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बिहार

लॉकडाउन में काम बंद होने से मजबूर होकर गांव आए और शुरू की खेती, पर बाढ़ ने फेर दिया पानी

Janjwar Desk
4 Aug 2020 9:53 AM IST
लॉकडाउन में काम बंद होने से मजबूर होकर गांव आए और शुरू की खेती, पर बाढ़ ने फेर दिया पानी
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बिहार के 20 लाख से ज्यादा प्रवासी लॉकडाउन के दौरान वापस आए थे। इनमें से ज्यादातर लोग अभी गांवों में ही थे, जिनमें बड़ी संख्या में लोगों ने खेती की थी, पर बाढ़ में सब डूब गया है।

जनज्वार ब्यूरो, पटना। बिहार में बाढ़ रोज नए इलाकों को प्रभावित कर रहा है। अब राज्य के 14 जिले बाढ़ से प्रभावित हैं। इन 14 जिलों में 56 लाख से ज्यादा की आबादी संकट में है। हजारों एकड़ में लगी फसल डूब गई है। मुजफ्फरपुर में तिरहुत तटबंध टूट गया है। कोसी, गंडक, बूढ़ी गंडक, अधवारा, बागमती, महानंदा और घाघरा नदियां खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं। साथ ही गंगा नदी में मामूली उतार-चढ़ाव देखा जा रहा है।

राज्य के सीतामढ़ी, शिवहर, सुपौल, किशनगंज, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, सारण, सीवान, गोपालगंज,मधुबनी, समस्तीपुर और खगड़िया में बाढ़ का प्रकोप है। इन इलाकों में खेती अच्छी होती है।

कोरोना के कारण दूसरे प्रदेशों में रह रहे लोग भी इस बार बड़ी संख्या में गांवों में ही आ गए थे। इनमें से ज्यादातर लोगों ने और कोई रोजगार न होने के कारण तात्कालिक रूप से खेती करने की ही ठानी थी, पर बाढ़ ने सबपर पानी फेर दिया है। इन जिलों की हजारों एकड़ की फसल डूब चुकी है तो बहुत से इलाकों में कटाव के कारण खेतों की जमीन नदी के पेट मे जा रही है।


सारण जिला के पानापुर के महादेव राय और विनय राय दिल्ली की एक इलेक्ट्रॉनिक सामान बनाने वाली फैक्ट्री में काम करते थे। लॉकडाउन के कारण फैक्ट्री बंद हो गई। वहां खाने-पीने और मकान का किराया देने में परेशानी हुई तो मई माह में किसी तरह से घर आ गए। इस दौरान दिल्ली में हुए कष्टों को देखते हुए सोच लिया कि अब गांव में रहकर ही कुछ करेंगे।

लॉकडाउन के लगातार जारी रहने के कारण कोई दूसरा काम नहीं मिला तो खेती करने की सोची। कुछ खेत पैतृक थी, उतने से परिवार का पालन-पोषण होनेवाला नहीं था, तो कुछ खेत गांव के ही एक आदमी से आधे फसल की बटाई पर ली और धान की फसल लगाई। बाढ़ आने से पहले सब ठीक चल रहा था। गोपालगंज में सारण तटबंध टूटने के बाद अचानक गांव में पानी आया और घर-बार, फसल सब डूब गया। अब भविष्य की चिंता इन्हें खाए जा रही है।


यह समस्या सिर्फ इन दोनों की ही नहीं है। सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार कोरोना लॉकडाउन के दौरान बिहार में 20 लाख से ज्यादा प्रवासी वापस आए। इनमें ज्यादातर मजदूर श्रेणी के थे, जो दूसरे राज्यों में फैक्ट्रियों, दुकानों आदि में काम करते थे। इनमें से बहुत से खेत मजदूर भी थे, जो पंजाब-हरियाणा आदि राज्यों के बड़े किसानों के यहां काम करते थे। घर आने के बाद रोजगार की कोई व्यवस्था न होने, लॉकडाउन के कारण दूसरे राज्यों में भी पूरी तरह से कंपनियों व फैक्ट्रियों के नहीं चलने और बाहर में झेले गए कष्टों के कारण इनमें से बड़ी संख्या में लोगों ने खेती शुरू की थी, पर बाढ़ ने सबपर पानी फेर दिया।

हालांकि सरकार नुकसान हुए फसल के लिए मुआवजे की घोषणा करती है, पर यह एक लंबी प्रक्रिया होती है। इन लोगों का कहना है कि पता नहीं यह कबतक मिलेगी, किसे मिलेगी और कितनी मिलेगी। इसके भरोसे क्या रहा जाय।

सामाजिक कार्यकर्ता डॉ सुभाष पाण्डेय कहते हैं 'बिहार को कृषि प्रधान राज्य माना जाता है, पर यहां के किसानों की दुर्दशा जगजाहिर है। किसान पारंपरिक तरीके की खेती करते हैं, जिनसे लागत भर ही निकल पाती है। इसे रोजगार न कह, इंगेजमेंट भर कहना ज्यादा सही होगा। इन्हें उन्नत खेती के के प्रति जागरूक और प्रशिक्षित करने की कोई कोशिश नहीं होती।'


वे आगे कहते हैं 'पहले सारण, सीवान और गोपालगंज जिलों में चीनी मिलों के होने से गन्ना एक प्रमुख नकदी फसल थी, पर चीनी मिलों के बंद होने से इस क्षेत्र के किसान अब गन्ने की जगह धान-गेहूं की पारंपरिक फसल लगा रहे हैं, जिससे इन्हें कोई खास लाभ नहीं होता। ऊपर से राज्य में लगभग हर वर्ष आनेवाली बाढ़ इनकी कमर तोड़ देती है। सरकार किसानों के लिए दावे तो बहुत करती है, पर ये सब दावे अबतक फेल ही साबित हुए हैं।'

जल संसाधन विभाग से जारी आंकड़ों के अनुसार राज्य में अवधारा समूह की नदियों का जलस्तर बढ़ रहा है। सीतामढ़ी में अवधारा समूह की नदियां लाल के ऊपर बह रही है। इधर महानंदा और भूतही बलान में भी ऊफान है। महानंदा लाल निशान के ऊपर और बलान नीचे बह रही है, लेकिन दोनों का जलस्तर बढ़ रहा है।

पटना मौसम विभाग से जारी आंकड़ों के अनुसार बूढ़ी गंडक स्थिर है, जबकि कमला, घाघरा और कोराई नदी लाल निशान के ऊपर बह रही है। ताजा आंकड़ों के अनुसार इन नदियों में बढोतरी जारी हैं।

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