, वह मामला अब उसके गले की फांस बन गया है। छात्र शिव कुमार त्रिवेदी (Shiv Kumar Trivedi) के पिता प्रदीप त्रिवेदी की हिम्मत और हौंसले का ही असर है कि यह मामला एक बार फिर सुखियों में है।

प्रदीप दावा करते हैं, 'मेरा बेटा लापता नहीं हुआ था। उसे थाने लाकर टॉचर्र किया गया। पुलिसिया मारपीट से ही मेरे बेटे की जान चली गई और अब पुलिस ने नई कहानी यह गढ़ी है कि उसकी मौत डूबने से हुई है। नंगा सच यह है कि मेरे बेटे की मौत के मामले में पलीता लगाने के लिए पुलिस ने ऐसी पटकथा लिख डाली जो किसी के गले आसानी से नहीं उतर रही।'

बीएचयू का शिव कुमार प्रकरण इसलिए सुखिर्यों में है, क्योंकि लंका थाना पलिस का झोल इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने पकड़ लिया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट में पुलिस ने अपना पक्ष रखते हुए कहा, 'लंका थाने समीप गंगा उस पार रामनगर में एक तालाब के पास लावरिश लाश मिली थी, जो शिव की थी। 13-14 फरवरी 2020 की रात थाने के कैमरे बंद थे, जिससे यह पता नहीं चल सका कि वह कब और कैसे लापता हो गया?'

पुलिस के मुताबिक 13-14 फरवरी 2020 की रात लंका थाने से शिव गायब हो गया था। दो साल बाद लंका थाना पुलिस ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में बयान में स्वीकारा है कि शिव की मौत तालाब में डूबने की वजह से हुई थी।

शिव के पिता प्रदीप त्रिवेदी के अधिवक्ता पुलिस की कहानी को सच नहीं मानते। वह 'जनज्वार' से बातचीत में कहते हैं, "जब पुलिस पीआरवी ने छात्र को कैंपस से उठाया तो थाने की जीडी में इसका जिक्र क्यों नहीं किया गया? आरटीआई से मांगी गई जानकारी में तीनों कैमरों के एक्टिव होने की बात सामने आई है तो पुलिस कैंमरों के बंद होने की बात क्यों कह रही है? "

शिव कुमार त्रिवेदी बीएससी सेकंड ईयर का स्टूडेंट था। रिपोर्ट के मुतिबक तबियत ठीक न होने से वह 13-14 फरवरी 2020 की रात बीएचयू कैंपस में एक नाले के पास बैठा था। उसके सीनियर एमएससी के स्टूडेंट अर्जुन सिंह उसे नशेड़ी समझ बैठे और पुलिस को फोन कर दिया। उसी रात लंका थाने की पुलिस मौके पर पहुंची और उसे उठाकर थाने ले गई। उसके बाद से शिव का कहीं अता-पता नहीं चला। उसके पिता प्रदीप त्रिवेदी मध्यप्रदेश के पन्ना जिले से अपने बेटे की खोज-खबर लेने बनारस पहुंचे। काफी ढूंढने के बाद शिव के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं मिली।

बनारस पुलिस की धीमी जांच और फिसड्डी प्रगति रिपोर्ट को देखते हुए यूपी गृह मंत्रालय ने मामले को सीबीसीआईडी को सौंप दिया। 4 नवबंर 2020 को सीबीसीआईडी ने जांच की कमान संभाली और दो जांच टीमें गठित कर हरकत में आ गई। करीब 10 महीनों बाद दिसंबर 2021 में बनारस के रामनगर में तालाब के पास लावारिश लाश मिली। पिता प्रदीप ने फोटो और कपड़ों के आधार पर पहचान की तो वह लाश शिव की होना स्वीकार किया। इलाहाबाद हाईकोर्ट में अप्रैल 2021 में डीएनए रिपोर्ट पेश की गई। पुलिस ने कहा कि शिव थाने से रात में लापता हो गया और रामनगर के तालाब में डूबकर उसकी मौत हो गई।

