Bihar liquor ban: शराबबंदी के बावजूद बिहार में जहरीली शराब से लगातार मौतें हो रही हैं
Bihar liquor ban: शराबबंदी के बावजूद बिहार में जहरीली शराब से लगातार मौतें हो रही हैं
Bihar liquor ban: बिहार में होली पर एक तरफ लोग रंग-अबीर खेल रहे थे। वहीं, दूसरी तरफ जहरीली शराब लोगों की जिंदगी छीन रही थी। होली के दौरान पिछले दो दिन में बिहार में 32 लोगों की जान गई है। मृतक के परिजनों के मुताबिक सभी की मौत जहरीली शराब की वजह से हुई है। जहरीली शराब के चलते सिर्फ भागलपुर में 17 लोगों ने जान गंवाई। बांका में 12 ने दम तोड़ा। वहीं, मधेपुरा में भी 3 की मौत हुई है। कई लोग अभी भी अस्पताल में भर्ती हैं।
बिहार में जहरीली शराब पीने से 32 लोगों की मौत से राज्य में शराबबंदी पर एक बार फिर से सवाल उठने शुरू हो गए हैं और साथ में इस बात का भी आंकलन और विश्लेषण किया जाने लगा है कि 12 करोड़ की आबादी वाले राज्य बिहार में शराब पीने को आपराधिक बनाना और इसपर पूर्ण प्रतिबंध लगाना कितना जायज है? बिहार में शराब रखने और पीने को अपराध बनाने से संबंधित बिहार राज्य मद्यनिषेध कानून को अस्तित्व मे आए एक लंबा अरसा बीत चुका है और इस पर फिर से मंथन करने की आवश्यकता महसूस की जाने लगी है।
मौजूदा स्थितियों और परिस्थितियों को देखते हुए यह साफ तौर पर कहा जा सकता है कि इस कानून से घोषित सामाजिक और आर्थिक उद्देश्यों की प्राप्ति नहीं हो पायी है। प्रशासनिक तथा सामाजिक स्तर पर भी कई ऐसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है जिनके बारे में कल्पना भी नहीं की गई थी।
2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने शराबबंदी करने का वादा किया था। उनके इस वादे का असर ये हुआ था कि महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत 60 के करीब हो गया था। कई इलाकों में तो 70 फीसदी से ज्यादा महिलाओं ने वोट दिया था।
सरकार बनने के बाद अप्रैल 2016 में बिहार में शराबंबदी का कानून आया। 1 अप्रैल 2016 को बिहार देश का 5वां ऐसा राज्य बन गया जहां शराब पीने और जमा करने पर प्रतिबंध लग गया।
कानून का उल्लंघन करने पर सख्त सजा का प्रावधान किया गया। एक रिपोर्ट के मुताबिक इस कानून के तहत 3,48,170 मामले दर्ज किए गए और 4,01,855 लोगों को गिरफ्तार किया गया। गत अक्टूबर तक ऐसे मामलों से जुड़ी करीब 20,000 जमानत याचिकाएं विभिन्न कोर्ट में लंबित हैं।
बिहार में शराबबंदी लागू है, लेकिन यहां शराब की खपत महाराष्ट्र से भी ज्यादा है। महाराष्ट्र में शराबबंदी नहीं है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि ड्राई स्टेट होने के बावजूद बिहार में महाराष्ट्र से ज्यादा शराब की खपत होती है।
आंकड़ों के मुताबिक, बिहार में 15.5% पुरुष शराब पीते हैं. जबकि, महाराष्ट्र में शराब पीने वाले पुरुषों की तादात 13.9% है। हालांकि, 2015-16 की तुलना में बिहार में शराब पीने वाले पुरुषों में काफी कमी आई है। 2015-16 के सर्वे के मुताबिक, बिहार में करीब 28 फीसदी पुरुष शराब पीते थे।
बिहार में शराबबंदी कानून शुरू से ही विवादों में रहा है। एक अप्रैल 2016 को लागू बिहार मद्य निषेध कानून से माना गया था कि इससे शराब से जुड़े अपराध कम होंगे और विभिन्न वर्गों की ओर से हो रहे विरोध का जवाब दिया जा सकेगा। राज्य भर में शराब की बिक्री और इसके उपभोग पर प्रतिबंध लगा दिया गया और जो भी व्यक्ति शराब के साथ पकड़ा गया उस पर मुकदमा दर्ज किया गया। एक अनुमान के मुताबिक शराबबंदी कानून लागू होने से राज्य सरकार को करीब 4,000 करोड़ रुपए के राजस्व का नुकसान हुआ है।
हालांकि राज्य सरकार के स्तर पर अभी तक शराबबंदी से राजस्व नुकसान का कोई आधिकारिक आंकलन नहीं किया गया है। एक अध्ययन से पता चला है कि शराब पर प्रतिबंध से अपराधों पर रोक नहीं लगी बल्कि आपराधिक घटनाओं में अनुमान के विपरीत बढ़ोतरी दर्ज की गई। जानकारों का कहना है कि बिहार की मद्य निषेध नीति की नींव ही गलत है और शुरुआती गलतियों को ढंकने के लिए दूसरे तरीकों का सहारा लेते रहे जिनमें कानून में लगातार संशोधन, बेहतर छवि पेश करने के लिए आंकड़ों में हेर-फेर और मीडिया में अपने अनुकूल खबरें छपवाना शामिल है।
जब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शराबबंदी की घोषणा की थी तो महिलाओं ने इसका जोरदार स्वागत किया था। शराब के कारण सैकड़ों परिवार तबाह हो गए थे। महिलाओं को इससे ज्यादा परेशानियां थीं। शराबियों के आतंक से महिलाएं घर और बाहर आतंकित रहती थीं। गरीब परिवार आर्थिक परेशानियों से जूझ रहे थे। महिलाओं की मांग पर ही राज्य में शराबबंदी कानून लागू की गई थी। बिहार में वर्ष 1977 में जननायक कर्पूरी ठाकुर ने भी शराब पर प्रतिबंध लगाया था. लेकिन शराब की कालाबाजारी और कई अन्य परेशानियों की वजह से यह प्रतिबंध ज्यादा दिनों तक नहीं चल सका।
हालांकि बिहार कोई अकेला ऐसा राज्य नहीं है जहां शराबबंदी में निराशा हाथ लग रही है। हरियाणा, आंध्रप्रदेश और मिजोरम में भी शराबबंदी हुई थी, लेकिन यह कारगर नहीं हो पायी। हालांकि गुजरात, नागालैंड, लक्षद्वीप के अलावा मणिपुर के कुछ हिस्सों में शराब बिक्री पर अभी भी पाबंदी है। शराबबंदी में गुजरात की खूब चर्चा होती है। गुजरात में वर्ष 1960 से शराबबंदी है. इसके लिए केन्द्र सरकार प्रतिवर्ष 100 करोड़ रूपए मदद देती है। हालांकि गुजरात में भी शराब की कालाबाजारी की शिकायतें मिलती रही हैं। राज्य की एक बड़ी आबादी शराब का सेवन करती है। एक अनुमान के अनुसार गुजरात में हर वर्ष करीब 400 करोड़ रूपए के अवैध शराब का कारोबार होता है। बिहार के दक्षिण में झारखंड और उत्तर में पड़ोसी देश नेपाल में शराब की छूट है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों का सीधा संपर्क बिहार से है। इन राज्यों में शराब की बिक्री पर प्रतिबंध नहीं है। इसलिए राज्य में शराब की कालाबाजारी का खतरा बना रहता है।