जिस बिहार में 72 हजार LED लगाकर भाजपा ने ठोकी चुनावी ताल, वहीं के मर रहे मजदूरों के लिए नहीं था 72 बसों का किराया
जनज्वार ब्यूरो पटना। बिहार में आसन्न विधानसभा चुनाव में प्रवासी मजदूरों का मुद्दा एक प्रमुख मुद्दा बनता जा रहा है।खासकर 7 जून की बीजेपी की वर्चुअल रैली के बाद प्रवासी मजदूरों के मुद्दे को लेकर राज्य की सत्तारूढ़ एनडीए की सरकार विपक्ष के सीधे निशाने पर आ गयी है। मुख्य विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल ने इसे मुद्दा बना लिया है और 7 जून की रैली के बाद और आक्रामक हो गया है।
राजद के मढौरा विधायक जितेंद राय ने बीजेपी की वर्चुअल रैली को धनबल का प्रदर्शन बताते हुए कहा, ' बीजेपी की वर्चुअल रैली में बूथों पर 72 हजार एलईडी लाइट तो लगा दिए गए पर राज्य की सत्तारूढ़ बीजेपी-जदयू की सरकार प्रवासी मजदूरों के लिए समय पर 72 बसों का इंतजाम भी नहीं कर सकी।पैसे की कमी का रोना रोकर प्रवासी मजदूरों को परदेश में उनके हाल पर छोड़ दिया गया।'
बिहार एक पिछड़ा राज्य है। यहां कल-कारखाने, उद्योग-धंधे न होने से रोजगार की भयंकर कमी है। लिहाजा राज्य की काम करने योग्य एक बड़ी आबादी दूसरे प्रदेशों में रोजगार करने को अभिशप्त है।दूसरे प्रदेशों में ये कामगार छोटे-मोटे काम कर,फैक्टरियों-व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में काम कर जीवन यापन करते हैं।कोरोना संकट के बीच परदेश में काम-धंधा बंद होने के कारण वे वहां भी बेरोजगार हो गए और भोजन का संकट हो गया जिसके बाद इन्हें कितने कष्ट झेलने पड़े, यह सर्वविदित है।
राज्य में गरीबी की स्थिति क्या है, यह राज्य सरकार के आंकड़े स्वयं ही बयान करते हैं। केंद्र सरकार राज्य के 65 लाख परिवारों को गरीबी रेखा के नीचे मानती है और इन परिवारों को 'खाद्य सुरक्षा योजना के तहत सस्ता अनाज मुहैया कराती है जबकि राज्य सरकार इस आंकड़े से भी इत्तेफाक नहीं रखती।
31 मार्च 2020 को बिहार सरकार द्वारा जारी ताजा आंकड़े के अनुसार गरीबी रेखा के नीचे बसर करने वाले परिवारों की संख्या 1 करोड़ 26 लाख 56 हजार है। राज्य सरकार के आंकड़े बताते हैं कि बिहार के कुल 38 में से 30 जिलों की 50 फीसदी से भी ज्यादा आबादी गरीबी रेखा के नीचे है। वहीं कुल 57.56 फीसदी ग्रामीण आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवन बसर करती है।
बिहार सरकार के आंकड़ों के आधार पर अगर संभावित आंकड़ा निकाला जाए,तो प्रति परिवार 5 व्यक्ति रखने पर राज्य के 6 करोड़ से ज्यादा की आबादी गरीबी रेखा के नीचे आ जाती है।वह भी तब जब ग्रामीण क्षेत्रों में 49 हजार रुपये प्रतिवर्ष और शहरी क्षेत्रों में 60 हजार रुपये प्रतिवर्ष से ज्यादा की आमदनी वाले परिवार को गरीबी रेखा से ऊपर माना जाता है।
वर्ष 2011 में हुई आखिरी जनगणना के अनुसार राज्य की कुल जनसंख्या 10 करोड़ 38 लाख है। अर्थात राज्य की कुल आबादी में से आधे से अधिक परिवारों की मासिक आय 4-5 हजार से ज्यादा नहीं है।
सरकारी आंकड़े के अनुसार कोरोना काल में दूसरे प्रदेशों से अधिकृत रूप से यानि श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से 20 लाख से ज्यादा प्रवासी बिहार लौटे हैं जबकि सामान्य समझ है कि बड़ी संख्या में लोग पैदल,सायकिल,ट्रक,पिकअपनिजी सवारी आदि से भी लौटे हैं।अ ब इन सबके सामने रोजगार का संकट है। अभी मनरेगा और सात निश्चय योजना द्वारा कुछ प्रवासी मजदूरों को काम से जोड़ने की कोशिश जरूर हो रही है,पर यह तत्कालिक व्यवस्था ही है और इतनी बड़ी संख्या में आए मजदूरों के लिए नाकाफी है।
सारण जिला राजद के महासचिव सागर नौशेरवान कहते हैं कि 'एक तरफ राज्य की एनडीए की सरकार प्रवासी मजदूरों के मामले में धन की कमी का रोना रो रही है,तो दूसरी तरफ वर्चुअल चुनावी रैली कर एक दिन में करोड़ों रुपये फूंक दिए गए।राज्य सरकार के पास इन प्रवासी मजदूरों के लिए न तो कोई रोडमैप है,न वो इनके बारे में सोच रही है।सरकार को बस चुनाव को पड़ी है।'
विधायक जितेंद राय ने भी कहा कि उनकी पार्टी प्रवासी मजदूरों के मुद्दे को प्रमुखता से उठा रही है और इनके रोजगार को लेकर काफी गंभीर है।उन्होंने दावा किया कि उनकी पार्टी इन मजदूरों के लिए रोडमैप बना रही है और आगामी चुनाव में उनकी पार्टी के घोषणापत्र में इसका विस्तृत रोडमैप रखा जाएगा।