हाईकोर्ट में सुनवाई दौरान पुलिस का पक्ष रखते हुए सरकारी वकील ने छात्र शिव कुमार त्रिवेदी के मानसिक संतुलन पर ही सवाल खड़े कर दिए। इस पर प्रदीप के अधिवक्ता सौरभ ने तफसील से पुलिस को कटघरे में खड़ा किया और कहा, 'पुलिस ने गुमशुदगी रिपोर्ट दर्ज करने के बाद छह महीने तक जांच में क्या किया? दूसरी बात, आरटीआई की जानकारी में 13-14 फरवरी की घटना वाली रात लंका थाने के तीनों कैमरे के एक्टिव थे। फिर पुलिस ने बंद क्यों बताया? आखिर वह कौन सी वजह थी कि पुलिस ने सीसीटीवी का फुटेज नहीं दिखाया?'

अधिवक्ता सौरभ ने यह भी सवाल खड़ा किया, 'लंका थाना पुलिस ने जांच के नाम पर बनारस और उसके सीमावर्ती एक दर्जन से अधिक जिलों में जांच के नाम पर क्या किया? शिव को अगर डूबना या फिर मरना ही था तो वह गंगा पार कर रामनगर क्यों गया? "

सबसे अहम बात यह है कि शिव के लापता होने के मामले में सिर्फ इलाकाई पुलिस ही नहीं, आला अफसर भी टालमटोल करते रहे। अफसरों के रवैये से हाईकोर्ट भी काफी नाराज दिखा। साल 2021 में सुनवाई के दौरान इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बनारस के तत्कालीन एसएसपी अमित पाठक को मौन रहकर अदालत में घंटों खड़ा रहने का दंड दिया था।

बनारस का यह हाईप्रोफाइल मामला अब एक बार फिर सुर्खियों में है। मामला इतना पेंचीदा हो गया है कि पुलिस के अफसर भी अब जुबान खोलने के लिए तैयार नहीं हैं। पुलिस की जांच-पड़ताल के बारे में लंका थानाध्यक्ष वेद प्रकाश राय से संपर्क किया गया तो उन्होंने कहा कि इस मामले में उच्चाधिकारियों से बात कीजिए।

(जनता की पत्रकारिता करते हुए जनज्वार लगातार निष्पक्ष और निर्भीक रह सका है तो इसका सारा श्रेय जनज्वार के पाठकों और दर्शकों को ही जाता है। हम उन मुद्दों की पड़ताल करते हैं जिनसे मुख्यधारा का मीडिया अक्सर मुँह चुराता दिखाई देता है। हम उन कहानियों को पाठक के सामने ले कर आते हैं जिन्हें खोजने और प्रस्तुत करने में समय लगाना पड़ता है, संसाधन जुटाने पड़ते हैं और साहस दिखाना पड़ता है क्योंकि तथ्यों से अपने पाठकों और व्यापक समाज को रू—ब—रू कराने के लिए हम कटिबद्ध हैं।

हमारे द्वारा उद्घाटित रिपोर्ट्स और कहानियाँ अक्सर बदलाव का सबब बनती रही है। साथ ही सरकार और सरकारी अधिकारियों को मजबूर करती रही हैं कि वे नागरिकों को उन सभी चीजों और सेवाओं को मुहैया करवाएं जिनकी उन्हें दरकार है। लाजिमी है कि इस तरह की जन-पत्रकारिता को जारी रखने के लिए हमें लगातार आपके मूल्यवान समर्थन और सहयोग की आवश्यकता है।

सहयोग राशि के रूप में आपके द्वारा बढ़ाया गया हर हाथ जनज्वार को अधिक साहस और वित्तीय सामर्थ्य देगा जिसका सीधा परिणाम यह होगा कि आपकी और आपके आस-पास रहने वाले लोगों की ज़िंदगी को प्रभावित करने वाली हर ख़बर और रिपोर्ट को सामने लाने में जनज्वार कभी पीछे नहीं रहेगा, इसलिए आगे आयें और जनज्वार को आर्थिक सहयोग दें।)

Janjwar Desk

Janjwar Desk

    Next Story